Ad Code

प्रेम मिलन एक प्राचीन प्रेम कथा

 


प्रेम मिलन

 

      प्राचीन समय में भारत में एक राजा थे। जिनका केवल एक पुत्र था। वह हर रोज शिकार करने के लिये जाया करता था। एक दिन उस सूर्या कि मां ने उससे कहा कि तुम कही भी अपनी इच्छा के अनुकूल तिन दिशाओं में, जा कर शिकार कर सकते हो? लेकिन तुम कभी भी चौथी दिशा में, शिकार करने के लिये मत जाना। क्योंकि वह सूर्या कि माँ यह जानती थी, की यदि सूर्या चौथी दिशा में शिकार करने के लिए जायेगा, तो वह ब्रह्मपूरदेश कि सुन्दर राजकुमारी के बारे में अवश्य सुनेगा। और फिर सूर्या अपने माता पिता को छोड़ कर, ब्रह्मपूरदेश कि सुन्दर राजकुमारी को प्राप्त करने के लिए उत्सुक हो जायेगा।

 

    युवा राजकुमार अपनी माँ की बात को सुना, और कुछ समय तक उसकी आज्ञा का पालन किया। लेकिन, एक दिन जब वह शिकार कर रहा था। तीनों दिशाओं में, जहाँ पर उस को जाने की आज्ञा दी गई थी। उसे याद आया, कि उसकी माँ ने चौथी दिशा के बारें में, क्या कहा था? फिर भी उसने दृढ़ संकल्प किया, कि वह चौथी दिशा में अवश्य जायेगा और पता करेगा। कि आखिर उसको वहाँ जा कर शिकार करने के लिये, क्यों मना किया गया है? जब वह चौथी दिशा में पहुंचा, तो उसने स्वयं को एक विशाल जंगल में पाया, वहाँ पर कुछ भी नहीं था, सिवाय बहुत सारे तोतों के, जो उस जंगल में रहते थे। युवा सूर्या ने, उनमें से कुछ सुग्गों को अपना शिकार बना लिया। इसके बाद तत्काल सभी दूसरे तोते एक साथ उपर आकाश में उड़ने लगे । यह सब कुछ हुआ, लेकिन जो उन सुग्गों का राजा था जिसका नाम सरवन था, वह वहीं बैठा रहा।

 

   जब सुग्गों के राजा सरवन ने, अपने आपको अकेला जंगल में पाया। तब उसने अपने और दूसरे साथियों को पुकारते हुए कहा, कि तुम सब मुझे इस जंगल में, अकेला छोड़ कर मत भागो। अगर तुम सब ने मुझे इस तरह से एकांत जंगल में छोड़ कर चले गये। तो मैं ब्रह्मपूरदेश की सुन्दर राजकुमारी से, तुम सब की शिकायत करुंगा।

 

   फिर भी सभी सुग्गों नें, अपने राजा की बातों को अनसुना करके, उसे एकांत जंगल में अकेला छोड़ कर, सभी एक दूसरे के साथ आकाश में उड़ गये। सूर्या को यह सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। कि यह पक्षी कैसे बात कर सकते है? फिर उसने सुग्गों के राजा सरवन से कहा, कि वह सुन्दर ब्राह्मपूरा की राजकुमारी कौन है? और वह कहाँ रहती है? लेकिन उस सुग्गे ने, सूर्या को इसके बारे में कुछ नहीं बताया। कि राजकुमारी कहाँ रहती है? उसने केवल इतना कहा कि तुम कभी भी ब्रह्मपूरदेश देश की सुन्दर राजकुमारी को नहीं प्राप्त कर सकते हो।

 

     जिस को सुनने के बाद राज कुमार बहुत अधिक उदास हो गया। जब किसी भी सुग्गें ने राजकुमारी के बारे में कुछ भी नहीं बताया। तब सूर्या ने अपने शिकार करने के साधन बंदूक आदी को, वहीं पर फेंक दिया। और अपने घर पर वापस चल दिया। जब वह अपने घर पर वापस आ गया। तो उसने किसी से कुछ भी बात-चित नहीं की, और ना ही किसी प्रकार का भोजन ही किया? केवल वह अपने सोने के कमरे में, अपने विस्तर पर लेटा रहा, चार पांच दिनों तक, जिसके कारण वह बहुत बीमार दिखने लगा।

 

     अंत में उसने अपने माता पिता से कहा, कि वह ब्रह्मपूरदेश की सुन्दर राजकुमारी से मिलने के लिये जाना चाहता है। उसने कहा मैं अवश्य जाउंगा और मैं देखुगा की उसको क्या पसंद है? मुझे बताओं की उसका देश कहाँ है?

 

     उसके माता पिता ने एक साथ उत्तर दिया, कि हम नहीं जानते है, कि ब्रह्मपूरदेश देश कहाँ है?

 

    फिर सूर्या ने कहा, तो भी मैं अवश्य जाउंगा। और उसकी खोज करुंगा, कि वह कहाँ पर रहती है?

