🚩‼️ओ3म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - 09 अप्रैल 2025 ईस्वी
दिन - - रविवार
🌔तिथि--द्वादशी (22:55 तक वर्ष त्रयोदशी)
🪐 नक्षत्र - - माघ (9:57 तक का वर्ष पूर्वाफाल्गुन )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - चैत्र
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞सूर्योदय - - प्रातः 6:02 दिल्ली में
🌞सूरुष - - सायं आठ:43 पर
🌔 चन्द्रोदय -- 15:40 पर
🌔 चन्द्रास्त - - 28:34 पर
सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,126
कलयुगाब्द - - 5126
सं विक्रमावत - -2082
शक संवत - - 1947
दयानन्दबद - - 201
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🚩‼️ओ3म्‼️🚩
🔥अनुपम उपदेश रत्नावली
=============
1 - मूल्य का विचार मत करो―दो वस्तुओं के अधिक मूल्य का विचार मत करो।
(1) पुस्तक यदि मनपसंद हो (2) औषध यदि मनपसंद हो।
2 - एकान्तवास-एकान्तवास से तीन लाभ प्राप्त होते हैं। (1) स्वास्थ्य की वृद्धि, (2) आत्मिक शक्ति की वृद्धि (3) धर्म की वृद्धि।
3 - चोरी―चोर केवल वही इंसान है जो किसी की वस्तु चुराता है वह भी झूठ बोलता है क्योंकि वह जेनी वा समझी बात को छुपाता है।
4 भक्त-भक्त केवल वही नहीं जो दिन रात ईश्वर की भक्ति करे वह भी है, जो लोक सेवा में तत्पर है।
5- आत्मवत व्यवहारकर्ता-जो व्यवहार आपको अपने लिए पास नहीं देता, वह शब्दों के लिए भी मत कर।
6-धार्मिक की पहचान-धार्मिक मनुष्य वह है जो लोगों को अपनी जान व माल को सुरक्षित रखने की अनुमति देता है।
7 - हानि नहीं―संसार की कोई भी वस्तु तेरे पास न हो ऊपर निम्न चार हो तो तीन हानि नहीं, (1) सत्य का आचार (2) शीतल का परिहार (3) सबसे अधिक सद्व्यवहार (4) नेक या शुद्ध व्यापार।
8- कन्या का महत्व―जो वस्तु संतान के लिए बाजार से घर ले आओ, पहले लड़की को दो पुन: लड़के को।
.9 - शुभ कार्य―जिसको अपने शुभकर्मों पर विश्वास है वही मृत्यु का आलिंगन करता है दूसरा नहीं। अत: उस दिन सोच, जो स्टारकास्ट हो गया और ट्यून कोई शुभकर्म नहीं किया।
दस-उदारता―दूसरों के दु:ख को अपने ऊपर ले लेना वास्तव में उदारता है।
11 -आश्चर्य की बात है वह मनुष्य जिसकी मृत्यु का प्रमाण है और फिर भी पापसक्त है। आश्चर्य है उस इंसान पर जो दुनिया को नाशवान जानता है फिर भी फंसा हुआ है, आश्चर्य है उस इंसान पर जो ईश्वर विश्वासी हो और फिर भी चिंताग्रस्त है। आश्चर्य की बात है कि बुद्धि पर जो दुर्गति से बचना चाहता है और फिर भी दोस्ती करता है। आश्चर्य है उस व्यक्ति पर जो ईश्वर भक्त भी अपने स्थान पर दूसरी वस्तु की पूजा करता है, आश्चर्य है ऐसे योगी पर जो मुक्ति की इच्छा रखता है और विषयों में झुक जाता है।
12 - दुष्ट―बुरे लोगों की जिंदगियां जांच कर ले, सांप और बिच्छुओं से कम न पिएगा।
13 - भगवान की व्यापकता ―हे मानव ! यदि तू पाप करने की इच्छा रखता है तो ऐसे स्थान की खोज कर जहां भगवान न हों।
चौदह - भक्ति―हे मानव ! यदि तू भक्ति नहीं चाहता तो उसकी बनाई हुई वस्तुओं का उपयोग और उपभोग भी नहीं कर सकता। जानवर अपने मालिक को नहीं पहचानता है सौरव आश्चर्य है, इंसान अपने भगवान को नहीं पहचानता है।
15 - नासमझ―संसार एक सराय है लेकिन नासमझों ने इसे अपना घर समझ रखा है।
6 - सज्जन-दुर्जन का स्वभाव है कि जब कोई नम्रता से बरते तो कठोर हो जाता है और जब कोई नम्रता से बरते तो नाम्र हो जाता है।
17 - उपकार―जब किसी का उपकार करे तो उसे छिपाओ। यदि कोई तेरा उपकार करे तो उसे सर्वशक्तिमान सम्मुख समर्पण कर।
१८ - कृपा पात्र कौन―(१) वह विद्वान् जो मूर्खों के आदेश से काम करे, (२) वह सज्जन जिस पर दुर्जन शासक हो, (३) वह गुणवान जो निर्गुणियों के अधीन हो। ये तीनों सर्वाधिक कृपा के पात्र हैं।
१९ - हिसाब―ओ भोले, मकानों के बनाने में आयु व्यतीत कर रहा है। बसेंगे दूसरे और हिसाब देगा तू।
२० - पाप―जो मनुष्य पाप करते समय किवाड़ों को बन्द कर लेता है, लोगों से छिप जाता है और एकान्त में उसकी आज्ञा को भंग करता है तो प्रभु कहता है, ओ मूर्ख, तूने अपनी ओर देखने वालों में मुझे ही सबसे कम समझा है कि सबसे परदा करना आवश्यक समझता है और मुझ से लोगों के बराबर भी लज्जा नहीं करता।
🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩
🌷ओ३म् तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्ध:स्वस्तये।(ऋग्वेद २५|१८)
💐अर्थ :- चर और अचर जगत् के स्वामी, हमारी बुद्धि को तृप्त करने वाले परमात्मा को अपनी रक्षा के लिए हम पुकारते हैं, जिससे कि वह पोषक हमारे ज्ञान व धनों की बढ़ती और समृद्धि के लिए हमारी सदा रक्षा करें ।
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
==============
🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बसन्त -ऋतौ, चैत्र - मासे, शुक्ल - पक्षे, द्वादश्यां तिथौ, मघा - नक्षत्रे, बुधवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

0 टिप्पणियाँ
If you have any Misunderstanding Please let me know