ऐतिहासिक कहानी
कर्तव्यनिष्ठ वीरांगना
वीरमती
डॉ.रतनलाल ' रतनेश
चौदहवीं शताब्दी को कोई युद्धों को
शताब्दी कहे तो कोई असंगत बात नहीं , क्योंकि उस समय सारे भारत में छोटे - छोटे राज्य वैमनः स्यवश या राज्य लिप्सा
के कारण निरंतर युद्धों में लीन रहते थे।
उसी समय उत्तर में दिल्ली की सल्तनत
पर अलाउद्दीन खिलजी अधिपत्य था। अलाउद्दीन एक अन्यायी शासक था। उसने अपने चाचा और
ससुर जलाउद्दीन को मार कर राज्य पर अधिकार कर लिया था। मुस्लिम संस्कृति में माता
- पिता , भाई और बहिन का कोई मूल्य
नहीं होता। सल्तनत के सामने सब कुछ हेच है । सुलतान अलाउद्दीन ने कई लड़ाईयां लड़ीं
, कही राज्य लिप्सा है तो
कहीं रूप लिसा। उसने दक्षिण के अनेक राज्य तहस नहस करके अपनी इन्द्र धनुषी
अभिलाषाओं के रंगीन महल बसाए थे दक्षिण में देवगिरि नामक एक छोटा - सा राज्य था।
वहाँ का राजा रामदे बहुत वीर , साहसी और बहादुर
था। राजपूतों में एक बहुत बड़ा गुण था वे चारपाई पर मरने की अपेक्षा युद्ध भूमि
में मरना स्वर्ग के समान समझ थे। सोलह - सत्रह वर्ष में हो राजपूतों का वीरगति के
लिए आमन्त्रण आ जाता था। राजपूत किसी की पराधीनता में जीना कभी स्वीकार नहीं करते
थे।
राजा रामदेव के पास एक मराठा सरदार था। वह
स्वामिभक्त वीर और साहसी सरदार था। गत वर्ष ही अपने प्राणोत्सर्ग कर देश रक्षार्थ
वीर गति को प्राप्त हुआ था। उसकी पांच - वर्षीय बालिका का नाम वीरमती था। वीरमती
की मां बीमार रहती थी। पिता के देहान्त के एक वर्ष के पश्चात् मां भी संसार को
छोड़ कर चल बसी थी। अब अनाथ वीरमती का लालन - पालन राजा रामदेव पर आ पड़ा । रामदेव
ने सोचा कि जिसके पिता ने मेरे राज्य की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी ,
उसकी रक्षा करना मेरा प्रयम पर्तव्य है। इसलिए
राजा ने अपना कर्तव्य पालन करने के लिये उस बालिका का पालन - पोषण अपने महलों में
राजकुमारों के साथ ही किया। उसे राज कुमारी की तरह रखा। राजा - रानी ने उसके प्रति
कोई लेश मात्र भेदभाव नहीं किया। जैसे - जैसे राजकुमारी बड़ी होती गई उसका रूप रंग
निखरता गया। राजा को उसके विवाह की चिन्ता सताने लगी। राजा ने सोचा कि वीरमती का
विवाह साधारण तरह से करना मेरे लिए कलंक की बात होगी। उस मृतक सरदार की आत्मा को
कभी शान्ति नहीं मिलेगी।
संसार मुझे विश्वासघाती बतायेगा ! मैंने
वीरमती को अपनी पुत्री के रूप में पाला है। उसका विवाह किसी सुयोग्य वर के साथ धूम
- धाम से करूंगा उनकी सेना का ही एक सरदार कृष्ण राव था , जो अत्यन्त सुन्दर , वीर और साहसी था ! प्रत्येक पहलू पर विचार करने के पश्चात्
वीरमती से सहमति भी प्राप्त कर कर ली गई थी। वीरमती से साक्षात्कार करा दिया गया।
वीरमती की सगाई कृष्णराव के साथ कर दी गई। ' में वीरमती के पिता का ऋण चुका कर ही रहूंगा । तभी मुझे
प्रसन्नता होगी। ' राजा के हृदय में
वात्सल्प उमड़ पड़ा। अन्तर की हूक रोकी नहीं जा सकती। कृत्वय ने विजय पाई। राजा ने
धूम धाम से विवाह की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी । कृष्ण में एक दोष था। वे बहुत
