मेरी चेतना
(एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -6
मनोज पाण्डेय
दो आत्माओं का
प्रेम मिलन
इस प्रकार से वह राजा अपनी सारी रात को बिना निंद के जागता रहता है, अपने
पत्तियों के बिस्तर पर करवटें बदलते हुए। इसी प्रकार से उसने अपनी सारी रात्रि को व्यतीत
कर देता है। और प्रातःकालीन भोर में जैसा कि वह रोज सुबह में ही उठ जाता है,
आज भी उसी प्रकार से अपने बिस्तर को छोड़ कर, वह
सूरज के उदय से पहले उठकर मंदिर से बाहर चला आया। और तब वह झील में तैरती मछलियों
को देखने लगा। वह मछलियाँ पानी से अपने चांदी के समान सिर उठाकर कमल के डंठल को
पकड़ने के लिए प्रयास कर रही थी। तभी उसने देखा कि चेतना अपने हाथों में शमी के
पीले फूलों को लेकर उसके सामने आ रही थी। किसी वृक्ष पर वेल कि तरह से बलखाते हुए,
जिसके देख कर ऐसा प्रतीत हो
रहा था कि जैसे वह सर्प के समान लहरा कर उसके पास आ रही हो। जब वह राजा के पास आ गई,
तो उसने रोज की भाती राजा से कहा मेरी मालकिन ने अपने भगवान के लिए
मेरे इन अयोग्य हाथों के द्वारा इस शमी के फूलो को भेजा है। और कहा है कि आपकी रात्रि
जब अच्छी तरह से गुजरी होगी, तो यह उनके लिये बहुत अच्छा
होगा।
तब राजा ने कहा प्रिय चेतना उसे किस तरह
से अच्छी निंद आ सकती है। जिसको पहले से पता है कि वह मरने वाला है? इस
पर चेतना ने कहा हे राजा आपका जीवन बहुत अच्छा और सुन्दर है। निश्चित रूप से जैसे
चन्द्रमा पुनः नवीन उदय होता है, उसी प्रकार से यह आपके जीवन
का सबसे बहुमूल्य अध्याय कि तरह से है। जब इस प्रकार का जीवन आपके पास पहले था,
जिसकी कोई कीमत आपके नजरों में नहीं थी। लेकिन आज उसी जीवन की कीमत
आपकी नजरों में अनमोल हो चुकी है। इस पर राज ने कहा हाँ, क्योंकि
मैंने इससे पहले तुम्हारे चेहरे को नहीं देखा था। इसी के कारण हमारे साथ ऐसा हुआ
था। और इस पर चेतना मुसकुराते हुए राजा से कहा हे राजा लेकिन क्या मैं एक औरत नहीं
हूं? और आपकी आँखों में क्या वह सब औरत नहीं थी जिसको आपने
मुझसे पहले देखा था? तब राजा ने कहा तुम उन सबसे भिन्न किस्म
की औरत हो। मैं उनके ऊपर बिल्कुल ध्यान नहीं देता था, निश्चित
रूप से मैं उन सब को पूर्ण रूप से औरत नहीं मानता था। वह सब मेरी नजर में औरत के रूप
में लिए केवल एक प्रकार का झांसा और भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं थी। परमेश्वर ने इन
औरतों कि दो प्रजाति बनाई है। एक औरत जिनकी संख्या अधिक मात्र में है, वह साधारणतः औरतें हैं और संसार के हर एक पुरुष को मिलती है। और दूसरी
प्रकार कि औरतें उन सब से अलग होती हैं, जो तुम्हारी तरह से
होती जिनकी संख्या इस संसार में बहुत कम है। और किसी पुरुष को ऐसी औरतों का मिलना
बहुत अधिक दुर्लभ है। और वह जिस शरारत भरी अपनी आँखों से मुझको देखती है।
तब चेतना ने कहा और किस श्रेणी मैं आपने मेरी मालकिन को रख सकती हूं? इस
पर राजा बहुत अधिक व्यग्र होते हुए कहा कि तुम उसको इससे बाहर ही रखो, वह सफेद मार्बल के कठोर पत्थर के समान है। चेतना क्या तुम मुझको उसको कुछ
समय के लिए भुलाने की आज्ञा नहीं दे सकती हो। क्या मैं तुमको उसके स्थान पर अच्छी
तरह से कुछ समय के लिए याद कर सकता हूं? तब चेतना ने कहा हे
राजा यह आपके लिए अच्छी बात नहीं है। आप मेरी मालकिन को कैसे भूल सकते हैं?
