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मेरी चेतना (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -4 मनोज पाण्डेय

मेरी चेतना

     (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -4

 

मनोज पाण्डेय



 कमल पुष्पों का स्वाद


      तब पूरी रात, वह पत्तियों के बिस्तर पर अच्छी तरह से सो गया और सुबह सूरज उग आया आकाश में गुलाब के समान लालिमा लिए हुए, और जब वह मंदिर से बाहर आया, तो उसने झिल के किनारे पर उसके लिए एक लाल कमल के फूल को लेकर चेतना को इंतजार करते हुए देखा, और उसकी आंखों में जब उसने झांका जिससे उसको अपने मन की शांति का आभास हुआ, और जब वह उसके पास गया, जिसने उसको देखते हुए कहा, मेरी मालकिन अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों के द्वार इस फूल को भेजा है। और यदि आपकी रात्रि अच्छी तरह से व्यतीत हो गई हो, तो यह उनके लिए अच्छा है।

 

       तब राजा ने कहा प्रिय चेतना वहीं अच्छी तरह से सोता है, जो अपनी शांति को वापस प्राप्त कर लेता है। और अपने पक्ष में मैंने इस रात को अच्छी तरह से सोया हूं, क्योंकि मैंने कई लोगों के लिए कई रातों से सोया नहीं था, और उसने कहा यह नई शांति कहाँ से आई है? इस पर राजा हँसा और कहा एक कुशल चिकित्सक ने कल मुझे एक नींद वाली दवा दी। तब उसने कहा, वे भाग्यशाली हैं, जिनके पास कुशल चिकित्सक हैं, क्योंकि वे कम ही हैं। तब उसने कहा जिस दवा ने मुझे नींद लायी, वह तुम्हारी आवाज़ की मधुरता और तुम्हारी दृष्टि के अमृत से जुड़ी हुई औषधि के रूप में है। और मुझे आशा है कि यह इलाज मुझको प्रभावित कर सकता है, क्योंकि पहले मैंने सोचा था कि मेरा मामला बेताब और बेचैनियों वाला है। तब चेतना ने हंसना शुरू कर दिया, और उसने कहा हे राजा, सावधान रहो! क्या यह एक या दो दिन पहले नहीं था कि आप पश्चिम की पूरी दौड़ के साथ चल रहे थे, अर्थात आप संसार के औरतों के खिलाफ थे, और उनपर परिवर्तनशीलता का आरोप लगा रहे थे? और अब एक ही हमारी मुलाकात और एक खुराक में आप इसको स्वीकार करने में सक्षम हो रहे हैं? तब राजा ने कहा तू दुर्भावनापूर्ण है, चेतना तुम अच्छी तरह से जानती है, जो सत्य नहीं हैं, वह सब केवल मेरे अतीत के प्रतिद्वन्दी थी, जिसके कारण मेरा ऐसा स्वभाव बन गया था। फिर चेतना ने कहा नहीं आप मेरे सामने पहली बार इस प्रकार से आये थे, जैसे आप कोई मछुआरे हैं।


    ऐसी ही एक मछुआरा अतीत में हुआ करता था, जो किसी समय में किसी और देश में मछली पकड़ने का कार्य करता था, और एक दिन उसने अपनी जाल को समुद्र में फेंका, जिसकी जाल में उस दिन एक सोने की मछली फंस गई, तब उसने उस मछली को आनंदित होकर उठाने के लिए झुका, तभी मछली वापिस उसके हाथों से फिसल कर दुबारा सागर के पानी में कुंद गई। इस कारण से वह बहुत निराश हो गया, और उसकी आंखों में आंसू आ गये, इस लिए उसने समुद्र का त्याग कर दिया। और अपनी शरीर को भी त्यागने के लिए तैयार हो गया, और वह चिल्लाया कि आह मेरा जीवन पूरा हो गया। क्योंकि मेरा जीवन स्वर्णमय मछली के शरीर के लिए हुआ था, जो अब उसके बिना बेकार हो चुका है। इसके बाद कुछ देर में उसने अपने आपको फिर से तैयार किया और वह वापिस समुद्र में गया और उसने अपनी मछली पकड़ने वाली जाल को समुद्र के पानी में दुबारा फिर से फेंका, और इस बार उसकी जाल में चांदी की मछली फंस गई, और तत्काल वह अपनी सोने की मछली को भूल गया। और बड़ी उत्सुकता के साथ अपने हाथों से जल्दी - जल्दी जाल को ऊपर खिचने लगा, मछली को पकड़ने के लिए। लेकिन यह मछली भी उसके हाथ में आने से पहले ही फिसल कर पानी में पहले की तरह से कुंद गई। और इस बार फिर मंछुवारा स्वयं के भाग्य पर बड़ी निराशा के साथ दुःखी हो गया। और अपने भाग्य को बुरा भला कह कर कोसने लगा, और इसके साथ ही उसने समुद्र किनारे को छोड़ दिया। और अपना बहुत-सा समय उन मछलियों के खोने के प्रायश्चित में गुजारता रहा। कुछ समय के बाद वह एक बार फिर समुद्र के किनारे अपनी जाल को ले कर आया, और अपनी जाल को एक बार फिर समुद्र में फेंका, जिसमें एक सामान्य-सी मछली ही फंसी जो साधारण हांड़ मांस से बनी हुई थी। और इसको उसने अपने हाथों में पकड़ कर अपने साथ ले गया, और इसको पाकर वह पुरी तरह से खुश था, और इसको पाकर वह सोने और चांदी की मछलियों को पुरी तरह से भूल गया, जैसे वह कभी उसके जीवन में आई ही नहीं थी।


