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मानव मन निराशा आशा का ऐसा सागर है जिसका थाह लेना असंभव है।



मानव मन निराशा आशा का ऐसा सागर है जिसका थाह लेना असंभव है।

मुझे इस संसार और यहां पर रहने वाले लोगों के साथ रहते हुए लगभग आधा जीवन व्यतीत हो चुका है, फिर भी हमने यहां पर स्वयं को लेकर इस संसार में स्वयं के साथ एक युद्ध चल रहा है मैं स्वयं को ले कर संसार से लड़ रहा हूं यह संसार कितना ज्यादा खतरनाक इसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी लेकिन मुझे इसका ज्ञान हो चुका है मैंने जीना सीख लिया है लेकिन आसान यह बिल्कुल नहीं है। क्योंकि यहां पर किसी मनुष्य का मनुष्य होना ही सबसे बड़ा अपराध है, और यहां सत्य ईमानदारी के साथ जीना बहुत अधिक कठिन है, यहां कोई किसी का साथ नहीं देने वाला नहीं है यहां पर हर किसी का अपना मतलब और स्वार्थ हैं लोग झूठे और धूर्त किस्म के हैं, यहां संसार में कहीं कोई सुख नहीं हर सुख के साथ दुःख मिश्रित है। दुःख जो किसी सुख की कल्पना देता है लेकिन साथ में बड़े दुःख को ले कर आता है यहां पर हर व्यक्ति अपनी भ्रष्टता को श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगा हैं लोग बहुत अधिक जटिल हैं, यहां पर एक दूसरे के जीवन के साथ खेल रहें हैं, आप स्वयं अपने साथ खेल रहे हैं आपका जीवन हर समय खत्म हो रहा है और आप दूसरे को खत्म करके स्वयं को बचाना चाहते हैं, लेकिन आप स्वयं को बचा नहीं सकते हैं फिर भी आप स्वयं को बचाने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहें हैं, इसी कार्य में मैं भी लगा हूं कभी मुझे में आशा का प्रबल वेग चढ़ जाता है तो कभी निराशा का घोर बादल छा जाता है, ऐसा लगता है की यह अंधकार स्वयं को ले कर डूब जायेगा। कभी लगता है की मैंने दुनिया को जीत लिया है, अगले ही पल हमें लगता है की मैं स्वयं को धोखा दे रहा हूं क्योंकि यहां पर कोई मेरी मृत्यु का इंतजार कर रहा हैं, यहां तक ऐसा मौका अपने हाथ से कभी नहीं छोड़ता जिससे मेरा सर्वनाश हो जाए, ऐसा मेरे साथ ही नहीं सब के साथ ऐसा ही हो रहा है, ऐसा क्यों हो रहा है? क्या हमारे लिए यहीं संसार का निर्वाण किया गया है, जहां पर रगड़ घिस करना पड़ता है, लोग सुखी और प्रसन्न दिखाई देते हैं, वास्तव में लोग झूठे हैं, मैं भी इनके साथ ऐसा ही हो गया हूं, लेकिन मेरा मन मेरी वास्तविक जानता है, वह मुझ से कहता  हैं की तुम गलत हो तुम झूठे हो मैं इसको कभी अस्वीकृत नहीं कर सकता हूं, सत्य को भी मैं जानता हूं समाज की बनावट कुछ ऐसी है जहां पर रुग्णता का साम्राज्य स्थापित हो चुका है।

मैं यह जानता हूं की यह सारा संसार मृत्यु के सागर में गोते खा रहा है, लेकिन कोई इसी स्वीकार नहीं करने वाला नहीं है, लोग मृत्यु को चकमा देने के लिए प्रयास कर रहें हैं, मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं की इससे बचने का कोई उपाय इस पृथ्वी पर किसी ने निर्मित नहीं किया है मुझे ऐसे मार्ग का निर्वाण करना है, मैंने लगभग कर भी लिया है, मैं लोगों को मृत्यु से बचाना नहीं चाहता हूं यद्यपि मैं चाहता हूं की लोग मरने की कला को सीख ले और यह कार्य बहुत अधिक कठिन नहीं हैं। यह बहुत अधिक सरल है, लेकिन समाज में ऐसे लोग नहीं जो मरने के लिए तैयार हो लोग जीने के लिए परेशान हैं यदि लोग मरने के लिए परेशान रहने लगे तो जीवन के लिए किसी प्रकार की अधिक चिंता की जरूरत नहीं पड़ेगी। मरना ही हमारी भारतीय संस्कृत हैं यही हमारी परंपरा है, हम मरना चाहते हैं अपनी वासना से अपनी इच्छा से अपनी झूठी शान शौकत अपनी आशा से अपनी निराशा से अपने सत्य से अपने यह हमें सब हमारी प्रकृति सीखा रही है, प्रकृति कठोर दिखती है वास्तव में प्रकृति सरल है मानव जब से प्रकृति से दूर हुआ हैं तभी से यह मानसिक रूप से बीमार हो चुका है, इसको स्वस्थ स्वयं यह प्रकृति ही कर सकती है।             


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