मेरी चेतना
(एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -3
मनोज पाण्डेय
एक फूलों से
रहित प्रभात
तब उसने अपनी सारी रात पत्तियों के
बिस्तर पर किसी तरह से बिता दिया, और सुबह उठकर वह झील के किनारे उनकी
सिढ़ीयों पर आकर खड़ा हो गया। और पेड़ों पर पक्षियों को गीत गाते हुए सुनने लगा,
और उनके गीतों के लिए सलाम किया। और इसके साथ भगवान को इस सुंदर दिन
के आगमन के लिए मन ही मन शुक्रिया भी दिया, परमेश्वर का
चिंतन करता हुआ जब वह वहां पर खड़ा था, उसने झील के किनारे
और जंगल के पेड़ों के मध्य में देखा, लेकिन उसने देखा कि
पहले कि भांति उसके पास चेतना आज नहीं आ रही थी। और वह झिल के किनारे उसके पानी
में खिलते कमल और पेड़ों के साथ अकेला वहाँ खड़ा था।
इसके बाद उसने स्वयं से कहा कि शायद आज वह सो रही होगी। क्योंकि उसकी निंद
ना खुली होगी, और वह देर से उठी होगी, अथवा उसके पास
कोई ज़रूरी कार्य आ गया होगा। अथवा संभव हैं कि वह किसी प्रकार के फूल को आज नहीं
प्राप्त किया हो, मुझको देने के लिए। यद्यपि दिन धिरे-धिरे
बढ़ता हुआ, सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गई, मगर वह आज अब तक नहीं आई। अंत में राजा ने अपने आप से कहा इससे मुझे कोई
फर्क नहीं पड़ता वह आये या नहीं आये। और ना ही इन वृक्षों को ही कोई फर्क पड़ता
हैं, ना इस झिल के पानी को ही कोई फर्क पड़ता है। जैसा कि वह
जब हमसे मिलने के लिए नहीं आती थी। तो भी मेरा जीवन बड़ी अच्छी तरह से उसके बिना
भी अपने इन साथियों के साथ आराम से गुजारता था। जैसा कि मैं पहले करता था, फिर वह मूर्खों कि तरह से वापिस झिल के किनारे यूं ही बिना किसी उद्देश्य
के घूमता रहा। अब उसको कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह क्या कर रहा हैं? उसकी आंखों को जैसे उसकी ही खोज थी उसके बगैर उसे जैसे कुछ भी दिखाई भी
नहीं दे रहा था। वह बार उसी किनारे पर देखता रहता था जिस तरफ से अकसर वह रोज आया
करती थी।
और अंत में उसने अपने आप से कहा यह निश्चित हैं कि उस वस्तु की ज़रूरत हैं
आज के सुबह के जंगल का सौंदर्य आज कुछ विचित्र और अजीब दिखाई दे रहा था, यद्यपि
यहाँ पर वहीं सारें वृक्ष हैं और वहीं मंदिर हैं और वहीं झील हैं जिसमें कमल पुष्प
खिल रहें है। इसके अतिरिक्त भी कुछ कमी है और प्रातः कालीन की बेला भी आई है,
ऐसा कुछ भी तो नहीं हैं जैसा कि पहले नहीं था, सिवाय आज चेतना नहीं आई है। और उसने मुझको लाकर फूलों को नहीं दिया है।
यहाँ से कुछ भी नहीं गया केवल चेतना और उसका फूल नहीं आया है। क्या उस औरत का फूलों
के साथ ना आना अर्थात उसकी अनुपस्थिति ही इस जंगल के परिवर्तन बदलने का कारण है।
जिसके कारण आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। फिर वह एक बार झिल के किनारे घूम
कर झिल कि सिढ़ियों पर आकर बैठ गया। और वह झील के पानी में झांकने लगा, और उसने कहा ऐ झील के पानी तुम में वहीं मिठास हैं जो प्रत्येक दिन हुआ
करती थी लेकिन फूल तुमसे बहुत अधिक मधुर और मीठे खुशबू से आच्छादित हो रहे हैं। और