       फिर राजा ने कहा प्रिय चेतना मैं इस पर तुम पर बहुत क्रोधित हूं, जो तुमने मेरी तुलना एक बेकार से मछुआरे के साथ कि है, अगर मैं ऐसा कर सकता हूं, तब चेतना ने कहा हे राजा सावधान रहो ऐसा नहीं है कि समांतर हमेशा बेहतर और सटीक होना चाहिए। तब राजा ने कहा कि तुम मेरी तुलना एक आग से कर सकती हो जो पुरी तरह से बुझ चुकी हैं जिसको फिर से जलाया नहीं जा सकता है, जिससे कि हर एक साधारण आदमी घृणा करता है, सामान्य ईंधन से भले ही मलय पर्वत के ऊपर उगने वाला चंदन का ही वृक्ष हो, जिसको एक बार जलने के बाद, दुबारा राख को फिर से जलाया नहीं जा सकता हैं। वही आज मेरी स्थिति है, जिसका हृदय एक बार भौतिक रूप से जल चुका है। और राख में तबदील हो चुका हैं जिसमें से पुनः अग्नि की ज्वालाओं का भड़कना संभव नहीं हैं।


        तब चेतना ने कहा अब मेरे जाने का समय हो गया हैं। और उसने कमल पुष्पों को राजा के चरणों में रख कर, वहाँ से धिरे-धिरे चली गई, लेकिन कुछ दूर जाने के बाद एक बार पीछे मुड़ कर राजा को देखा और फिर जंगल के घने वृक्षों में कहीं लुप्त हो गई। और इसके बाद राजा ने नीचे झुक कर अपने पैरो पर पड़े कमल पुष्पों को उठाया और कहा हे कमल मैं सच में उस आग की तरह हूँ जो बुझ चुकी हैं, और वह निश्चित रूप से मेरे लिए ईंधन के रूप हैं, अथवा वस्तुतः वह कुछ और भी हो सकती है। जैसे मैं उसके लिए ईंधन के समान हूँ और वह आग के समान है। क्योंकि वह निश्चित रूप से मुझको एक ज्वाला कि तरह से जला सकती है, या इससे भी कुछ अधिक, अब वह जा चुकी है, फिर वह कब हमारे पास आयेंगी यह कौन जानता है? इसलिए ओ लाल कमल पुष्प मैं तुमको आज पूरे दिन तक अपने साथ ही रखूंगा, क्योंकि तुम में उसका खुद के एक टुकड़े जैसा दिखते हो, जिसको उसने अपने पीछे छोड़ा है, मुझे बर्फ की एक गांठ की तरह उसकी अनुपस्थिति में दोपहर की गर्मी में ठंडा करने के लिए हो। और वह मंदिर में वापस चला गया, अपने हाथ में कमल फूलों को लेकर, भविष्य में मिलने वाले भोजन कि जिज्ञासा के साथ और अपने सारे अतीत को भूल गया।


      और मंदिर में वापिस आकर अपने पत्तों के बिस्तर पर सो गया। और राजा ने उसकी याद में, सारी रात अपने स्वप्नों में मधु (चेतना) को ही देखता रहा, और सुबह सूर्योदय होने से पहले ही उठ गया। और मंदिर से बाहर आकर झील के किनारे बनी सिढ़ियों पर खड़ा हो कर चकइ चकवा के गीत को सुनने लगा, जिसमें वह गा रहे थे, पी कहाँ-पी कहाँ वह दोनों प्रेमी रात्रि की जुदाई के बाद सुबह फिर से मिलते हैं। इसी प्रकार से राजा भी अपनी प्रेमिका के इंतजार में खड़ा था तभी उसने झिल के किनारे के पानी में चेतना के चमकते कदमों की चमक को देखा, जो उसके पास ही आ रही थी। और उसने अपने हाथों में श्री फल के वेरियों को ले रखा था और वह राजा के पास आकर राजा से कहा इसे मालकिन ने अपने भगवान के लिए इन तुच्छ हाथों से भेजा है। और कहा है कि यदि आपने अपनी रात्रि को अच्छी तरह से बिताया होगा, तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा।


