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वैदिक भजन

‌‌English version is at the end          

ग्वाला सेनापति
प्रत्येक मनुष्य सैनिक है। देश की, जाति की, धर्म की अपने घर की आन के लिए हथियार उठाना प्रत्येक आत्मवान् पुरुष का कर्तव्य है। पृथ्वी गौ है। वह अपने पुत्रों के मुख में धन-धान्य उड़ेल रही है। यदि मानव- जाति शान्ति से परस्पर प्रेम तथा सहयोग से निर्वाह करना चाहे, तो उसकी आवश्यकताओं के लिए इस कामधेनु का दूध बहुत पर्याप्त है। सहयोग का फल यहां पारिवारिक आनन्द होगा वहां प्रत्येक देश सब प्रकार की सम्पत्ति से समृद्ध भी अधिक होगा। आफत है तो यह की स्वयं मनुष्य एक दूसरे के शत्रु हो रहे हैं। एक जाति दूसरी जाति पर, एक देश दूसरे देश पर अनुचित अधिकार जमाना चाहता है। इसी से कलह पैदा होता है। पृथ्वी माता का सुख इसमें है कि उसके सम्पूर्ण पुत्र व पुत्रियां शान्तिपूर्वक जीवन का आनन्द लें। जो इस शान्ति को भंग करता है, वह पृथ्वी माता का द्रोही है। जिन्हें दास बनाया जाता है उनका अकल्याण तो होता ही है। परन्तु जो दूसरों को दास बनाते हैं, वह भी कोई अपना आध्यात्मिक हित नहीं कर रहे होते। अत्याचारी, डाकू ही तो होता है। कोई व्यक्ति डाकू हुआ तो वह वैयक्तिक रूप में दंडनीय है। इसी प्रकार कोई जाति की जाति डाकू बन जाए, तो वह जाति रूप में दंड देने के लायक है। मानव जाति का भला इसी में है कि सभी राष्ट्र स्वतन्त्र तथा समृद्ध हों।
यह हुई आर्थिक गौ । संस्कृति आध्यात्मिक गौ है। परम्परागत विचार, भाषा, विद्या, विज्ञान तथा धर्म प्रत्येक देश की मानसिक बपौती है। इन्हें नष्ट होने देना अपनी मानसिक तथा आध्यात्मिक हत्या करना है। 
राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा आध्यात्मिक उन्नति साथ-साथ चलती है। यह कहना कठिन है कि इनमें से कौन आधार है और कौन आधेय। आर्य पुरुष का कर्तव्य है कि दोनों की रक्षा में जी- जान से यत्न करे। जो इन्द्र अर्थात् जीता जागता आत्मा है,अपने जन्म सिद्ध अधिकारों को लुप्त ना होने देगा । उनकी सुरक्षा के लिए उसके हृदय से आवाज उठनी स्वाभाविक है।
सात्विक देश- भक्ति दूसरों से द्रोह नहीं सिखाती। उसके लिए मातृभूमि पृथ्वी माता ही की पुत्री है । माता का सौभाग्य इसी में है कि उसकी सभी पुत्रियां सुखी हों स्वाधीन हों। ऐसी देशभक्ति प्रभु भक्ति की पर्याय है। प्रभु का प्रेम यही है कि उसके पुत्रों से प्रेम किया जाए। इस देशभक्ति का नशा "सोम" है। मानव मात्र के लिए अमृत है। सच्चा संजीवन रस है। आर्यवीर जब इस नशे में आकर विरोधियों के साथ जूझ जाता है,तो वह केवल अपने ही देश की नहीं किन्तु सभी देशों की संस्कृत भाषा धर्म, विज्ञान, कला, रीति-रिवाज स्त्रियों तथा वृद्धों की मान- मर्यादा आदि की रक्षा करता है। उसने आत्मा की आवाज को "सोम" की--सात्विक देशभक्ति की--सुरीली लयों में सुना है और इस धर्म- संग्राम में अपने जीवन की आहुति देकर वह उसे आन्तरिक ध्वनि को सफल कर रहा है।
इस सात्विक राष्ट्रभक्ति के सोम- रस का संचार किसी आत्मदर्शी सेना- नायक के द्वारा ही हो सकता है जिसने पृथ्वी माता को अपनी माता समझा हो, जो देश-विदेश की संस्कृतियों को अपने ऋषियों की पुण्य देन समझता हो । सैनिक तब उसके मित्र होंगे सखा होंगे। पवित्र सोमरस के सूत्र में पिरोये हुए,समान आभा के, चमक दमक के मोती होंगे। जहां नायक अपनी जान हथेली पर रख सैनिकों के आगे बढ़ा, वहां सम्पूर्ण सेवा का हृदय उसके कदम-कदम के साथ उछलता है। वे नाच- नाच कर रण- क्षेत्र की ओर पग बढ़ाते हैं। उनका आवेश क्षणिक नहीं। वे काम- वश, क्रोध-वश, मोह-वश,युद्ध स्थल की ओर नहीं दौड़ पड़े हैं। युद्ध -यात्रा का उनका संकल्प सात्विक है, स्थिर है। उनका युद्ध यज्ञ स्वरूप है। उनका जीवन पृथ्वी माता के चरणों में प्रस्तुत है संस्कृति के ऋषियों की परंपरागत बपौती के समर्पण है। उनका सेना- नायक गौ माता की रक्षा करने निकला है-- गो नाम पृथ्वी की और मातृभाषा द्वारा उपलक्षित संस्कृति की। इसी से वह मूर्त सोम-- देश तथा जाति के लिए अमृत हो गया है।
                          वैदिक मन्त्र 
प्र सेनानी: शूरो अग्रे रथाना गव्यन्नेति कृवन्निन्द्र हवान्त्सखिभ्य आ सोमो वस्त्रा रभसानि दत्ते।।         ऋ॰९.९६.१  साम॰ ५३३
                   वैदिक भजन ११६२ वां
                           राग दरबारी
                   गायन समय मध्य रात्रि
                   ताल कहरवा आठ मात्रा
आर्य बनें, परहित में,आहुत जीवन करें (२) 
आध्यात्मिक और भौतिक ज्योति- सेवन करें(२) 
सैनिक तो देश,धर्म पर 
बढ़ें कर्तव्य कर्म पर 
आहुत खुद को करें, अनुक्षण हरदम 
प्रेम से लें सहयोग परस्पर 
आर्य बनें............... 

