व्यावहारिक
बनो
शेख सादी खुदा की याद में मस्त रहने वाले फकीरों के सत्संग के लिए तत्पर रहा
करते थे। एक बार उन्हें पता चला कि बसरा शहर में एक उच्च कोटि के महात्मा रहते हैं
। वे सद्गृहस्थ हैं और अपनी बीवी और परिवार के साथ रहा करते हैं । वे हर समय
तस्बीह (माला) पर खुदा का नाम जपते रहते हैं । शेख सादी अपने साथियों को साथ लेकर
उनके घर पहुँचे। रात का समय था । उस सद्गृहस्थ ने कमरे में पहुँचते ही सबके हाथ
चूमे । सबको पास बिठाया और स्वयं भी बैठ गए । उनसे न पानी के लिए पूछा और न भोजन
के लिए । रात भर बैठे - बैठे वे तस्बीह पर खुदा का नाम जपते रहे । शेख यह
प्रतीक्षा करते रहे कि वह कभी माला रखकर उपदेश देंगे ।किंतु वह सज्जन माला जपने
में ही लगे रहे । उन्होंने कोई बात नहीं की ।
सुबह हुई, तो वे सभी
वापस लौटने के लिए खड़े हुए । उस सद्पुरुष ने फिर उनके हाथ चूमे । शेख सादी का एक
साथी मुँहफट था । उसने विनयपूर्वक उनसे कहा, पवित्र कुरान में कहा गया है कि अतिथि का सत्कार करना, घर आने वाले से रोटी - पानी के लिए आग्रह करना
किसी भी व्यक्ति का परम कर्तव्य है । यदि आप दर्शन करने के उद्देश्य से इतनी दूर
से आए हम लोगों को रोटी खिला देते और कुछ उपदेश दे देते , तो हम संतुष्ट हो जाते । क्या हमें रातभर भूखे
पेट रखने का आपको अपराध नहीं लगेगा? इतना सुनते ही उस व्यक्ति का विवेक जाग उठा और उन्होंने इस चूक
के लिए क्षमा माँगी ।
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