      तब राज ने कहाँ प्रिय चेतना मैं नहीं बता सकता, कि मैं सारी रात सोया या केवल जागता रहा, मैं केवल इतना जानता हूं कि मैं सारी रात अपनी प्रियतमा को देखता रहा और सारी रात उसकी रस भरी बातों को सुनता रहा, मैं नहीं जानता की वह स्वप्न था या वह मेरे जीवन का यथार्थ था। तब चेतना ने राजा को बनावटी आकर्षण से देखा और कहा यह लक्षण तो बहुत ही खतरनाक है। इसके लिए आपको किसी चिकित्सक से मिलना होगा। आपकी स्थिति तो बहुत अधिक जोखिमपूर्ण और नाजुक है, ठीक उसी प्रकार से है जैसे पागल आदमी किसी पत्थर के प्रेम में आसक्त हो जाता है। तब राजा ने कहा सुन्दरी मैं तुममें और पत्थर में कोई अंतर करने समर्थ नहीं हूँ। या फिर मैं पत्थर और आप के बीच कुछ भी समानता नहीं देखता हूँ। और तब चेतना ने कहा मैं आपके लिए एक पत्थर से अधिक नहीं हो सकती हूं, और तब राजा ने कहा मुझे उसकी कहानी बताओ। क्योंकि मुझे परवाह नहीं है कि यह मेरे जैसा है या नहीं: और इस बीच, मैं तुझे देखूंगा और तेरी आवाज़ सुनूंगा।


         तब चेतना ने कहना शुरु किया और कहा कि बहुत समय पहले कि बात है एक राजा हुआ करता था और वह अकसर जंगल में शिकार करने के लिए जाया करता था, एक बार ऐसे ही शिकार करने के लिए जब वह जंगल में गया तो उसको एक पुरानी प्राचीन मंदिर मिली, जिस मंदिर के दीवाल पर बहुत देवियों की मूर्तियाँ पत्थर पर उकेरी गई थी, जिसके कारण राजा की निगाह मूर्तियों पर पड़ते ही वह उनके प्रेम में गिर गया, जिसके कारण कुछ भी करने के लिए तैयार हो गया। वह किसी भी शर्त पर उस मूर्ति को अपनी आँखों से दूर नहीं कर सकता था। इसलिए उसने अपने आदमियों को भेज कर उस मंदिर की दीवाल से उस मूर्ति को बिना किसी भी प्रकार के नुकसान के निकाल कर उसके पास लाने के लिए कहा। वैसा ही उसके आदमीयों ने वहीं किया जो उनके राजा ने कहा था, इस प्रकार से राजा उस मूर्ति को मंदिर कि दीवाल से निकलवा कर अपने साथ उसको लेकर अपने महल में ले कर आया। और उस मूर्ति को अपने महल के एक कमरे में स्थापित करवा दिया, और वह राजा रात दिन उसी मूर्ति के साथ ही रहा करता था, कभी भी वह उस मूर्ति को अपनी आंखों से दूर नहीं होने देता था। वह उस मूर्ति का चुंबन लिया करता था, और उसका बहुत अधिक ध्यान रखता था, और एक दिन राजा ने उस मूर्ति को बहुत अधिक झिड़की लगाई, कि मैं तुम्हारा इतना अधिक ध्यान देता हूं, और तुमको मेरी बिल्कुल कोई परवाह ही नहीं है। ऐसे ही वह एक रात को जब अपने महल के कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसने अपने मन में सोचा कि वह दीवाल कि सुन्दरता की देवी अचानक दीवाल से बाहर निकल गई, और वह अब पत्थर कि नहीं हैं यद्यपि वह सामान्य किस्म की हाड़ मांस और खून से बनी हुई एक औरत है। जो गर्मजोसी के साथ जीवन के आनंद से भरी हुई है। लेकिन जैसे वह उसके अपने बाँहों में भरने के लिए आगे बढ़ा रहा था। लगभग खुद के बगल में खुशी के साथ लेकर सोने के लिए, अचानक तभी उसी समय सड़क पर एक पहरेदार चिल्लाकर-चिल्लाकर किसी को पुकारने लगा। जिससे राजा को उसके ऊपर बहुत अधिक क्रोध आया। जिसके कारण राजा ने पहरेदार को अपने पास बुला कर तलवार से तुरंत मार डाला। और महल के साथ शहर के हर पहरेदार को उसके काम से निष्कासित कर दिया। और उसने अपने जीवन के बाकी हिस्सों को अपने सपने में देवी के साथ अपनी बैठक का निष्कर्ष निकालने की कोशिश की लेकिन फिर भी वह कभी सफल नहीं हो सका । और जब वह जाग रहा था, तब वह सब कुछ के लिए अवमानना से भर गया था, खुद से कह रहा था, यह पूरी दुनिया पत्थर की तरह है, उस वास्तविक मूल की एक निर्जीव प्रति लिपि जिसे मैंने उस समय, देवता के रूप में, मेरे सपने में पाया और निश्चित रूप से वह पागल है। जो अपने पूरे जीवन को सपने में भी एक चीज़ के लिए अपरिहार्य बनाता है। 