 

    राजकुमार के माता पिता ने कहा नहीं-नहीं तुम हमें छोड़ कर कभी नहीं जा सकते हो। तुम हमारे अकेले पुत्र हो, हमारे साथ रहो, तुम कभी भी ब्रह्मपूरदेश की सुन्दर राजकुमारी को नहीं तलाश सकते हो।

 

    सूर्या ने कहा कि मैं अवश्य उसकी तलाश करुंगा। और उसको प्राप्त कर लूगा, हो सकता है कि परमेश्वर मेरी सहायता उसको तलाशने में करे । मैं तुम्हारे पास वापिस आउंगा, शायद यह भी हो सकता है, कि मेरी मृत्यु हो जाये। और मैं आप सब को दोबारा ना देख पाउं, इसलिए मेरा जाना बहुत आवश्यक है।

 

    इस तरह से राजा और रानी ने, सूर्या को ब्रह्मपूरदेश देश की सुन्दर राजकुमारी को, जा कर तलाश करने की आज्ञा दे दी। यद्यपि राजा और रानी सूर्या को विदा करते हुए रो रहे थे। सूर्या के पिता ने सूर्या को कुछ सुन्दर अच्छे कपड़े पहनने के लिए दिये, और साथ में एक श्रेष्ठ घोड़ा भी दिया। सूर्या ने अपनी बंदूक और धनुष बाण को भी अपने साथ ले लिया। और कुछ एक बड़े खतरनाक हथियार भी, इसके लिये उसने कहा कि इन की मुझ को जरूरत पड़ सकती है। उसके पिता सूर्या को पर्याप्त मात्रा में रुपये भी दे दिया।

         

    फिर सूर्या ने अपने घोड़े को यात्रा के लिये तैयार कर लिया। और उसने अपने माता पिता से यात्रा पर जाने के लिये सहमती मांगी। तभी सूर्या की माँ ने, सूर्या के रुमाल को ले लिया। और उसमें कुछ रास्ते में खाने के लिये, मीठे पकवान को लपेट कर देते हुए कहा, कि पुत्र जब भी रास्ते में तुम्हें भूख लगे, तो इन मीठे पकवानों में से, कुछ एक को खा कर, अपनी भूख को शांत कर लेना।

 

    इसके साथ राजकुमार सूर्या अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। और वह चलता रहा, चलता रहा, जब तक की वह बीहड़ जंगल में नहीं आ गया। जहाँ पर उसे एक घना छाया दार और मोटा वृक्ष दिखाई दिया। इसके साथ एक स्वच्छ तालाब भी था। उसने स्वयं उस तालाब में स्नान किया, और अपने घोड़े को भी स्नान कराया। इसके बाद घोड़े को एक घास दार मैदान में बांध कर, स्वयं उस छाया दार वृक्ष के नीचे बैठ गया। फिर उसने अपने आप से कहा, कि मैं कुछ अपने माँ के द्वारा दिये गये, मीठे पकवानों में से खा लूगा। और कुछ पानी पी कर, अपनी यात्रा में आगे के लिये, यहाँ से प्रस्थान करुंगा । उसने अपने रुमाल को खोला और उसमें से एक मीठा पकवान निकाला। लेकिन उसने देखा, कि उसमें एक चींटी थी। उसने दूसरा निकाला, उसमें भी एक चींटी थी, उसने एक तीसरा निकाल, उसमें भी चींटी थी। इस तरह से उसके सभी पकवान में, चींटी लग चुकी थी। उसने कहा कोई बात नहीं है। जिसके बाद उसने मीठे पकवानों को, ना खाने का निश्चय किया। उसने कहा, कि मैं इन को नहीं खाउंगा इसको ए चींटियाँ ही अब खायेगी। फिर उन चींटियों का राजा, अचानक राजकुमार सूर्या के सामने प्रकट हुआ। और उसने कहा, कि आपने हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया। यदी आप कभी किसी कठिनाई में होंगे, तो हमें याद करना, हम आकर आपकी तुरंत सहायता करेंगे।

 

     राजकुमार सूर्या ने, उनका धन्यवाद किया। और अपने घोड़े पर सवार हो कर, अपनी यात्रा में आगे के लिये चल पड़ा, वह तब तक अपने घोड़े को दौड़ाता रहा, जब तक की वह एक दूसरे जंगल में नहीं पहुंच गया। और उस जंगल में सूर्या ने, एक बाघ को दर्द से कराहते हुए पाया। जिसके पैरो में एक बड़ा कांटा चुभा हुआ था।

 

     सूर्या ने उस बाघ से कहा, कि तुम इस तरह से क्यों दर्द से तड़प रहे हो, तुम्हारे साथ ऐसा क्या हो गया है?

 

     बाघ ने उत्तर में कहा, कि मेरे पैर में पिछले बारह सालों से एक कांटा चुभ गया है। जिसके कारण मुझे बहुत अधिक कष्ट होता है। इसलिए मैं दर्द में कराहता हूँ।

 

     सूर्या ने कहा अच्छा, मैं इसको तुम्हारे पैर से बाहर निकाल दूंगा। लेकिन शायद, जैसा की तुम एक बाघ हो, जब मैं तुम को अच्छा कर दुंगा। और तुम मुझे खा जाओगे।

 

    बाघ ने कहाँ ओह नहीं, मैं तुम को कभी नहीं खाउंगा, तुम मुझे अच्छा कर दो।

 

    फिर सूर्या ने अपनी जेब से एक छोटा चाकू निकाला, और बाघ के पैर को काट कर, उस कांटे को पैर से बाहर निकालने लगा। लेकिन जब सूर्या ने बाघ के पैर को काटा, तो बाघ पहले से भी अधिक तेजी से दहाड़ने लगा। जिससे उसकी पत्नी ने, उसके दहाड़ने कि आवाज़ को सुना, जो दूसरे जंगल में थी। और वह तुरंत कूदते फाँदते, उसके पास आ गई। यह देखने के लिये, कि क्या हो रहा है? जब बाघ ने उसे अपनी तरफ आते हुए देखा, तो उसने तुरंत सूर्या को जंगल में छीप जाने के लिये कहा, जिससे की वह उसे ना देख सके।

 

