सत्य का
प्रभाव
एक चांडाल संतों के सत्संग के कारण भगवान् की भक्ति में लीन रहने लगा । वह
वीणा लेकर मंदिर में भक्तिगीत गाया करता था । एक दिन वह मंदिर की ओर जा रहा था ।
अचानक उसके शरीर को किसी ने जकड़ लिया । उसने पूछा, तुम कौन हो ? मुझे क्यों जकड़ा है ?
उसने उत्तर दिया , मैं ब्रह्मराक्षस हूँ । कई दिनों से भोजन न मिल पाने के कारण भूखा हूँ ।
तुझे खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा। चांडाल भगवान् के भजन के लिए लालायित था । उसने कहा, मेरा प्रतिदिन का नियम है कि मैं भगवान् की
संगीतमय प्रार्थना करता हूँ । मैं अपने आराध्य की उपासना करके लौट आऊँ , तब मुझे खा लेना ।
राक्षस का हृदय पिघल गया और उसने उसे मुक्त कर दिया । चांडाल ने भगवान् के
विग्रह के समक्ष नाच- गाकर कीर्तन किया । अंत में उसने अपने एक मित्र से कहा, आज आखिरी भेंट है । मैं राक्षस की भूख मिटाने
जा रहा हूँ । मित्र ने उसे समझाया कि भावावेश में तुम्हें ऐसा पागलपन नहीं करना
चाहिए । चांडाल ने जवाब दिया , सत्य सबसे बड़ा धर्म है । मैंने वापस लौटने का वचन दिया है । उसे पूरा अवश्य
करूँगा। चांडाल राक्षस के समक्ष उपस्थित होकर बोला, मैं वापस लौट आया हूँ । अब तुम अपनी भूख मिटा लो ।
राक्षस उसका सत्यपालन और भगवान् के प्रति निष्ठा देखकर दंग रह गया । वह
गिड़गिड़ाकर बोला, यदि तुम
मुझे अपने संचित पुण्यों में से एक दिन का पुण्य दे दो , तो मेरे तमाम पाप नष्ट हो जाएँगे ।
चांडाल ने ऐसा ही किया । देखते- ही - देखते राक्षस की मुक्ति हो गई ।
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