     और मैं तुम से कहती हूँ, यदि आप मेरी मालकिन को भूल जाते हैं, तो आप निश्चित रूप से उसके समान होंगे, आप अपनी कल्पना को आपके लिए निषिद्ध वस्तु पर ठीक करने की अनुमति देते हैं। हे राजा, क्या यह सच नहीं है और तुलना सटीक नहीं है?


       तब राजा ने कहा मुझे नहीं पता मैंने तुम्हारी कहानी नहीं सुनी, क्योंकि मैं तुम्हारे होंठों को देख रहा था जिन्होंने पूरी तरह से मुझ पर अपना कब्जा कर लिया था। और मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। मुझे दोबारा बताओ और मैं अपनी आंखें बंद कर लूंगा, ताकि आपकी सुंदरता हस्तक्षेप न करें, और मुझे आपके शब्दों के अर्थ को समझने से ना रोकें, और वह हँसी और कहा निश्चित रूप से मैं सही हूँ और तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हें छोड़ नहीं रही हैं। और चेतना ने राजा के पैरो पर श्री के कुछ फूलों को रखा और वह राजा को वापस देखे बिना चली गई। और जब वह पेड़ों के बीच में खो गई, तब राजा ने नीचे झुक कर अपने पैरो के पास पड़ें श्री के फूलों को उठाया और उसने कहा श्री के फूल आप अच्छी तरह से अपने नाम से जाने जाते हैं। क्या आपने यह अपने पूर्व जन्म में योग्यता से हासिल किया है,या फिर आपको पेड़ से गिरने और उसके हाथ को प्राप्त करने का विशेषाधिकार मिला है। जबकि आपके भाइयों और बहनों को पेड़ पर विघटित और दुखी छोड़ दिया गया था। और वह मंदिर में वापस चला गया, उन्हें अपने हाथ में पकड़ कर, अपने होंठों की यादों से प्रेत बाधित किए हुए , जिनके रंग के समान ही वे थे, एक और सुबह इंतजार करने के लिए। उस सौंदर्य के देवी के लिए जो देवियों की देवी  है।


       और वे श्री के फूल उसके सामने पड़े हुए थे, क्योंकि वह सारी रात पत्तियों के बिस्तर पर सो गया था और सुबह में वह सूर्योदय होने से पहले रोज की भांति उठ गया, और बाहर चला गया, और झिल के कगार पर आकर खड़ा हुआ। और जैसे ही वह उनकी सतह पर देख रहा था, उसने देखा झील के पानी पर एक तेंदुए की त्वचा पर जिस तरह से काले धब्बे के निशान पड़े होते हैं ठीक उसी तरह से झील की सतह पर कमल पुष्प अपनी पंखुड़ियों फैलाए हुए बिखरे थे। उनको देखने के बाद उसके दिल में एक संदेह जागृत हो गया, जब उसने चमगादड़ की छाया पानी की सतह पर देखा, जो सुबह से पहले झील के पानी के ऊपर अपनी आखिरी उड़ान ले रहे थे। और उसने खुद से कहा हे, वह सुंदर है, लेकिन हाँ! वह एक औरत है, क्या मैंने उसे अपने दिल में इन चमगादड़ों की तरह प्रवेश करने की अनुमति देने में अच्छा प्रदर्शन किया है। और उसने तुरंत, उसे उसकी तरफ अपने हाथों में एक शिरिशा के फूल के साथ, अपने पास आते हुए देखा और वह उसके पास आई और कहा मेरी मालकिन ने अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों के द्वारा, इन फूल को भेजती है। और यदि आपने मीठी निंद का अपनी रात्रि में आनंद लिया है, तो यह उसके साथ बहुत अच्छा हुआ है।



