अनूठी सीख
भगवान् बुद्ध एक दिन धर्म का संदेश देते हुए गाँव की ओर जा रहे थे। रास्ते में विश्राम के लिए वे एक सुंदर तालाब के किनारे वृक्ष के नीचे बैठ गए। तालाब में सुंदर कमल के पुष्प खिले थे। विभिन्न रंगों के कमल पुष्पों की अनूठी छटा देखकर वे अभिभूत हो उठे तथा तालाब के जल में उत्तर पड़े कमल की अनूठी सुगंध का सेवन कर सुध-बुध खो बैठे। सुगंध से तृप्त होकर जैसे ही वे जलाशय से बाहर निकले कि देवकन्या की वाणी उन्हें सुनाई दी, 'महात्मन्, तुम बिना कुछ दिए इन पुष्पों की सुरभि का सेवन करते रहे। यह चौर-कर्म है।'
तथागत ने ये शब्द सुने, तो हतप्रभ खड़े रहे। अचानक एक व्यक्ति ने तालाब में प्रवेश किया तथा कमल तोड़ने लगा। देवकन्या उसे कमल तोड़ते देखती रही।
तथागत ने कहा, 'देवी, मैंने तो केवल गंध का ही सेवन किया था, पुष्प का स्पर्श भी नहीं किया था, तुमने मुझे चोर कह दिया। यह निर्दयता के साथ फूलों को तोड़कर किनारे फेंक रहा है। तुम इसे क्यों नहीं रोक रही?'
देवकन्या ने कहा, 'भगवन्, सांसारिक मानव अपने लाभ के लिए धर्म-अधर्म में भेद नहीं कर पाता। ऐसा अज्ञानी व्यक्ति क्षम्य है, किंतु जिसका अवतार धर्म प्रचार के लिए हुआ है, उसे तो प्रत्येक कृत्य के उचित- अनुचित का विचार करना चाहिए।'
तथागत समझ गए कि यह देवकन्या साधारण नहीं है। वे श्रद्धा से उसे प्रणाम कर आगे बढ़ गए। उन्होंने शिष्यों से कहा, 'यदि वृक्ष के नीचे पड़े फल को प्राप्त करने की लालसा हो, तो वृक्ष के प्रति आभार व्यक्त करने के बाद ही उसे ग्रहण करना चाहिए।'
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know