    उसकी पत्नी ने कहा कौन आदमी तुम को चोट पहुंचा रहा था? जिससे तुम इतना अधिक दहाड़ के साथ चिल्ला रहे थे।

 

     कोई भी मुझे चोट नहीं पहुंचा रहा था। उसके पति ने उत्तर में कहा, लेकिन एक राजा का पुत्र सूर्या यहाँ आया और मेरे पैर से उसने कांटा निकाल दिया है।

 

   बाध की पत्नी ने कहा, कि वह कहाँ है? मुझे दिखाओ।

 

   बाघ ने कहा अगर तुम वादा करो, की तुम उसकी हत्या नहीं करोगी, तो मैं उसको बुलाउंगा।

 

   बाघ की पत्नी ने कहा, कि मैं उसको नहीं मारुंगी, बुलाओ उसे देखते हैं।

 

   फिर बाघ ने, सूर्या को अपने पास बुलाया, और जब सूर्या उसके पास आ गया, तब बाघ और उसकी पत्नी ने सूर्या का बहुत-से आदर सम्मान के साथ नमस्कार किया। फिर उन्होंने सूर्या को बहुत अच्छा रात्रि में भोजन कराया, और फिर सूर्या बाघ और उसकी पत्नी के साथ, तीन चार दिनों तक रहा, और बाघ की मरहम पट्टी करता रहा। जब बाघ ठीक हो गया, तो उसने सूर्या से कहा, कि तुमने हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया है। यदि तुम किसी मुसीबत में कभी फंसना, तो हमें तुरंत याद करना, और तब हम वहाँ आकर तुम्हारे मुसीबत को, तुम से दूर कर देंगे।

 

    फिर सूर्या अपने घोड़े पर सवार हो गया, इसके साथ वह अपनी यात्रा में आगे के लिये चल पड़ा, और तब तक वह चलता रहा, कि जब तक वह एक तीसरे जंगल में नहीं पहुंच गया। जहाँ उसकी मुलाकात ऐसे चार फकीरों से होती है। जिनका गुरु मर गया था, और वह सब अपने गुरु के द्वारा छोड़ गये चार विशेष वस्तु को लेकर आपस में विवाद कर रहे थे। जिसमें एक ऐसा बिस्तर था, जिस पर बैठ कर कही भी, कभी भी, अपनी मन माफिक स्थान पर पहुँचा जा सकता था। दूसरी वस्तु थी एक झोला था, जो अपने मालिक की किसी भी, इच्छा के अनुसार वस्तु पैदा कर सकता था। जैसे आभूषण, भोजन, कपड़ा एक तीसरी वस्तु एक पत्थर का कटोरा, जो कितना भी पानी पैदा कर सकता था। जितना भी उसका मालिक उससे मांग करे, और चौथी वस्तु थी एक छड़ी के सा रस्सी थी, जो किसी भी सैनिक के टुकड़ी को पीटने और उन को बांधने का कार्य करती थी। इसके लिये ही वह चारों फकीर आपस में झगड़ रहे थे। वह सब कह रहे थे, कि मुझे यह चाहिए। और दूसरा कहता की मुझे भी यही चाहिए। और तीसरा भी उसी वस्तु की मांग करता था। वह सब इसका निर्णय नहीं कर पा रहे थे। कि किस को कौन-सी वस्तु मिलनी चाहिए? राजकुमार सूर्या ने कहा, कि कोई बात नहीं है। मैं तुम सब की इस समस्या का समाधान कर दुंगा। इसके लिये, मैं अपने चार बाण बारी-बारी चारों दिशाओं में चलाउंगा। जो उन बाणों में पहले बाण को, पहले हमारे पास लायेगा। उसको यह पहला विस्तर मिलेगा। और जो दूसरी बार आयेगा। उसको यह कटोरा मिलेगा। और जो तीसरा लाएगा, उसको यह झोला और चौथा में जो पहले लाएगा। उसको यह छड़ी और रस्सी मिलेगी। इस तरह से सूर्या बाण चलाता है, और वह चारों फकीर जाते उसको लाते जब सूर्या के तीन बाड़ वापस आ गये। तो सूर्या अपना चौथा बाण चलाया। वाण को लेने के लिये जब वह चारों फकीर जंगल में उसे तलाशने के लिये गये। तो सूर्या ने झोला, कटोरा और छड़ी रस्सी के साथ उस बिस्तर पर बैठ गया। और बिस्तर से कहा कि तू मुझे ब्रह्मपूरदेश के सुन्दर राजकुमारी के देश में ले चलो। ऐसा कहते ही, वह जादुई बिस्तर तुरंत आकाश मार्ग से यात्रा करने लगा। और कुछ समय के बाद एक किसी दूसरे देश में जा कर, वह जमीन पर व्यवस्थित उतर गया। जब सूर्या ने, वहां पर कुछ लोगों से पूछा, कि भाई यह कौन-सा नगर है? तो वहाँ की आम जनता ने कहा कि यह ब्रह्मपूरदेश है।

 

    फिर सूर्या वहाँ से आगे निकल पड़ा। और कुछ दूर जाने के बाद एकांत में, उसने एक वृद्ध औरत के घर को देखा। जहाँ पर उस वृद्ध औरत ने, उससे पूछा कि तुम कौन हो? और तुम यहाँ पर कहाँ से आये हो?

 

   सूर्या ने उत्तर में कहा, कि मैं एक बहुत दूर देश से यहाँ पर आया हूँ। क्या तुम मुझे अपने यहाँ पर, एक रात्रि बिताने का मौका दे सकती हो?