      तब राजा ने कुछ देर तक उसको देखा जो मुसकुरा रही थी जैसे सूर्य उसके होंठों पर बैठ कर अपनी किरणों को बिखेर रहा हो, जिसके कारण ही संसार का अंधकार मिट रहा है। और तब राजा ने कहा प्रिय चेतना वह कैसे अच्छी तरह से सो सकता है? जिसके पास संदेह और भय के आतंक की छाया हर पल छायी रहती है। जिस प्रकार से जो पौधे वृक्ष के नीचे उगते हैं वह अपनी पूर्णता को कभी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। क्योंकि उनको उस विशाल वृक्ष की छाया विकसित होने का मौका ही नहीं देती है। क्योंकि मैं अपनी जीवन नैया को पुनः संसार के भव सागर में रखने की तैयारी कर रहा हूं, जिसके लिये मैंने पहले से ही अपनी शरीर रूपी नाव को भी तैयार कर रखी है, जो नीले -नीले आकाश के नीचे भव सागर है, जिसकी हंसती, मुसकुराती मुलायम और शांत लहरें है, जिसमें किसी प्रकार कि उत्तेजना भी नहीं उठ रही है और अभी मेरे साथ हैं, जैसा कि पहले मेरे साथ पहले भी हो चुका है। जब इन शांत और आरामदायक भवसागर कि लहरों ने मुझको धोखा के साथ मेरे साथ छल भी किया था। जिसको मैं अभी बिल्कुल भूल चुका हूं। और अब मुझे अपने इन छोटे-छोटे वृक्ष की छाल से बने कपड़ों से अत्यधिक प्रेम के साथ दुबारा भरोसा भी हो गया है। इस पर चेतना ने राजा की आँखों में कुछ पल के लिए भाव विभोर हो कर बड़े आग्रह से देखा, जिसके कारण उसकी आँखों से अश्रु पात होने लगा और तब उसने कहा मृत्यु के मुख में पड़े हुए मानव के पास दो प्रकार के मस्तिष्क होते हैं। और जो साहस या विश्वास की इच्छा के लिए उद्यम नहीं कर सकता, वह कभी भी जीत नहीं सकता है। उसके लिये इस ब्रह्माण्ड के भव सागर रुपी खजाने में कुछ भी नहीं मिलने वाला है। क्योंकि उसकी रक्षा हमेशा घूम- घूम कर राक्षस, शैतान और दैत्य निरंतर करते हैं, इसी में बहुमूल्य आभूषण से सुसज्जित स्वर्गीय अप्सराएँ भी रहती हैं।


       बहुत समय पहले कि बात हैं एक बहुत बड़ा व्यापारी था जिसका केवल अपना एक ही पुत्र था जो अपने व्यापार के शील- शीले में अपनी नाव के साथ दूर किसी दूसरे देश की यात्रा कर रहा था, जिसके कारण उसने हजारों किलोमिटर समुद्र कि लहरों पर अपनी नाव के साथ सवारी करता रहा, जब तक कि वह समुद्र के मध्य में नहीं आ गया। तभी अचानक समुद्र में तूफान आ गया, जिसके कारण उसके जहाज की पाल नाव से निकल कर उससे दूर जाकर गीर गई। और जहाज ने यात्रा करना बंद कर दिया और अचानक समन्दर कि हरी-हरी लहरों के मध्य में उसके सामने एक मुंगा का वृक्ष प्रकट हो गया और उस वृक्ष की एक शाखा पर उस समन्दर की देवी बैठी हुई थी। और उसके अंगों से समन्दर का झाग बूंद- बूंद करके टपक रहा था, उसकी छातियों पर जैसे मोती जड़ा हुआ हो ऐसा प्रतीत हो रहा था, जो समन्दर में मलाई कि तरह से बह रहा था। और उसके लंबे बाल लहरों पर पड़े हुए थे, जो उसके स्तनों के नीचे हिलकोरें ले रहे थे। और उसने व्यापारी के पुत्र को अपने पास बुलाया, और कहाँ की तुम तुरंत समन्दर में छलांग लगा कर मेरे पास आ जाओ। और मेरे साथ अपने जीवन को व्यतीत करो, और मैं तुमको ऐसे आभूषणों को दूंगी जिसको कभी भी किसी व्यापारी ने नहीं देखा होगा। और मैं तुमको कुछ दिव्य अद्भुत अनुभूतियों के आनंद से अभिभूत करूंगी। जिसका अब तक कभी किसी नश्वर मनुष्य ने स्वाद भी नहीं पाया है। इस पर उस व्यापारी के डरपोक बेटे की आत्मा ने और लहरों की भयावह आतंक से किसी तरह से स्वयं को संतुलित कर लिया था । और वह समन्दर में कुदने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह समन्दर में कुदने के लिए, स्वयं की आत्मा के अंदर इतनी हिम्मत को नहीं पैदा कर सका, जिसके कारण कुछ ही पलो में समन्दर में उगने वाले मुंगें के वृक्ष के साथ उस पर बैठने वाली समन्दर की पुत्री भी पानी में समा गई। और उसकी आँखों से अदृश्य हो गई, और वह विस्तृत समन्दर में अकेला रह गया। जहाँ पर उसके चारों तरफ पानी और ऊपर आकाश के कुछ भी नहीं दिख रहा था। फिर वह अपनी यात्रा को किसी तरह से आगे जारी रखा, प्रायश्चित और अनिच्छा की भावनाओं से भरे हुए हृदय के साथ, फिर वहाँ कुछ देर में समन्दर की हवाओं में अचानक बदलाव आ गया और वह बहुत अधिक प्रचंड हो गई, जिसके कारण उस डरपोक व्यापारी के पुत्र की नाव समन्दर में डुब गयी। और वह स्वयं समन्दर में ही डुब कर मर गया। जिसके कारण ही जो उसको मिलने वाला खजान था। उससे तो हाथ धोया ही, साथ में अपने जीवन हाथ से भी अपने हाथ धो लिया। जिसे वह बचा सकता था, इस प्रकार उसने अपना खजाना खो दिया और स्वयं को खतरे से बाचा लिया, लेकिन अपनी आत्मा को अपनी शरीर से अलग कर दिया। 


