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प्रेम के लिए तपस्या एक प्राचीन कथा


 

प्रेम के लिये तपस्या

 

      बहुत समय पहले कि बात है, भारत में उस समय एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम दौलत राम था। जिसके पास बहुत अधिक धन संपदा के साथ एक बड़ी घोड़ों की सेना थी। उनका केवल एक राजकुमार लड़का था, जो राजा को प्राण से भी अधिक प्रिय था। उसका नाम सूरज था। जो बहुत अधिक सुन्दर और आकर्षण के साथ, उसके सफेद मोतियों जैसे दाँत, लाल गुलाब जैसे ओठ, नीले सागर जैसी गहरी आँखें, काले बाल और गोरा रंग था। इस बालक को खेलना बहुत पसंद था, जिसके कारण यह अपने मंत्री के बेटे दिवाने के साथ, अपने राजा दौलत राम के शानदार सुन्दर बगीचा में खेला करता था। बगीचा बहुत प्रकार के अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट रसीले फलों के अतिरिक्त सुन्दर और मन को लुभाने वाले मोहक सुगंधित फूलों के साथ अद्भुत और अलौकिक रूप से सुसज्जित था। राजकुमार अपने मित्र दीवाना के साथ एक छोटी चाकू को भी ले कर, बगीचा में जाता था। जिससे वह फलों को काट कर दोनों मित्र खाया करते थे। राजा दौलत राम ने उनके लिये एक व्यक्तिगत अध्यापक को भी रख रखा था, जो उन दोनों को लिखना और पढ़ना सिखाया करता था।

 

       जब वह दोनों बढ़ कर सुन्दर और सुगठित जवान हो गये, एक दिन राजकुमार सूरज ने, अपने पिता राजा दौलत राम से कहा कि मैं और दीवाना दोनों जंगल में शिकार करने के लिये जाना चाहते है। राजा ने कहा अवश्य जाना चाहिए, यह तो राजकुमारों के लिये बहुत अच्छी और गर्व की बात है। इस तरह से उन दोनों ने अपने-अपने घोड़ों को तैयार किया, और जो भी शिकार के लिए आवश्यक सामान थे उसको भी अपने साथ ले लिया, और वे शिकार के लिये अपने राज्य से अलग दूसरे राज्य में मल्हार देश में गये। और वे दिन भर शिकार के पीछे भागते रहे, अन्त में उन को शिकार के लिये सियार और पक्षी के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला, इसके साथ साम हो गई।

      

         मल्हार देश के राजा उस समय मनसुखभाई थे, जिसकी एक बहुत ही सुन्दर पुत्री थी, जिसका नाम चन्द्रा था (जिस को प्रेम से चंदा कहते थे) जिसकी आंखें भूरि और काले घुँघराले बाल थे।

 

      एक रात कुछ समय पहले जब राजकुमार सूरज चंदा के पिता के राज्य में नहीं आया था, चंदा जब सो रही थी, ईश्वर ने अपने एक देवदूत को मनुष्य के रूप में भेज कर, चंदा के स्वप्न में कहा कि उसको अपना विवाह, केवल दौलत राम के राजकुमार पुत्र सूरज के साथ ही करना चाहिए, किसी दूसरे के साथ नहीं। और यह उसके लिये परमेश्वर का आदेश हो गया था। जब चंदा की निंद खुली, तो उसने अपने स्वप्न में आये देवदूत के बारें में जिस को परमेश्वर ने भेजा था, उसकी निद्रा के समय में, अपने पिता मनसुख भाई को बताया। लेकिन उसके पिता ने चंदा के स्वप्न कि कही बात पर ज्यादा अधिक ध्यान नहीं दिया। इस पर चंदा ने बार-बार यही दोहराया कि मुझे सूरज चाहिए, और उस समय उसके पिता ने उससे कुछ नहीं कहा। लेकिन जब वह सब खाना खाने के लिये बैठे हुए थे, और सभी खाना खा रहे थे, उस समय उनके साथ चंदा भी थी, जो अपने हर नेवाले के साथ यही कह रही थी, सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए। उसके पिता ने यह सब सुन कर बहुत दुःखी हो कर, उस समय खाना छोड़ कर चल दिया। कुछ समय के बाद उन्होंने पूछा यह कौन है? सूरज जिसको तू जब देखो, तो उसकी रट लगाये रहती है। मैंने कभी इसके बारे में आज तक तो नहीं सुना है।

 

      चंदा ने कहा कि वह एक आदमी है, जिससे मुझे अपना विवाह करना है, जिसके लिये परमेश्वर ने मुझको आदेश दिया है, इसके अतिरिक्त किसी और से मैं विवाह नहीं कर सकती हूँ, और इसके साथ वह लगभग पागल जैसी हो गई।

 

      ठीक इसी समय सूरज और दीवाना शिकार करने के लिये मल्हार देश में अपने घोड़े पर घूम रहे थे, उसी समय चंदा भी अपने घोड़े पर सवार हो कर, हवा खाने के लिये उनके पीछे - पीछे अपने महल से बाहर निकल घूम रही थी, और यह कहे जा रही थी, कि सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए, जब राजकुमार सूरज ने उसकी आवाज को सुना, तो वह उसकी तरफ घूम कर देखा, और उसने अपने मित्र दीवाना से कहा वह कौन है? जो मुझको बुलाये जा रही है। इस पर चंदा ने सूरज को देखा, और इसी क्षण वह बहुत गहरे रूप से सूरज के प्रेम में पड़ गई, और उसने अपने आप से कहा, मैं निश्चित रूप से कह सकती हू, कि यह राजकुमार सूरज ही है, जिससे विवाह करने के लिये परमेश्वर ने मुझ से कहा है। और वह अपने घर वापिस गई, और अपने पिता राज मनसूखभाई से कहा कि मैं सूरज से विवाह करना चाहती हू, जो हमारे राज्य में इस समय आया है।

 