उस औरत का क्या भरोसा है,फिर उसने कहा नहीं वह औरत नहीं है
यद्यपि वह एक कच्ची कली के समान है, और दुबारा अब तक नहीं आई,
क्योंकि उसमें अभी प्रौढ़ता नहीं आई है। बल्कि वह दो स्थितियों की
सीमा पर, शाम की तरह और सुबह की तरह, दोनों
की सुंदरता और गुण साझा करने और फिर भी न तो तीसरे से सम्बंधित है। क्योंकि वह आधा
बच्चा है और आधा महिला है और वह उन फूलों जैसा दिखती है जो वह अपने हाथ में रखती
हैं, सुबह में खुले खुली-खुली और उनके जैसे, वह उसके साथ एक सुगंध देती है, फिर भी वह श्रेष्ठ है
कि उसके पास गति और आवाज है। जबकि उसके अतिरिक्त सब कुछ चुप और शांत है, और जमीन के साथ जुड़ें हैं। और जब वह सुबह के साथ सूर्य की किरणों के समान
मेरे सामने आने वाले प्रकाश के साथ मेरे पास आने लगती है जैसे कि वे ऐसा करते हुए
आनंदित होते है। जैसे कि सूर्य के प्रकाश की किरणें भी उसके गहरे नीले रंग के आवरण
में लपेटे हुए हों, जो कि पहाड़ पर धुंध की तरह ही अधिक
सुंदरता प्रदान करता है, जो कि यह अप्रभावी रूप से छिपाता है,
मेरी आंखों के अवशेष और गायब होने से इनकार करते हैं। और जिस तरह से
बारिश के मौसम में पहाड़ियों पर घिरा हुआ है, उसकी आवाज़ के
गरजना के शोर मेरे कान में पानी की तरह प्रवाहित हुआ करता है, और शांति के साथ जंगल भी मिल कर एक हो जाता है । हे! उसकी आवाज़ के संगीत
में जादू है, क्योंकि यह कम है और शहद के मुकाबले मीठा है और
उसमें मैं फंस जाता हूं, उसी प्रकार से फंस जाता हूं जैसे
आत्मा के संगीत को सुनकर मानव मन इस शरीर में आकर कैद हो जाता है। और उसे अपने
शब्दों के अर्थ में भाग लेने से विचलित करता है और अब भी, यह
एक युवा बांस की शाखाओं में एक हवा की तरह मेरी याददाश्त में घूमती है, जो इसके गूंज के साथ सोता और जागता है और मेरे कानों में नाद ब्रह्म की
तरह से बजा करता है, यहाँ तक कि यह खत्म होने के बाद भी चला
करता है, जैसे हवा के शांत होने पर भी पानी की लहरें चला
करती है, जैसे सूर्य के प्रकाश को शांत होने पर भी रास्ते की
रेत कुछ देर तक जला करती है, जैसे चांद के प्रकाश दिन में ना
मिलने पर भी समंदर में ज्वार भांटा का प्रवाह दिन में भी कुछ समय तक बढ़ता रहता
है। हाँ! वह चली गयी है और अब मुझे फिर से उसके आने से पहले कल तक इंतजार करना होगा।
और फिर भी, कौन जानता है? क्योंकि कुछ
उसे लौटने से रोक सकता है और कल फिर वह अनुपस्थित हो सकती है, जैसा कि वह आज थी और वह वहीं पर अपने दिन को बिताए, असंतुष्ट
और अतृप्ति के साथ आने वाले कल में उसके आने की उम्मीद की आशा कर रहा था। और फिर
भी वह अंदर-अंदर से भयभीत हो रहा था,
कि शायद कल भी वह ना आयें, फिर भी वह
अपनी निराशा को उसके सामने प्रकट नहीं करना चाहता था।
इस प्रकार के उधेड़ं-बुन के साथ उसने अपनी पूरी रात को पत्तियों के बिस्तर
पर गुजार दिया। और सुबह में वह बहुत जल्दी उठ गया, सूरज के उदय होने से बहुत
पहले और मंदिर के बाहर चला आया। और झिल के सिढ़ियों पर उसका इंतजार करने के लिए
खड़ा हो गया था। और उसने उपर आकाश में देखा, जिसमें बहुत उपर