     इसलिए हे राजा, यह जीवन समुद्र के लहरों की तुलना में कही उससे अधिक अस्थिर है, जैसा कि यह बहुत अधिक बुद्धिमानों को ही यह दिखता है। और इसमें क्या शामिल है? जो इसे खोने के बीच एक पल के लिए संतुलन के दौरान नायक के लायक बनना चाहिए। और किसी भी जीवन में केवल एक बार भाग्य जीतने के लिए मौका मिलता है। जिसको जीतना ही चाहिए और ऐसा अकसर नहीं होता।


     फिर चेतना ने राजा के कदमों पर शीरिशा के फूलों को रख कर वहाँ से घूम कर राजा से दूर चला गई, धिरे-धिरे वह चल कर जंगलों के मध्य में वह कही खो गई। और राजा ने फिर अपने कदमों पर पड़ें शीरिशों के फूलों को अपने हाथों से ऊपर उठा लिया। और कहा ओ शीरिशा के फूलों तुम उसके समान सुंदर हो, क्योंकि तू दुःख को हरने वाला है। अब क्या करें? मैंने अपनी प्यारी चेतना को अपने अयोग्य संदेह से धोखा देकर नाराज किया है? लेकिन आह! वह एक महिला है। महेश्वर ने उन्हें महिलाओं की श्रेणी से बाहर क्यों नहीं उठाया और उसको महिलाओं की एक प्रजाति में रखा कि मुझे याद नहीं होगा जब मैं उसकी अपूर्णताओं को देखता हूँ। जो उसके सभी काम वासनाओं से अविभाज्य हैं। और वह अपने हाथ में फूल को लेकर, मंदिर में वापस चला गया, खुद से नाराज हो गया, और पहले के समान और अधिक चेतना के प्यार में खो गया था।


     और वह सारी रात पत्तियों के बिस्तर पर अपने संदेहों के लिए पश्चाताप करता रहा, और इसी में पुरी रात बीत गई, सुबह में वह सूरज के उदय होने से पहले ही फिर उठ गया। और मंदिर से बाहर निकल आया, और पूर्वी आकाश जो एक दुधिया पत्थर की तरह से अपनी रंग को बदल रहा था। क्योंकि रात सुबह से पहले चली गई थी, लेकिन अभी तक चेतना नहीं आयी थी। और दिन धीरे -धीरे बढ़ने लगा, जिसके कारण राजा उसके ना आने के दुःख के कारण से पिला पड़ने लगा था। और अपने आप से कहा क्या इसका मतलब हैं? कि वह मुझको एक दिन और अपने साथ अकेला रहने के लिए छोड़ दिया है। और अंत में राजा ने देखा जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में अपनी आभा के साम्राज्य को फैला चुका था। तब चेतना को धिरे-धिरे अपनी तरफ आते हुए देखा,  जिसने अपने हाथों में बैंगनी कदम के फूलों को ले रखा था, जिसकी आँखों से ऐसा लग रहा था। जैसे वह स्त्री के रूप में अमृत के मिलाप के लिये राजा के पास आई हो, जब वह राजा के पास आई, तो उसने कहा मेरी मालकिन ने अपने भगवान के लिए इन अयोग्य हाथों के द्वारा आपके लिए इन कदम के फूलों को भेजा हैं, यदि आपको रात्रि में अच्छी निंद आयी हो, तो यह उनके लिए बहुत अच्छी बात होगी।


