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*तुम साकार कहते हो इसलिए पाखण्डी

 *तुम साकार कहते हो इसलिए पाखण्डी हो..........क्योंकि मैं निराकार कहता हूं इसलिए तत्त्व द्रष्टा हूं।*



*तुम अवैदिक ग्रन्थों का आश्रय लेते हो इसलिए तुम्हारा मोक्ष नहीं होगा........ क्योंकि मैं वैदिक ग्रन्थों का आश्रय लेता हूं इसलिए मोक्ष की VIP AC सीट मेरी.......*


*तुम भगवान को जन्म लेने वाला मानते हो इसलिए अविद्या में हो...... मैं ईश्वर को अजन्मा मानता हूं इसलिए विद्या रूपी मलाई भात के साथ उडा रहा हूं.....*


*तुम प्रतिमा पूजन करते हो इसलिए पाखण्ड में फंसे हो.....*


*मैं सर्वव्यापक,सर्वज्ञ परमपुरुष की चर्चा करता हूं....दूसरों को खूब समझाता हूं इसलिए मैं ज्ञानी हूं ।*


*साकारवाद के उपासक पाखण्डी हैं निराकारवाद के उपासक परमात्मा ही हो जाते हैं........*


*तुम जीवित माता-पिता की सेवा न करके मृतकों का श्राद्ध तर्पण करके उन्हें सुख पहुंचाना चाहते हो..... मैं तो माता-पिता से व्यवहार ही नहीं करता क्योंकि वे मेरी बात नहीं मानते (जिसे मैं मानता हूं ) इसलिए मैं उन्हें दुःख से बचा रहा हूं......*


*तुम बताओ वेद में कहां लिखा है कि आत्मा साकार है...... मन्त्र का तो मुझे भी नहीं पता लेकिन वैदिक सिद्धान्त के अनुसार आत्मा निराकार है.....*


*वृक्षों में भी भला आत्मा होता हो सकता है तुम अज्ञानी हो...... वृक्षों में आत्मा होता है यदि तुम नहीं मानोगे तो तुम अज्ञानी हो....*


*भगवान शिव, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान श्रीराम आदि हमारे आराध्य देव हैं हम उनकी उपासना करते हैं इसलिए हम ही श्रेष्ठ हैं...... ये सभी तो महापुरुष थे भगवान तो केवल महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ही हैं इसलिए हम सर्वश्रेष्ठ हैं.......*


*तुम्हारे भीतर में अनेकों दोष,दुर्गुण,व्यसन व कुसंस्कार हैं इसलिए तुम अत्यन्त हेय कोटि के त्याज्य व्यक्ति हो........ मैंने योगदर्शन में पढा है कि संस्कार दग्धबीज होने पर जीवन मुक्त हो जाता है इसलिए मैं अत्यन्त आदरणीय (नेतृत्व करने वाला अग्रणी) नेता हूं....*


*तुम शराब,मांस भक्षण आदि करते हो इसलिए तुम्हारा उद्धार हो ही नहीं सकता..... लेकिन मैं थैली का शुद्ध दूध,डब्बा बन्द जानवरों की चर्बी से निर्मित देशी घी और मछली,गाय,भैंस,बकरे और अन्य जीवों के अवशेषों से युक्त दवाईयां (आधुनिक {allopathy} चिकित्सा औषधियां) प्रयोग में लाता हूं.... इसलिए मेरे उद्धार का रिजर्वेशन कन्फर्म है ।*


*तुम्हारी हिंसा अवैदिक होने से कष्टप्रद है..... जबकि हमारी हिंसा वैदिक होने से अत्यन्त तृप्तिदायक है....*


*ब्रह्मवेत्ता - दोनों ही उलझे हुए हैं...... श्रेष्ठता का दम्भ नहीं अपितु बोध व धारण महत्वपूर्ण है जिससे परम कल्याण सिद्ध हो सके......."यतो अभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि स धर्म:"*


*🌼🌻साधक🌸🌼*

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