हर एक मानव है सैनिक 
धर्म जाति देश का रक्षक 
शान्ति प्रेम,सहयोग 
चाहती है गौ-रूप पृथ्वी
मानती है सबको पुत्रवत् 
ताकि सुखी रहें लोग 
फल सह्योग का 
पारिवारिक सुख है 
मिलके आनन्द में रहें 
देशी- विदेशी मिलके चलें तो 
सुखी- सम्पन्न हो रहें।। 
आर्य बनें............. 

आर्य बने परहित में आहट जीवन करें(२) 
आध्यात्मिक और भौतिक ज्योति सेवन करें(२) 
सैनिक तो देश धर्म पर
बढें कर्तव्य कर्म पर
आहुत खुद को करें
अनुक्षण हरदम
प्रेम से लें सहयोग परस्पर
आर्य बनें.............. 

आओ सब मिलकर के चलें 
प्रेम आनन्द जिससे बढ़े 
द्रोह परस्पर ना करें 
कामधेनु गौ तो है पृथ्वी 
कण-कण इसका है सहकारी 
दूध इसका पीते रहें 
गौ की है मातृभूमि 
अपनी ही पुत्री 
माता चाहे पुत्रिय़ों का सुख हित 
राष्ट्र- भक्ति प्रभु- भक्ति 
प्रेम का होवे उद्बोध 
आर्य बने.......... .... 
                       भाग २
आर्य बनें, परहित में, आहुत जीवन करें (२) 
आध्यात्मिक और भौतिक ज्योति सेवन करें(२) 
सैनिक तो देश,धर्म पर 
बढें कर्तव्य कर्म पर 
आहुत खुद को करें 
अनुक्षण हरदम
प्रेम से लें सहयोग परस्पर 
आर्य बनें............. 
राष्ट्रभक्ति सोम-रस का संचार 
आत्मदर्शी सेना नायक ही करें 
उन्नत करें राष्ट्रयोग 
जिसने समझा माता सम पृथ्वी को 
ऋषियों की संस्कृति से नाता हो 
सखा बनते उनके लोग 
नायक जान हथेली पे रखते 
सैनिक बढ़ते रहें 
कदम- कदम पर सारी सेना 
बात नायक की सुने
आर्य बनें .............. 
आर्य बनें, परहित में, आहुत जीवन करें(२) 
आध्यात्मिक और भौतिक ज्योति सेवन करें (२) 
सैनिक तो देश धर्म पर 
बढ़ें कर्तव्य कर्म पर 
आहुत ख़ुद को करें 
अनुक्षण हरदम 
प्रेम से ले सह्योग परस्पर 
आर्य बने.............. 
स्थिर है संकल्प युद्ध-यात्रा नेक 
शत्रु पराजय  इनका लक्ष्य एक 
सिंह जैसा उद्घोष 
क्षणिक नहीं सेना का शपथ आवेश 
आन पे खड़ा है उनका अपना देश 
याद केवल मां की गोद 
जीना यहां है मरना यहां है 
इक-इक सैनिक कहे 
यज्ञ स्वरूप है राष्ट्र की भक्ति 
सोम की मस्ती बहे।।
आर्य बने................ 
आर्य बने परहित में आहुत  जीवन करें 
आध्यात्मिक और भौतिक ज्योति सेवन करें 
सैनिक तो देश- धर्म पर 
बढ़ें कर्तव्य कर्म पर आहुत खुद को करें 
अनुक्षण हरदम 
प्रेम से लें सहयोग परस्पर 
आर्य बनें.............. 
इक गौआध्यात्मिक संस्कृति 
पारम्परिक ऋषियों की बपौती 
मातृभाषा का हो बोध 
परम्परागत धर्म- भाषा 
