. बाईबल में जातिवाद एवं भेदभाव
और हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई;
२. तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई। -उत्पत्ति (४ : ४ ,५)
३. पर इस्माएलियों के विरुद्ध, क्या मनुष्य क्या पशु, किसी पर कोई कुत्ता भी न भोंकेगा; जिससे तुम जान लो कि मिम्रियों और इस्राएलियों में मैं यहोवा अन्तर करता हूँ। -निर्गमन (११: ७)
४. और तुम अपने पुत्रों को भी जो तुम्हारे बाद होंगे उनके अधिकारी कर सकोगे, और वे उनका भाग ठहरें; उनमें से तुम सदा अपने लिए दास लिया करना, परन्तु तुम्हारे भाईबन्धु जो इस्राएली हों उनपर अपना अधिकार कठोरता से न जताना। -लैव्यव्यवस्था (२५/४६)
तब यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा, कि सारे मिस्न प्रदेश के मनुष्यों पशुओं और खेतों की सारी उपज पर ओले गिरें। -निर्गमन (६ : २२)
५. क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा नेംपृथ्वीभर के सब देशों के लोगों में से तुझको चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे। -व्यवस्थाविवरण (७ : ६)
६. क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिए एक पवित्र समाज है, और यहोवा ने तुझको पृथ्वीभर के समस्त देशों के लोगों में से अपनी निज सम्पत्ति होने के लिए चुन लिया है। व्यवस्थाविवरण (१४ : २)
७. सात वर्ष बीतने पर तुम छुटकारा दिया करना, अर्थात् जिस किसी ऋण देनेवाले ने अपने पड़ोसी को कुछ उथार दिया हो, तो वह उसे छोड़ दे; और अपने पड़ोसी वा भाई से उसको बरबस न भरवा ले, क्योंकि यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है। परदेशी मनुष्यों से तू उसे बरबस भरवा सकता है, परन्तु जो कुछ तेरे भाई के पास तेरा हो उसको तू बिना भरवाये छोड़ देना। १. -व्यवस्थाविवरण (१५: १,२,३)
तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपने किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिकारी होने को तू जा रहा है, वहाँ जिस-जिस काम में अपना हाथ लगाए उन सभी में तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे। -ब्यवस्थाविवरण (२३: २०)
जिसके अण्ड कुचले गए वा लिंग काट डाला गया हो वह यहोवा की सभा में न आने पाए। -व्यवस्थाविवरण (२३: १ )
बाईबल का ईश्वर यहोवा इस्राएलवासियों से विशेष र्नेहवश अन्य मिस्र आदि देशवासियों से पक्षपातपूर्ण व्यवहार करता है। प्रान्तवाद, जातिवाद को पनपाता बाईबल का ईश्वर न्यायकारी नहीं हो सकता । जो विदेशी लोगों से सौतेला व्यवहार करने की प्रेरणा देता हो वह ईश्वर कैसा ? किसी के कर्मों के फल स्वरूप अपाहिज बने व्यक्ति का क्या अपराध कि उसे ईश्वर के दरवाजे भी बन्द हो जाएँ ?
वेदों में समानता
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभगाय ।
युवा पिता स्वपा रुद्र एषां सुदुघा पृश्नि: सुदिना मरुद्भ्यः ।।
-ऋग्वेद (५/६०/५)
जिनमें कोई बड़ा नहीं है, जिनमें कोई छोटा नहीं है, ऐसे ये सब भाई एक जैसे हैं। ये सब उत्तम ऐश्वर्यं के लिए मिलकर उन्नति का प्रयत्न करते हैं। इन सब का तरुण पिता उत्तम कर्म करनेवाला ईश्वर है। इनके लिए उत्तम प्रकार का दूध देनेवाली माता प्रकृति है। यह प्रकृति माता न रोनेवाले जीवों के लिए उत्तम दिन प्रदान करती है।
१. ते अज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदो ऽ मध्यमासो महसा वि वावृधुः।
-ऋग्वेद (५/५६ /६)
वे सब बड़े नहीं हैं, छोटे नहीं हैं, और मध्य में भी नहीं हैं। परन्तु वे सब के सब उदय को प्राप्त करनेवाले हैं। इसलिए उत्साह के साथ विशेष रीति से बढ़ने का प्रयत्न करते हैं।
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