ऋग्वेद का सम्पूर्ण परिचय
ऋग्वेद किसे कहते है ? उसकी व्याख्या क्या है ? मुख्य ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अर्थर्ववेद इन सबमे सबसे प्राचीन और प्रथम वेद और ग्रन्थ ऋग्वेद हे। तो जानते है व्याकरण की दृष्टि से ऋग्वेद की व्युत्पत्ति कुछ इस प्रकार से है " ऋच्यते स्तूयते यया सा ऋक् " जिसमे ऋचाओ के द्वारा किसीकी स्तुति हो वह ऋक् है । ओर ऐसी ऋचाओं का समूह ही ऋग्वेद है। एक ओर व्याख्या है जो मीमांसक के मत से है- "यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था सा ऋगिति " अर्थात् जहा पर अर्थ के वश में पाद व्यवस्था है वह ऋक् है ।
Introduction of Rigveda
ऋग्वेद का मुख्य विवरण :-
ऋत्विक :- होता।
मण्डल :- १०।
सूक्त :- १०१७+११=१०२८।
मंत्र :- १००८०।
अष्टक :- ८।
अध्याय :- ६४।
वर्ग :- २००६।
मुख्याचार्य :- पैल।
ऋग्वेद की कितनी शाखा हे ?
१) शाकल शाखा।
२) बाष्कल शाखा।
३) आश्वालयन शाखा।
४) शांखायन शाखा।
५) माण्डूकायन शाखा।
ऋग्वेद के ब्राह्मण कौनसे हे ?
१) ऐतरेय ब्राह्मण।
२) शांखायन ब्राह्मण। (कौषीतकि ब्राह्मण )
ऋग्वेद के उपनिषद कौनसे हेैं ?
१) ऐतरेय उपनिषद।
२) कौषतकि उपनिषद।
३) वाष्कल उपनिषद्।
यह ऋग्वेद दो प्रकार से विभक्त है यथा-
1) सूक्त ।
2) मण्डल ।
यहा पर सूक्त विभाग में चार प्रकार है -
● ऋषिसूक्त ।
● देवतासूक्त ।
● छन्दसूक्त ।
● अर्थ सूक्त ।
जहां एक ऋषि के दृष्ट मंत्रों का समूह हो वह ऋषि सूक्त कहलाता है । और जहां एक देवता से उद्देशित मंत्रो का समूह हो वह देवता सूक्त कहलाता है । और जहां समान छ्न्द के मंत्रो का समूह हो वह छंद सूक्त कहलाता है । और जहां एक अर्थ वाले मंत्रो का समूह हो वह अर्थ सूक्त कहलाता है ।
ऋग्वेद में कौन से दो प्रकार हेैं ?
१) मण्डलानुवाकवर्ग। और २) अष्टकाध्यायसूक्त।
बालखिल्य सूक्तो को छोड़कर सम्पूर्ण ऋग्वेद संहिता में दश(10) मण्डल है , पचाशी(85) अनुवाक है ओर दो सौ आठ (208) वर्ग है । यह प्रथम भेद है ।
आठ(8) अष्टक , चौशठ(64) अध्याय , एक हजार सत्तर (1017) सूक्त यह दूसरा भेद है ।
शाकल के मत से ऋग्वेद की मंत्र संख्या दस हजार चार सौ सुनसठ(10467) है , और शौनक आदि के मत से दस हजार पांच सौ अस्सी(10580) है । यहा पर कालभेद ओर मंत्र लोप या वृद्धि के भेद से भिन्नता है ।
ऋग्वेद में शब्द संख्या 153826 है, अक्षर संख्या 432000 और यहां पर सभी मंत्र चौदह छन्दों के भीतर ही विभक्त है ।
ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा ऋषि गृत्समद , विश्वामित्र , वामदेव, अत्रि , भारद्वाज , वशिष्ठ आदि है ।
ऋग्वेद के दस मंडलों मैं नौ वा मंडल पवमानमण्डल के नाम से प्रचलित है । यहा पर ही सोमविषयक मंत्रो का संकलन किया हुआ है । पवमान - सोम । ऊपर कहे गए मंत्र दृष्टा ऋषि गण ऋग्वेद के दूसरे मंडल से सातवें मंडल तक के है और यह भाग सर्वतः प्राचीन है । दशम मंडल अर्वाचीन है । बाकी बचे मंडल मध्य कालीन है ऐसा आलोचन कर्ताओं का कहना है।
ऋग्वेद भाष्य स्वामी दयानंद सरस्वती
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