आकाश में हंश पंक्ति बना कर आराम और मस्ति के साथ उड़ते हुए उत्तर कि तरफ जा रहें
थे। उनका शरीर जो दिन होने से पहले सितारों के समान चमक रहें थे, क्योंकि उनके पंखों पर सूर्य कि किरणे पर्वतों के पिछे से आकर उनके शरीर
को मणिमय और स्वर्णमय बनाती थी। जैसे कि वह आकाश में जगमगाते हुए तारों के हि
रिस्तेदार हो, और फिर, अंत में,
सूर्य अपनी गुलाबी किरणों से सुसज्जित हो कर पहाड़ियों के पिछे से
आकाश में धिरे-धिरे अवतरित होता है। और एक बार फिर उसने अपने आगे तेजी से झिल के
किनारे से चेतना को आते हुए देखा। और वह अपनी आंखों में सुबह के ओश के तरोताजा
मोती के बुंद के समान चमकते हुए मड़ी की तरह लग रही थी। जो किसी प्यार के प्रतीक की तरह थी जो उसके दिल
में अपनी वासनाओं के भष्म राख से उग रहा था। और जो एक स्त्री के प्रेम के रूप में
धिरे-धिरे धिरे प्रकट हो रहा था, और उसने अपने हाथ में कुछ
चंपक के फूलों ले रखा था, इसके साथ वह राजा के पास आ पहुंची,
जिससे राजा के चारों तरफ कि हवा को सुगंधित कर दिया। और उसने कहा हे
राजा, मेरी मालकिन ने अपने भगवान को, इन
अयोग्य हाथों से इन फूल को भेजा है और यदि आपने अपनी पिछली रात्री में निद्रा का
अच्छा आनंद लिया है, तो यह उसके साथ अच्छा है।
फिर राजा ने चेतना से कहा प्रिय चेतना कोई कैसे अपनी निद्रा का आनंद ले सकता
है। जिसके मित्र ने उसको अकेला छोड़ दिया हो, उजड़े रेगिस्तार में रात
बिताने के लिए? चेतना ने कहा हे राजा अगर उसके मित्र ने उसका
त्याग करदिया है, यह उसकी स्वयं कि कमी के कारण ही है। जिसने
पर्याप्त मात्रा में अपने विवेकज्ञान का उपयोग नहीं किया है। जिसके कारण ही उसको
ज्ञान और अज्ञान अर्थात सत्य और असत्य में अंतर ना समझ पाने के कारण ही ऐसा हुआ
है। और राज ने एक बार फिर आह भरी और कहा ओह यह बताना बहुत कठिन हैं, इस संसार में बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जो सत्य और झुठ को निराकरण करनें में
समर्थ हैं। अर्थात सांसारी माया को समझने में समर्थ हैं। सुंदरता के लिए असंख्य
छद्म मानते हैं, और खुद को एक अनुठे सत्य की तरह के एक रूप
में भी पेश कर सकते हैं। फिर चेतना ने हसंते हुए कहा हे राजा तुम अभी मेरे बारें
में भी निश्चिंत नहीं हो क्या? राजा ने कहाँ मैं किसी भी
वस्तु के बारें में निश्चिंत नहीं हूँ, यद्यपि यह निश्चित
हैं कि इस संसार में बिना प्रेम के सब कुछ व्यर्थ है। प्रेंम का किसी के जीवन में
आने का मतलब है कि उसका सब कुछ लुट गया है, वह मानव पूर्ण
रूप से कंगाल हो जाता हैं, जैसे बिना पानी का बादल, जैसे बिना पानी की नदी, या फिर जिस प्रकार से बिना
फलों का वृक्ष हो इस संसार में रहता है। इसी प्रकार से जिस मनुष्य के हृदय में
प्रेम नहीं है अर्थात जिसको इस संसार में किसी से प्रेम नहीं मिलता है, वह भी प्यासे रेगिस्तान के समान गर्मी से तपती हुई उसर भुमी के समान होता
है। इसको सुनने के बाद चेतना ने कहा जो कभी उपस्थित नहीं हुआ था, अर्थात जो अनादि जिसके कारण ही जगत में हर प्रकार कि रंगिनियाँ हैं। जो
