🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1188
*ओ३म् त्वया॑ व॒यमु॑त्त॒मं धी॑महे॒ वयो॒ बृह॑स्पते॒ पप्रि॑णा॒ सस्नि॑ना यु॒जा।*
*मा नो॑ दुः॒शंसो॑ अभिदि॒प्सुरी॑शत॒ प्र सु॒शंसा॑ म॒तिभि॑स्तारिषीमहि॥*
ऋग्वेद 2/23/10
हे परमेश ! बृहस्पति !
वेदवाणी के अधिपति !
ज्ञान के तुम ही हो अधीश्वर
शुद्ध स्वरूप हो 'पप्रि'
हे परमेश ! बृहस्पति !
तुम ही सबके हृदयों में बैठे
कर्तव्य और संकल्प की
ज्ञान धारा को बहा रहे हो
धारा है यह सत्कर्म की
हे परमेश ! बृहस्पति !
सबके जीवन के पूर्णताकारक
शुद्ध स्वरूप हो 'पप्रि'
शुद्ध करन हारे हम सबके
तुम हो हमारे सस्त्री
हे परमेश ! बृहस्पति !
जिसके सखा तुम, बन जाते हो
उसके व्यवहार निखरते
शुद्धता पूर्णता से अनुकरणीय
जीवन जागृत करते
हे परमेश ! बृहस्पति !
प्रभुजी! हमारे, सखा बन जाओ
जीवन पवित्र कर दो
आत्मा बुद्धि मन, प्राण चक्षु श्रोत
के छिद्रों को भर दो
हे परमेश ! बृहस्पति !
इस संसार में 'दु:शंस' 'दिप्सु'
घात लगाए बैठे हैं
चाहते हैं अपकीर्ति हमारी
बुरी सलाहें देते हैं
हे परमेश ! बृहस्पति !
हे बृहस्पति प्रभु !
तुम हमें इनके
पाशविक चंगुल से बचा लो
शुभ चिन्तन करें
शुभ वाणी बोले
शुभकामनाएं जगा दो
हे परमेश ! बृहस्पति !
बृहस्पति प्रभु ! हमें आशीष दो
करते रहे शुभचिन्तन
होके सुशंस गायें शुभ मंगल
करें शुभ स्वागत हरदम
हे परमेश ! बृहस्पति !
वेदवाणी के अधिपति !
ज्ञान के तुम ही हो अधीश्वर
शुद्ध स्वरूप हो 'पप्रि'
हे परमेश ! बृहस्पति !
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--* १२.२.२००९ २.२५ मध्यान्ह
*राग :- छायानट*
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल चाचर(दीपचंदी)१४ मात्रा
*शीर्षक :- बृहस्पति का सखित्व* भजन ७६८वां
*तर्ज :- *
00160-760
पप्रि = जीवन में पूर्णता लाने वाले
सस्त्रि = शुद्ध
छिद्र = दोष
दु:शंस = हिंसा करना, बुरा करना
दिप्सु = नैतिक और सामाजिक हिंसावाले
पाश्विक = पशुओं जैसा आचरण करनेवाले
सुशंस = अच्छे चिन्तन वाला
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
बृहस्पति का सखित्व
हे परमेश! तुम बृहस्पति हो, बृहती वेद वाणी के अधिपति हो, ज्ञान के अधिश्वर हो। तुम सबके हृदयों में बैठे हुए कर्तव्य कर्तव्य की ज्ञान धारा बहाते रहते हो, जिससे अनुकूल सत्कर्म करके तुम्हारे भक्तजन अपना जीवन उत्तम कर लेते हैं।
हमें भी तुम उत्कृष्टतम जीवन प्रदान करो। तुम 'पप्रि' हो, जीवन में पूर्णता लाने वाले हो। तुम 'सस्त्रि'हो स्वयं शुद्ध-पवित्र होते हुए अपने संपर्क में आने वाले अन्य को भी शुद्धता- पवित्रता प्रदान करते हो। 'पप्रि' और 'सस्त्रि' तुम जिसके सहयोगी एवं सखा बन जाते हो उसके व्यवहार में पूर्णता और शुद्धता लाकर उसके जीवन को प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय बना देते हो। हे प्रभु! हमारे भी सखा बन जाओ, हमारे भी हृदय में बस जाओ, हमारे भी जीवन को पूर्ण, प्रशस्त, श्लाघ्य, शुद्ध, पवित्र बना दो। पूर्ण वे होते हैं, और चीन के छिद्र भर जाते हैं। हमारे भी आत्मा, मन, बुद्धि, प्राण, चक्षु, श्रोत्र आदि के छिद्र भर दो। शुद्ध वे होते हैं जिनके मन, वचन, कर्म किसी में भी कालूष्य का कलंक नहीं होता। हमें भी निष्कलुष बनकर निर्मल कर दो।
संसार में बहुत से 'दु:शंस'और 'दिप्सू'
लोग हमें अपने शिकंजे में कसने के लिए घात लगाए बैठे हैं।दुशंस लोग हमें बुरी- बुरी सलाह देते हैं, हमारे प्रति दुष्चिन्तन करते हैं, दुर्भावना ही रखते हैं, हमारा बुरा करने की ताक में रहते हैं। हमें बुरा कहते हैं, हमारी अपकीर्ति चाहते हैं। हमारे विषय में बुरा प्रचार करते हैं, हमें भी दु:शंसों की श्रेणी में लाना चाहते हैं। 'अभिदिप्सु'लोग हमारी नैतिक और सामाजिक हिंसा करना चाहते हैं, हमें कुराह पर डालकर हमें पाप- पंक में लिप्त करके हमारी नैतिक एवं सामाजिक मान- मर्यादा नष्ट कर देना चाहते हैं। हे बृहस्पति प्रभु ! तुम हमें इनके चंगुल से बचाओ। हम दुशंस नहीं,सुशंस बनें। शुभ चिन्तन करें, शुभ वाणी बोलें, शुभ चर्चा करें, शुभकामना करें, शुभ बधाई दें, शुभ मंगल गायें, शुभ प्रेरणा करें, शुभ स्वागत करें, शुभ अभिनन्दन करें, शुभ कीर्तन करें। सुशंस होकर हम अपनी 'मतियों'के बल से प्रवृद्ध हो जाएं, शीर्षस्थ हो जाएं।
हे बृहस्पति प्रभु! हमें बल दो, हमें आशीर्वाद दो।
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🌹 🙏
🕉👏 वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🌹🙏
🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1188
Vaidik mantra
Om tvayaa vayamuttam dheemahe vayo brahaspate paprinaa sanninaa yujaa l
Ma no dushanso abhdipsurishat pra sushansaa matibhistarishimahi ll
Rigved 2/24/10
he paramesh ! brhaspati !
