🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - २७ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - गुरुवार
🌘 तिथि -- चतुर्दशी ( ८:५४ तक तत्पश्चात अमावस्या )[ ६:१४ से प्रतिपदा ]
🪐 नक्षत्र - - धनिष्ठा ( १५:४३ तक तत्पश्चात शतभिषा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:४८ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:२० पर
🌘 चन्द्रोदय -- चन्द्रोदय नही होगा
🌘 चन्द्रास्त - - १७:४२ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २०१
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 कठोपनिषद् में मनुष्य शरीर की तुलना एक घोड़ा गाड़ी से की गई है ।मनुष्य के शरीर में दश इन्द्रियाँ - आँख , कान , नाक , जिह्वा , और त्वचा और पाँच कर्मेन्द्रियाँ - हाथ , पाँव , मुख , मल और मुत्र इन्द्रियाँ रथ को खींचने वाले दश घोड़े है ।मन लगाम , बुद्धि सारथी ( रथवान ) तथा आत्मा रथ का सवार है ।आत्मा रूपी सवार तभी अपने लक्ष्य तक पहुँचेगा जब बुद्धि रूपी सारथी मन रूपी लगाम को अपने वश में रख के इन्द्रियां रूपी घोड़ों को सन्मार्ग पर चलाएगा। घोड़े अगर सारथी के वश में नही है तो वे इधर उधर के आकर्शणों में उलझ कर मार्ग को छोड बैठेगें ।यही अवस्था इन्द्रियों की है ऐसी अवस्था का दुःख रूपी दुष्परिणाम भोगना पड़ता है आत्मा को ।
इस गाड़ी को किराए की गाड़ी बताया गया है जिसे वायु , जल और भोजन के रूप में निरन्तर किराया देना पड़ता है ।
मनुष्य शरीर का उद्देश्य है सुख प्राप्ती का और सुख मिलता है परोपकार आदि शुभ कर्म करने से । परोपकार करना ही सन्मार्ग पर चलना है ।असत्य , अन्याय और दुष्ट कर्मों में पड़ जाना ही संसार में उलझना है ।
गीता में कहा है - इन्द्रियों की अपेक्षा मन श्रेष्ठ है , मन की अपेक्षा बुद्धि अधिक श्रेष्ठ है और बुद्धि की अपेक्षा आत्मा अधिक श्रेष्ठ है ।
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🔥 वशे कृत्वेन्द्रियग्रामं संयम्य च मनस्तथा ।
सर्वान् संसाधयेदर्थानक्षिण्वन् योगतस्तनुम् । (महर्षि मनु )
🌷 पाँच कर्मेइन्द्रियं , पाँच ज्ञानेन्द्रियं और ग्यारहवें मन को अपने वश में करुके युक्ताहार विहार से शरीर की रक्षा करता हुआ सब अर्थों को सिद्ध करे ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां - तिथौ, धनिष्ठा नक्षत्रे, गुरुवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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