 

   उस वृद्ध औरत ने कहा नहीं, मैं तुम्हें अपने साथ रहने की इजाज़त कदापि नहीं दे सकती हूँ। क्योंकि हमारे राजा ने, हमें आज्ञा दी है। कि किसी भी दूसरे देश के आदमी को, हमारे देश में नहीं रहने दिया जाये। इस तरह से तुम हमारे घर में नहीं रह सकते हो।

 

    सूर्या ने कहा कि आप मेरी चाची है। मैं आपके साथ केवल एक रात्रि तक ठहरने के लिये कह रहा हूँ। आप देख रही है कि शाम हो चुकी है। अगर मैं इस समय जंगल में जाउंगा, तो वहाँ के जंगली जानवर मार कर मुझे खा जायेगें।

 

    फिर उस वृद्ध औरत को, सूर्या पर रहम आ गई, उसने कहा ठीक है। तुम केवल आज रात तक, हमारे घर में रह सकते हो। सुबह होते ही, तुम यहां से चले जाओगे। अगर राजा को पता चल गया, कि तुमने मेरे घर में, मेरे साथ रात को बिताया है। तो वह मुझे पकड़ कर जेल में डाल देगा।

 

     फिर उस वृद्ध औरत ने सूर्या को अपने साथ अपने घर में ले गई। जिससे सूर्या बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। वृद्ध औरत ने खाना बनाने की तैयारी करने लगी। जिसके लिये सूर्या ने मना कर दिया। उसने कहा चाची, मैं आपको भोजन दूंगा। और उसने अपने हाथ को अपने जादुई झोले के अन्दर डाला। और कहा झोले मुझे रात्रि में खाने के लिये भोजन चाहिए। तत्काल झोले ने सूर्या और वृद्ध औरत के लिये स्वादिष्ट भोजन से भरी दो थाली, उनके सामने उपस्थित कर दिया। जिस को सूर्या और उस वृद्ध औरत ने, एक साथ रात्रि में खाया।

 

    जब उन्होंने अपना भोजन पूरा कर लिया। तो वृद्ध औरत पानी को लाने के लिये जाने लगी। जिसके लिये भी सूर्या ने उसको रोका। और उससे कहा कि मैं सीधा यही पर पर्याप्त पानी की व्यवस्था कर सकता हूँ। यह कह कर उसने आपने जादुई कटोरे को अपने दूसरे थैले में से निकाला। और उससे कहा हमें पानी पीने के लिये चाहिए। कटोरा तुरंत पानी से भरने लगा, जब कटोरा पूरा पानी से भर गया, तो सूर्या ने उस कटोरे से कहा बस पर्याप्त है। और कटोरे में तुरन्त पानी भरना बन्द हो गया। सूर्या ने कटोरे भरे पानी को उस वृद्ध औरत को दिखाते हुए कहा देखीए चाची मुझे जब भी जितने पानी की जरूरत होती है। मैं इसी तरह से प्राप्त कर लेता हूँ।

 

     इस तरह से रात्रि आ गई। तब सूर्या ने कहा कि चाची आपने कोई दीपक क्यों नहीं जलाया है? अपने घर में, उस वृद्ध औरत ने कहा उसकी कोई जरूरत नहीं है। हमारे देश के राजा ने हम सभी को मना कर रखा है। कि कोई भी अपने घर में कोई दीपक नहीं जला सकता है। जो उसकी आज्ञा नहीं मानेगा। उसको जेल में डाल दिया जायेगा। क्योंकि जैसे ही अँधेरा गहरा होता है। राजा की पुत्री ब्रह्मपूरदेश की राजकुमारी अपने कमरे से निकल कर वह अपने घर के छत पर आकर बैठ जाती है। वह इतना अधिक प्रकाशवान है, कि जिसके चमक से हमारा पूरा ब्रह्मपूरदेश प्रकाशित हो जाता है। इसके साथ हमारा भी घर प्रकाशित हो जाता है। और हम सब अपना कार्य उसी प्रकार से कर सकते हैं। जैसा कि हम सब दिन में अपना कार्य करते हैं।

 

     जब पूर्ण रात्रि ने अपना घना काला अंधकार चारों तरफ फैला दिया। तब ब्रह्मपूरदेश की राजकुमारी उठी, उसने अपने आपको कीमती कपड़ों और कीमती आभूषणों से सजाया। इसके बाद उसने बालों का जुड़ा बना कर अपने सर पर बांध लिया। उनमें हीरे और मोतियों से जड़ित चुड़ामड़ी को लगाया। फिर वह ऐसी दीख रही थी जैसे चंद्रमा का प्रकाश चारों तरफ फैल रहा हो। सारा देश उस समय दिन जैसा प्रतीत हो रहा था। वह अपने कमरे से बाहर आई। और अपने महल की छत पर चढ़ गई। वह कभी भी दिन के समय में अपने महल से बाहर नहीं निकलती थी। वह अपने महल से केवल रात्रि के समय ही निकलती थी। और इसी समय उसके पिता के ब्रह्मपूरादेश में सभी लोग अपने कार्य पर जाते थे। और अपना सभी प्रकार का कार्य उसके प्रकाश में पूरा करते थे।

 

     राज कुमार सूर्या ने यह सब कुछ करते हुए राजकुमारी को अपनी आंखों से देख कर बहुत आश्चर्यचकित के साथ प्रसन्न भाव उद्वेलित हो गया। और उसने अपने आप से कहा वह कितना अधिक सुन्दर है!