जो आपकी याद में हमेशा रहती हैं, और वह आपसे
विवाह की इच्छा रखती हैं, जिसमें ही आपको और उनको दोनों को
आनंद मिलने की संभावना है। इन शब्दों पर राजा उसी प्रकार से बीगड़ गया जैसा कि कोई
श्रेष्ठ नस्ल का घोड़ा किसी चाबुक की मार से बीगड़ता है। और उसने कहा चेतना तुम इस
प्रकार से मेरी प्रातः कालीन की सुबह में जो अमृत के समान है, उसमें जहर मत मिला कर दूषित मत करो। इसके बारे में अच्छी प्रकार से जानता
हू, कि तुम्हारी मालकिन के प्रति मेरा व्यवहार एक सज्जन
पुरुष की तरह से नहीं है। और अब तक इस मामले में जहाँ तक मैं समझता हूं कि तुम मुझको
इसके लिए अपराधी या दोषी नहीं समझोगी। और जैसा कि तुम्हारी मालकिन का स्वभाव है,
यहीं उसके लिए अच्छा होगा, कि वह मरे से अधिक
से अधिक दूर पर ही रहे। जैसे कि मैं हूँ ही नहीं । इस पर चेतना ने राजा से कहा
क्या मेरी मालकिन ने जिनको प्राप्त किया है वह आपसे अलग कोई और को अपने जीवन में
धारण करने के लिए नहीं चुन सकती है? और अब तक जो उनकी क्षमता
से बाहर है अगर वह कर सकती हैं। तो क्या उनको ऐसा करना चाहिए। यह उसी प्रकार से
होगा जैसे मैंने स्वयं अपने पुनर्जन्म के मुल कर्म फलों को भोगने से मना कर दिया
हो। राजा ने आह भरते हुए कहा जो भी हो मैं नहीं जानता, उसने
मुझको क्यों चुना? वह मेरे जीवन को निश्चित रूप से नष्ट कर
सकती है। इतना मैं अवश्य जानता हूँ। फिर चेतना ने राजा से कहा इसका मतलब यह तो
नहीं कि यह भाग्य और कर्म का सिद्धांत केवल देवताओं के लिए निश्चित हैं। और रानी
की जिम्मेदारियां किसी सामान्य औरत से अधिक नहीं हैं। और इस राजा ने एक बार फिर आह
भर कहा यह कौन-सा मामला ले कर तुम मुझको उलझाने का प्रयास कर रहीं हो। जिसमें मैं बिल्कुल
ही रुची नहीं लेता हूं। क्या तुम नहीं जानती हो कि तुम्हारी मालकिन बहुत कठोर हृदय
वाली है। और उसकी आवाज बहुत अधिक बेरहम के साथ बेरुखी से भरी है। और उसके शब्द भी
बहुत अधिक कड़वे के साथ बेसुर हैं। कल मैं अपनी जिम्मेदारियों का और अपने
कर्तव्यों का वहन करने के लिए तुम्हारी मालकिन के पास जाऊंगा। और अपने सुझाव कर्ता
के साथ अपने ज्योतिषियों से सम्पर्क करूंगा। और उनसे एक तारीख तय करने के लिए कहुगां,
जिस दिन मैं अपने विवाह उत्सव को संपन्न कर सकुं, लेकिन आज तुम मुझे पूर्ण रूप से उसको देखने और सुनने दो जिसके लिए मेरा
हृदय लालाइत है। और आज शाम तक तुम मेरे साथ यहीं पर रहो, जिससे
मैं अपनी बिखरी हुई शक्ति को संयमित करके कल के लिए पूर्ण रूप से स्वयं को तैयार
कर सकुं।
फिर चेतना ने राजा की आँखों में कुछ पल के लिए बड़े ध्यान और विनम्रता के
साथ देखा और कहा कि हे राजा जो हम सब के भाग्य को बनाने वाला है। या हम सब की रचना
करने वाला है उसने हम सब के ललाट पर जो एक बार लिख दिया है। उसको किसी आदमी के
द्वारा मिटाना असंभव है। और इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं है। जो उसको बदलने का सामर्थ्य
रखता है।
बहुत समय पहले की बात है एक राजा था और उसकी बहुत-सी रानियाँ थी जिसमें से
उसकी सबसे प्रिय एक रानी थी जिसका नाम श्री था, जो अपने नाम के बिल्कुल अनुकूल
नहीं थी।
लेकिन फिर भी वह एक छोटी-सी सज्जन औरत थी, वह कभी भी अपने बारे
में कुछ भी नहीं सोचती थी, जिसको राजा अपने आत्मा के अन्तःकरण
की गहराइयों और दिल से चाहता था। जिसके कारण ही उसने अपने संपूर्ण साम्राज्य की
बागडोर उसके हाथ में दे दिया था। और अपने जीवन को भी उसके लिए समर्पित कर रखा था।
इसके साथ संपूर्ण संसार के धन ऐश्वर्य के साथ वह तीनों लोक की संपत्ति को उसके सर