      राजा मनसूखभाई ने कहा अच्छी बात है, तुमने उसको अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है, हम उससे इसके बारे में कल दरबार में बात करेंगे। चंदा को स्वीकृति का इंतजार था, यद्यपि इसके बावजूद वह उससे मिलने के लिये बहुत अधिक व्याकुल थी। जैसे ही यह सब हुआ, राजकुमार सूरज मल्हार देश को उसी रात को छोड़ कर चला गया, और जब चंदा ने इसके बारे में सुना, तो वह पुरी तरह से पागल हो गई। उसने अपने माता-पिता या नौकरों का एक भी शब्द नहीं सुना, वह उसी समय वहाँ से सब कुछ छोड़ कर जंगल में चल गई। और वह एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमने लगी, और इस तरह से वह अपने देश से समय के साथ बहुत दूर होती गई। और वह हर समय केवल एक ही वाक्य को दोहराती रहती थी, सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए, और इस तरह से उसको पूरे तेरह साल गुजर गये।

 

     इस तरह से तेरह सालों के बाद वह एक साधु से मिलती है, जो वास्तव में एक देवदूत ही था, लेकिन वह उसके बारें में कुछ नहीं जान रही थी। जो उससे पूछा, वह कौन है, जिसके बारें में तुम हमेशा इस तरह से बोलती रहती हो, सूरज, सूरज, मुझे चाहिए? उसने कहा मैं मल्हार देस के राजा की पुत्री हूँ, और मैं राजकुमार सूरज को तलाश रही हूँ, मुझे बताएं की उसका राज्य कहा है?

 

      साधु ने कहा मैं सोचता हूँ, तुम इस तरह से कभी भी उसको नहीं प्राप्त कर सकती हो? क्योंकि वह यहाँ से बहुत अधिक दूर है, जिसके लिये तुम्हें बहुत सारी नदी, पर्वतों और रेगिस्तान को पार करना होगा। चंदा ने कहा उसे इसका कोई परवाह नहीं है, वह अवश्य ही किसी भी शर्त पर सूरज से मिलना चाहती है। उस पर फकीर ने कहा जब तुम इधर आ रही थी, तो तुमने भागीरथी नदी को देखा होगा, जिसमें बड़ी मछली रोहु को भी देखा होगा, तुम को केवल रोहु मछली ही सूरज के देश तक पहुँचा सकती है, अन्यथा इसके कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

 

     वह चलती रही निरंतर, कई महीनों तक चलती रही, और आखिर में वह भागीरथी नदी के तट पर पहुंच गई, उस नदी में उस समय एक बहुत बड़ मछली हुआ करती थी। जिस को लोग रोहु नाम से पुकारा करते थे। चंदा पहाड़ी की एक चोटी पर खड़ी हो गई, और रोहु मछली को देखने लगी। जब रोहु मछली ने चंदा को देखा, तो वह जम्हाई लेने लगी, और मछली ने अपना मुख खोला, जिस पर तत्काल चंदा उसके मुख में कूद पड़ी, और इसके साथ वह सीधा उसके पेट में पहुंच गई, और वहाँ भी वह सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए, का निरंतर जप करती रही। जिससे रोहु मछली को एक प्रकार की खतरे की घंटी महसूस होने लगी, जिसके कारण वह धीरे -धीरे तैरती हुई नदी के अन्दर चली गई, और उसमें जितना सामर्थ्य था, वह सब खर्च करके बहुत अधिक तेजी से पानी के अन्दर ही अन्दर तैरने लगी। फिर भी उसको शांति नहीं मिली, वह बेचैन हो गई, फिर वह जब तैर कर बहुत थक गई। तो धीरे-धीरे शांत हो गई, और तभी एक कौआ आया, और उसके पीठ पर बैठ गया और काँवकाँव करने लगा। तब उस बेचारी रोहु मछली ने उस कौवे से कहा क्या तुम देख सकते हो? जो मेरे पेट में इस बुरी तरह से शोर गुल कर रहा है।

 

      कौवा ने कहा बहुत अच्छा अपना मुँह खोलों, मैं नीचे जा कर देखता हूँ, कि तुम्हारे पेट में क्या गया है? इस तरह से जब रोहु मछली ने अपना जबड़ा खोला, और कौवा नीचे कि तरफ उड़ कर गया, और दोबारा जल्दी ही उपर आ गया, और कौवा ने कहा कि तुम्हारे पेट में राक्षस ने प्रवेश कर लिया है, और वह उड़ कर दूर चला गया। इस समाचार ने उस बेचारी रोहु मछली के मन में बुरी तरह से बेचैनी पैदा कर दिया, जिससे वह परेशान हो कर पुनः पुरी शक्ति से तैरने लगी, और लंबे समय तक तैरने पर आखिर में, वह राजा सूरज के देश में पहुंच गई, और वहाँ जा कर वह नदी के किनारे रुक गई, जहाँ पर एक सियार पानी पीने के लिये नदी के किनारे पर आया था। रोहु मछली ने उस सियार से कहा, भाई तुम मुझे बता सकते हो, कि इस समय मेरे पेट में क्या है?

 

      सियार ने कहा कि मैं कैसे बता सकता हूँ? मैं केवल तभी बता सकता हूँ जब मैं तुम्हारे पेट के अन्दर जा सकु, इस तरह से मछली ने अपना मुँह खोल कर चौड़ा किया, और सियार तुरंत कूद कर उस रोहु मछली के गले के नीचे उसके पेट में उतर गया, लेकिन बहुत ही जल्दी अर्थात तुरंत ही, वह उसके मुँह से बाहर भी आ गया, और उसने बहुत भयभीत हो कर उससे कहा कि तुम्हारे पेट में राक्षस घुस गया है, यदि जल्दी से यहाँ से भाग नहीं गया, तो मुझे भय है कि वह मुझको भी खा जाएगा। इस तरह से उसने अपने पैर को सर पर रख कर वहां से एक दो तीन हुआ। मछली बहुत दुःखी और परेशान हो कर, लाचार किनारे पर पड़ी रही। तभी उसकी निगाह एक बड़े अजगर पर पड़ी, जो उसकी तरफ ही आ रहा था, इस पर बेचारी रोहु मछली ने उससे कहा क्या तुम मुझे बता सकते हो, कि इस समय मेरे पेट में क्या है? जो बार-बार सूरज - सूरज मुझे चाहिए, की रट लगा के रखा है।

