गरुड़ को उपदेश
एक बार भगवान् श्रीहरि पक्षिराज गरुड़ की जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे थे। गरुड़ की मृत्यु के समय की स्थिति की जिज्ञासा का समाधान करते हुए श्रीहरि ने कहा, 'जो लोग सत्य का पालन करते हैं, झूठ नहीं बोलते, काम, ईर्ष्या और द्वेष के कारण स्वधर्म का परित्याग नहीं करते, वे सभी निश्चय ही सुखपूर्वक शरीर का त्याग करते हैं। ऐसे दृढ़ संकल्पवान सदाचारी पुरुषों की आदर्श मृत्यु होती है जो असत्यवादी, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघाती और धर्म निंदक होते हैं, वे मूर्च्छा रूपी दुःखद मृत्यु को प्राप्त होते हैं।'
भगवान् श्रीहरि कर्म की व्याख्या करते हुए बताते हैं, जो कर्म जीवात्मा को बंधन में (मोह-लोभ में नहीं ले जाता, वही सत्कर्म है। जो विद्या प्राणी को मुक्ति प्रदान करने में समर्थ है, वही विद्या है।'
श्रीहरि गरुड़ को उपदेश देते हुए बताते हैं कि सत्संग और विवेक—ये प्राणी के सार्थक दो नेत्र हैं। सत्संग और विवेक के बिना मानव अंधकार में भटकता रहता है। जो व्यक्ति ज्ञान का झूठा दंभ करके जटाजूट रखकर, मृगचर्म पहनकर अपने को साधु समझता है और यह दावा करता है कि 'मैं ब्रह्म को जानता हूँ' – ऐसे ढोंगी व्यक्ति का कभी संग नहीं करना चाहिए।
अंत समय के कल्याण का साधन बताते हुए भगवान् कहते हैं, 'अंत समय आ जाने पर भयरहित होकर संयम रूपी शस्त्र से देहादि की आसक्ति को काट देने वाला व्यक्ति जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।'
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