      तब राजा ने चेतना से कहा उसको कैसे रात्रि में अच्छी निंद आ सकती है? जो इंतजार कर रहा हो, अपने अपराध को क्षमा करने के लिए, और अपने पाप को स्वीकारने के लिए? तब चेतना ने कहा आप क्या कह रहें हैं? राजा ने कहा मैंने अपनी वृक्ष की छाल को बहुत समय पहले संसार समन्दर के मध्य में बहने के लिए छोड़ दिया है, अभी मैं कुछ भी नहीं चाहता, लेकिन मेरी हार्दिक आंतरिक इच्छा हैं कि मैं उस औरत को बचाना चाहता हूँ जो समन्दर में उगे मुंगे के वृक्ष पर बैठा करती है, मुझे उसको बचाने के लिए समन्दर में कुंद कर उसको बचाने के लिए आज्ञा चाहिये। फिर चेतना ने अपनी मुस्कुराहट के साथ खिल-खिला कर हंसती हुए, अपनी नाचती आँखों से देखा और कहा हे राजा ऐसी सेविकाएँ बहुत दुर्लभ होती हैं। उनमें भी बहुत अधिक दुर्लभ होती हैं वह जो मुंगें के वृक्ष पर बढ़ती हैं। अर्थात बहुमूल्य ऐश्वर्यों के मध्य पलती हैं। और मुझको बहुत अधिक भय लग रहा हैं कि आपने अपनी छोटी-सी नाव को समन्दर में क्या छोड़ दिया है। और आपको मेरी तरह की, मेरी जैसी सांसारिक साधारण-सी मेरी मालकिन औरत से संतुष्ट होना पड़ेगा, राजा ने कहा तुम अपनी मालकिन के बारे में कुछ भी मत बोलो। क्योंकि मैं तुम्हारी मालकिन के बारे में कुछ भी नहीं सुनना चाहता हूं, तब चेतना ने कहाँ आपको ऐसा नहीं करना चाहिये, यद्यपि आपको उनके बारे में और अधिक जिज्ञासा करना चाहिए। और आपको जानना चाहिए कि उनको क्या अच्छा और क्या बुरा लगता है। क्योंकि वह मुझसे बहुत अधिक सुंदर और बुद्धिमान है। और वह मुझसे अधिक लंबी हैं। फिर राजा ने कहाँ क्या वह तुम्हारी विद्वता से भी अधिक विद्वान हैं, तब चेतना ने कहा हाँ वह मुझसे अधिक विद्वान हैं। हलांकि वह कविता बहुत अच्छी लिखती और बहुत सुन्दर गाती भी हैं। तब राजा ने कहा मैं ऐसी औरत से प्रेम नहीं करता हूं जो बहुत अधिक पंडित हो। फिर चेतना ने कहा वह इन्द्र महल में रहने वाली अप्सरा के समान गाती और नाचती हैं, तब राजा ने कहा मैं उसके पैरो के लिए उसके नृत्य को ध्यान से नहीं देख सकता हुं, ना ही उसके संगीत के कारण मैं उसको पसंद कर सकता हूँ। क्योंकि वह मेरे सामने आने से स्वयं को बचाती है। और वह मेरे सामने आकर मुझसे बात करने से स्वयं को रोकती है। उससे कही अधिक और मधुर भाषी जो मुझसे बात करती है जिसके बोलने से मेरे हृदय में मेरे कानों से अमृत रस मेरी आत्मा में टपकता है। जैसा कि जब राजा बोल रहा था, ठीक उसी समय चेतना के हाथों में फूलों की तरफ आकर्षित हो कर एक मधुमक्खी उड़ती हुई फूलों की पंखुड़ियों में आकर समा गई। जिसको तत्काल देखते हुए चेतना ने बड़ी जल्दी से अपने हाथों से फूल की पंखुड़ियों को बंद कर दिया। और कहा हे राजा मैंने उस उड़ती हुई मधुमक्खी को यहाँ पर कैदी बना लिया है, उसके पागलपन के लिए उसको दोषी ठहराने के लिए. सुनो और मुझे बताओ कि क्या आप धोखा दे सकते हैं? बिना धोखे के, जो मीठा, असली मधुमक्खी, या मेरी आवाज़ है जिसे आप अपने हृदय में पसंद करते हैं। और राजा ने अपना कान फूल के करीब रखा और मधुमक्खियों को अंदर सुना और उसने कहा, मैं नहीं बता सकता और उसने अपनी आंखें उसके चेहरे पर तय की और कहा, अब बोलो कि मैं उसके और आपके बीच न्याय कर सकती हूँ। तब वह हँसी और मधुमक्खी उड़ जाने के लिए फूलों कि पंखुड़ियों को खोल दिया। जिससे मधुमक्खी फूल से बाहर निकल कर उड़ गई। तब राजा ने कहा हाँ! मधुमक्खी पागल है, मैं नहीं। क्योंकि वह इच्छा करती है, हाथों में के घेरें में रखे फूलों के अंदर बने जेल से मुक्त होने की, वह फूल किसका हैं? यह मुझको दो फिर मैं फिर उनकी तुलना करुंगा, लेकिन उसने कहा नहीं यह फूल उसका हो सकता है, क्योंकि यह मेरी मालकिन का उपहार है, लेकिन यह मेरा हाथ यह मेरा स्वयं का है और अब मैं उसको पुनः वापिस कर देती हूं और जैसे ही उसने बोलना शुरु किया वह मधुमक्खी पुनः आ गई और उसके सर के चारों तरफ भीन-भिनाने लगी। जिसके कारण वह भय और उसके आतंक से चिल्लाने लगी। और कहा हे राजा यह मधुमक्खी के रूप में खलनाइका है जो मुझको डंक मारना चाहती है। तब राजा ने कहा निःसंदेह वह अपने बिना अपराध के कैद होने का प्रतिशोध लेने के लिए आयी है, उसके लिए दण्ड की सजा देने के लिए डंक मारना चाहती है, फिर व्यथित और उससे परेशान होकर लग- भग भागते हुए राजा की बांहों में घुंस गई। यह चिल्लाते हुए राजा मुझको इससे बचाओ, उसने कहा हे राजा, उसे बचा लो जो शरण के लिए आपके पास आता है और उसकी प्रसन्नता में राजा ने कहा हे मधुमक्खियों के राजा, मेरे पास आओ और जिस पक्ष में तू ने मुझे किया है, वैसे ही मैं तेरे लिये दिन में कमल पुष्पों के कप में शहद के साथ सेवा करूंगा। यद्यपि इस बीच मधुमक्खी दूर उड़ गई, और मधु (चेतना) ने भ्रम से वापिस आना शुरू किया। और कहा हे राजा, मेरी मालकिन बहुत बहादुर है। और वह मधुमक्खी से नहीं डरती है। तब राजा ने जोर देकर कहा, वह सभी महिलाओं जो मधुमक्खियों से डरते नहीं हैं! ज़रूरी नहीं हैं कि मैं उनसे प्रेम करता हूँ, लेकिन, हां मधुमक्खी और फूलों का खिलना, निश्चित रूप से इस मधुमक्खी का बहाना है अगर उसने फूलों के लिए अपने होंठों को ग़लत समझा।