 

      मध्यरात्रि के समय जब सभी लोग नगर के अपने बिस्तर में सो गए। तब राजकुमारी अपने महल की छत से नीचे अपने कमरे में आ गई। और अपने बिस्तर पर पड़ते ही गहरी निद्रा में सो गई। सूर्या अपने बिस्तर पर से बहुत आराम से उठ कर बैठ गया। और अपने जादुई बिस्तर से कहा बिस्तर मुझे तुरंत राजकुमारी के कमरे में ले कर चलो। इस तरह से उस जादुई बिस्तर ने सूर्या को राजकुमारी के सोने कमरे में ले गया। जहाँ पर राज कुमारी गहरी निद्रा में अपने बिस्तर पर सो रही थी।

 

     युवा राजकुमार सूर्या ने अपने थैले को लिया, और उससे कहा कि मुझे बहुत सारे तैयार पान चाहिए। इसके साथ थैले ने तुरंत बहुत सारे पर्याप्त मात्रा में पान के पत्ते वहाँ पर उपस्थित कर दिये। उसको सूर्या ने राजकुमारी के बिस्तर पर उसके पास रख दिया। और फिर अपने बिस्तर पर बैठ कर वह वापिस वृद्ध औरत के घर में आ गया।

 

    अगले दिन सुबह सारे राजकुमारी के नौकरों ने बहुत सारे पान के पत्तों को पाया। और उसे खाना शुरु कर दिया।

 

    राजकुमारी ने जब यह देखा, तो उनसे पूछा की तुम सब ने यह पान कहाँ पर पाया?

 

    उन सब ने जवाब दिया, की हमने इसे आपके बिस्तर के पास पाया है। कोई भी यह नहीं जानता था, कि राजकुमार सूर्या रात्रि में यहाँ आया था। और उसने ही यह पान के पत्ते यहां रखा था।

 

    सुबह होते ही वह वृद्ध औरत सूर्या के पास आई। और उसने कहा कि अब सुबह हो चुकी है। और तुम्हें अवश्य यहाँ से निकल जाना चाहिए, इससे पहले की कोई राजा का आदमी तुम्हें यहाँ पर देख ले, और मेरे लिये किसी प्रकार की मुसीबत खड़ी हो जाये।

 

    सूर्या ने कहा प्रिय चाची आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, मुझे कल सुबह तक और यहाँ रहने के लिये इजाज़त दे दो। उस वृद्ध औरत ने कहा कि अच्छा ठीक है। और फिर उन दोनों ने अपना भोजन किया। जो थैले ने दिया और पानी पिया जो कटोरे ने उपलब्ध किया उनके लिये।

 

    और जब रात्रि हुई फिर राजकुमारी उठी, और तैयार हो कर अपने महल के छत पर जा कर बैठ गई। और ठीक रात्रि के 12 बजे जब सभी लोग अपने बिस्तर पर जा कर गहरी निद्रा में सो गये। फिर राजकुमारी अपने छत से अपने महल के कमरे में आ गई, और अपने बिस्तर पर पड़ते ही गहरी निद्रा के आगोश में समा गई। राजकुमार अपने बिस्तर पर उठ कर बैठ जाता है। और वह बिस्तर से एक बार फिर राजकुमारी के महल के कमरे में चलने का लिये आदेश देता है। और बिस्तर तत्काल सूर्या को लेकर राजकुमारी के सोने के कमरे में पहुंच जाता है। जहाँ पर सूर्या ने अपना थैला निकाला, और थैले से उसने एक बहुमूल्य सुन्दर साल की मांग की, जिस को थैले ने तुरंत पूरा किया। और सूर्या ने उस बहुमूल्य साल को राजकुमारी के उपर फैला दिया। जो उस समय गहरी निद्रा में सो रही थी। और फिर सूर्या अपने बिस्तर पर बैठ कर उस वृद्ध औरत के घर में वापिस आ गया।

 

     सुबह होने पर जब राजकुमारी ने बहुमूल्य साल को अपने उपर देखा, तो वह बहुत आनंदित हुई। उसने अपनी माँ को पुकार कर के कहाँ देखो माँ, यह बहुमूल्य साल परमेश्वर ने मुझे दिया है। यह साल बहुत खूबसूरत है। उसकी माँ भी बहुत अधिक प्रसन्न हुई, उसने कहा अवश्य मेरी बच्ची, परमेश्वर ने ही इस शानदार और बहुमूल्य शाल को, तुम्हें दिया है।

 

     जब सुबह हुई इधर वृद्ध औरत ने फिर सूर्या के पास पहुंच कर कहा कि अब तुम्हें यहाँ से सच में निकलना चाहिए। सूर्या ने कहा चाची मैं अभी पूरी तरह से ठीक नहीं महसूस कर रहा हू, मुझे कुछ दिन और यहाँ पर ठहरने के लिये अनुमति दे दो। मैं आपके घर में छीप कर रहूंगा। जिससे कोई भी मुझे देख नहीं पाएगा। इस तरह से उस औरत ने सूर्या को वहाँ कुछ एक दिन और रहने के लिये इजाज़त दे दिया।

 

     जब फिर रात्रि आई तो राजकुमारी ने सुन्दर और बहुमूल्य आकर्षण वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित हो कर, अपने महल के छत पर आ कर बैठ गई और मध्य रात्रि में वह पुनः अपने महल के कमरे में वापिस आई, और बिस्तर पर पड़ते ही गहरी निद्रा में चली गई। फिर सूर्या अपने बिस्तर पर उठ कर बैठा, और बिस्तर से कहा, कि वह उसे राजकुमारी के कमरे में उसे पहुंचा दे, ऐसा ही हुआ बिस्तर उड़ते हुए राजकुमारी के कमरे में पहुंच गया, जब वह राजकुमारी के कमरे में पहुंचा, तो उसने अपने थैले से कहा कि मुझे एक बहुमूल्य सुन्दर हीरे की जड़ी अंगूठी चाहिए। थैले ने ऐसा ही किया, और उसके लिये एक बहुमूल्य अंगूठी उपस्थित कर दिया। जिस को सूर्या ने सोती हुई राजकुमारी के उंगली में प्रेम और सहजता के साथ पहनाने लगा। लेकिन सूर्या के हाथों के स्पर्श मात्र से राजकुमारी की निंद खुल गई। और इसके साथ ब्रह्मपूरादेश की राजकुमारी अत्यधिक भयभीत भी हो गई।

 

      और उसने सूर्या से कहा कि तुम कौन हो? और तुम कहाँ से, मेरे कमरे में इस तरह से क्यों आये हो?

