बराबर चलते
रहो
सत्यवादी हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित पिता की तरह धर्म तथा सत्य पर हमेशा अटल
रहे । देवराज इंद्र भी बालक रोहित के सद्गुणों से प्रभावित हुए । देवराज ने रोहित
को पाँच वर्ष तक अपने उपदेशों में अनेक दृष्टांत देकर सदा कर्म करते रहने, आगे बढ़ने और
धर्मानुसार आचरण करने की प्रेरणा दी ।
देवराज इंद्र ने रोहित से कहा , श्रम से जो नहीं थका, ऐसे पुरुष को ही लक्ष्मी मिलती है । निराश होकर, आलसी बनकर बैठे
व्यक्ति को पाप धर दबोचता है । जो चलता रहता है, उसके पाप थककर सोए रहते हैं । जो निरंतर चलता
रहता है, देवगण उसी पर कृपा करते हैं । इसलिए चलते रहो - चलते रहो ।
इंद्र दूसरे श्लोक में कहते हैं , बैठे हुए ( निराश) व्यक्ति का सौभाग्य बैठा रहता है । खड़े होकर
साहस के साथ चलने वाले का सौभाग्य आगे- आगे चलने लगता है । इसलिए चलते रहो - चलते
रहो ।
आगे वे कहते हैं , रोहित , सोने वाले का नाम कलि है । अंगड़ाई लेने वाला द्वापर है । उठकर
खड़ा होने वाला त्रेता है और चलने वाला सतयुगी है । चलता हुआ मनुष्य ही मधु पाता
है, चलता हुआ ही स्वादिष्ट फल चखता है । इसलिए चरैवेति अर्थात् चलते रहो - चलते
रहो ।
उपनिषद् में प्रस्तुत देवराज इंद्र द्वारा रोहित को दिए गए उपदेशों में
पाँचों श्लोकों का अंतिम शब्द चरैवेति दिया गया है । उनके उपदेशों का सार है, निरंतर कर्म में
तत्पर रहकर आगे बढ़ते रहनेवाला व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करता है ।
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