सुविचार विज्ञान की निधि 
धरतीपुत्र शिक्षित होय 
नष्ट हो बपौती तो गौ आध्यात्मिक 
बोलो ये कैसे बचे ?
इसलिए आर्यों पैतृक सम्पत्ति 
रक्षित करते रहो ।। 
आर्य बनें................... 
                       शब्दार्थ:-
आहुत= हवन किया हुआ, समर्पण
कामधेनु = कामना पूरी करने वाली स्वर्ग की गाय
उद्बोध= जागना,ज्ञान होना
आत्मदर्शी = अपने गुण -दोष को समझने वाला
उद्घोष= ऊंची आवाज में घोषणा
बपौती= बाप दादा की सम्पत्ति
पैत्रिक= पुरखों का   

🕉🧘‍♂️ द्वितीय श्रृंखला का १५५ वां वैदिक भजन
और अबतक का ११६२ वां वैदिक भजन
🕉🧘‍♂️ वैदिक भजनोपदेश के श्रोताओं को हार्दिक❤ शुभकामनाएं ❗🎧🙏

‌‌‌             gvaala senaapati

Vedic Mantra

pra senaani Shuro Agre Rathana Gavyaneti Krivanindra Havantsakhibhya A Somo Vastra Rabhasani Datte. 
Rigvedi 9.96.1 Sama 533

Vedic hymn 1162nd
Raag Darbari
Singing time midnight
Tala Kaharva eight beats
              Part 1
              
aarya banen, parahit mein,aahut jeevan karen (2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti- sevan karen(2) 
sainik to desh,dharm par 
badhen kartavya karm par 
aahut khud ko karen, anukshan haradam 
prem se len sahayog paraspar 
aary banen............... 

har ek maanav hai sainik 
dharm jaati desh kaa rakshak 
shaanti prem,sahayog 
chaahatee hai gau-roop prthvee
maanatee hai sabako putravat 
taaki sukhee rahen log 
phal sahyog kaa 
paarivaarik sukh hai 
milake aanand mein rahen 
deshee- videshee milake chalen to 
sukhee- sampanna ho rahen.. 
aary banen............. 

aary bane parahit mein aahat jeevan karen(2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti sevan karen(2) 
sainik to desh dharm par
badhen kartavy karm par
aahut khud ko karen
anukshan haradam
prem se len sahayog paraspar
aary banen.............. 

aao sab milakar ke chalen 
prem aanand jisase badhe 
droh paraspar naa karen 
kaamadhenu gau to hai prthivee 
kan-kan isaka hai sahakaaree 
doodh isakaa peete rahen 
gau kee hai maatrbhoomi 
apanee hee putree 
maata chaahe putriyon ka sukh - hit 
raashtra- bhakti prabhu- bhakti 
prem ka hove udbodh 
aarya banen.......... ....

