अध्याय IV, खण्ड I, अधिकरण XIII
अधिकरण सारांश: ज्ञान या ध्यान के साथ संयुक्त न किए गए यज्ञीय कार्य भी ज्ञान की उत्पत्ति में सहायक होते हैं
ब्रह्म सूत्र 4,1.18
यदेव विद्ययेति हि ॥ 18 ॥
यत्-एव – जो भी; विद्या – ज्ञान से; इति – इस प्रकार; हि – क्योंकि।
18. क्योंकि यह कथन कि, “जो कुछ वह ज्ञान से करेगा,” इसी बात की ओर संकेत करता है।
ज्ञान की उत्पत्ति में सहायक नियमित कर्म ( नित्य कर्म ) दो प्रकार के होते हैं, एक ध्यान सहित और दूसरा ध्यान रहित। चूँकि ध्यान सहित किया गया कर्म ध्यान रहित किए गए कर्म से श्रेष्ठ है, इसलिए विरोधी मानते हैं कि केवल ध्यान ही ज्ञान की उत्पत्ति में सहायक है। यह सूत्र इसका खंडन करता है और कहता है कि "केवल वही कर्म जो ज्ञान सहित किया जाता है...अधिक शक्तिशाली होता है" (अध्याय 1. 1. 10) कथन में तुलनात्मक डिग्री से पता चलता है कि ज्ञान रहित अर्थात् ध्यान सहित न किए गए कर्म बिलकुल भी व्यर्थ नहीं हैं, यद्यपि दूसरा वर्ग अधिक शक्तिशाली है।
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