सभी का मुख्य श्रोत है जिस कारण से ही सभी पैदा होते है वह प्रेम ही है। और प्रेम
कभी भी किसी को पूर्ण रूप से नहीं छोड़ता है, यद्यपि प्रेम
के बारें में सभी साधारण जन के जीवन में कभी भी पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। और इस
पर राजा ने आश्चर्यचकित हो कर कहा जो कभी खत्म नहीं होता है। तो वह कभी पैदा भी
नहीं होता हैं इसलिए कोई भी प्रेम के बारें कभी भी कुछ भी जान नहीं पाता है। इसलिए
प्रेम के बारें सभी एक प्रकार से बच्चें के समान हैं। और यह बच्चों की एक कला है।
तब चेतना ने कुछ देर तक शांती से केवल राजा की आंखों में देखा और फिर कहा हे राजा
इस प्रेम के लिये किसी प्रकार के उम्र का कोई प्रतिबंध नहीं है, ना यह बच्चों के लिये है, ना ही यह युवा के लिए है
इसके लिये किसी प्रकार की कोई उम्र मायने नहीं रखती है, यद्यपि
यह हमारें पुर्वजों के द्वार हमें विरासत के रूप में मिलती है। और इसको हमें अपने
हृदय में संरक्षित करना पड़ता हैं। जिस प्रकार से इस संसार में कोई वुद्धि मान
मानव यहाँ पर रहने के नियम को अपने अनुभव से जान लेता है। इसको जानने में उसके सर
के बाल मटमैले हो जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग इन इनके
मध्य में होते हैं जिनकी यादास्त बहुत अधिक मजबुत होती है। और वह ज्ञान को अपने एक
जन्म से दूसरें जन्म तक लेकर चलते हैं। इस लिये उनका ज्ञान कभी खत्म नहीं होता है।
इसलिए प्रेम उनका साथ कभी भी नहीं छोड़ता
है। यहीं लोग वुद्धिमान कहे जाते हैं, इसके पिछ जो मुख्य
कारण है, कि वह अपनी आत्मा सें निरंतर जुड़े रहते हैं,
जिसके कारण उनके हृदय में आत्मा का जो विशेष गुणों में एक गुण प्रेम
है वह निरंत विशाल परमेश्वर रुपी आकाश से बरसता रहता है। और उनके हृदय को निरंतर
तरोताजा करता रहता है। यह प्रेम उनके जिवन में आता है जिनके पिछले जन्म के जीवन
स्पष्ट रूप से रह चुका है और इसको वही जानते भी हैं। जिसमें से ही एक मैं भी हुं
और इस तरह से मेरे हृदय में कई जन्मों से मैंने प्रेम को सुरुक्षित रखा है,
जिस प्रकार से कोई बच्चा होता है, इस प्रेम के
मामले में बच्चा किसी एक राजा से आधिक वुद्धिमान होता है। और इस तरह से इस प्रेम
के मामलें में मैं आपसे अधिक वुद्धिमान हुं, क्योंकि मैं
अपने पिछले जन्म से ही परमेश्वर की उपासना कर रही हूँ अपने हाथों को जोड़ कर और
उनके चरणों में पुस्पों को समर्पित करते हुए, जिसके कारण ही
मैं उस परमेश्वर कुछ गुप्त राज को अपने पक्ष में कर लिया है। जिसके कारण मैं किसी
मानव के हृदय और उसकी चेतना में स्वरुप का साक्षात्कार करने में समर्थ होचुकी हुं।
जिसने मुझे इस जन्म में भी प्रभावित किया है और अब मैं आपको कुछ बताऊंगी। जिसके
बारें में आपको कुछ भी नहीं पता है। प्रेम एक तीन पत्तों वाला वृक्ष हैं और जब यह
तीन आपस में दृढ़ता के साथ एक हो कर जुड़ जाते हैं, तो इनको
कोई भी नहीं तोड़ सकता है और ना ही इनका कोई अंत कर सकता है, यहाँ तक इनका मृत्यु भी कुछ भी नहीं कर सकती है। लेकिन यदि तीनों में से