 

     तब उसने कहा हे राजा, इस अनौपचारिक मधुमक्खी ने मुझे अपनी आंखों में अपमानित किया है। और मुझे एक लड़की को अपने स्वयं के स्वरूप को भूलने का कारण बना दिया है। और अब यह समय है कि मैं चली जाऊँ, और उसने राजा के चरणों में फूलों को रख दिया, और वह राजा को पीछे देखे बिना भाग गयी, और पेड़ों के मध्य में गायब हो गयी। लेकिन राजा ने मुसकुरा कर खिलते हुए फूल को उठा लिया। और उसने कहा हे महिमामय फूल, मैं तुम्हें हमेशा के लिए संरक्षित रखूंगा, यहाँ तक कि आप को फेंकने के बाद भी, क्योंकि आप इस अतुलनीय मधुमक्खियों के हमले के अवसर का विशाल हिस्सा बनाते हैं, जिसने मेरी प्रिय चेतना को उसकी सावधानी बरतने के बावजूद मेरी बाँहों में शरण लेने का नेतृत्व किया। हे सौंदर्य, तू कमजोर है, क्योंकि तू कमजोर है! बाहर, सभी राजाओं की बेटियां जो मधुमक्खियों से नहीं डरते हैं! और वह मंदिर वापस गया, कदंब के फूल का चुंबन किया और प्रसन्नता से नशे में मदमस्त था।


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