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🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1258 
*ओ३म् इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑ ।*
*शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥*
ऋग्वेद 7/32/26
सामवेद 259 

हे इन्द्र परमेश्वर !
ज्ञान दे प्रज्ञान दे
शुचि सद्बुद्धि भी 
यज्ञमय निष्काम दे
प्रज्ञा-प्रज्ञान जैसे 
देता पिता पुत्र को 
वैसा ज्योतिर्मयी प्रकृष्ट 
प्रखर पवित ज्ञान दे
हे इन्द्र परमेश्वर !

पिता के समान तेरे 
शुद्ध पुत्र बने हम
शुभ यज्ञमय कृत 
करते ही जाएँ हम 
धर्म के पथ पे चलकर
छलकाएँ सुख आनन्द 
प्रेरणा से शिक्षा दे 
आध्यात्म प्रकाश दे 
योग और भोग में 
यज्ञमय सौगात दे 
सद्बुद्धि शिवसङ्कल्प की
प्रभु तू अबाध दे
ज्ञान श्रेष्ठ कर्म सब 
देवों के समान दे 
यज्ञमय कर्मों का सतत् 
दैविक दान दे
शुचि सद्बुद्धि भी 
यज्ञमय निष्काम दे
हे इन्द्र परमेश्वर !

विनय, प्रार्थना, याचना 
करें प्रभु आप से 
बचा लो प्रभु हमें 
दु:ख दुरित भय व  पाप से 
प्रेरणा शिक्षा की दे 
अध्यात्म ज्योतियाँ भरी 
ज्ञान कर्म इन्द्रियाँ 
कनक सम चमक उठें 
हे इन्द्र पुरुहूत 
हम तो हैं तेरे सुत
सावधान करते रहो 
प्रभु सदा तुम ही खुद 
यज्ञमय भावों से सदा 
करते रहो हमें प्रबुद्ध 
देवपूजा संगतिकरण 
भाव निष्काम दे
शुचि सद्बुद्धि भी 
यज्ञमय निष्काम दे
हे इन्द्र परमेश्वर !

यही यज्ञमय जीवन 
सद्गुणों की खान है 
वैर-द्वेष मद जले 
यह अग्नि का प्रमाण है 
सत्कर्म अनुश्राविक 
इन्द्रिय-शृङ्गार  बने 
हम सुसन्तानों को 
पिता का आधार मिले 
तपस्वी विद्वानों की 
सेवा सत्कार करें 
जीवन के हर पथ पर 
उमंग-उत्साह दे 
पाप दुरित कर्मों में 
भय लज्जा शंका दे 
दिव्य प्रसाद पाएँ  प्रभु 
हृदय में अपने स्थान दे
शुचि सद्बुद्धि भी 
यज्ञमय निष्काम दे
हे इन्द्र परमेश्वर !
ज्ञान दे प्रज्ञान दे
शुचि सद्बुद्धि भी 
यज्ञमय निष्काम दे
हे इन्द्र परमेश्वर !       
 
*रचनाकार, साज़-वादक व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*  १२.१० २००८       ८.३० रात्रि

*राग :- पीलू*
गायन समय दिन का तीसरा प्रहर, ताल दादरा ६ मात्रा

*शीर्षक :- प्रभु ! हमें ज्ञान दो हमें काम दो* वैदिक भजन ८३० वां

*तर्ज :- * चन्दन का पलना रेशम की डोरी

प्रकृष्ट  = सर्वोत्तम
कृत = काम, उपकार
कनक = स्वर्ण, सोना
प्रबुद्ध = जागृत, जागा हुआ
अबाध = बिना रुकावट
पुरुहूत = बहुतों द्वारा पुकारे जाने वाले
सौगात = भेंट,उपहार
अनुश्राविक = परम्परा से सुना जाने वाला