vedavaanee ke adhipati !
gyaan ke tum hee ho adheeshvar
shuddh svaroop ho papri
he paramesh ! brhaspati !
tum hee sabake hrdayon mein baithe
kartavy aur sankalp kee
gyaan dhaara ko baha rahe ho
dhaara hai yah satkarm kee
he paramesh ! brhaspati !
sabake jeevan ke poornataakaarak
shuddh svaroop ho papri
shuddh karan haare ham sabake
tum ho hamaare sastree
he paramesh ! brhaspati !
jisake sakha tum, ban jaate ho
usake vyavahaar nikharate
shuddhata poornata se anukaraneey
jeevan jaagrt karate
he paramesh ! brhaspati !
prabhujee! hamaare, sakha ban jao
jeevan pavitr kar do
aatma buddhi man, praan chakshu shrot
ke chhidron ko bhar do
he paramesh ! brhaspati !
is sansaar mein du:shans dipsu
ghaat lagae baithe hain
chaahate hain apakeerti hamaaree
buree salaahen dete hain
he paramesh ! brhaspati !
he brhaspati prabhu !
tum hamen inake
paashavik changul se bacha lo
shubh chintan karen
shubh vaanee bole
shubhakaamanaen jaga do
he paramesh ! brhaspati !
brhaspati prabhu ! hamen aasheesh do
karate rahe shubhachintan
hoke sushans gaayen shubh mangal
karen shubh svaagat haradam
he paramesh ! brhaspati !
vedavaanee ke adhipati !
gyaan ke tum hee ho adheeshvar
shuddh svaroop ho papri
he paramesh ! brhaspati !
🙏 *Today's Vedic Bhajan* 🙏 1188
*Om tvaya vaayamuttam dhimahe vayo vayo vayo vayo vayo pratyavate papri na sasni na yuja.*
*Ma no duhshanso abhidi psuri shata pra suhshansa matibhi starishimahi.*
Rigveda 2/23/10
O Lord! Jupiter! Lord of the Vedas! You are the lord of knowledge
You are the pure form of 'Papri'
Oh God! Jupiter! You are the one sitting in everyone's heart
You are the one who is flowing the stream of knowledge of duty and resolution
This stream is of good deeds
Oh Lord! Brihaspati!
You are the one who completes everyone's life
You are the pure form of 'Papri'
You are the one who purifies us all
You are our wife
Oh Lord! Brihaspati! You become the friend of someone whose behavior improves
You awaken a life exemplary with purity and perfection
Oh Lord! Brihaspati!
Prabhuji! Become our friend
Purify our life
Fill the holes of soul, intellect, mind, life, eyes and ears
Oh Lord! Brihaspati! In this world 'Dushans' and 'Dipsu'
are lying in wait
They want to defame us
They give us bad advice
Oh Lord Brihaspati!
Oh Lord Brihaspati! You save us from their beastly clutches
Think good thoughts
Speak good words
Awaken good wishes
O Lord Brihaspati!
O Lord Brihaspati! Bless us
Keep thinking good thoughts
Being well-informed, sing auspicious songs
Always welcome us
O Lord Brihaspati!
Lord of the Vedas!
Knowledge You are the supreme God
You are the pure form of 'Papri'
Oh Lord! Brihaspati!
*Writer and voice: - Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji - Mumbai*
*Date of composition: -* 12.2.2009 2.25 noon
*Raag: - Chhayanat*
Singing time: First quarter of the night, rhythm: Chachar (Deepchandi) 14 Matra
*Title :- Brihaspati ka sakhitva* Bhajan 768th
*Transcription :- *
00160-760
Papri = those who bring perfection in life
Sastri = pure
Chidr = faults
Dushans = committing violence, doing bad
Dipsu = those who commit moral and social violence
Pashvik = animals Such as behaves
Sushans = one with good thoughts
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