कोई भी स्वयं इनसे अलग हो जाता है, तो यह परिस्थितियों और
जीवन के परीक्षणों के दबाव में पड़ता है। और इसी प्रकार से यह आपके साथ भी हुआ था।
आपके मामले में, तीनों संयुक्त नहीं थे और आपका प्यार एकजुट
नहीं था नाही उसमें सद्भाव ही था। फिर उसने कहा तीन प्रकार के प्रेम को एक स्थान
पर मिलना अति आवश्यक है, जिसके कारण ही प्रेम किसी के जीवन
में श्रेष्ठता और पूर्णता को उपलब्ध होता है। और यह तीन वस्तुए इस प्रकार से है,
पहला उस आदमी का शरीर, दूसरा उस आदमी की
वुद्धि और तीसरा उस आदमी की आत्मा का शंष्लेषण अर्थात इनका एकीकरण ही प्रेम कि
पूर्णता का परम साधन है। और यह प्रेम के तीन साधन केवल स्त्री और पुरुष के मध्य
में स्थित हो सकते है। क्योंकि प्रत्येक पुरुष स्त्री की सौंदर्यता पर अधिक ध्यान
देता हैं या आकर्षित होता हैं और ऐसा स्त्री के साथ भी होता है। यह एक दूसरें के
शरीर के स्तर पर आकर्षित होते हैं और जब यह संभोग की स्थिती में आलिंगन बद्ध होते
हैं तो सर्वप्रथम इनकी दो शरीर का भाव कुछ समय के लिए मिट जाता है। और यह बुद्धि
स्तर परएक हो जाते हैं जिसकें कारण ही
इनकी वुद्धि से हो कर ही आत्मा तक जाने का एक विशेष प्रकार के भाव का संचार होता
है जिसे प्रेम कहते है। जब यह प्रेम आत्मा से निकलता हैं बुद्ध को पार करके शरीर
तक पहुंचता है वहीं सच्चा प्रेम हैं जो परमेश्वर से जुड़ता है इसके अतिरिक्त जो
शरीर और बुद्धि से किया जाता हैं वह आत्मा में प्रवेश नहीं कर पाता है, क्योंकि बुद्धि की सिमा सिमीत हैं जिसके कारण यह असिम प्रेम को स्वयं में
संरक्षित करने में समर्थ नहीं होती है जैसा कि आप के साथ भी हो रहा है। आप बुद्धि
से प्रेम करते हैं अभी प्रेम का अंकुरण आपकी आत्मा में मही पाया है। औरइसके
अतिरिक्त हर किसी का अपना एक अचेतन पक्ष होता है। जिसके कारण ही कोई एक मानव किसी
दूसरें प्राणी की तरफ आकर्षित नहीं होता हैं, उदाहरण के लिए
कोई पुरुष किसी पशु से अपनी कामवासना को तृप्त नहीं करना चाहता हैं, क्योंकि उसमें दूसरें के शरीर में किसी प्रकार का आकर्षण नहीं होता है। तो
इस प्रकार से यह पहला प्रेम का चरण हैं किसी पुरुष को विपरीत शरीर की आवश्यक्ता
जिससे वह अपनी वासना को तृप्त करने के लिए एकीकरण अर्थात संभोग स्थापित कर सके,
और वह अपने प्रेमी के प्यार को हमेशा के लिए बनाए रखना चाहता है।
पहले बिना दोष के शरीर होना चाहिए, नहीं तो उसकी इंद्रियाँ
उसे लेकर अन्य निकायों कि तरफ भटक जाएंगी, क्योंकि उनकी
प्रकृति उनकी उचित वस्तु की तलाश है और दूसरी बात, बुद्धि,
या उसका सम्मान कहीं और प्रस्थान करेगा और तीसरा, भलाई या उसकी आत्मा उसे त्याग देगी, जिसके लिए वह
ऐसा नहीं कर सकती है। और जिसके बिना, एक समय के अलावा,
अन्य दो घटक भाग बेकार हो जाते हैं। और जैसा कि यह महिला के साथ है,
वैसे ही यह पुरुष के साथ भी है, इस अंतर के
साथ कि उनके शरीर और बुद्धि और उनके आत्माओं के टुकड़े पूरी तरह से विपरीत हैं। यह
एक स्त्री के लिए जो गुण है, वही यह किसी पुरुष में इसके
विपरीत हो सकता है। और उसकी कमजोरी उसकी ताकत और यहाँ तक कि उसका आभूषण भी हो सकता
