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मृदुल वाणी से गुण गाएं अमूर्त तू तुझको ही ध्यायें

1209 English version is at the end
      ‌‌‌          सच्चा स्वामी
               वैदिक भजन १२०९ वां
                         राग भैरवी
                 गायन समय चारों प्रहर
         ‌ ‌        विशेषत: प्रातः काल
                  ताल कहरवा ८ मात्रा
                   👇वैदिक मन्त्र👇
को नानाम वचसा सोम्याय मनायुवा भवति वस्त उस्त्रा: । 
क इन्द्रस्य युज्यं क: सखित्वं को भ्रात्रिक नष्ट कवये क ऊती।।        ऋग्वेद• ४.२५.२
                  👇वैदिक भजन👇
मृदुल वाणी से गुण गाएं 
अमूर्त तू तुझको ही ध्यायें 
ना जड़- चेतन की मूर्तियों में सतत्
 मन अपना ले जाएं ।।
मृदुल.......... 
प्रभु है सौम्य सोम का पात्र भी हमको बनाते हैं 
यह भोग- ऐश्वर्य भी हमने 
प्रभु की दया से पाए हैं  ।। 
मृदुल 
ये भोग ऐश्वर्य उसके सामने 
कर दें समर्पित हम 
कि जिससे आए ना अहंकार
विनम्र हम होते जाएं ।। 
मृदुल..... 
ये इन्द्रियां 'उस्त्रा' हैं समझो 
जो इन्द्र की ज्ञान की किरणें हैं
समझकर इन्द्र का ही वस्त्र इन्द्रियां ओढ़ इन्हें पाएं मृदुल.......... 
                ‌‌‌‌‌  ‌‌‌         भाग 2 
बनिते फिरते हैं हम मित्र भाई बन्धु या नाती 
मगर है कोई विरला भक्त 
जो इन्द्र का साथी हो जाए। 
मृदुल....... 
कोई विरला ही है जो 
क्रान्तदर्शी को ही समझे मित्र
जो कान्ति प्रीति, भक्ति से 
वो भ्रातृ भाव रख पाए 
मृदुल..... ... 
हम अंधाधुंध अपने काम करते जा रहे हैं नित 
मगर जो असली स्वामी है ना उसका ध्यान कर पाए 
मृदुल.......
          ‌‌‌‌‌‌‌                 शब्दार्थ:-
मृदुल= कोमल,नरम
अमूर्त= बिना आकार का
उस्त्रा=किरणें
क्रान्तदर्शी=
                 ‌‌‌‌8.7.20 24 703 p.m.
          ‌‌‌             👇उपदेश👇
                 ‌‌‌        सच्चा स्वामी
यह दुनियां किधर जा रही है? क्या करना चाहिए और क्या कर रही है ? लोग ना जाने किन-किन जड़ और चेतन मूर्तियों के सामने झुकते हैं, पर कौन है जो अपने प्रभु परमेश्वर के सामने झुकता है? इस अपूर्ण के सामने भौतिक रूप से झुकना तो हो नहीं सकता मानसिक और बाहरी वाणी से ही हो सकता है, तो कौन है जो उस प्रभु के सम्मुख वाणी द्वारा,विचार द्वारा,व प्रार्थना द्वारा नम्र
 होता है। वह तो सौम्य है, हमारे सम्पूर्ण सोम का पात्र है। हमें अपने सब भोग्य पदार्थों को, अपने सब ऐश्वर्यों को उसके सामने झुका देना चाहिए, उसे समर्पित कर देना चाहिए, पर उसे जगत् के एकमात्र स्वामी का भी हममें से कौन है जो सच्चा पूजन करता है? उसका मनन करना तो मुश्किल है,पर कौन है जो उसके मनन करने का इच्छुक भी होता है? कौन है जो मनन द्वारा उस इन्द्र की ज्ञान- रूप किरणों को अपने में धारण करता है? अथवा इन इन्द्रियों को ही उसेश तरह समझो जो उस इन्द्र की है, इन्द्र कि गौएं या किरणें हैं। तो कौन है जो इन इंद्रियों को या इन शरीरों को उस इन्द्र का समझ कर वस्त्र की तरह ओढ़ता है। असंग होकर धारण करता है। हम दुनियां में नाना प्रकार के (धनी, मानी, ज्ञानी आदि लोगों को अपना साथी संगी, इष्ट मित्र, भाई -बन्धु बनाते  फिरते हैं और मानते हैं । पर कौन है जो उस इन्द्र को अपना साथी बनना चाहता है? कौन है जो उसे सखा करना चाहता है और ऐसा बिरला कौन है,जो उससे भ्रातृभाव भाव स्थापित करना चाहता है? उस क्रांतिदर्शी, सर्वज्ञ पुरुष के लिए कौन है जो इतनी कान्ति, प्रीति वह भक्ति रखता है। इस संसार में हम अंधाधुंध अपने काम करते जा रहे हैं पर जो इस संसार का असली स्वामी है जो हमारा सब कुछ है जो हमारा अपना है उसकी और हम कुछ भी ध्यान नहीं दे रहे ।  हम क्या कर रहे हैं ? 

