प्रजा का
कल्याण करो
चाणक्य नीतिज्ञ और विद्वान् होने के साथ - साथ परम तपस्वी एवं विरक्त भी थे।
मगध का राजा घनानंद लोभी, अहंकारी और अत्याचारी था । चाणक्य के संसर्ग में आने के बाद
घनानंद ने प्रजाजनों का उत्पीड़न बंद कर दिया । वह गरीबों व अपाहिजों को दान भी
देने लगा ।
एक दिन राजा घनानंद ने दरबार में चाणक्य से कह दिया , जितनी तुम्हारी
प्रतिभा है, यदि रूप भी उतना ही सुंदर होता, तो कुछ अलग बात होती ।
चाणक्य स्वाभिमानी थे। भरे दरबार में अपने अपमान से आहत होकर उन्होंने कहा, राजन् , मैं इस अपमान का
बदला लेकर ही चैन से बैलूंगा । अचानक एक दिन चाणक्य की चंद्रगुप्त से भेंट हो गई ।
वे उनके साहस व गुणों से प्रभावित हुए । उन्होंने चंद्रगुप्त को प्रेरणा देकर
बुद्धि कौशल से राजा घनानंद को पराजित करा दिया और उसे मगध का राजा बना दिया ।
चाणक्य ने राजा चंद्रगुप्त को पहला उपदेश देते हुए कहा , राजा का उद्देश्य
प्रजा का कल्याण होना चाहिए । राजा को प्रजा के सुख के सामने अपने सुख की परवाह
नहीं करनी चाहिए ।
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