 

      राजकुमार सूर्या ने कहा डरो मत, मैं चोर नहीं हूँ, मैं एक महान राजा का पुत्र हूँ, सरवन नामक तोते से आपके बारे में मैंने सुना था, जो जंगल में रहता है। जहाँ पर मैं शिकार खेलने गया था, उसने आपका नाम मुझे बताया, इस लिये मैं अपने माता पिता से आज्ञा लेकर तुम से मिलने और देखने के लिये आया हूँ।

 

      राजकुमारी ने कहा ठीक है। जैसा की तुमने कहा कि तुम एक महान राजा के पुत्र हो, मैं तुम्हें नहीं मारुंगी, मैं तुम्हारे बारें में अपने माता पिता से कहुगी की मैं तुम से विवाह करना चाहती हूँ।

 

      फिर राजकुमार सूर्या अपने बिस्तर पर सवार हो कर वृद्ध औरत के घर में वापिस आ गया। और जब सुबह हुई, तो राजकुमारी ने अपनी माँ से कहा, रात्रि के समय में राजकुमार सूर्या के आने की बात को, और इस बात को राजकुमारी की माँ ने अपने ब्रह्मपूरादेश के राजा को बताई, जो उस राजकुमारी का पिता था।

 

      ब्रह्मपूरदेश के राजा ने कहा अच्छा है, लेकिन यदि वह किसी देश के राजा का पुत्र है और मेरी पुत्री से विवाह करना चाहता है, तो पहले उसे मेरी जो भी शर्त होगी उसको पुरा करना होगा। और यदि उसमें वह असफल होता है, तो मैं उसको मार दूंगा। मैं उसे आठ सौ किलो सरसों के दाने दुंगा, जिस को पैर कर उसमें से तेल निकालना होगा। और यह कार्य केवल एक दिन में पूरा होना चाहिए। और अगर वह ऐसा नहीं कर सका, तो वह निश्चित रूप से मृत्यु को उपलब्ध होगा।

 

      सुबह होते ही सूर्या ने, उस वृद्ध औरत से कहा, जिसके घर में वह रहता था। कि वह राजकुमारी से विवाह करना चाहता है, जिसके लिये वह उद्धत है। उस वृद्ध औरत ने ओह तुम तुरन्त इस देश से बाहर भाग जाओ। और राजकुमारी से विवाह करने की बात मत सोचों, इसको अपने दिमाग से निकाल दो, अन्यथा तुम को अपने जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। यहाँ पर तुम से पहले बहुत से बड़े-बड़े राजा और उसके पुत्र राजकुमारी से विवाह करने के लिये आये थे। लेकिन उनमें से कोई एक भी जिंदा नहीं बचा है। सब को राजकुमारी के पिता ने, मौत के घाट उतार दिया है। वह कहता है कि जो भी उसकी पुत्री से विवाह करना चाहता है। उसे पहले उसकी शर्तों को पुरा करना होगा। और आज तक उसकी शर्त को पूरा करने वाला कोई राजा या राजा का पुत्र नहीं हुआ है। जिसने भी प्रयास किया है, वह असफल रहा है। और इस तरह से सब को मृत्यु ही मिली है। यही तुम्हारे साथ भी होगा। अगर तुमने ऐसा करने का प्रयास किया। इसलिए तुम इस देश से जल्दी से जल्दी भाग जाओ। लेकिन सूर्या ने उस औरत की एक भी बात नहीं सुनी।

 

     ब्रह्मपुरा के राजा ने अपने आदमियों को उस वृद्ध औरत के घर पर भेजा, और राजकुमार सूर्या को दरबार में, हाजिर होने का सम्मन दिया गया। जहाँ पर राजा ने सूर्या को आठ सौ किलो सरसों के दाने दिये, और कहा कि आज साम तक इसको पैर कर, इसमें से तेल निकाल कर कल प्रातः काल मेरे पास दरबार में तेल ले कर आना। जो भी मेरी पुत्री और ब्रह्मपुरा की राजकुमारी से, विवाह करना चाहता है। उसे मेरी इन शर्तों को, पहले पुरा करना पड़ता है। तुम्हें पहले वह सब करना होगा, जिस को मैं कह रहा हूँ। अगर जो मेरे कार्य को करने में असमर्थ होता है, उसे मैं मार देता हूँ। और यदि तुम भी उन्हीं में से निकले, जो मेरा कार्य यानी इन सरसों के दाने से तेल निकालने में, असमर्थ सिद्ध हुए है, तो तुम को भी मार दिया जायेगा।

 

     यह सुन कर सूर्या बहुत दुःखी हुआ, जब उसने यह सुना कि वह कैसे इन सरसों के दानों से तेल निकाल सकता है? उसने अपने आप से कहा, अगर मैं ऐसा करने में असमर्थ होता हूँ, फिर राजा मुझे मार देगा। इसलिए वह सरसों के दानों को लेकर उस वृद्ध औरत के घर वापिस आया। और वह नहीं जानता था कि उसे क्या करना चाहिए? अन्त में उसे चींटियों के राजा का स्मरण आया, तत्काल चींटियों का राजा अपनी चींटियों के साथ सूर्या के सामने उपस्थित हो गया, और चींटियों के राजा ने सूर्या से कहा, आखिर तुम इतने अधिक उदास और दुःखी क्यों दिखाई दे रहे हो?