🕉👏द्वितीय श्रृंखला का २०३ वां वैदिक भजन 🙏
और अब तक का वैदिक १२०९ वां वैदिक भजन 
सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹

             True Swaami
Vedic Bhajan 1209th
Raag Bhairavi
Singing time all four prahars
Especially in the morning
Taal Kaharva 8 beats

           👇vaidik mantra👇

ko naanaam vachasaa somyay manayuva bhavati vast ustra: । 
ka indrasya yujyam ka: sakhitvam ko bhratrik nasht kavaye ka uti।।        rigved• 4.2.25
                  👇vaidik bhajan👇
mridul vaani se guna gaayen 
amirt tu, tujhako hee dhyaayen 
naa jad- chetan ki murtiyon men satat
 man apanaa le jaayen ।।
mridul.......... 
prabhu hai saumya som ka patra bhi hamako banaate hain 
yah bhog- aishvarya bhi hamane 
prabhu ki dayaa se paaye hain  ।। 
mrudul......... 
ye bhog aishwarya usake samane 
kar den samarpit hum 
ki jisase aaye naa ahankaar
vinamra ham hote jaayen ।। 
mridul..... 
ye indriyaan 'ustraa' hain samjho 
jo indra ki gyaan ki kiranen hain
samjhakar indra kaa hi vastra indriyan odh inhen paayen 
mridul.......... 
                    bhag 2 
banaate firate hain hum mitra bhaai bandhu ya naatee 
magar hai koi virlaa bhakt 
jo indra kaa sathi ho jaaye। 
mridul....... 
koi virlaa hi hai jo 
krantadarshi ko hi samjhe mitra
jo kanti preeti, bhakti se 
vo bhraatri bhaav rakh paaye 
mrudul..... ... 
hum andhadhundh apane kaam karate jaa rahe hain nit 
magar jo asali swaami hai naa usakaa dhyaan kar paaye 
mridul......

👇🏼Meaning of words:-👇
Mridul = soft, mild
Amoort = without form
Ustra = rays
Krantdarshi = can see the past, present and future, God
8.7.20 24  703 p.m.

👇Vedic Hymn👇
Sing your praises with soft voice

Let me meditate on you, the intangible one

Do not let my mind get lost in the idols of living and non-living things.

 Mridul.......... 
The Lord is gentle, He makes us the vessel of Som.

We have got this pleasure and luxury by the grace of the Lord.

Mridul, we surrender these pleasures and luxury to him,

Who does not let ego come into us.  Let us become humble.

Mridul.....

Understand that these senses are 'razor'

Which are the rays of knowledge of Indra

Understanding this, wear the clothes of Indra and get them

Mridul..........

                Part 2  
We keep on becoming friends, brothers, relatives or grandsons

But there is a rare devotee

Who becomes a companion of Indra.  Mridul....... 
There is very few who
considers a revolutionary as a friend
Who can maintain brotherly feelings with love and devotion
Mridul..... ...
We keep doing our work blindly everyday
But the one who is real  Swami is there, can I meditate on him
Mridul......
              **********
‌‌‌‌‌
               
           👇upadesh👇
                The true Lord
 Where is this world headed?  What should be done and what is it doing?  People bow down to unknown root and conscious idols, but who bows down to their Lord God?  Bowing to this imperfect cannot be done physically but only by mental and external speech, so who is there who humbled himself before that Lord by speech, by thought, and by prayer
  occurs.  He is so gentle, worthy of our entire Soma.  We should bow before Him all our enjoyments, all our riches, surrender them to Him, but who among us truly worships Him, the only Lord of the universe?  It is difficult to contemplate it, but who is willing to contemplate it?  Who is he who by meditation holds in himself the rays of knowledge- form of that Indra?  Or understand these senses as the cows or rays of that Indra.  So who is he who understands these senses or these bodies as that Indra and wears them like a garment?  holds unattached.  We make various kinds of people in the world (rich, rich, wise, etc.) our friends, dear friends, brothers and sisters. But who is he who wants to be his companion? Who is he who is his friend?  Who wants to do and who is such a rare,who wants to establish brotherhood with him?  The real master of this world is our everything and we are not paying any attention to him. 

 🕉👏Second series of Vedic Bhajans so far 🙏Vedic Bhajans to all Vedic listeners🙏🌹

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