माँ के
दर्शन कराओ
राक्षसराज रावण के वध के बाद विभीषण को लंका सौंपने के उपरांत
श्रीरामलक्ष्मण, सीताजी और हनुमान
सहित अवधपुरी के लिए रवाना हुए ।
पुष्पक विमान को कुछ समय के लिए किष्किंधा में रोका गया , तो हनुमान ने श्रीराम से कहा, प्रभु, आज्ञा हो , तो मैं समीप की पहाड़ी पर रहने वाली अपनी माता के दर्शन कर आऊँ ।
प्रभु ने कहा, हनुमंत , हमने ऐसा कौन सा अपराध किया है, जो तुम हमें अपनी माताजी के दर्शन से वंचित
रखना चाहते हो ? अंजना
तुम्हारी ही नहीं, हम सबकी माँ
हैं ।
यह सुनते ही हनुमान गद्गद हो उठे । सभी माता अंजना के पास पहुँचे। हनुमान ने
माता के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया और परिचय देते हुए कहा, माँ , ये भगवान् श्रीराम और माता जानकी हैं । साथ में लक्ष्मणजी भी
हैं । राक्षसराज रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था । हम सब रावण और उसके
पुत्रों को मारकर माता सीता को मुक्त कराकर लौट रहे हैं ।
पुत्र के शब्द सुनते ही माता अंजना ने कहा, अरे हनुमान, तूने मेरे दूध को लज्जित कर दिया । क्या तुझमें सामर्थ्य नहीं थी कि अकेले
ही उस राक्षस को पकड़ लाता, उसे मच्छर की तरह मसल डालता, लंकापुरी को अकेला ही नष्ट कर डालता, जो तुमने भगवान् को कष्ट दिया?
श्रीराम ने कहा, माताजी, हनुमान
अकेले ही सबकुछ कर सकते थे, किंतु हम दोनों भाई रावण का संहार करने का श्रेय लेना चाहते थे। इसलिए
उन्हें ऐसा नहीं करने दिया । माता अंजना ने तीनों को आशीर्वाद देकर विदा किया ।
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