 

       अजगर ने भी यह कहा कि तुम अपना मुंह खोलों और मैं तुम्हारे पेट में जा कर देखता हूँ, कि तुम्हारे पेट में क्या है? इस तरह से रोहु ने एक बार फिर अपना मुंह खोल कर चौड़ा किया, और अजगर उसके पेट में अन्दर गया, और कुछ ही समय में बाहर आ गया, और उससे कहा कि तुम्हारे पेट में राक्षस घुस गया है। अगर तुम मुझे आज्ञा दो तो मैं तुम्हारे पेट को काट दुंगा, जिससे मैं उस राक्षस को बाहर निकाल दुगा, बेचारी रोहु मछली ने कहा इस तरह से जब तुम मेरे पेट को काट दोगे, तो मेरी मृत्यु हो जायेगी। अजगर ने कहा नहीं, इसमें डरने की कोई बात नहीं है। मैं औषधी को लगा दुंगा जिससे तुम्हें कुछ भी नहीं होगा। इस तरह से मछली शल्य चिकित्सा के लिये तैयार हो गई, और अजगर ने अपने एक चाकू से, उस रोहु मछली के पेट को काट दिया, जिसमें से चंदा सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए का जाप करती हुई, उसके पेट से बाहर कूद पड़ी।

 

     अब तक चंदा बहुत वृद्ध हो चुकी थी, क्योंकि पिछले तेरह सालों तक यूं ही सूरज की तलाश में जंगल-जंगल भटकती रही, उसके बाद पिछले बारह साल तक वह रोहु मछली के पेट में रही, जिसके कारण उसकी सुन्दरता लगभग खत्म हो चुकी थी। उसके दांत सब गिर चुके थे। जिसके बाद अजगर ने उसे अपनी पीठ पर बैठा कर उसे सूरज के देश में ले जा कर, अपनी पीठ से नीचे उतार दिया, और बहुत समय के बाद घूमते-घूमते चंदा सूरज के दरबार में एक दिन पहुंच गई, जहाँ पर राजा सूरज अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था। जहाँ पर कुछ लोगों ने उसको रोते और चिल्लाते हुए सुना, सूरज - सूरज मुझे सूरज चाहिए और लोगों ने उससे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए, उसने कहा कि मुझे राजा सूरज चाहिए।

 

     इस लिये वे लोग अन्दर राजा सूरज के दरबार में गए, और राजा से कहा कि एक वृद्ध औरत बाहर दरवाजे पर खड़ी है, और वह आप से मिलना चाहती है। राजा सूरज ने कहा कि मैं दरबार को छोड़ कर बाहर नहीं जा सकता हूँ, उसको ही अन्दर भेज दो। वे लोग उसको पकड़ कर अन्दर ले आये, और राजा सूरज ने उससे पूछा की तुम क्या चाहती हो? उसने कहा कि मैं तुम से विवाह करना चाहती हूँ। 25 साल पहले आप मेरे पिता के देश मल्हार में आये हुए थे, और मैं आपसे विवाह करना चाहती थी, लेकिन फिर आप बीना मुझ से विवाह किए ही, वहाँ से चले आये। फिर इसके बाद मैं पागल हो गई, और आपकी तलाश में इतने सालों तक जंगल-जंगल भटकती रही, राजा सूरज ने कहा बहुत अच्छा।

 

     परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए, की वह हम दोनों को फिर से युवा बना दे, और फिर हम दोनों एक साथ विवाह कर लेंगे। इस तरह से चंदा ने परमेश्वर की साधना और उपासना की और परमेश्वर ने उससे कहा कि तुम सूरज के कपड़े को छुओगी, और वे कपड़े आग को पकड़ लेंगे, जिसमें तुम दोनों जल कर फिर से युवा बन जाओगे। और चंदा ने ऐसा ही किया उसने सूरज के कपड़े को छुया, सूरज के कपड़ों में भयंकर आग लग गई, जिसमें वह दोनों जल गये, और जलने के बाद दोनों दुबारा एक बार फिर से युवा हो गये। और फिर वहां पर एक बहुत बड़ा भोजन भण्डार के साथ उत्सव मनाया गया, जिस उत्सव में उन दोनों ने विवाह कर लिया। और कुछ समय के बाद, वह दोनों मल्हार देश की यात्रा पर निकल पड़े, चंदा के माता पिता को देखने के लिये।

 

      अब तक चंदा के माता पिता अपनी पुत्री की याद में, उसके जाने के बाद इतना रो चुके थे, कि इस समय वह दोनों पुरी तरह से अंधे हो चुके थे। उसके पिता अब भी अपनी पुत्री को पुकारा करते थे, चंदा-चंदा चंदा, जब चंदा ने अपने मातापिता का अंधापन देखा, तो उसने परमेश्वर से प्रार्थना किया, कि परमेश्वर उसके माता-पिता की दृष्टि को ठीक कर दे, जिससे परमेश्वर ने उन दोनों कि आंखों को बहुत जल्द ठीक कर दिया। जब चंदा के मातापिता ने उसको देखा, तो उन्होने उसको गले लगा लिया, और उसको बार-बार चूमने लगे, और फिर उन्होने उनका दोबारा विवाह किया, और सब प्रकार से आनन्द उत्सव मनाया गया। सूरज और चंदा तीन सालों तक राजा मनसूखभाई के यहां पर रहे। और फिर वह अपने पिता दौलत राम के राज्य में वापिस आ गये, जहाँ पर वह प्रसन्नता पूर्वक कुछ समय तक रहे।

 

      वे एक साथ एक देश से दूसरे देश में हवा खाने के लिये, और अपने मनोरंजन के लिये अकसर शिकार के लिये जाया करते थे।

 