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*

प्रभु ! हमें ज्ञान दो हमें काम दो

हे इन्द्र! हे परमेश्वर! तू हमें ज्ञान दे,तू हमें प्रज्ञान दे, तू हमें सद्बुद्धि दे। तू हमें काम दे,तू हमें कामों में सबसे उत्तम काम यज्ञ दे। ऐसे जैसे कि इस संसार में एक पिता अपने पुत्रों को ज्ञान देता है, प्रज्ञा- प्रज्ञान अर्थात् प्रकष्ट ज्ञान देता है, सद्बुद्धि देता है। वह उन्हें करने को कार्य देता है, कार्यों में भी श्रेष्ठतम कार्य यज्ञकार्य, शुभकर्म देता है ताकि वे अपने पिता के समान ज्ञानी बुद्धिमान बनकर कर्म कर सकें, सत्कर्म कर सकें, यज्ञमय शुभ कर्म कर सकें।
हे भक्तों से बहुत प्रकार से बार-बार बुलाए जाने वाले जगदीश्वर! ऐसे जीवन पथ में इस गन्तव्य उत्तम धर्म मार्ग में अथवा योग में तू हमें शिक्षा दे, तू हमें प्रेरणा दे और तू हमें ऐसी शिक्षा दे, ऐसी प्रेरणा देगी हम जीते हुए ही, अर्थात् इस वर्तमान जीवन में तेरी दिव्य ज्योति को, तेरे अध्यात्मप्रकाश को, तेरे अमृतानन्द को प्राप्त कर सकें।
जैसे बच्चे को शुरू में कुछ भी पता नहीं होता वह अपने पिता से प्रश्न करता रहता है, और समझने का प्रयत्न करता है, चन्दा मामा है तो नीचे क्यों नहीं आता? पिताजी बन्दर कपड़े क्यों नहीं पहनते? इस प्रकार बच्चा पग पग पर बहुत कुछ जानना चाहता है।
अब जैसे उस बच्चे को ज्ञान चाहिए, प्रज्ञान चाहिए, प्रज्ञा चाहिए, सद्बुद्धि चाहिए, फिर करने को कुछ काम चाहिए, वैसे ही हमें भी क्रतु ज्ञान चाहिए, सत्कर्म चाहिए जो वास्तविक लक्ष्य की ओर अग्रसर करे, जिससे उसका सुख सौभाग्य बढ़ता रहे।
"हे इन्द्र! यथा पिता पुत्रेभ्य:(तथा) न:क्रतुम् आभर"कैसे संसार में एक पिता अपनी संतान को क्रतु-प्रज्ञा-सद्बुद्धि-अच्छे-सद्बुद्धि-अच्छे-अच्छे से अच्छा ज्ञान देता है, करने को क्रतु=अच्छे से अच्छा काम देता है, और जहां तक भी वह समझता है उसको श्रेष्ठ कर्म अर्थात् यज्ञ कर्म करने को कहता है ताकि उस के माध्यम से वह पूज्य देवों का प्यार और आशीर्वाद पा सके।
ज्ञान यदि हमारी ज्ञानेन्द्रियों को और मस्तिष्क को अलंकृत करें तो कर्म सत्कर्म हमारी इन्द्रियों का श्रृंगार बने। मस्तिष्क में ज्ञान हो तो हाथों में कर्म हो।
यदि हमें जीवन में पग-पग पर उस 'पुरुहूत' इन्द्र की शिक्षा मिलती रहे, प्रेरणा मिलती रहे और हम उस पर निरन्तर ध्यान देते रहें, तो इसमें संदेह नहीं कि एक ना एक दिन हम ज्योति, परम ज्योति, परम प्रकाश, परम आनन्द को पा जाएंगे।
हम जिस के द्वार पर खड़े हुए अलख जगा रहे हैं। और जिससे बुद्धि और कार्य मांग रहे हैं, वह कोई साधारण पुरुष नहीं है। वह कंगाल पुरुष नहीं है, वह तो जगत् सम्राट है, परम ऐश्वर्य वाला है। यदि उस परम ऐश्वर्यवान प्राणप्रिय प्रभु के यहां कार्य मिल जाए तो फिर हमें उसके द्वार से अलौकिक ऐश्वर्य ही नहीं वरन् परम ऐश्वर्य परमानन्द रूप धन भी मिलता है, जिसे पाकर मनुष्य सब प्रकार से सन्तुष्ट हो जाता है, सब तरह से परितृप्त हो जाता है।
मेरा प्रभु घट-घट बस जाए तो मैं किससे वैर करूं? और क्यों करूं?
हे पुरुहूत परमेश्वर! तुम हमें इस जीवन पथ पर पदे -पदे शिक्षा देते रहो, प्रेरणा देते रहो। जिससे हम दिव्य प्रसाद पा सकें फिर कुछ प्राप्त करने को शेष नहीं रह जाएगा।
🎧830 वां वैदिक भजन
🕉️👏🏽
ईश भक्ति भजन 
भगवान ग्रुप द्वारा 
सभी श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹
            *********
🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1258 
*om indra॒ kratum॑ na॒ aa bha॑ra pi॒ta pu॒trebhyo॒ yatha॑ .*
*shiksha॑ no au॒sminpu॑ruhut॒ yam॑ni ji॒va jyoti॑rashimahi ॥*
rigved 7/32/26
samved 259 