‌‌‌             gvaala senaapati

Vedic Mantra

pra senaani Shuro Agre Rathana Gavyaneti Krivanindra Havantsakhibhya A Somo Vastra Rabhasani Datte. 
Rigvedi 9.96.1 Sama 533

Vedic hymn 1162nd
Raag Darbari
Singing time midnight
Tala Kaharva eight beats
              Part 1
              
aarya banen, parahit mein,aahut jeevan karen (2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti- sevan karen(2) 
sainik to desh,dharm par 
badhen kartavya karm par 
aahut khud ko karen, anukshan haradam 
prem se len sahayog paraspar 
aary banen............... 

har ek maanav hai sainik 
dharm jaati desh kaa rakshak 
shaanti prem,sahayog 
chaahatee hai gau-roop prthvee
maanatee hai sabako putravat 
taaki sukhee rahen log 
phal sahyog kaa 
paarivaarik sukh hai 
milake aanand mein rahen 
deshee- videshee milake chalen to 
sukhee- sampanna ho rahen.. 
aary banen............. 

aary bane parahit mein aahat jeevan karen(2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti sevan karen(2) 
sainik to desh dharm par
badhen kartavy karm par
aahut khud ko karen
anukshan haradam
prem se len sahayog paraspar
aary banen.............. 

aao sab milakar ke chalen 
prem aanand jisase badhe 
droh paraspar naa karen 
kaamadhenu gau to hai prthivee 
kan-kan isaka hai sahakaaree 
doodh isakaa peete rahen 
gau kee hai maatrbhoomi 
apanee hee putree 
maata chaahe putriyon ka sukh - hit 
raashtra- bhakti prabhu- bhakti 
prem ka hove udbodh 
aarya banen.......... ....

‌‌‌             
                       bhaag 2
aarya banen, parahit mein, aahut jeevan karen (2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti sevan karen(2) 
sainik to desh,dharm par 
badhen kartavya karm par 
aahut khud ko karen 
anukshan haradam
prem se len sahayog paraspar 
aarya banen............. 
raashtrabhakti som-ras ka sanchaar 
aatmadarshee sena naayak hee karen 
unnat karen raashtrayog 
jisane samajha maata sam prthvee ko 
rishiyon kee sanskrti se naata ho 
sakha banate unake log 
naayak jaan hathelee pe rakhate 
sainik badhate rahen 
kadam- kadam par saaree sena 
baat naayak kee sune
aary banen .............. 
aarya banen, parahit mein, aahut jeevan karen(2) 
aadhyaatmik aur bhautik jyoti sevan karen (2) 
aarya bane.............. 
sthira hai sankalp yuddh-yaatra nek 
shatru paraajay  inaka lakshya ek 
sinha jaisa udghosh 
kshanik nahin sena ka shapath aavesh 
aan pe khada hai unaka apana desh 
yaad keval maan kee goad 
jeenaa yahaan hai maranaa yahaan hai 
ik-ik sainik kahe 
yagya svaroop hai raashtra kee bhakti 
som kee mastee bahe..
aarya bane................ 
aarya bane parahit mein aahut  jeevan karen 
aary banen.............. 
ik gau aadhyaatmik sanskrti 
paaramparik rishiyon kee bapautee 
maatrbhaasha ka ho bodh 
paramparaagat dharm- bhaasha 
suvichaar vigyaan kee nidhi 
dharateeputra shikshit log
nashta ho bapautee to gau aadhyaatmik 
bolo ye kaise bache ?
isalie aaryon paitrik sampatti 
rakshit karate rahen .. 
aary banen................... 

         shabdaarth:-
aahut= havan kiya hua, samarpan
kaamadhenu = kaamana pooree karane vaalee svarg kee gaay
udbodh= jaagana,gyaan hona
aatmadarshee = apane gun -dosh ko samajhane vaala
udghosh= oonchee aavaaj mein ghoshana
bapautee= baap daada kee sampatti
paitrik= purakhon ka   