      एक दिन सूरज ने चंदा से कहा कि आवो इस जंगल में से चलते है, चंदा ने कहा नहीं-नहीं अगर हम इस जंगल में से जाएगे,  तो हम दोनों के साथ कुछ बुरा हो सकता है, जिससे हमारा नुकसान होगा। लेकिन सूरज उसकी बातों पर हंसते हुए जंगल के मार्ग पर आगे बढ़ गया, और वे दोनों इस समय जंगल में से गुजर रहे थे। तभी परमेश्वर ने विचार किया, कि मुझे यह जानना चाहिए, की सूरज अपनी पत्नी को किस हद तक चाहता है। अगर वह मर जाएगी, तो यह उसके लिये कितना दुःखी होता है, या फिर अपना दूसरा विवाह कर लेता है। ऐसा सोच कर परमेश्वर ने अपने देव दुत को उस जंगल में भेजा, और उस देव दुत ने जंगल में एक साधु कि तरह से आकर, चंदा के पास कुछ राख के समान पदार्थ (भभूत) को उसके उपर फेंका, जिसके पड़ते चंदा की शरीर राख के ढेर में तत्काल तबदील हो जमीन पर गीर गई।

 

     जब सूरज ने देखा की उसकी प्रिय रानी राख के ढेर में तबदील हो गई, तो उसे बहुत बड़ा झटका लगा, जिसके साथ वह बहुत अधिक दुःखी हो गया। इसके बाद वहाँ से सूरज सीधा अपने पिता के महल पर चला गया। जहां पर उसको बहुत लंबे समय तक शांति नहीं मिली। उसके बाद कई सालों में, वह काफी प्रसन्न और आनन्द पूर्वक रहने लगा, और फिर वह अपने पिता के उस बड़े और सुन्दर बाग़ीचे में जाने लगा, अपने मित्र दीवाना के साथ। राजा दौलत राम की इच्छा थी, कि वह अपने पुत्र की दोबारा विवाह कर दे। लेकिन सूरज ने कहा कि मेरे जीवन में पत्नी के रूप केवल एक औरत होगी, वह चंदा होगी, उसके सिवाय किसी दूसरी औरत से वह कभी भी विवाह नहीं कर सकता है।

 

     उसके पिता ने कहा कि तुम चंदा के साथ कैसे रह सकते हो, क्योंकि वह मर चुकी है? और यहाँ मरने के बाद वह तुम्हारे लिये वापस नहीं आएगी।

 

    राजकुमार सूरज ने कहा फिर मैं कोई भी विवाह नहीं करुंगा।

 

    जबकि चंदा जंगल में जी रही थी, जहाँ पर उसका पति उसको राख के छोटे ढेर में छोड़ कर चला आया था। जैसे ही सूरज वहाँ जंगल से निकला, उसके बाद ही उस साधु ने चंदा शरीर की राख को वहाँ से एकत्रित किया, और उसके साथ मिट्टी और पानी को मिला कर, एक मिट्टी का लोंदा बनाया, और उसको हूबहू उस औरत के रूप में बनाया, जैसा कि चंदा पहले थी। फिर चंदा की पुरी शरीर एक बार जब बन कर तैयार हो गई,  तो उसमें परमेश्वर पुनः जीवन का संचार कर दिया, और वह फिर से साँसे लेने लगी। लेकिन चंदा फिर एक बार एक वृद्ध औरत के रूप में हो गई थी। उसके नाक लंबी हो चुकी थी, और उसके दाता झड़ चुके थे, वह पुरी तरह से एक वृद्ध औरत की तरह सी हो चुकी थी, जैसा कि औरतें अपने दांतों को चाहती है, वह बिल्कुल उसी प्रकार की हो चुकी थी जैसी कि वह रोहु मछली के पेट से निकलने के बाद थी। और वह इस समय जंगल में थी, ना ही वह कुछ खाती थी ना ही कुछ पीती ही थी बस केवल यही कहती थी, कि सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए। आखिर में उस साधु ने जो परमेश्वर के द्वारा भेजा गया था, जिसने चंदा के शरीर पर भभूत को डाल कर उसको भस्म बनाया था, उसने परमेश्वर से कहा अब इस औरत की क्या जरूरत है, जो अब जंगल में बैठ कर रो-रो कर केवल सूरज-सूरज मुझे सूरज चाहिए का जप करती रहती है। और ना ही कुछ खाती है ना ही कुछ पीती ही है। फिर परमेश्वर ने कहा चलो इसको ले कर सूरज के पास चलते हैं, तुम ऐसा करो, लेकिन उससे कह देना, कि वह सूरज से कुछ भी बात चित नहीं करेगी। अगर वह इसको देख कर भयभीत हो जाता है, और यदि यह सूरज को देख कर भयभीत हो जाती है। तो यह अगले दिन सुबह एक सफेद कुत्ते रूप में बदल जायेगी, यह मानव शरीर के रूप में तभी तक रह सकती है, जब इसको सूरज प्रेम करेगा, और इसको अपना भोजन कराएगा, और इसको लेकर अपने विस्तर पर सोयेगा।

 

      इस तरह से वह देव दुत चंदा अपने साथ को लेकर राजा दौलत राम के बाग़ीचे में गया, और उससे कहा परमेश्वर ने यह आदेश दिया है, की तुम इस बाग़ीचे में रहो, जब तक सूरज यहाँ पर घूमने के लिये नहीं आता है, फिर तुम उसको स्वयं को देख सकती हो, लेकिन तुम को उससे बात करने की इजाजत नहीं है, अगर वह तुम को देख कर वह भयभीत होता है, अथवा तुम उसको देख कर भयभीत होती हो। इसके बाद तुम अगले दिन छोटे सफेद कुत्ते के रूप में बदल जाओगी। फिर उसने कहा कि तुम को सबसे अधिक क्या पसंद है? एक सफेद कुत्ते के रूप में रहना या फिर एक मानव शरीर में रहना, फिर उसने उसे बताया कि उसे एक छोटे से कुत्ते के रूप में क्या करना चाहिए, ताकि वह अपने मानव रूप को पुनः हासिल कर सके।

 

      चंदा बाग़ीचे में रहने लगी, बड़ी घासों के बिच में छीप कर, जब सूरज आया अपने मित्र दिवाने के साथ, बाग़ीचे में घूमने के लिये। राजा दौलत राम इस समय तक काफी वृद्ध हो चुके थे, और दीवाना स्वयं एक पुत्र का बाप था, जिसकी उम्र आज के समय में सूरज के समान थी, सूरज युवा बन गया था, जब चंदा से विवाह किया था।

