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🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1260
*ओ३म् श्री॒णामु॑दा॒रो ध॒रुणो॑ रयी॒णां म॑नी॒षाणां॒ प्रार्प॑ण॒: सोम॑गोपाः ।*
*वसु॑: सू॒नुः सह॑सो अ॒प्सु राजा॒ वि भा॒त्यग्र॑ उ॒षसा॑मिधा॒नः ॥*
ऋग्वेद 10/45/5
आओ हम अग्नि राजा की
तेजोमय शरण में जाएँ
राजा की है निराली शान
प्रजा के काम जो आए
आओ हम अग्नि राजा की
वह ऐश्वर्यों का है स्वामी
वह सम्पत्तियों का है धारक
वह साधक के भीतर श्री को
भी अनुदान करना चाहे
आओ हम अग्नि राजा की
कुसंगति में पड़ा मानव
असत्य और हिंसा से बिखरे
प्रभु उसे करता है जागरूक
अहिंसा सत्य उपजाये
आओ हम अग्नि राजा की
वह भौतिक सम्पत्ति मानव
को देता है कृपालु बन
मनीषा आशा और उत्साह
की देता है प्रतिभाएँ
आओ हम अग्नि राजा की
तेजोमय शरण में जाएँ
राजा की है निराली शान
प्रजा के काम जो आए
आओ हम अग्नि राजा की
*रचनाकार, साज़वादक व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*
२८.१.२०२२ १२.४५ pm
*राग :- रागेश्वरी*
गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर, ताल कहरवा ८ मात्रा
*शीर्षक :- उषाओं के आगे चमकने वाला राजा*
वैदिक भजन ८३२ वां, आज भाग 1 कल भाग 2
*तर्ज :- * मोहब्बत ऐसी धड़कन है
श्री = आध्यात्मिक मानसिक और शारीरिक परमशोभा
अनुदान = भेंट
मनीषा = उत्तम बुद्धि
प्रतिभा = विलक्षण बौद्धिक शक्ति
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का स्वाध्याय-सन्देश :-- 👇👇*
उषाओं के आगे चमकने वाला राजा
आओ, हम अग्नि राजा की तेजोमय प्रभु- राजा की शरण में जाएं। वह राजा कैसा है, उसके कैसी निराली शान है, वह अपनी प्रजा को क्या देता है, यह भी वेद के शब्दों में सुन लें। वह साधक के अन्दर श्री को अर्थात् आध्यात्मिक, मानसिक, और शारीरिक परम शोभा को उत्पन्न करने वाला है। वह ऐश्वर्योंका, समस्त सपृहणीय धन- सम्पत्तियों का, धारण करने वाला है। वह मनुष्य के कुसंगति आदि में पड़ जाने से उसके पास से एक- एक करके सत्य- अहिंसा आदि सम्पत्तियां
बिखरने लगती हैं। तब वह उसे जागरूक करके उसकी उन सम्पत्तियों का धारक बनता है। वह मानव की भौतिक सम्पत्ति को भी उसके पास धृत रखने में निमित्त बनाता है, उसे दरिद्र नहीं होने देता। वह मनीषाओं का, मन की अभीप्साओं का,सस्फूरणाओं का, प्रतिभाओं और बुद्धियोंका प्रकृष्ट दाता है। वह 'सोमगोपा'
हैं, आत्मा रूपी सोम का रक्षक है। साथ ही वह सोम शब्द से सूचित होनेवाली सौम्यता, समस्वरता, अन्तः प्रेरणा, शान्ति, ज्ञान की अमृतमयी धारा आदि का भी रक्षक है। वह 'वसु' है, उजड़ते हुए को बसाने वाला है, बसे हुए के निवास को दृढ़ करने वाला है। वह 'सहस'का 'सूनु' है, साहस, मनोबल, आत्म बल आदि का पुत्र या पुतला है।
अन्धकार को विच्छिन्न करने वाली चमकीली उषाएं प्राची में प्रतिदिन उदित होती हैं, क्या वे स्वयं अपनी शक्ति से चमक रही हैं? नहीं? इन्हें चमकाने वाला वही अग्नि स्वरूप परमेश्वर है। सूक्ष्म आंख से देखने पर वही अपनी दिव्य चमक से चमकता हुआ-उषाओं के आगे- आगे चलता है। और, अन्तरिक्षस्थ जलों में जो विद्युत विद्योतित होती है वह भी जल की अपनी द्युति नहीं है, परमात्मग्नि ही विद्युत को भी भासमान कर रहा है। उपनिषद के ऋषि ने ठीक कहा है--ना उसके सम्मुख सूर्य अपनी कुछ चमक रखता है, ना चांद तारे कुछ चमक रखते हैं, न बिजलियां कुछ चमक रखती है, ना भौतिक अग्नि चमक रखती है। उसी की चमक में से थोड़ी सी चमक लेकर यह सब चमक रहे हैं, खुशी की आभा से यह जगत भासमान है।
'तस्य भासा सर्वमिदं विभाति'।
आओ उषाओं और विद्युतों के आगे चमकने वाले उस राजा से हम भी थोड़ी सी चमक प्राप्त कर लें।
कल वैदिक भजन का भाग 2🎧 831वां वैदिक भजन🕉️👏🏽
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा
सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹
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🙏 *Today's vaidik bhajan* 🙏 1260
part 1/2*
👇Vaidik mantra👇
*om shri॒namu॑da॒ro dh॒runo॑ rayi॒nam ma॑ni॒shaanam॒ praarp॑na॒: som॑gopaah .*
*vasu॑: su॒nuh sah॑so au॒psu raja॒ vi bha॒tyagra॑ u॒shasa॑midha॒nah ॥*
rigved 10/45/5
👇Vaidik bhajan👇
aayo ham agni raajaa ki
tejomaya sharan men jaayen
raajaa ki hai niraali shaan
prajaa ke kaam jo aaye
aayo ham agni raajaa ki
vah aishwaryon ka hai swaami
vah sampattiyon ka hai dhaarak
vah saadhak ke bhitar shri ko
bhi anudaan karanaa chaahe
aayo ham agni raajaa ki
kusangati men padaa maanav
asatya aur hinsaa se bikhare
prabhu use karataa hai jaagaruk
ahinsaa satya upjaaye
aayo ham agni raajaa ki
vah bhoutik sampatti manav
ko detaa hai kripaalu ban