🕉🧘‍♂ dviteey shrrnkhala ka 155 vaan vaidik bhajan
aur abatak ka 1162 vaan 

‌‌          Part 1

Pra Senaani: Shuro agre rathana gavyaneti krivanindra havantsakhibhya a somo vastra rabhasani datte.  Rigvedi 9.96.1 Sama 533
          Meaning
Become Aryan, sacrifice your life for the welfare of others (2)
Consume spiritual and physical light (2)
Soldiers should move forward on duty and country
Sacrifice yourself every moment
Take mutual cooperation with love
Become Aryan...............

Every human is a soldier
Protector of religion, caste and country
Peace, love and cooperation
The earth in the form of cow
Regards everyone as her son
So that people remain happy
The fruit of cooperation
Is family happiness
Live together in joy
If natives and foreigners walk together
They will be happy and prosperous.
 Become Aryan.............

Become Aryan, lead a life of welfare for others(2)

Consume spiritual and physical light(2)

Soldiers should move forward on the path of nation and religion

Sacrifice themselves

Always take care of each other with love

Become Aryan..............

Let us all walk together

Let love and happiness increase

Let us not betray each other

The Kamadhenu cow is the earth

Each particle of it is cooperative

Let us keep drinking its milk

The cow is the motherland

Our own daughter

Mother wants happiness and welfare of daughters

Let there be an awakening of devotion to the nation and devotion to God

Let there be an awakening of love

Become Aryan.......... ....


‌‌‌ Gwala Senapati

Vedic Mantra

Pra Senaani: Shuro agre rathana gavyaneti krivanindra havantsakhibhya a somo vastra rabhasani datte.  Rigvedi 9.96.1 Sama 533

Vedic hymn 1162nd
Raag Darbari
Singing time Midnight
Tal Kaharva eight beats

Become Aryan, sacrifice your life for the welfare of others (2)
Consume spiritual and physical light (2)
Soldiers should move forward on duty and country
Sacrifice yourself every moment
Take mutual cooperation with love
Become Aryan...............

Every human is a soldier
Protector of religion, caste and country
Peace, love and cooperation
The earth in the form of cow
Regards everyone as her son
So that people remain happy
The fruit of cooperation
Is family happiness
Live together in joy
If natives and foreigners walk together
They will be happy and prosperous.
 Become Aryan.............

Become Aryan, lead a life of welfare for others(2)

Consume spiritual and physical light(2)

Soldiers should move forward on the path of nation and religion

Sacrifice themselves

Always take care of each other with love

Become Aryan..............

Let us all walk together

Let love and happiness increase

Let us not betray each other

The Kamadhenu cow is the earth

Each particle of it is cooperative

Let us keep drinking its milk

The cow is the motherland

Our own daughter

Mother wants happiness and welfare of daughters

Let there be an awakening of devotion to the nation and devotion to God

Let there be an awakening of love

Become Aryan.......... ....

            Part 2

‌‌‌Become Arya, sacrifice your life for the welfare of others (2) 

Consume spiritual and physical light (2) 

Soldiers should move forward for the country and religion

Sacrifice yourself
Always take mutual cooperation with love

Become Arya……….. 

Let the self-aware army leader spread the Som-rasa of patriotism

Promote the national yoga

Whoever considers the earth as his mother

Has a relation with the culture of the sages

Their people become friends

The leader keeps his life on his palm

Soldiers keep moving forward

The entire army listens to the leader at every step

Become Arya .............. 
Become Arya, sacrifice your life for the welfare of others(2) 
Consume spiritual and physical light (2) 

Soldiers should move forward for the country and religion

Sacrifice yourself
Always take mutual cooperation with love 

Become Arya..............

The resolution is firm, the journey of war is noble

Their only aim is to defeat the enemy

Lion-like proclamation

The army's oath charge is not momentary

Their own country stands on their honour

They only remember their mother's lap

To live here, to die here

Each soldier says

Devotion to the nation is a form of sacrifice

Let the joy of Soma flow.

Become Arya................