he indra parameshwar !
gyaan de pragyaan de
shuchi sadbuddhi bhi 
yajyamaya nishkaam de
pragnya-pragyaan jaise 
detaa pitaa putra ko 
vaisaa jyotirmayi prakrusht 
prakhar pavit gyaan de
he indra parameshwar !

pitaa ke samaan tere 
shuddh putra bane hum
shubha yagyamaya krit 
karate hee jaayen hum 
dharm ke path pe chalakar
chhalakaayen sukh anand 
prerana se shikshaa de 
aadhyaatm prakaash de 
yog aura bhog men 
yagayamaya saugaat de 
sadbuddhi shivasankalp ki
prabhu tu abaadh de
Gyaan shreshth karm sab 
devon ke saman de 
yagyamaya karmon kaa satat 
daivik daan de
shuchi sadbuddhi bhi 
yagyamaya nishkaam de
he indra parameshwar !

vinaya, praarthana, yaachanaa 
karen prabhu aap se 
bachaa lo prabhu hamen 
du:kh durit bhaya va  paap se 
prerana shiksha ki de 
adhyatm jyotiyaan bhari 
gyaan karm indriyaan 
kanak sam chamak uthen 
he indra puruhut 
ham to hain tere sut
saavadhaan karate raho 
prabhu sadaa tum hi khud 
yagyamaya bhaavon se sadaa 
karate raho hamen prabuddha 
devpujaa sangatikaran 
bhav nishkaam de
shuchi sadbuddhi bhi 
yagnyamaya nishkaam de
he indra parameshwar !

yahi yagyamaya jeevan 
sadgunon ki khan hai 
vair-dvesh mud jale 
yah agni ka pramaan hai 
satkarm anushraavik 
indriya-shringaar  bane 
hum susantaanon ko pitaaa ka aadhar mile 
tapasvi vidvaanon ki 
sevaa satkaar karen 
jeevan ke har path par 
umang-utssah de 
pap durit karmon men 
bhaya lajjaa shankaa de 
divya prasad paayen  prabhu 
hridaya men apane sthaan de
shuchi sadbuddhi bhi 
yagyamaya nishkaam de
he indra parameshwar !
gyaan de pragyaan de
shuchi sadbuddhi bhi 
yagyamaya nishkaam de
he indra parameshwar ! 
👇Meaning of words👇

      Prakrisht = best
Krit = work, favor
Kanaka = gold
Prabuddha = awakened, awake
Abadh = without interruption
Puruhut = called by many
Saugat = gift, present
Anuśrāvik = heard from tradition
            ***********
 Lyricist, instrumentalist, and singer:-* pujya shri lalit mohan sahani ji – mumbai*
compositiondate :--
*12.10 2008       8.30 pm

*raag :- peelu*
Singing time third phase of the day
 taal dadara 6 beats

Title :- prabhu ! hamen gyaan do hamen kaam do* vaidik bhajan 829 th

**tune :- chandan kaa palanaa**

            *********"*
👇Meaning of bhajan👇

Hey Indra, the supreme lord!
 The world of the world full of pure wisdom is also filled with the darkness of the world of worldly dreams, just as a father gives it to his son, the world is filled with the light of the pure world, O Indra Parameshvar!

