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बाईबल और नरबलि एवं मांसाहार

 बाईबल एवं मांसाहार

१. तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से कुछ- कुछ लेकर वेदी पर होम बली चढ़ाया। -उत्पत्ति (८ : २०)

२. यहोवा ने उससे कहा, मेरे लिए तीन वर्ष की एक कलोर, और तीन वर्ष की एक बकरी, और तीन वर्ष का एक मेंढा, और एक पिण्डुक और कबूतर का एक बच्चा ले। और इन सभी को लेकर, उसने बीच से दो ट्रकड़े कर दिया, और दुकड़ों को आम्हने- साम्हने रखा पर चिड़ियाओं को उसने टुकड़े न किया। -उत्पति (१५ : ६,१०)

३. और कहा कि बकरियों के पास जाकर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चो ले आ; और मैं तेरे पिता के लिए उसकी रुचि के अनुसार उनके मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊँगी। -उत्पत्ति (२७ : ६)

४. उनके साथ बिन्यामिन को देख कर यूसुफ ने अपने घर के अधिकारियों से कहा, उन मनुष्यों को घर में पहुंचा दो, और पशु मार के भोजन तैयार करो; क्योंकिे वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे। -उत्पत्ति (४३ : १६)

५. और जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हों, तब चाहे उसके बेटा हुआ हो चाहे बेटी, वह होमबलि के लिए एक वर्ष का भेडी का बच्चा, और पापबलि के लिए कबूतरी का एक बच्चा वा पंडुकी मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाए। -लैव्यव्यवस्था

ऐसा ही कुछ वर्णन लैव्यव्यवस्था (: १-१६), (१: १-६) में भी दिया गया है।

६. और यदि अभिषिक्त याजक ऐसा पाप करे, जिससे प्रजा दोषी ठहरे, तो अपने पाप के कारण वह एक निर्दोष बछड़ा यहोवा को पापबलि करके चढ़ाए। -लैव्यव्यवस्था (४ : ३)

७. उन्होंने उसे भूनी मछली का टुकड़ा दिया। -लूका (२४ : ४२ ) इस प्रकार के मांसाहार के विवरण बाईबल में अन्यत्र भी देखने को मिलते हैं।

क्या बलि देने से पाप क्षमा हो जाते हैं? क्या बलि देने से व्यक्ति शुद्ध हो सकता है ? क्या निरीह प्राणियों की हत्या पाप नहीं है ? होम में मांस डालने से तो दुर्गन्ध ही उत्पत्र होगी। मांसाहार के लिए हजार बहाने।

बाईबल के ईश्वर की ऐसी अपरिपक्व सोच निश्चित रूप से खेदजनक है।

१. वेदानुकूल मांसभक्षण निषेध का बाईबल में प्रमाण -

हे भाईयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है। -१ कुरिन्थियों (१५ : ५०)

क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लोहू पापों को दूर करे -इब्रानियों (१०: ४ )

वेदों में मांस भक्षण निषेध

१. इमं मा हिंसीर्द्विपादं पशुं सहस्राक्षो मेथाय चीयमानः । मयुं पशुं मेथमग्ने जुषस्व तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद। मयुं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु । -अथववेद (१३/१/४७ )

कोई भी मनुष्य सब के उपकार करनेहारे पशुओं को कभी न मारे, किन्तु इनकी अच्छे प्रकार रक्षा कर और इनसे उपकार लेके सब मनुष्यों को आनन्द देवे। जिन जंगली पशुओं से ग्राम के पशु खेती और मनुष्यों की हानी हो उनको राजपुरुष मारें और बन्धन करें।

२. यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्।

तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसो अवीरहा।। -अथर्ववेद (१/१६/४ )

हे चोर ! यदि तू हमारी गाय, हमारा घोड़ा अथवा मनुष्य का वध करेगा, तुझ पर हम गोली चलावेंगे, जिससे तू हमारा नाश करने के लिए फिर जीवित न रह सकेगा।

न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि।

मन्त्रश्रुत्यं चरामसि।। -सामवेद (२/७/२)

हे देवों ! हम हिंसा नहीं करते, और न अन्यथा अनुष्ठान ही करते हैं। जो मन्त्र अर्थात् वेद में सुना है उसी का आचरण करते हैं।

४. य आमं मांसमदन्ति पौरूषेयं च ये क्रविः ।

गर्भान्खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि।।-अथर्ववेद (८/६/२३)

जो कच्चा मांस और अण्डों को खाते हैं उनको यहां से हम नाश करते हैं।

वेदों में निरामिष भोजन का विधान

गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम् ।

वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम ।। -ऋग्वेद (१०/४३/१०)

गौओं के दूध आदि द्वारा दुष्परिणामी मतिहीनता का हम अपनयन करें। हे बहुतों द्वारा पुकारे गए परमेश्वर ! हम सब प्रकार की क्षुधा का जौ द्वारा (हम अपनयन करें)। राजाओं के सहयोग द्वारा हम प्रजानन, दुग्ध और यव रूपी मुख्य धनों को हम दोनों के बल अर्थात् प्रयत्न द्वारा जीतें।