है। परन्तु बुद्धिमानी से अपने प्यार की उचित वस्तु को चुनने में मूर्ख मत बनो।
निस्संदेह वह सुंदर थी, लेकिन वह सब कुछ थी और अब यह निश्चित
रूप से आपके लिए अच्छा हैं, और कोई नुकसान भी नहीं है कि
उसने आपको धोखा दिया था। क्योंकि उस समय आप प्रेम की तलवार की धार से घायल हो गये
थे, अभी तक समय और यह हो सकता है, परिस्थिति
इसे ठीक कर देगी और निश्चित रूप से समय आपको अपने मामले में आपको नया मार्ग
दिखाया। हो सकता है कि एक तत्व आपके प्यार की पूर्णता को चाहते थे और यह आपसे सहन
नहीं होता है और अब तुम स्वतंत्र हो और अपनी गलती के लिए के स्वयं को दंडित कर
लिया है। और आप बुद्धिमान हैं यह आपको शोक से आनन्दित करता है। कौन जानता है कि
भविष्य में उसे क्या इंतजार है? और कौन उच्चतम अच्छाई को
प्राप्त करने की उम्मीद कर सकता है। जो नहीं जानता कि यह कैसा है? और तुम मेरी मालकिन के साथ प्यार की पूर्ण त्रैतवाद की एक रुपता को पा
सकते हो, क्योंकि मैं आशा करती हूँ कि वह तुम्हारे योग्य है।
और जैसे ही उसने बात की, राजा उसके बात जादू में खड़ा था। लेकिन
जैसे ही उसने अपनी बात को समाप्त किया, फिर राजा ने कहना
शुरु किया और कहाँ यह हमारें तुम्हारें बिच में जो बात-चित हो रही है। इसके बारें
में अपनी मालकिन से बात मत करना, क्योंकि वह नीति और राजनीति
का विषय है, केवल तुम मुझे अपने बारे में बताओ, निश्चित रूप से तुम प्रेम के अमर बनाने के लिए पर्याप्त और मजबूत हों,
और अपने प्रेमी को अपनी गाँठ से बांधती हों, जो
कभी नहीं टूटेगा। लेकिन चेतना ने अपनी उंगली को राजा के होंठ पर रखा, और उसने राजा को अपने सुंदर सिर को हिलाकर संकेत में कहा हाँ! इस प्रकार
मुझसे बात मत करो, या मैं फिर से नहीं आऊंगा और उसने राजा को
मुस्करा कर देखा और राजा के पैरों पर फूलों को रख दिया और वहाँ से चली गई। जो धिरे
धेरे राजा से दूर होती गई। यद्यपि वह राजा की आँखों से गायब होने से ठीक पहले ही
जंगल में वृक्षों के मध्य में वह घूमते हुए कहीं खो गई । उससे पहले उसने एक बार
मुड़ कर राजा को देखा और फिर उसने जंगली पेड़ों के मध्य में प्रवेश किया और उसकी
आंखों के सामने से गायब हो गयी।
और राजा ने अपने पैरों पर पड़े फूलों को उपर उठाया और उसे अपने होंठों से
लगा लिया और उसने अपने आप से कहा चंपक, तुम्हारी गंध प्यार की सुगंध
के सार के समान है। और यह अच्छी तरह से इस अनूठी लड़की के शब्दों के अनुकूल है,
जो कि सृष्टिकर्ता की इच्छा से अवगत स्वयं के समान सार जैसा दिखती
है, एक पूरी तरह से अलग, अभी तक समान
रूप से स्वादिष्ट रूप में विद्यमान है और वह अपने हाथ में फूलों को लेकर मंदिर में
वापस चला गया, मधु के शब्दों पर ध्यान में खोया हुआ और सभी
के बारे में पूरी तरह से अनजान। उसकी सुंदरता के लिए, एक
चालाक चित्रकार की तरह, एक तस्वीर को दूसरे के लिए जगह बनाने
के लिए, जिसने एक तस्वीर को अपनी आत्मा की सतह पर उदास यादों
के साथ छोड़ दिया था।
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