manishaa aashaa aur utsaah
ki detaa hai pratibhaayen
aayo ham agni raajaa ki
tejomaya sharan men jaayen
raja ki hai niraali shaan
prajaa ke kaam jo aaye
aayo ham agni raajaa ki
*Composer and Voice :- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai*
*Date of Creation :--*
*Raag :- Rageshwari*
Singing time 2nd hour of the night, rhythm Kaharwa 8 volumes
*Title:- The King Shining Before the Dawns*
Vedic Bhajan 832nd, Today Part 1 Tomorrow Part2
*Tune:- *muhabbat aisi dhadakan hai
Sri = spiritual mental and physical beauty
Anhdaan = gift
Manisha = excellent intelligence
Pratibha= extraordinary intellectual power
*Composer, instrumentalist and Voice :- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai*
*Date of Creation :--*
28.1.2022 at12. 45AM
*Raag :- Rageshwari*
Singing time 2nd
of the night, rhythm Kaharwa 8 beats
*Title:- The King Shining Before the Dawns*
Vedic Bhajan 832nd, Today Part 1 Tomorrow Part 2
*tarj :- *muhabbat aisee dhadakan hai
👇Meaning of bhajan👇
Let us be the fire king
Go to the radiant refuge
The king has a unique splendor
who came to the service of the people
Let us be the fire king
He is the Lord of riches
He is the holder of properties
He within the seeker to Sri
also want to grant
Let us be the fire king
Humans in discord
Scattered with untruth and violence
The Lord makes him aware
Non-violence produces truth
Let us be the fire king
That material property human
who gives become gracious
Manisha hope and excitement
of gives talents
Let us be the fire king
Go to the radiant refuge
The king has a unique splendor
who came to the service of the people
Let us be the fire king
***********
**Swaadhaay-Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji regarding the presented bhajan :-- 👇👇*
The king who shines before the dawns
Let us take refuge in the glorious lord- king of the fire king. Hear also in the words of the Vedas what that king is like, what his unique splendor is, what he gives to his subjects. He is the one who produces Sri within the seeker, that is, the supreme beauty of spiritual, mental, and physical. He is the possessor of riches, of all desirable wealth. He takes away from man one by one the properties of truth, non-violence, etc., by falling into misconduct, etc
They start to scatter. Then he makes her aware and becomes the holder of those properties of hers. He also makes the material possessions of man an excuse to keep with him, not allowing him to become poor. He is the supreme giver of wisdom, of the desires of the mind, of inspirations, of talents and intelligences. He is 'Somgopa'
are, the protector of the soul-like Soma. He is also the protector of the gentleness, harmony, inner motivation, peace, nectarine stream of knowledge etc. indicated by the word Soma. He is 'Vasu', the settler of the desolate, the firmer of the dwelling of the settled. He is the 'Sunu' of 'Sahas', the son or puppet of courage, morale, self-strength, etc.
The bright dawns that dispel the darkness rise every day in the east, are they shining with their own power? Not? It is God in the form of fire who makes them shine. When viewed with the subtle eye, the same shines with its divine radiance—before the dawns—forward. And, the electricity that shines in the waters in space is not the light of the water itself, it is the Supreme Fire that is also illuminating the lightning. The sage of the Upanishads is right--neither the sun has some of its luster before him, nor the moon and stars have any luster, nor the lightnings have any luster, nor the physical fire have any luster. They are all shining with a little of His radiance, this world is illuminated by the radiance of joy.
'By His light all this shines.
Let us also receive a little shine from that King who shines before the dawns and lightnings.
Part 2🎧 831st Vedic Bhajan🕉️👏🏽 of Vedic Bhajan tomorrow
🕉👏Ish Bhakti Bhajan
By the God Group
Best wishes to all Vedic listeners🙏🌹
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