अध्याय IV, खंड III, अधिकरण IV
अधिकरण सारांश: जो आत्मा सगुण ब्रह्म को प्राप्त कर लेती है, वह मात्र इच्छा से ही अपनी इच्छाओं को पूरा करती है।
ब्रह्म सूत्र 4,4.8
संकल्पदेव तु, तच्छृतेः ॥ 8॥
संकल्पात् – इच्छा से; एव – केवल; तु – परन्तु; तत्-श्रुतेः – क्योंकि शास्त्रों में ऐसा कहा गया है।
8. परन्तु केवल इच्छाशक्ति से ही (मुक्त आत्माएं अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेती हैं), क्योंकि शास्त्र ऐसा कहते हैं।
इस सूत्र में दहार विद्या जैसी विद्याओं के माध्यम से सगुण ब्रह्म की आराधना करके ब्रह्मलोक को प्राप्त करने वालों के प्रश्न पर चर्चा की गई है। इस विद्या में कहा गया है, "यदि वह पितरों के लोक की इच्छा रखता है, तो उसकी इच्छा मात्र से वे उसके पास आ जाते हैं" (अध्याय 8. 2. 1)। प्रश्न यह है कि क्या केवल इच्छा मात्र से ही परिणाम प्राप्त हो जाता है, या इसके लिए कोई और सक्रिय कारण आवश्यक है। यह सूत्र कहता है कि केवल इच्छा मात्र से परिणाम प्राप्त होता है, क्योंकि श्रुति ऐसा कहती है। मुक्त व्यक्ति की इच्छा हमारी इच्छा से भिन्न होती है, और उसमें बिना किसी सक्रिय कारण के परिणाम उत्पन्न करने की शक्ति होती है।
ब्रह्म सूत्र 4,4.9
अत एवचान्याधिपतिः ॥ 9 ॥
अता एव - इसी कारण से; च - तथा; अनन्याधिपति : - वह स्वामीविहीन है।
9. और इसी कारण से मुक्त हुई आत्मा का कोई स्वामी नहीं होता।
मुक्त आत्मा स्वयं का स्वामी है। "उनके लिए सभी लोकों में स्वतंत्रता है" (अध्याय 8। 1। 6)।
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