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पहुँचे हुए सिद्ध

 

पहुँचे हुए सिद्ध

रानी रासमणि ने भट्टाचार्य महाशय (स्वामी रामकृष्ण परमहंस) को उनकी प्रारंभिक अवस्था में काली माँ की सेवा के लिए अपने मंदिरों में पुजारी नियुक्त किया । अपने निश्छल हृदय तथा कठोर साधना से परमहंसजी ने काली माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने में इतनी सफलता प्राप्त कर ली कि वे घंटों उनकी स्मृति में समाधिस्थ हो जाते थे। रानी रासमणि समझ गई कि वे साधारण पुजारी नहीं , अपितु सिद्ध और त्रिकालदर्शी महात्मा हैं । वे प्रेम और विनय की साक्षात् मूर्ति हैं । इसलिए वे प्रायः मंदिर पहुँचा करतीं और उनका सत्संग करने को तत्पर रहतीं । स्वामीजी के मुख से माँ काली की भक्ति के गीत सुनकर उन्हें अनूठा रस मिलता था ।

मंदिर के अन्य कर्मचारी भट्टाचार्यजी को साधारण पुजारी मानते थे। वे सभी रानी को ही मालिक मानकर उनके पैर छूकर प्रणाम किया करते थे। एक दिन रानी मंदिर पहुंचीं । उन्होंने स्वामीजी से माँ काली का भजन सुनाने की प्रार्थना की । स्वामीजी ने भजन सुनाना शुरू किया । थोड़ी देर में ही वे समझ गए कि रानी का मन किसी सांसारिक मामले में उलझा हुआ है । उन्होंने तपाक से उनके मुँह पर तमाचा जड़ दिया और बोले, काली माँ के सामने पूरे मन और हृदय से एकाग्रचित्त होकर बैठना चाहिए ।

रानी तुरंत उनके चरणों में झुक गई और बोलीं, वास्तव में आज होने वाले मुकदमे में मन पहुँच गया था । मुझे क्षमा करें । मंदिर के कर्मचारी पहली बार स्वामीजी की महानता को समझकर हतप्रभ थे ।


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