  Like father, let us become pure sons

Let us perform auspicious yagya

Let us lead on the path of religion

Let us teach with happiness and joy

Let us give spiritual light

Let us give yagya-like gifts in yoga and bhog

Lord, give us the boon of the Shiva-like creation

Let us perform the best deeds like gods

Let us give the continuity of yagya-like deeds

Let us also receive pure yagya-like results

Oh Indra Parameshwar!  humility, prayer, request

Let us do it Lord, save us

from sorrow, fear and sin

give us inspiration by teaching

full of spiritual lights

of good deeds

like gold and shining with enthusiasm

oh Indra puruhut

we are your followers

keep being careful

lord, you yourself are the one

keep being kind to us

keep being kind to us

make us wise

give us the end of the world, worship the gods

give us pure wisdom

give us the end of the world, oh Indra parameshwar !

 This yagnyamaya life

is a mine of virtues

Enmity and enmity burn in madness

This is the proof of fire

Let the good deeds be the follower

of Indra's adornment

May we saints

get the status of a father

Let us serve the ascetic scholars

Give enthusiasm and zeal on every path of life

Let brother feel ashamed in sinful deeds

May Lord receive divine prasad

Give your place in the heart

May pure wisdom also

Give a yagnyamaya end

Oh Indra Parameshwar!  The life of the desire of pure sadbuddhi is also yagnyamaya of no use, hey Indra Parameshvar!       
 
             *********
*Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji related to this Bhajan:-- 👇👇*

Lord! Give us knowledge, give us work

O Indra! O God! Give us knowledge, give us wisdom, give us good sense. Give us work, give us the best work of all works, Yagya. Just like in this world, a father gives knowledge to his sons, wisdom, wisdom, gives them good sense. He gives them work to do, the best work of all works, Yagya-karya, auspicious deeds, so that they can perform work by becoming wise and knowledgeable like their father, can do good deeds, can do auspicious deeds full of sacrifices.

O Jagadishwar who is called repeatedly by devotees in many ways!  In this path of life, in this destination of the best religion or yoga, you teach us, you inspire us and you teach us in such a way that we can attain your divine light, your spiritual light, your Amritanand while we are alive, that is, in this present life.

Just like a child does not know anything in the beginning, he keeps asking questions to his father and tries to understand, if the moon is uncle, then why does he not come down? Why does father not wear monkey clothes? In this way, the child wants to know a lot at every step. Now, just like that child needs knowledge, wisdom, intelligence, good sense, then some work to do, similarly we also need knowledge of deeds, good deeds which lead us towards the real goal, so that his happiness and good fortune keep increasing.  "Hey Indra! Yatha Pita Putrebhya: (Tatha) Na: Kratum Aabhaar" How in this world a father gives his child the best of knowledge, gives him the best of work, and as far as he understands, asks him to do the best of deeds, i.e. Yagya Karma, so that through that he can get the love and blessings of the revered Gods.

If knowledge adorns our sense organs and brain, then good deeds become the adornment of our sense organs. If there is knowledge in the brain, then there should be work in the hands.

If we keep getting the teachings of that 'Puruhut' Indra at every step of life, keep getting inspiration and keep paying attention to it continuously,then there is no doubt that one day we will get the light, the supreme light, the supreme light, the supreme bliss.

The one at whose door we are standing and awakening the consciousness. And from whom we are asking for wisdom and work, is not an ordinary man. He is not a poor man, he is the emperor of the world, he is the one with the most opulence. If we get work from that most opulent, dear God, then we not only get supernatural wealth from his door but also the wealth in the form of supreme wealth and bliss, after getting which a man becomes satisfied in every way, gets satisfied in every way.

If my God dwells in every heart of mine, then whom should I hate? And why should I?

O Purushot Parmeshwar! You keep teaching us and inspiring us at every step on this path of life. So that we can get divine prasad, then nothing will remain to be achieved.

 🎧829th Vedic Hymn🕉️👏🏽
🕉👏God devotional hymn
By Bhagwan Group🙏🌹

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