लोभी थे। परन्तु उन्होंने इस लोभी को अपनी चतुराई के अन्धेरे में ऐसी जगह छिपा रखा
, जिस से उसे कोई जान नहीं
सका। राजा यदि किसी प्रकार यह जान पाते तो वे वीरमती की सगाई कभी कृष्ण रान के साथ
तहीं करते।
वारमती को राजा पर पूर्ण विश्वास था।
इसलिए वह मन ही मन मुग्ध हो रही थी। राजा ने यह जानकर कि वीरमती पूर्ण रूप से
संतुष्ट है , अपना अहोभाग्य वाला कि
भविष्य में मेरा नाम संसार में उज्ज्वल होगा। अब विवाह में एक मास ही शेष रह गया
था। राजा वीरमती की वैवाहिक गतिविधियों में तल्लीन थे। उसी समय दिल्ली के सुलतान
अलाउद्दीन खिलजी का राजा के पास संदेश था कि मेरी अधीनता स्वीकार कर लो या युद्ध
के लिए तैयार हो जाओ। वीर साहसी राजा रामदेव अपनी स्वाधीनता को बेच कर दूसरों को
सौंप दे , यह असम्भव था। राजा ने
उत्तर दे दिया कि मुझे युद्ध की चुनौती स्वीकार है। एक यवन को अपना बादशाह स्वीकार
करके अपने पूर्वजों के मुख पर कलंक की स्याही पोतना कदापि स्वीकार नहीं।
आइये , आपका स्वागत युद्ध के मैदान में चमचमाती तलवारी से किया
जायेगा। सन्देशवाहक को पत्र लिखकर भेज दिया गया। वह घोड़े पर स्वार होकर चला गया।
सुल्तान ने पत्र पढ़ा। पढ़ते ही उसके तन - बदन में आग लग गई। मारे क्रोध के
तिलमिला उठा। तुरन्त उसने एक विशाल सेना तैयार की और देवगिरि की ओर कूच कर दिया।
इधर वीरमती के विवाह की तैयारी हो रही थी। राजा ने यह जान कर कि अलाउद्दीन दलबल के
साथ युद्ध के लिए आ रहा है , विवाह को स्थगित
कर दिया , क्योंकि अब मातृभूमि की
रक्षा का प्रश्न है। विवाह की तैयारी युद्ध की तैयारी में बदल गई। युद्ध के बाजे
बजने लगे। सेनायें युद्ध स्थल की ओर कूच करने लगी। हाथी घोड़े और रथ धूल की
आंधियां उड़ाते हुए आगे बढ़े। युद्ध प्रारम्भ हो गया। देवगिरि के योद्धाओं ने रण
कौशल दिखाया। सुलतान ' के सिपाही गाजर -
मूली की भांति काट - काट कर युद्ध भूमि पर धराशायी कर दिए गए। अलाउद्दीन के छक्के
छूट गए। सुलतान अलाउद्दीन युद्ध के मैदान से भाग खड़ा हुआ। एक सरदार ने सुलतान का
पीछा किया। भागते - भागते सुलतान थक गया था। सरदार ने उसे घोड़े से गिरा दिया।
घोड़े से गिरते ही सुलतान हाथ जोड़ कर प्राणों की भीख माँगने लगा । सरदार को दया आ
गई। सरदार लोग प्राणों की भिक्षा मांगने वालों पर हथियार नहीं उठाते। अतः उसने
सुलतान को प्राणदान दे दिया । सुलतान थोड़ी देर चुप रहा , कुछ सोचा , फिर सरदार ने कहा
, पापी बहादुरी की तहे दिल
से तारीफ करता हूं । मुझे अजहद खुशी है कि जनाब ने मेरी जान बख्शी है। मैं
तुम्हारी कुछ इमदाद कर सकता हूं। ' सरदार , तुम मेरी क्या सहायता कर सकते हो ? जब तुमने एक भिखारी बन कर मुझसे प्राणो की भीख
मांगी। तुम मेरी सहायता करोगे ?
सुलतान - नहीं सरदार तुप
नहीं जान सकते , मैं तुम्हारी
बहुत बड़ी मदद कर सकता हूं। आज तुम एक सरदार हो , कल तुम एक राजा बन सकते हो। सरदार - कहाँ के राजा ? सुलतान -- देवगिरि के।
सरदार- ( क्रोध से ) क्या
कहते हो , मैं राजा के प्रति
देशद्रोही बनकर विश्वासघात करूं ?