 

    राज कुमार ने सरसों के दानों कि तरफ इशारे करते हुए, कहा, राजा की शर्त को चींटियों के राजा को बताया, मैं कैसे एक दिन में इन दानों से तेल निकाल सकता हूँ? और कल सुबह दरबार में, मैं तेल ले कर नहीं गया, तो राजा मेरी हत्या कर देगा।

 

     चींटियों के राजा ने कहा सदा प्रसन्न रहो, बिस्तर पर लेट कर सो जाओ, हम तुम्हारे लिये यह कार्य कर देंगे। हम सभी दानों से आज दिन के अन्त तक तेल निकाल देंगे। और कल सुबह तुम इस तेल को लेकर राजा के दरबार में जाना। सूर्या अपने विस्तर पर लेट गया, और कुछ ही देर में सो गया। और चींटियों ने सभी सरसों के दानों को पैर के, उनसे बाहर तेल को निकाल दिया। सूर्या की जब निंद खुली तब वह अपने सामने सरसों के दानों से, निकले तेल को देख कर, बहुत प्रसन्न हुआ।

 

      अगले दिन सुबह उसने अपने साथ सरसों का तेल लेकर, राजा के दरबार में उपस्थित हुआ। लेकिन राजा ने कहा, तुम मेरी पुत्री से अभी विवाह नहीं कर सकते हो। अगर तुम विवाह करना चाहते हो, तो तुम्हें मेरे दो दैत्यों से लड़ना होगा। और उनकी हत्या करनी होगी। राजा ने बहुत समय पहले दो दैत्यों को पकड़ा था। और फिर वह नहीं जानता था, कि वह उनके साथ क्या करे? इसलिए उसने उन दैत्यों को अपने जेल के पिंजड़ा कैद कर दिया था। उसे भय था, कि यदि वह इन दैत्यों को बाहर अपने देश में छोड़ता है, तो वह उसके देश के लोगों को खा जायेंगे। और वह नहीं जानता है, कि वह इन दैत्यों को कैसे मारा जा सकता है? इस तरह से जो सभी राजा और राजकुमार ब्रह्मपूरा देश की राजकुमारी से विवाह करना चाहते थे। उन्होंने इन दैत्यों से लड़ाई की थी, और सभी उन दैत्यों कि लड़ाई परास्त हुए। और अपनी जान से हाथ अकाल समय में उठाया था। तुम्हें भी हमारे इन दैत्यों से लड़ना होगा, और उन को मारना होगा।

 

      जब सूर्या ने उन दैत्यों के बारे में सुना तो वह स्वतः बहुत दुःखी हुआ। मैं क्या कर सकता उसने विचार किया हूँ? उसने अपने आप से कहा। मैं कैसे इन दो दैत्यों से लड़ सकता हूँ? फिर उसने अपने बाघों और उसकी पत्नी के बारें में सोचा, ऐसा करते ही, उसके सामने वह बाघ अपनी पत्नी के साथ उपस्थित हुआ। और उसने कहा तुम इतने अधिक उदास क्यों दिख रहे हो? सूर्या ने उत्तर दिया कि राजा ने, मुझे आदेश दिया है, कि मैं उनके दो दैत्यों से लड़ कर उनकी हत्या कर दु। मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? बाघ ने कहा तुम्हें ज्यादा भयभीत होने कि जरूरत नहीं है, सदा प्रसन्न रहो, मैं और मेरी पत्नी उन दो दैत्यों से लड़ेगे तुम्हारे लिये।

 

      फिर सूर्या ने अपने जादुई थैले से दो सुन्दर और कीमती सोने चाँदी हीरों से जड़ित लबादा, बाघों को पहनने के लिये मांगा। और वह तुरंत थैले ने उपस्थित कर दिया, उन लबादों को सूर्या ने बाघों को पहनाया। और अपने साथ लेकर राजा के दरबार में पहुँचा। और राज से कहा कि यह मेरे बाघ तुम्हारे दो दैत्यों से लड़ेगे मेरी तरफ से।

 

      यह ठीक है राजा ने कहा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। कि किसने दैत्यों को मारा है, या दैत्यों ने इन को मारा दिया, फिर राजा ने अपने दैत्यों को बुलाया, सूर्या ने अपने बाघों को दैत्यों को मारने के लिये ललकारा और दैत्यों और बाघों में लड़ाई शुरु हो गई, और लंबे समय तक चलती रही, और अन्त में बाघों ने दैत्यों को मार दिया।

 

      राजा ने कहा यह बहुत अच्छा है, लेकिन तुम्हें मेरी पुत्री से विवाह करने के लिये कुछ और भी करना होगा। इसके बाद ही मैं तुम्हें, अपनी पुत्री को दे सकता हूँ, उपर आकाश में मैंने एक नगाड़ा स्थापित कर रखा है, तुम वहाँ जाओ और उन्हें बजाओ, अगर तुम ऐसा नहीं कर सके तो मैं तुम्हें मार दूंगा।

 