२. व्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्। एष वां भागो निहितो रत्नथेयाय दन्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च।।

-ऋग्वेद (६/१४०/२)

चावलों का भोजन कीजिए, जौ खाइए। उड़द अथवा तिल भक्षण कीजिए। रमणीयता के लिए आप सब लोगों का यही भाग है। आपके दांत रक्षकों की तथा मान्य कर्ताओं की हिंसा न करे।

५. बाईबल और नरबलि

१. परन्तु अपनी सारी वस्तुओं में से जो कुछ कोई यहोवा के लिए अर्पण करे, चाहे मनुष्य हो चाहे पशु, चाहे उसकी निजभूमि का खेत हो, ऐसी कोई अर्पण की हुई वस्तु न तो बेची जाए और न छुड़ाई जाए:; जो कुछ अर्पण किया जाए वह यहोवा के लिए परम पवित्र ठहरे । मनुष्यों में से जो कोई अर्पण किया जाए, वह छुड़ाया न जाए; निश्चय वह मार डाला जाए। -लैव्यव्यवस्था (२७ : २८,२६)

२. और तुमको अपने बेटों और बेटियों का मांस खाना पड़ेगा। लैव्यव्यवस्था (२६ : २६)

तब धिर जाने और उस सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझको डालेंगे, तू अपने निज जन्माए बेटे-बेटियों का मांस जिन्हें ततेर परमेश्वर यहोवा तुझको देगा खाएगा। -व्यवस्थाविवरण (२८ : ५३)

तब यहोवा का आत्मा. चार दिन तक जाया करती थी। -न्यायियों (११: २६-४०)

उसके वंश के सात जन हमें सौंप दिए जाएँ, और हम उन्हें यहोवा के लिए यहोवा के चूने हुए शाऊल की गिवा नाम बस्ती में फांसी देंगे। राजा ने कहा मैं उनको सौंप दूंगा। -२ शमूएल (२१: ६ )

(यह नरबलि लगातार तीन वर्ष से पड़ रहे सूखे से निज़ात पाने के लिए दी गई थी।)

६. जो तुझ पर अन्थेर करते हैं उनको मैं उन्हीं का मांस खिलाऊंगा, और, वे अपना लोहू पीकर ऐसे मतवाले होंगे जैसे नए दाखमधु से होते हैं। -यशायाह (४६: २६)

७. और धिर जाने और उस सकेती के समय जिसमें उनके प्राण के शत्रु उन्हें डाल देंगे, मैं उनके बेटे-बेटियों का मांस उन्हें खिलाऊंगा और एक- दूसरे का भी मांस खिलाऊंगा। -यिर्मयाह (१६ : ६)

फिर राजा ने उससे पूरछा, तुझे क्या हुआ ? उसने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझसे कहा था, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। तब मेरे बेटे को पकाकर हमने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैंने इससे कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इसने अपने बेटे को छिपा रखा। -२ राजा (६ : २८,२६)

६. दयालु स्त्रियों ने अपने ही हाथों से अपने बच्चों को पकाया है। -विलापगीत (४ : १०)

१०. अर्थात् वे अपने सब पहिलौठों को आग में होम करने लगे। -यहेजकेल (२०: २६)

११. क्या यहोवा हजारों मेढों से, वा तेल की लाखों नदियों से प्रसन्न होगा ? क्या मैं अपने अपराथ के प्रायश्चित्त में अपने पहिलौठे को वा अपने पाप के बदले में अपने जन्माए हुए किसी को दूं ? -मीका (६ : ७)

१२. यीशू ने उनसे कहा; मैं तुमसे सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीयो, तुममें जीवन नहीं। युहत्रा (६ : ५३)

अपने प्रयोजनों को सिद्ध करने के लिए बाईबल के ईश्वर को नरबलि से भी परहेज नहीं है। हजारों पशुओं की हत्या से भी वह तृप्त न हुआ इसलिए उसने नरबलि का विधान किया ।

वेदों में नरबलि निषेध

१. यत्पुरुषेण हविषा यज्ञं देवा अतन्वत। अस्ति नु तस्मादोजीयो यद्विहव्येनेजिरे।। -अथर्ववेद (७/५/४)

पुरुष की हवि द्वारा यज्ञ करने से तो, निश्चय से, बिना ही हवि के यज्ञ करना उत्तम है।

२. इमं मा हिंसीर्धिपादम् । -अथर्ववेद (१३/१/४७ )

तू दो पैर वाले अर्थात् मनुष्य के प्रति हिंसा मत कर।

मा नो गामश्वं पुरुषं वधीः । -अथर्ववेद (१०/१ /२९)

तू गाय, घोड़े तथा मनूष्य का वध मत कर।

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