सत्य - शील पर अटल रहें
महर्षि वेदव्यास को पुराणों में 'जगद्गुरु' कहा गया है, जिनके अनमोल उपदेशों से संसार भर के मानव भक्ति, ज्ञान, सदाचार तथा नीति की प्रेरणा प्राप्त करते रहे हैं। महर्षि वेदव्यास ने वेद संहिता का विभाजन तथा महाभारत जैसे महान् ग्रंथ का सृजन करके धरती पर ज्ञान की भागीरथी प्रवाहित की और असंख्य व्यक्तियों को सदाचार का पालन करने तथा भक्ति, साधना व सद्कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा दी।
जगद्गुरु वेदव्यास ने अपने नीति वचनों में सत्य, क्षमा, सरलता, ध्यान, करुणा, हिंसा से दूरी, मन और इंद्रियों पर संयम, सदा प्रसन्न रहने, मधुर बरताव करने और सबके प्रति कोमल भाव रखने जैसे मानव कल्याण के दस साधन बताए हैं।
वे शिष्यों को प्रेरणा देते हुए कहते हैं, 'सत्य से पवित्र हुई वाणी बोलें तथा मन से जो पवित्र जान पड़े, उसी का आचरण करें। असत्य भाषण, परस्त्री संग, अभक्ष्य (मांस, मदिरा आदि) का भक्षण तथा धर्म के विरुद्ध आचरण करने से कुल का शीघ्र नाश हो जाता है।'
सद्गुरु वेद व्यासजी के उपदेश में माता-पिता की सेवा, पति की सेवा, सबके प्रति समान भाव, मित्रों से द्रोह न करने तथा भगवान् के भजन को महायज्ञ कहा गया है। व्यासजी के मतानुसार, 'जो लोग दान और सेवा के कार्य में विघ्न डालते हैं, दीन-दुखियों और अनाथों को पीड़ा पहुँचाते हैं, वे मूलतः दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं और इस पृथ्वी पर भार हैं।'
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