      सूर्या ने अपने जादुई बिस्तर के बारे में सोचा, इसलिए वह उस वृद्ध औरत के घर गया। और अपने बिस्तर पर बैठ कर कहा कि उपर आकाश में ले चलो, जहाँ पर राजा ने नगाड़ा को, लगा रखा है। मैं वहां जाना चाहता हूँ। बिस्तर सूर्या को लेकर आकाश में उड़ने लगा, और उस नगाड़े के पास जा कर स्थित हो गया। जो राजा ने आकाश में स्थित किया था। और सूर्या ने उस नगाड़ें को बजाया, जिस को राजा ने सुना। और जब सूर्या आकाश से नीचे आया, राजा ने, अपनी पुत्री को उसको नहीं दिया, राजा ने कहा कि तुमने सभी कार्यों को पूरा कर दिया है, अभी एक और कार्य करना है। इसके बाद ही तुम्हें मेरी पुत्री से विवाह करने का मौका मिल सकता है।

 

    सूर्या ने कहा, कि यदी मेरे लिये संभव हुआ तो मैं अवश्य पुरा करुंगा।

 

    तब राजा ने अपने दरबार के पास ही पड़े, एक बहुत बड़े वृक्ष के तने को दिखाया, जो बहुत मोटा और तगड़ा था। उसने सूर्या को एक मोम की कुल्हाड़ी दी, और कहा कि तुम कल सुबह अवश्य इस मोम के कुल्हाड़ी से, इस मोटे तगड़े तने को, दो टुकड़ों में करना है।

 

    सूर्या वापिस उस वृद्ध औरत के घर पर गया, वह बहुत दुःखी और उदास था, और विचार कर रहा था, कि अब राजा निश्चित ही उसकी हत्या कर देगा। मैंने उसके, सरसों के दानों से तेल निकाला दिया चींटियों के द्वार, और मैंने उसके दैत्यों को बाघों के द्वारा मरवा दिया, और मेरे बिस्तर ने मेरी सहायता कि जिससे उसके आकाश में स्थापित नगाड़ें को भी बजा दिया। लेकिन अब मैं क्या करुँ? मैं इस मोम के कुल्हाड़ी से विशाल तने को कैसे काट सकता हूँ?

 

     उसी रात्रि में वह अपने बिस्तर पर बैठ कर, राजकुमारी से अंतिम बार मिलने के लिये, राजकुमारी के कमरे में गया। और राजकुमारी से सूर्या ने कहा, कि तुम्हारे पिताजी कल सुबह मुझे मार देंगे। राजकुमारी ने कहा क्यों?

 

     सूर्या ने कहा तुम्हारे पिताजी ने, मुझे एक मोम की कुल्हाड़ी दिया है, और कहा है, कि इससे एक विशाल मोटे, लकड़ी के तन को काट कर, दो टुकड़े कर दो। यह मेरे लिये कैसे संभव है? राजकुमारी ने कहा इसमें भयभीत होने की कोई बात नहीं है। तुम वहीं करो, जो मैं तुम से कहती हूँ, और तुम उस विशाल लकड़ी के मोटे तने को आसानी से दो टुकड़े करने में सफल होंगे।

 

     फिर राजकुमारी ने अपने बाल के जुड़े में से, एक बाल को उखाड़ा, और इसको सूर्या को देते हुए कहा, जब कोई भी तुम्हारे पास नहीं हो। और तुम अकेले हो, तो केवल इतना, उस वृक्ष के विशाल तने से, कहना की ब्रह्मपुर देश की राजकुमारी ने तुम को आदेश दिया है। कि तुम इस बाल के द्वारा अपने आप को दो टुकड़ों में विभक्त कर लो। और फिर बाल को खींच कर, नीचे मोम की कुल्हाड़ी के किनारे धार की तरह से उपयोग करना।

 

    अगले दिन सुबह सूर्या ने वही किया। जैसा करने के लिये राजकुमारी ने उससे कहा था। और एक ही मिनट में, जैसे बाल को मोम की कुल्हाड़ी के धार पर खिंच कर रखा गया। और वृक्ष की तना को छुआ गया, तत्काल वृक्ष दो टुकड़ों में, अपने आपको विभक्त कर लिया।

 

    राजा ने कहा, कि अब तुम मेरी बेटी से विवाह कर सकते हो। फिर सूर्या और राजकुमारी का विवाह, बड़ी धूम-धाम से संपन्न हुआ, और चारों तरफ देशों के राजा को आमंत्रित किया गया। विवाह में सम्मिलित होने के लिये, और इसके साथ वहाँ बहुत अधिक प्रसन्नता और आनंद का उत्सव मनाया गया। इसके कुछ दिनों के बाद सूर्या ने, अपनी पत्नी ब्रह्मपूर देश की राजकुमारी से कहा, कि हमें अपने देश में, अपने माता पिता के, पास चलना चाहिए। ब्रह्मपुर देश की राजकुमारी के पिता ने, उसको काफी मात्रा में ऊँट और घोड़े के साथ, काफी मात्रा में रुपया दे कर, अपने कुछ वफ़ादार सेवकों के साथ, अपने देश से विदा किया। और फिर सूर्या अपनी पत्नी के साथ, अपने देश के लिये यात्रा किया। और अपने देश में पहुंच कर वे बड़ी प्रसन्नता पूर्वक रहने लगे।

 

    सूर्या हमेशा अपने साथ अपने कीमती वस्तु को रखता था, जिसमें उसका प्रिय जादुई थैला, जादुई कटोरा और जादुई बिस्तर, उसके जीवन में कभी भी युद्ध का समय नहीं आया, जहाँ पर वह अपनी छड़ी और रस्सी का प्रयोग करता, इसलिए उनकी कभी उसको जरूरत ही नहीं पड़ी।

Post a Comment

0 Comments

Ad Code