Become Arya, dedicate your life for the welfare of others

Consume spiritual and physical light

Soldiers should move forward on the path of country and religion

Sacrifice yourself for duty

Always take precautions

Take mutual cooperation with love
Become Arya..............

One cow, spiritual culture

Inheritance of traditional sages

Mother tongue should be understood

Traditional religion-language

Good thoughts, treasure of science

Sons of the soil should be educated

If the inheritance is destroyed, the cow will become spiritual

Tell me how will it survive?

 Therefore, Aryans, keep protecting your ancestral property.

Become Arya...................

Meaning of the word:-

Ahut = sacrifice, dedication

Kamadhenu = wish-fulfilling heavenly cow

Udbodh = awakening, knowledge

Atmdarshi = one who understands his own merits and demerits

Udghoshna = announcement in a loud voice

Bapauti = property of forefathers

Patrika = of ancestors

🕉🧘‍♂️ 155th Vedic Bhajan of the second series

🕉👏And 1162nd Vedic Bhajan tillnow
And 1162nd Vedic Bhajan till now
🕉🧘‍♂️ Hearty❤ wishes to the listeners of Vedic Bhajanopadesh

              Updesh👇

Every man is a soldier. It is the duty of every self-respecting man to take up arms for the honour of his country, caste, religion and his home. The earth is a cow. She is pouring wealth and grains into the mouths of her sons. If mankind wants to live peacefully with mutual love and cooperation, then the milk of this Kamadhenu is quite sufficient for its needs. The result of cooperation will be family happiness here and there every country will also become more prosperous with all kinds of wealth. The problem is that humans themselves are becoming enemies of each other. One caste wants to establish unfair authority over another caste, one country over another country. This is what creates conflict. The happiness of Mother Earth lies in the fact that all her sons and daughters enjoy life peacefully. Whoever disturbs this peace is a traitor to Mother Earth. Those who are made slaves are surely harmed. But those who make others slaves are also not doing any spiritual good for themselves. A tyrant is a robber.  If a person becomes a dacoit, he is punishable as an individual. Similarly, if a member of a community becomes a dacoit, he deserves to be punished as a community. The welfare of mankind lies in the fact that all nations are independent and prosperous.
This is the economic cow. Culture is the spiritual cow. Traditional thoughts, language, knowledge, science and religion are the mental inheritance of every nation. To let them perish is to commit a mental and spiritual murder.
Political independence and spiritual progress go hand in hand. It is difficult to say which of these is the foundation and which is the dependent. It is the duty of the Aryan man to make every possible effort to protect both. He who is Indra, that is, a living soul, will not let his birthrights perish. It is natural for his heart to raise a voice for their protection.
Satvik patriotism does not teach treachery to others. For him, the motherland is the daughter of Mother Earth. It is the mother's good fortune that all her daughters are happy and independent. Such patriotism is synonymous with devotion to God.
The love of God is to love his sons. The intoxication of this patriotism is "Som". It is Amrit for all human beings. It is the true life-giving juice. When the Aryaveer, under this intoxication, fights with his opponents, he protects not only his own country but also the Sanskrit language, religion, science, art, customs, dignity of women and elders, etc. of all countries. He has heard the voice of the soul in the melodious tunes of "Som" - of Satvik patriotism - and by sacrificing his life in this religious war, he is making that inner voice successful.
The Som-rasa of this Satvik patriotism can be transmitted only by a self-realized army leader who considers Mother Earth as his mother, who considers the cultures of the country and abroad as the holy gifts of his sages. The soldiers will then be his friends, companions. They will be pearls of similar luster and shine, strung together in the thread of sacred Som-rasa.  Where the leader puts his life in his hands and marches ahead of his soldiers, the heart of complete service leaps with his every step. He moves towards the battlefield dancing. His passion is not momentary. He has not rushed towards the battlefield under the influence of lust, anger or attachment. His resolve for the war journey is pure and stable. His war is a form of sacrifice. His life is presented at the feet of Mother Earth, it is the dedication of the traditional inheritance of the sages of culture. His army leader has set out to protect Mother Cow – the name of the earth is cow and the culture denoted by the mother tongue. Because of this, he has become the embodiment of Som – Amrit for the country and the community.

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