 

     जैसा की राजकुमार सूरज और उसका मित्र दीवाना बाग़ीचे में घूम रहे थे, उन्होंने फलों को एकत्रित किया, जैसा की वे अपने बचपन में किया करते थे। और इस तरह से वे फलों को अपने दांतों से काट कर खाते हुए, दीवाना कुछ फलों को नहीं काटते हुए एकत्रित कर रहा था। यद्यपि सूरज फल खाने के साथ ही दिवाने के साथ बात भी कर रहा था, तभी सूरज दिवाने की तरफ घूमा और जहां उसने दिवाने के पीछे आती हुई चंदा के उपर निगाह पड़ती है।

 

     और उसने चिल्लाते हुए कहा क ओह देखो तुम्हारे पीछे-पीछे क्या आ रहा है यह जरूर शैतान या दैत्य है, जो हम सब को खाने के लिये आ रही है। जबकि चंदा उसे अपनी आंखों से प्रेम पूर्वक समर्पण भाव से उम्र के परिवर्तन पर एक कंपन के साथ सिहरन भरी दृष्टि से देख रही थी। लेकिन यह सब केवल सूरज को भयभीत करने वाला ही सिद्ध हो रहा था। जिसके कारण उसने वहां चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगा कि यह एक राक्षस है, एक राक्षस है। और वहाँ से जल्दी-जल्दी अपने मित्र दिवाने के साथ भाग कर, महल के अन्दर चला गया, और चंदा जंगल में जा कर खो गई।

 

      सूरज और दीवाना दोनों राजा दौलत राम के पास भागते हुए गए, और उससे कहा कि वहाँ बाग़ीचे में राक्षस या शैतान आ गया है, वह हमें खाने का प्रयास कर रहा था।

 

     उसके पिता ने कहा तुम यह क्या बकवास कर रहे हो? आश्चर्य कल्पना कि हद कर दी, दो वयस्क पुरुष एक पुराने जमाने के आदमी या फकीर से इतना डरे हुए हैं! और अगर वह राक्षस था, तो तुम दोनों को अब तक खाया क्यों नहीं? वस्तुतः राजा दौलत राम को सूरज की बातों पर भरोसा नहीं था, और वह नहीं मानते थे, कि सूरज ने कुछ ऐसा देखा है, जिसके बारे में वह इस तरह से बातें कर रहा है। फिर सूरज के मित्र दिवाने ने कहा कि सूरज जो भी कह रहा है, वह बिल्कुल ही सत्य कह रहा है। इसलिए उन्होने उस भयानक औरत को प्राप्त करने के लिये, उस बाग़ीचे का बड़ी बारीकी से तलाश किया। लेकिन उन को वहाँ कुछ भी नहीं मिला, राजा दौलत राम ने अपने बेटे को कहा कि वह झक्की है, जो इतना अधिक व्यर्थ में ही भयभीत हो रहा है। हालांकि सूरज ने उस बाग़ीचे में घूमना हमेशा के लिये बन्द कर दिया।

 

     अगले दिन सुबह चंदा एक छोटे सुन्दर और मासूम कुतिया में बदल गई जैसा की परमेश्वर का आदेश था। और इस रूप में वह सूरज के महल में गई, जब सूरज ने उसको देखा, तो उसको उसने बहुत पसंद किया, और उसने छोटे कुतिया को अपना पालतू बना लिया। वह कुतिया हर जगह सूरज के साथ ही रहती थी, और जब सूरज शिकार पर जाता था, तो उसके साथ जाया करती थी, और वहाँ पर वह सूरज का शिकार करने में सहायता किया करती थी, और सूरज उसको अपने साथ बैठा कर खाने में रोटी खिलाता और दूध पिलाता था। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी वह खाता और रात्रि के समय में सूरज उसको अपने विस्तर पर ले कर सोता था।

 

     लेकिन एक रात को वह कुतिया अदृश्य हो गई, और उसके स्थान पर एक वृद्ध औरत उसके बगल में सोई हुई थी, जिसने उसको बाग़ीचे में बहुत अधिक भयभीत किया था। जिससे सूरज बिल्कुल निश्चिंत हो गया, कि वह औरत अवश्य ही राक्षस, अथवा दैत्य है, अथवा कुछ बहुत भयानक वस्तु है। जो उसको खाने के लिये उसका पीछा कर रही है। और इस तरह से वह आतंकित हो कर, वह बहुत अधिक रोते और चिल्लाते हुए, उससे कहा आखिर तुम चाहती क्या हो? मुझे मत खाना मुझे मत खाना! बेचारी चंदा ने कहा क्या तुम मुझे नहीं जानते हो? मैं तुम्हारी पत्नी चंदा हूँ और मैं तुम से साथ रहना चाहती हूँ। क्या तुम्हें मेरे बारे में बिल्कुल कुछ याद नहीं है, कि तुम कैसे जंगल में मेरे साथ गये थे? मेरे बहुत मना करने पर भी तुमने नहीं माना था, और एक साधु मेरे पास आकर मेरे चेहरे के उपर कुछ भभूत को फेंक दिया था। और मैं राख के छोटे ढेर में बदल गई थी। लेकिन परमेश्वर ने मुझे जीवन दोबारा दे दिया था, और मुझे तुम्हारे पास उसी ने भेजा था, अपने एक देवदूत के साथ, जब मैं बहुत समय तक जंगल में रही, और केवल तुम्हारा नाम ले कर रोती रही, और तुम्हें चाहती रही, और अब मुझको इस तरह से एक छोटे कुत्ते के रूप में बना दिया है। अगर तुम मुझ से विवाह करना चाहते हो तो, मैं ज्यादा समय तक इस तरह से छोटे कुत्ते के रूप में नहीं रहुंगी। सूरज ने कहा कि मैं तुम से कैसे विवाह कर सकता हूँ और तुम कैसे चंदा हो सकती हो? और मैं निश्चिंत हूँ की तुम अवश्य ही कोई दैत्य या शैतान हो, और यहां पर मुझे खाने के लिये आई हो। जिसके बाद सूरज उससे बहुत अधिक भयभीत के साथ आतंकित हो रहा था।

