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ऋषिबोधोत्सव / सच्चे शिव की खोज

 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*



*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक  - - २६ फ़रवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - बुधवार 


  🌘 तिथि -- त्रयोदशी ( ११:०८ तक तत्पश्चात  चतुर्दशी )


🪐 नक्षत्र - - श्रवण  ( १७:२३ तक तत्पश्चात  धनिष्ठा )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  फाल्गुन 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:४९ पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:१९ पर 

🌘 चन्द्रोदय  -- ३०:२२ पर 

🌘 चन्द्रास्त  - - १६:३४ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २०१


🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀


 *🚩‼️ओ३म् ‼️🚩*


 🔥 महर्षि दयानंद सरस्वती के बोधोत्सव पर सभी देशवासियों  को हार्दिक शुभकामनाएं!!!

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*🔥ऋषिबोधोत्सव / सच्चे शिव की खोज!!!*

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     क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं आ रहा होगा कि समस्त सनातन (हिन्दू ) समाज जिस पर्व को  'महाशिवरात्रि' के रूप में मनाता चला आ रहा है  वहीँ हम सभी वैदिक धर्मी  "'ऋषि बोध दिवस'" के रूप में  मनाते चले आ रहे हैं। जो लोग आर्य समाज से गम्भीरता व दृढ़ता के साथ जुड़े है वे तो जानते ही हैं कि १४ वर्षीय "मूलशंकर" ने शिवरात्रि का व्रत पूरी श्रद्धा व आस्था से रखा था और शिव दर्शन की अभिलाषा से पूरी रात्रि जागे थे। शिव तो दर्शन देने नहीं आये अपितु एक चूहा शिव के लिए लगाये गए भोगों को खाता है और शिवलिंग पर ही मूत्रादि का त्याग भी करता है, इस दृश्य को देखकर बालक मूलशंकर के मन में प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या ये वही सच्चा शिव है जो सर्व रक्षक व देवाधिदेव महादेव कहा जाता है?


    बन्धुओ ये सामान्य सी घटना कितने ही मनुष्यों ने उससे पूर्व भी देखी होंगी और आगे भी देखेंगे  परन्तु प्रश्न क्यों नहीं उठाया गया? किसी भी प्रचलित परम्परा अथवा निराधार कुरीति के विषय में प्रश्न ऐसे ही नहीं उत्पन्न हो जाते ये तो पूर्व जन्मों में अर्जित ज्ञान व तप का परिणाम होता है ऐसा ही हुआ उस महान आत्मा ऋषि दयानंद के साथ जो पूर्व जन्मों में ऋषि जन्मों को धारण किये चला आ रहा था।


      उस दिव्य आत्मा ने मानव मात्र के कल्याण व प्राणिमात्र के हित के निमित्त उस प्रश्न के समाधान का बीज उसी दिन बो दिया और संकल्प लिया कि  *"सच्चे शिव की खोज ही जीवन का उद्देश्य रहेगा, सच्चा शिव ये पाषाण की आकृति मात्र नहीं हो सकता"* 


    बन्धुओ बालक मूलशंकर ने उस रात्रि घर जाकर माँ से माँगकर भोजन भी किया यानी वह परम्परागत 'व्रत' तोड़ दिया उसके स्थान पर स्वजीवन अर्पण का व्रत धारण कर हम जैसे करोड़ों जिज्ञासुओं के लिए परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त वेद ज्ञान की गंगा आर्यभाषा ( हिन्दी) में प्रवाहित की और वेद वर्णित सच्चे शिव का विराट स्वरुप प्रस्तुत किया।


   आइये  हम सब मिलकर वेदों, ऋषियों के ग्रंथों, दर्शनों, उपनिषदों, स्मृतियों, वाल्मीकि रामायण व महाभारत आदि के स्वाध्याय का संकल्प लें अपने अज्ञान व अन्धकार को नष्ट कर जीवन में सच्चा प्रकाश प्राप्त करने के लिए सत्यार्थ प्रकाश व संस्कार विधि  को अपनी निधि बनाएं। 


    हम सभी अपना कुछ समय समाज में फैली कुरीतियों के प्रति जागरण में भी लगाएं, अपने संपर्क में आने वाले भाई बहिनों को अन्धकार से निकालकर वेदों के प्रकाश तक पहुंचाये ।


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*🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩*


   *🌷ओ३म् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च*

*नमः शंकराय च मयस्कराय च*

*नमः शिवाय च शिवतराय च ।।*


( यजुर्वेद अ० १६।म० ४१।।)


    🌷जो सुखस्वरूप संसार के उत्तम सुखों का देव्ने वाला कल्याण का कर्ता , मोक्षस्वरूप , धर्मयुक्त कामों का ही करनेवाला  अपने भक्तों का सुख देनेवाला और धर्मयुक्त कामों में युक्त करनेवाला , अत्यंत मंगलस्वरूप और धार्मिक मनुष्यों को मोक्ष का सुख देनेवाला है उस सच्चिदानंद स्वरुप निराकार सर्व शक्तिमान न्यायकारी दयालु अजन्मे अनंत निर्विकार अनादि अनुपम सर्वाधार सर्वेश्वर सर्व व्यापक सर्वान्तर्यामी अजर अमर अभय नित्य पवित्र और सृष्टिकर्ता परमपिता परमात्मा को हमारा बारम्बार नमस्कार


*🌷ओ३म् अन्यदेवाहुर्विविद्यायाऽअन्यदाहुरविद्याया:।इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तिद्विचचक्षिरे। ( यजुर्वेद ४०|१३ )*


💐भावार्थ  :- ज्ञान आदि गुण से युक्त चेतन से जो उपयोग किया जा सकता है, वह अज्ञानयुक्त जड़ वस्तु से नहीं। और जो जड़ वस्तु से प्रयोजन सिद्ध होता है, वह चेतन से नहीं हो सकता।  ऐसा सब मनुष्यों को विद्वानों के संग्, विज्ञान, योग और धर्माचरण से इन दोनों का विवेचन करके, जड़ और चेतन दोनों का ठीक- ठाक उपयोग करना चाहिए।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, त्रयोदश्यां - तिथौ, श्रवण नक्षत्रे, बुधवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


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