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महाभारत' में गायत्री-महिमा🌷

*ओ३म्*

*🌷'महाभारत' में गायत्री-महिमा🌷*

अखण्ड ब्रह्मचारी श्री भीष्म पितामह का आदेश सुनिये जो मृत्यु-समय शर-शैया पर पड़े हुए उन्होंने श्री युधिष्ठिर जी को दिया। यह प्रसंग 'महाभारत' के अनुशासन-पर्व के अध्याय 150 में है। श्री युधिष्ठिर जी भीष्म जी से प्रश्न करते हैं―

*पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।*
*किं जप्यं जपतो नित्यं भवेद्धर्मफलं महत् ।।*
*प्रस्थाने वा प्रवेशे वा प्रवृत्ते वाऽपि कर्मणि ।*
*दैवे वा श्राद्धकाले वा किं जप्यं कर्मसाधनम् ।।*
*शान्तिकं पौष्टिकं रक्षा शत्रुघ्नं भयनाशनम् ।*
*जप्यं यद् ब्रह्मसमितं तद् भवान् वक्तुमर्हति ।।*
―(श्लोक सं० १ से ३)

*भावार्थ―*_हे सर्वशास्त्र-विशारद महाप्राज्ञ पितामह ! कौन-से जप्य मन्त्र को सदा जपने से महत् (बड़ा भारी) धर्मफल होता है? प्रस्थान-काल (चलते समय) में, प्रवेश के समय, अथवा कार्य प्रारम्भ होने पर, दैव या श्रद्धा-सत्कार में कौन-सा मन्त्र कार्य सिद्ध करता है, जिसे जपने से शान्ति, पुष्टि, रक्षा, शत्रुहानि तथा भयविनाश होता है, और जो वेद-तुल्य हो, आप उसे वर्णन कर सकते हैं। (श्लोक १ से ३)_

भीष्म जी ने युधिष्ठिर जी के इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर देते हुए जो रहस्य प्रकट किया, वह यह है―

*यानपात्रे च याने च प्रवासे राजवेश्मनि ।*
*परां सिद्धिमवाप्नोति सावित्रीं ह्यु त्तमां पठन् ।।*
*न च राजभयं तेषां न पिशाचान्न राक्षसात् ।।*
*नाग्न्यम्बुपवनव्यालाद् भयं तस्योपजायते ।।*
*चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमस्य विशेषतः ।*
*करोति सततं शान्तिं सावित्रीमुत्तमां पठन् ।।*
*नाग्निर्दहति काष्ठानि सावित्री यत्र पठ्यते ।*
*न तत्र बालो म्रियते न च तिष्ठन्ति पन्नगाः ।।*
*न तेषां विद्यते दुःखं गच्छन्ति परां गतिम् ।*
*ये श्रृण्वन्ति महद् ब्रह्म सावित्रीगुणकीर्तनम् ।।*
*गवां मध्ये तु पठतो गावोऽस्य बहुवत्सलाः ।*
*प्रस्थाने वा प्रवासे वा सर्वावस्थां गतः पठेत् ।।*
―(श्लोक सं० ६८ से ७३)

*भावार्थ―*_जो लोग सावित्री (गायत्री) का पाठ करते हैं उनको यान, पात्र, प्रवास और राजगृह में अत्यन्त श्रेष्ठ सिद्धि प्राप्त होती है। उनको राजा, दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु और सर्प―इनसे भय नहीं होता। जो लोग उत्तम गायत्री-पाठ करते हैं वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इन चारों वर्णों, विशेष करके चारों आश्रमों की शान्ति किया करते हैं। जिस स्थान में सावित्री-पाठ किया जाता है उस स्थान में अग्नि काष्ठों को हानि नहीं पहुँचाती, वहाँ बालक नहीं मरते, न वहाँ पन्नग (साँप) वास करते हैं। जो लोग गायत्री-गुण-कीर्तन-रुप महद् वेद ग्रहण करते हैं, उन्हें दुःख नहीं होता, और वे परम गति पाते हैं। गोओं के बीच सावित्री-पाठ करने से गौएँ बहुवत्सा होती हैं। प्रस्थानकाल अथवा प्रवास के समय जिस किसी अवस्था में स्थित हो, सर्वदा ही सावित्री का पाठ करें।_

और अगले चार श्लोकों में भीष्म पितामह यह बतलाते हैं कि सावित्री (गायत्री) से बढ़कर और कोई जप्य मन्त्र नहीं है। युधिष्ठिर जी को सम्बोधन करके भीष्म जी कहते हैं―

*जपतां जुह्यतां नित्यं च प्रयतात्मनाम् ।*
*ऋषीणां परमं जप्यं गुह्यमेतन्नराधिप ।।*
*याथातथ्येन सिद्धस्य इतिहासं पुरातनम् ।*
*पराशरमतं दिव्यं शक्राय कथितं पुरा ।।*
*तदेतत्ते समाख्यातं तथ्यं ब्रह्मसनातनम् ।*
*ह्रदयं सर्वभूतानां श्रुतिरेषा सनातनी ।।*
*सोमादित्यान्वयाः सर्वे राघवाः कुरवस्तथा ।*
*पठन्ति शुचयो नित्यं सावित्रीं प्राणिनां गतिम् ।।*
―(श्लोक सं० ७४ से ७७)

*भावार्थ―*_हे नरनाथ ! जप-परायण, होमनिष्ठ और सदा सावधान-चित्त ऋषियों का यह परम जप्य तथा गुप्त मन्त्र है। पहले समय में यह पराशर-सम्मत पुरातन इतिहास यथार्थ रिति से देवराज के निकट वर्णित हुआ था, यही इतिहास पूरी रीति से तुम्हारे समीप कहा गया। यह (गायत्री) सनातन ब्रह्मस्वरुप, सर्वभूतों का ह्रदय तथा श्रुति है। चन्द्रवंशीय, सूर्यवंशीय, रघुवंशीय तथा कुरुवंशीय राजा लोग सदा पवित्र होकर यह परम पवित्र प्राणियों की गति सावित्री-गायत्री-पाठ किया करते हैं।_

गायत्री-महिमा प्रकट करने में श्री भीष्म पितामह ने कोई बात छिपा नहीं रखी। जब यह कह दिया कि सारे ही सूर्यवंशीय, रघुवंशीय तथा चन्द्रवंशीय सब-के-सब गायत्री-जप करते थे और करते हैं तो इन गायत्री-जप करने वालों में भगवान् राम, सीता माता, भगवान् कृष्ण और रुक्मिणी माता तथा अन्य सारे ही ऋषि-मुनि महानुभाव भी आ गए। सारे वर्ण, सारे आश्रम भी आ गए। और फिर ये रहस्य भी छिपा नहीं कि लौकिक लाभ पहुँचाने के साथ यह गायत्री-जप मानव की परम गति भी है। इसी के द्वारा ब्रह्म-दर्शन भी होते हैं। इन श्लोकों में गायत्री के पाठ या जप से सिद्धि कही गई है। वह साथ-साथ योगानुष्ठान करने से ही प्राप्त हो सकती है, केवल पाठ और जप-मात्र से नहीं, जैसे महर्षि पतंजलि ने कहा है―

*योगांगानुष्ठानाद् अशुद्धिक्षये ज्ञान-दीप्तिराविवेकख्यातेः ।*
―(योगद० २/२८)

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