 

     सुबह के समय में वह वृद्धा एक छोटे कुत्ते के रूप-रूप में बदल गई थी और सूरज अपने पिता के पास गया और वह सब कुछ कहा जो भी घटना रात में उसके साथ घटी थी। वह बार-बार कहता एक बृद्ध औरत एक बृद्ध औरत, उसके पिता ने कहा कि तुम धिन भर कुछ भी नहीं करते हो, हमेशा केवल एक बृद्ध औरत के बारें में ही विचार करते रहते हो, यह कैसे हो सकता है? कि तुम्हारे जैसा एक ताकतवर और मजबुत आदमी एक औरत से डर सकता है। हलांकि जब राजा ने देखा कि उसका पुत्र वस्तव में बहुत अधिक उस बृद्ध औरत से भयभित हो चुका है। तो उसने भरोशा किया कि वह औरत दोबारा फिर उसके पास रात्री के समय में आयेगी। उसके पिता ने उसको सुझाव दिया कि तुम उस औरत से कहना कि यदि तुम फिर से युवा हो सकती हो तो मैं तुमसे विवाह कर सकता हूँ और इस तरह से मैं तुमसे विवाह कैसे कर सकता हूँ? जबकि मैं एक युवा आदमी हो और तुम एक बृद्ध औरत हो।

     उस रात्री में जब सूरज ने अपने करवट को बदला तो उसने देखा कि उस छोटे कुत्ते के स्थान पर उसके विस्तर पर फिर वह बृद्धा और सोई हुई रोते हुए कह रही थी, सूरज-सूरज मुजे सूरज चाहिए, मैने केवल तुम्हे इतने लम्बे सालों तक प्रेम किया है। जब मैं अपने पिता के राज्य में एक युवा लड़की ती मैंने तुमको देखा था, मैं तब से ही तुमको जानती हूँ लेकिन तुम मेरे बारें में कुछ भी नहीं जानते हो? हमने विवाह कर लिया था लेकिन फिर तुम मुझसे दूर होगये बहुत लम्बे समय के लिये, तभी से मैं तुम्हार अनुसरम कर रही हूँ। सूरज ने कहा अच्छा अगर तुम मुझको पना बनाना चाहती हो तो तुम अपने आपको को एक युवा औरत के रूप में बदल लो फिर मैं तुमसे विवाह कर लुगां। चंदा ने कहा यह तो विल्कुल सरल है, परमेश्वर मुझे केवल दो दिनो में युवा फिर से बना देगा, इसके लिये तुमके अवश्य अपने बगिचे में जाना होगा और-और वहाँ तुम देखोगे सुन्दर और अच्चे पके हुए उन सभी फलों को एकत्रित करके, उसको अपने सात इस कमरे में ले कर आना और तुम स्वयं उनको प्रेम काट कर सौम्यता के साथ खोलना और ऐसा केवल अकेले में करना जब तुम्हारे साथ ना तुम्हारे पिता हो नाही तुम्हारा मित्र ही हो, क्योंकि मैं उस फल में उस समय विल्कुल नग्न रहूंगी, किसी प्रकार का कोई कपड़ा मेरे शरीर पर नहीं होगा बिना किसी कपड़े के, सुबह में चंदा फिर कुत्ते के रूप में बदल गई और बगिचे में जा कर खोगई.

 

      राजकुमार सूरज ने इस कहानी को अपने पिता कु सुनाय और उसके पिता ने कहा तुम वह सब करो जिसको करने के-के लिये तुमसे उस बृद्ध औरत ने कहा है। इन दो दिनो तक सूरज अपने मित्र दिवाने के साथ बगिचे में घुमता रहा और वहाँ बगिचे में उसने देखा लाल-लाल पके हुए सुन्दर बहुत से फल, राजकुमार ने कहा मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मैं अपनी पत्नी को इन पके हुए फलों में पाउंगा। उसका मित्र चाहता ता कि सूरज यह सब फलो को एकत्रित करके के देखे की वास्तविक्ता क्या है, लेकिन उसने कहा कि अभी तक इसके बारे में अपने पिता को कुछ नहीं बताया है, दिवाने ने कहा कि म जाओ और सभी पके हुए फलो को एकत्रित करो, सूरज ने ऐसा ही किया। इसके बाद सूरज वापस चला गया और दाग दार फलों को अच्छे फलों से अलग कर दिया और उसने अपने पिता से कहा, "मेरे साथ मेरे कमरे में आओ, जब मैं इन फलों खोलता हूँ, मुझे अकेला खोलने से डर लगता है, शायद मुझे इसमें रक्षियाँ मिलेंगी जो मुझे खा जायेगी।"

 

     उसके पिता दौलतराम ने कहा तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि उस समय चंदा बिल्कुल नग्न होगी, तुम्हें विल्कुल अक्ला होना चाहिए और ज़रा भी भयभित होने की ज़रूरत नहीं है और यदि फलों में सकिसी प्रकार का कोई राक्षसी या दैत्य निकलती है तो हम तुम्हारे दरवाजे के बाहर ही रहूंगा, तुम तुरंत हमें जोर से बुलाना और मैं तुरेत तुम्हारे पास आउंगा जिससे तुम्हे राक्षसी नहीं खा पायेगी।

 

     फिर सूरज अपने कमरे के महल में गया और फलों को लेकर उन्हे काटना शुरु किया, उस समय वह बहुत अधिक भय़भित और कांप रहा था उसके शरीर से पसिने छुट रहे थे, उसको भय के साथ क झटका लगा जब ङी उसने फल को काटा तुरंत उसमें से चंदा बाहर निकल आई, उस समय वह बहुत अधिक सुन्दर लग रही थी जैसा वह खबी भी नहीं थी, इतना अधिक चंदा के सौन्दर्य पूर्ण व्यक्तित्व जैसे ही सूरज नें देखा वह फिछे की तरफ गिर कर जमिन पर वेहोश होगया।