सुलतान- अभी समय है।
अच्छी तरह सोच लो।
सरदार - चुप रहो ,
मैं अपने स्वामी के साथ धोखा नहीं कर सकता।
जिसका मैंने नमक खाया है , उसके साथ विश्वास
घातकरूं। मुझसे ऐसा पाप कभी नहीं हो सकता। मैं राजपूत हूँ। ऐसा राज्य प्राप्त करना
मेरे लिए घोर पाप है। इस प्रकार स्वर्ग का राज्य भी मुझे स्वीकार नहीं। तुमने
राज्य के लिए अपने चाचा का खून बहाया है। मैं ऐसा स्वप्न में भी नहीं कर सकता ,
अब आगे कुछ कहने का साहस किया तो परिणाम भयंकर
होगा। सुलतान भय से कांपने लगा । फिर दबी आवाज से बोला , खैर जाने हो , मैंने तुम्हारी भलाई सोची थी। क्योंकि तुमने मेरी जान बख्शी थी। काश मैं भी
तुम्हें इस भलाई का कुछ बदला देता तो मुझे कुछ करार मिलता । ' इतना सुनते ही सरदार ने तलवार म्यान से बाहर
खींच ली , सुलतान थर - थर कांप रहा
था। हाथ जोड़ कर क्षमा मांगने लगा। पैरों पर सिर रख दिया। सरदार का वार रूक गया ।
सुलतान कुछ देर तक सोचता रहा। ' मैंने तुम्हारी
भलाई सोची थी। ' यह वाक्य सुलतान
के हृदय पर चिंगारियाँ छोड़ गया। यद्यपि सरदार ने उन चिनगारियों पर अपनी सद् भावना
का शीतल जल उड़ेल दिया था पर एक दो चिनगारियां अवशिष्ठ रह गई थी जो सरदार के मन
में अशान्ति की ज्वाला धधकाने का काम कर रही थी। ये वही सरदार थे , जिनकी सगाई वीरमती के साथ हो चुकी थी। कृष्ण
राव अलाउद्दीन से पराजित नहीं हुए , पर लोभ ने एक क्षण में उन्हें परास्त कर दिया था। बेशक , कृष्ण राव बोले , ' क्या यह सच है कि मैं देवगिरि का राजा का सकता हूँ ?
सुलतान - यह सुनकर गद्गद हो गया। चिड़िया जाल
में फंस गई है। यदि तुम मेरी सहायता करो।
' ' मैं क्या सहायता करूं। ' ' यही कि तुम मुझे किले में दाखिल होने का राज बता दो। ऐसा
करने से आपके लिए देवगिरि के राजा होने का द्वार खुल जायेगा। कृष्ण राव के मन में
राजा होने का स्वप्न जाग उठा। कृष्ण राव ने किले में प्रवेश होने का राज तो बताया
ही , साथ ही ऐसे गुप्त भेद भी
बताये , जिनसे देवगिरि को अति
शीघ्र परास्त किया जा सके। इसके प्रश्चात् प्रसन्न होकर वापिस आये। तीन दिवस के
पश्चात् ही सुलतान ने देवगिरि पर पुनः धावा बोल दिया। देवगिरि में विजय का उत्सव
मनाया जा रहा था। इस अप्रत्याशित आक्रमण ने राजा को भयभीत कर दिया। राजा घबरा गया।
राजा ने धैर्यपूर्वक साहस सजोया। सेनाओं को जोश लिया। सरदारो और वीर जवानो ,
युद्ध से भागना कायरता है। अपनी मातृभूमि के
लिए प्राण देना वीरगति पाना है । इस तरह स्वर्ग मिलेगा , आदि - आदि। अब राजा का ध्यान कृष्ण राव की ओर गया। सरदार
कृष्ण राव के तौर कुछ बदले - बदले दिखाई दिये। उनमें युद्ध के लिए कोई जोश - खरोश
का भाव प्रदर्शित नहीं हो रहा था। वही कृष्ण राव राजा से कह रहे थे कि सुलतान की
विशाल सेना के सामने विजय सम्भव नहीं। जिसने अपनी मातृ भूमि की रक्षा के लिए
प्राणोत्सर्ग करना पहला कर्तव्य समझा था। वही यह कहे ! मन में सन्देह उत्पन्न हो
गया। अवश्य कोई गुप्त समझौता हुआ है। राजा ने छानबीन प्रारम्भ कर दी। कृष्ण राव ने
सुलतान का पीछा किया था। पीछा करने के पश्चात् सुलतान जीवित कैसे लौट गया ?
वीरमती को भी संदेह हुआ। वीरमती ने एक बार
सरदार से मिलना चाहा। उसने अपनी सेविका द्वारा कृष्ण राव को तुरन्त बुलवाया। उधर
राजा ने कृष्ण रात को तुगत गिरफ्तार करने का देश दे दिया।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know