🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - २८ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌒 तिथि -- प्रतिपदा ( २७:१६ तक तत्पश्चात द्वितीया )
🪐 नक्षत्र - - शतभिषा ( १३:४० तक तत्पश्चात पूर्वाभाद्रपद )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:४७ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:२० पर
🌒 चन्द्रोदय -- ६:५८ पर
🌒 चन्द्रास्त - - १८:४९ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २०१
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 मनुष्य जन्म में किए हुए कर्मों के अनुसार ही आत्मा को शरीर मिलता है । यदि शुभ कर्म अधिक हों तो देव यानि विद्वान का शरीर मिलता है । बुरे कर्म अधिक हों तो पशु , पक्षी , कीड़ा पतंगा आदि का जन्म मिलता है । अच्छे और बुरे कर्म बराबर हों तो साधारण मनुष्य का जन्म मिलता है ।यह जीव मन से शुभ अशुभ किए कर्म का फल मन से भोगता है ।महर्षि मनु ने वेदों के आधार पर ऐसा ही लिखा है । आत्मा मनुष्य या पशु पक्षी जिस भी योनि में जाता है उसी के अनुसार ढल जाता है - जैसे पानी में जो रंग डाला जाता है पानी उसी रंग का बन जाता है।पुनर्जन्म को गीता में ऐसा लिखा है -
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ,
नवानि गृह्राति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि ,
अन्यानि संयाति नवानि देही ।
जिस प्रकार मनुष्य फटे पुराने कपड़ों को उतारकर नये पहन लेता है ठीक उसी प्रकार यह आत्मा जीर्ण ( निकम्में ) शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण कर लेता है ।
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🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️
🌷ओ३म् असूर्य्या नाम ते लोकाऽअन्धेन तमसावृता:।
ताँस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।(यजुर्वेद ४०|३)
💐अर्थ :- वे ही मनुष्य असुर, दैत्य, राक्षस, पिशाच एवं दुष्ट है, जो आत्मा में और वाणी में और कर्म में कुछ और ही करते हैं । वे कभी अविद्या रूप दुःखसागर से पार होकर आनन्द को नही प्राप्त कर सकते ।और जो लोग जो आत्मा में सो मन में, जो मन में सो वाणी में,जो वाणी में सो कर्म में कपटरहित आचरण करते हैं, वे ही देव, आर्य सौभाग्यवान् जन सब जगत् को पवित्र करते हुए इस लोक तथा परलोक में अनुपम सुख को प्राप्त करते हैं ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, शुक्ल पक्षे, प्रतिपदायां - तिथौ, शतभिषा नक्षत्रे, शुक्रवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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