 

     चंदा ने उसके पगड़ी को ले लिया और उसको साड़ी की तरह उसने पहन लिया। (क्योंकि इस समय वह विल्कुल निर्वस्त्र थी) और फिर उसने राजा दौलतराम को बुलाय और उनसे उदास हो कर कहा आखिर सूरज इस तरह से क्यों जमिन पर पड़ा है? और यह मेरे साथ बात क्यो नहीं कर रहा है? और इस तरह से वह कभी भी मुझसे भयभित नहीं हुआ था, जबकि इसने मुझको बहुत बार इस तरह से देख चुका है।

 

    राजा दौलतराम ने उससे कहा क्योंकि तुम इस समय पहले से बहुत अधिक सुन्दर और तेजस्वी हो चुकी हो? ऐसा तुम पहले कभी भी नहीं थी, जिसके कारण ही यह तुम्हे पहली बार इतने तेजस्वी रूप में तुमको देख तुम्हारे चेहरे के तेज के कारण ही यह वेहोश हो गया है। लेकिन सिधा यह बहुत अधिक प्रसन्न भी हुआ है, राजा दौलत राम ने कुच पानी को लाया जिसको सूरज के चेहरे के उपर लाया और कुछ पानी उसे पिने के लिये भी दिया जिससे वह दूबारा एक बार फिर उट कर बैट गया।

 

      चंदा ने कहा कि तुम वेहोश क्यों होगये थे, क्या तुमने मुझे नहीं पहचाना था कि मैं तुम्हारी पत्नी चंदा हूँ?

 

      राजकुमार सूरज ने कहा ओह मैंने देका चंदा तुम एक बार पिर मेरे लिये वापिस आ गई हों लेकिन तुम्हारी आंखे बहुत अधिक अश्चर्य पूर्ण सौन्दर्य और तेज से प्रकासित रही थी जिसको देकते ही मैं तत्काल वेहोश हो गया था। फिरवह दोनो बहुत अधिक प्रसन्न हुए, फिर राजा दौलतराम ने एक बार फिर पूरे महल को धुम धड़ाके के साथ सजवाया और एक वृहद उत्सव का आयोजन किया। जहाँ पर हर प्रकार के वाद्ययन्त्रो को बजाया गया और एक विशाल विवाह भोज का आयोजन किया, इसके साथ अपने नौकरो और फकिरों के साथ साधु, संतो को बहुत अधिक परयाप्त मात्रा में रुपया पैसा खाना पिना चावल, फल, सब्जिया, कपड़े और उपहार आदि का दान दे कर सबको प्रसन्न किया।

 

     जब उन्होंने काफी समय प्रसन्नता पुर्वक महल में अपने जीवन को बिताया, इसके कुछ समय के बाद वे पने उन्ही घोड़ों पर सवार हो कर अपना मनोरंजन और बाहरी दूनिया का हवा खाने के लिये और उनके सात केवल एक उनका साईस घोड़ो की देखभाल करने वाले के अतिरिक्त कोई भी नहीं था। वे एक दूसरे देश में घुमते-घुमते हुए पहुंचे, जहाँ पर एक बहुत सुन्दर बगिचा था, राजकुमार सूरज ने कहा कि हमें अवस्य इस बगिचे के अन्दर चलना चाहिए।

 

     चंदा ने कहा नहीं-नहीं यह बगिचा एक बहुत कुरुप राजा कवलपास का है, लेकिन राजकुमार सूरज ने दृढ़ता पुर्वक उस बगिचे में चला गया, उसने चंदा की बातों को हवा में उड़ा दिया, फुलों को देखने के लिये वह अपने गोड़े से निचे उतर गया और जैसे ही राजकुमार सूरज फुलों को निहार रहा था, तभी चंदा ने देखा कि कुरुप राजा कवलपास उसकी ही तरफ आ रहा था। उसकी के क्रोध से लाल थी जिसका मतलब था कि वह चंदा के पति को मार देगा और उसे कैद में डाल देगा। इस लिये उसने सूरज से कहा आवो-आवो चलों हम लोग यहाँ से चलते है, उस कुरुप आदमी के पास मत जाओ. मैं उसकी आंखों को देख रही जिससे मुझे महसुस हो रहा है कि वह तुमको मार देगा और मुझ अपना कैदी बना लेगा।

 

     सूरज ने कहा कि क्या वेतुका बकवास कर रही हो, मुझे विस्वास है कि यह एक बहुत अच्चा राजा है, कोई बात नहीं मैं इसके पास जाउंगा, मैं यहाँ से कभी भाग के नहीं जउंगा।

 

      अच्छा चंदा ने कहा यह तुमहारे लिये अच्छा होगा कि इससे पहले तुम मुझको मार दो, क्योकि यदि उसने मुझे मार दिया तो पर्मेश्वर मुझो दोबारा जीवन नहीं देगा। लेकिन मैं तुम्हे दूबारा जीवीत कर दूंगी यदी तुम्हारी मृत्यु होगई को। अब राजा केवलपास बहुत करीब आ गया और बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहा था, ऐसा राजकार सूरज ने सोचा, लेकिन जह वह सूरज से बात कर रहा था, तभी उसने अपनी दो धारी तलवार को निकाला म्यान से और राजकुमार सूरज के गर्दन को काट दिया और सूरज का सर धड़ अलग होकर जमिन पर गिर गया।

 

     चंदा अभी तक शांत पने घोड़े पर ही बैठी थी, जब राजा केवल पास उसे पास आगया तो उसने केवलपास से पुछा तुमने मेरे पति को क्यो मारा?

 

   कवल पास ने कहा क्योंकि मैं तुम्हे प्राप्त करना चाहता हूँ।

 

    चंदा ने कहा तुम ऐसा कभी नहीं कर सकते हो?

