माँ लक्ष्मी
का स्वभाव
पुराणों के अनुसार, महालक्ष्मी सदाचारी, पुरुषार्थी और सत्यवादी आदि गुणों से युक्त व्यक्ति के यहाँ ही निवास करती
हैं । जो व्यक्ति निराशा और हताशा त्यागकर निरंतर धर्मानुसार जीवन जीता हुआ
पुरुषार्थ करता है, वह सहज ही
देवी लक्ष्मी की कृपा का अधिकारी बन जाता है । कहा भी गया है, उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी ।
एक बार देवी रुक्मिणी ने लक्ष्मीजी से पूछा, देवी , आप किन-किन स्थानों में रहती हैं तथा किन्हें कृपा कर अनुगृहीत करती हैं ? लक्ष्मीजी ने देवी रुक्मिणी को बताया , मैं उन सद्गृहस्थों के घरों में सतत निवास
करती हूँ, जो
जितेंद्रिय (सदाचारी ), कर्तव्यपरायण , कृतज्ञ और विनम्र होते हैं । वृद्धों और गुरुजनों की सेवा में
रत रहने वाले लोग मुझे बहुत प्रिय हैं । इसी तरह , जो महिलाएँ शीलवती , गुणवती और सबका मंगल चाहने वाली होती हैं, उनका संग मुझे बहुत भाता है । भगवती लक्ष्मी
ने आगे बताया , जो अकर्मण्य, आलसी, दुराचारी, क्रूर कृतघ्न , वृद्धों और गुरुजनों से बैर रखने वाले हैं , मैं उनके पास रहना पसंद नहीं करती । इसी प्रकार, जो महिलाएँ गृहस्थी के पालन-पोषण की चिंता
नहीं करतीं, लज्जाहीन , अधीर, झगड़ालू और आलसी होती हैं ऐसी स्त्रियों का घर छोड़कर मैं चली
जाती हूँ ।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि धन का प्रतीक लक्ष्मी का अमर्यादित उपभोग
घोर पाप है । लक्ष्मी अर्थात् धन का सद्कार्यों में सदुपयोग किया जाना चाहिए ।
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