 

    राजा कवल पास ने कहा मैं ऐसा कर सकता हूँ।

 

    चंदा ने कहा तो मुझे ले लो, इस तरह से राजा कवलपास चंदा के बहुत पास चला गया और उसने अपने हांथों को बढ़ा कर उसको घोड़े से निचे खिचने का प्रयाश किया, लेकिन तभी चंदा ने अपनी जेब से बहुत छोटा चाकु जो उसके ङथेली के समान था उसको बाहर निकाला और वह चाकु अपने आप खुल गई और जिसने एक बड़े और तेज धार हथियार का रूप ले लिया। जिसको चंदा ने अपने बाहों को फैला कर उस तेज धार हथियार से एक-एक जोर दार बार कवलपास के गर्दन पर किया जिसके छुते ही कवलपास की गर्दन जमिन पर लुढकती हूई नजर आई. अर्थात केवल पास कि गर्दन उसके धड़ से कट जमिन पर गीर गई.

 

    फिर चंदा अपने घोड़े से निचे उतर कर मजनु की मृत शरीर के पास गई, फिर उसने अपनी उंगली को अपने हाथों में सिधा नखो से लेकर हथेलीयों तक काट दिया और उससे निकलते हुय़े खुन से उसने मजनु के धड़ से उसके सर को लगा कर उसने अपने खुन से उसको चारों तरफ से जोड़ दिया, उसके खुन ने एक जबरजस्त औषधी कि तरह से काम किया जिसके कारण सूरज कुछ ही देर में बिल्कुल ठीक पहले जैसा होगया। उसने कहा मैं कितनी गहरी और आनन्दायक निद्रा में चला गया था, ऐसा मैं क्यो महशुष कर रहा हूँ? कि मैं कई एक सालो तक इस तरह से सो रहा था। फिर वह खड़ा हुआ और उसने देखा कि चंदा के घोड़े के पास राजा कवलपास की मृत शरीर पड़ी उसके सर से अलग हो कर।

 

   सूरज ने कहा कि वह क्या है?

 

   वह वहीं कुरुप राजा है जिसने तुम्हारी हत्या कर दि थी और मुझको कैदी बनाना चाहता था, इसलिये मैने वही किया जो कार्य इसने तुम्हारे साथ किया था और मैंने ही तुमको दूबार जीवन फिर से दिया है।

 

   सूरज ने कहा क्या तुम किसी मरे हुए व्यक्ती को जीन्दा करना जानती हो तो इस बेचारे आदमी को एक बार फिर से जिन्दा कर दो।

 

    चंदा ने कहा नहीं क्योंकि यह एक कुरुप राजा है यह तुम्हारे साथ फिर बहुत बुरा व्यवहार करेगा। लेकिन सूरज बार-बार चंदा से उत्सुकात पुर्वक कहने लगा कि इस कुरुप राजा को जिन्दा कर दो, फिर आखिर में चंदा ने कहा ठीक है लेकिन इससे पहले तुम अपने घोड़े के सेवक के साथ यहा से बहुत दूर चले जाओ।

 

   फिर तुम क्या करोगी, सूरज ने कहा मैं तुमको अकेला छोड़ कर यहा पर नहीं जा सकता हूँ।

 

    चंदा ने कहा कि मैं अपना ध्यान रक लुगी, लेकिन यदि यह कुरुप आदमी एक बार जिन्दा हो गाय तो यह फिर तुम्हारी एक बार हत्या कर देगा, आगर तुम मेरे पास में रहे तो और इस तरह से सूरज पने घोड़े पर सवार हो कर अपने घोड़ों के सेवक के साथ वहाँ से कापी दूर कर चला गया और वहाँ पर जा कर वह चंदा के आने का इन्तजार करने लगा। फिर चंदा ने उस कुरुप राजा का सर उसके धड़ से सीधा कर जोड़ दिया और फिर अपनी उगंली को दबाय जिसमे से औषधि रूप उसका खुन बाहर आने लगा फिर उस खुन से राजा के उस घाव पर लगाया जो उसके चाकु से हुआ था। जैसे ही उसने देखा कि राजा अपनी आंखों को खोल रहा है, उसने वहा से तुरंत अपने घोड़े पर सवार हो कर से भागी और अपने घोड़े को पुरी शक्ति से दौड़ाया, जिससे वह उस राजा कि पकड़ से बाहर होगई, उसने जब सूरज को देखा तो उसका पिछा किया और तब तक वह सब अपना घोड़ा दौड़ाते रहे, जब तक कि वह राजा दौलतराम के राज्य में प्रवेस नहीं कर लिया।

 

     राजकुमार सूरज ने सब कुछ अपने पिता से बताय, जिससे वह बहुत अधिक संत्रस्त और क्रोधित हुआ और उसने कहा कि तुम कितने अधिक सौभाग्य शाली हो जो इतनी अच्छी पत्नी को पाया है। तुम वैसा क्यों नहीं करते कि जैसा वह कहती है, कुछ उसके लिये, फिर उसने के बड़ा भोज्य उत्सव किया अपने पुत्र के कृतज्ञता के उपलक्ष्य में और उसकी सुरक्षा के लिये और बहपत-सा दान साधु, संत और फकिरों को दिया और उसने बहुत कुछ चंदा के लिये किया, क्योंकि वह उससे बहुत अधिक प्रेम करता था, लेकिन वह पर्याप्त मात्रा में उसके लिये सब कुछ नहीं कर पाय, फिर उसने अपने पुत्र और बहु के लिये एक शानदाल आलिशान महल बनवाया, बहुत अच्छी जमिन पर और एक सुन्दर बगिचे का निर्वाण उसके अन्दर कराया और उनको उसन बहुत सारा धन दौलत भी दिया, इसके अतिरिक्त काफी मात्रा में नौकर चाकर को भी दिया जो उनके इसारे पर चलने पर हर समय तैयार रहते थे। लेकिन उसने किसी को भी महल और बगिचे के अन्दर जाने का इजाजत नहीं थी, शिवाय नौकरों को छोड़कर और उसने सूरज और चंदा पर प्रतिबंध लगा दिया की वह अब कभी भी बाहर घुमने के लिये नहीं जायेगे, क्योकि चंदा बहुत अधिक सुन्दर है जिसके कारण कोई भी उसके पुत्र को मार कर चंदा को उससे छीन कर भाग सकता है।

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