के एक बाल की रक्षा के लिए खर्च करने लिए तैयार था।
तभी एक दिन ऐसा हुआ कि उस राजा की
राजधानी में एक अपराधी ने एक बहुत घृणित अपराध का कार्य किया, जिसके
लिए राजा ने तत्काल उसको सजा के रूप में तत्काल मृत्यु दण्ड का आदेश दे दिया,
और ऐसा ही किया गया। फिर इसके कुछ समय के बाद राज पुरोहित राजा के
पास आया, और राजा से कहा कि हे राजा जिस आदमी को आपने मृत्यु
दण्ड की सजा दिया है। वह एक ब्राह्मण था जिसके कारण से इस राज्य के देवता आप पर और
आपके राज्य पर अत्यधिक क्रोधित हो चुके है। और इसके बदले में जब तक आप बली चढ़ाकर
अपने अपराध के लिए प्रायश्चित नहीं करेंगे, (इसका मतलब हैं
जब भारत में ब्राह्मणों के भयंकरतम अपराध करने पर भी, राजा
यदि दण्ड देता था, तो राजा को उसके लिए ब्राह्मणों ने राजा
को प्रायश्चित करने का नियम बनाया था) तब तक इस राज्य के देवता शांत नहीं होगे और
उनकी आज्ञा का उलंघन करने पर आप पर और आप के राज्य पर बहुत बड़ा संकट आयेगा। और
आपका सब कुछ उनके श्राप से कारण से नष्ट हो जायेगा। जिससे राजा काफी परेशान हो गया,
और पुरोहित से कहा किसकी बली देनी पड़ेगी। तब पुरोहित ने कहा जिस
रानी को आप सबसे अधिक प्रेम करते हैं, जिसको सुन कर राजा और
अधिक दुःखी हुआ और उसके हृदय में भय का आंतक छा गया। क्योंकि सबसे अधिक प्रेम तो
वह अपनी रानी श्री से करता था। लेकिन इस बात को पुरोहित से उसने छुपा लिया,
और कहा कि आह मैं तो सबसे अधिक प्रेम अपनी रानी प्रिय दर्शनी से
करता हू। वही मेरी रानियों में सबसे अधिक सुंदर हैं, तो
पुरोहित ने कहा कि ठीक हैं फिर कल सुबह उनकी ही बली चढ़ायी जायेगी। अर्थात बली के रिवाज
को संपन्न किया जायेगा। और वह सारे पुरोहित वहाँ से चले गये, और अगले दिन सुबह राज्य के सभी लोगों की बड़ी भीड़ एक सभा को रूप में,
बली की प्रक्रिया के पूरे होने वाले पत्थर के पास एक बड़े मैदान में
एकत्रित हो गई। और राजा भी वहाँ अपने सिंहासन पर विराजमान हुआ और फिर वहाँ पर जिस
रानी का बली को चढ़ाना था उसको लबादें से ढक कर लाया गया। और फिर उसकी बली की रस्म
को पूरा करने के लिए, अपने हाथ में एक तेज धार कटार ले कर एक
पुरोहित जल्लाद उसके पास खड़ा हुआ, और फिर उस पुरोहित ने उस
रानी के ऊपर पड़े लबादें को हटाया। जिसकी वजह से वहाँ उपस्थित सभी लोगों के साथ
स्वयं राजा ने भी देखा कि वह प्रियदर्शनि नहीं यद्यपि वह तो राजा की सबसे सुंदर और
सबसे अधिक प्रिय रानी श्री थी।
जिसको देखने के बाद राजा को बहुत अधिक
घोर यातना अर्थात कष्ट का अनुभव हुआ। जिसके कारण वह जैसे अपने सिंहासन के साथ बंध
गया हो,
उसको ऐसा प्रतीत हुआ। और उसके आँखों के सामने से संपूर्ण संसार जैसे
कुछ समय के लिए अदृश्य हो गया हो। और उसने अपने हाथों को जोड़ लिया वह नहीं जानता
था कि वह क्या कर रहा है। जिसके साथ वह बहुत तेजी के साथ रोने और हाथी के समान
चिग्घाड़ने लगा। आह नहीं, नहीं, श्री
नहीं, नहीं श्री, लेकिन पुरोहित ने
राजा की कोई बात नहीं सुनी उसने उसके गले पर अपनी कटार को चला दिया, उसके कपड़ों को पकड़ कर जिसके कारण वह नीचे गिर गई और कुछ पलो में ही
पुरोहित ने उसकी शरीर पर बार-बार वार अपनी कटार से करने लगा। जिसके कारण राजा से
यह देखा नहीं गया और तत्काल राजा अपनी पत्नी श्री के शरीर की रक्षा के लिए एक बाघ
के समान उसके ऊपर कूद कर उसको अपने शरीर से ढक लिया, जिसके
कारण पुरोहितों की कटार राजा के हृदय में धंस गई।
और फिर श्री ने अपनी आँखें खोल कर देखा राजा के शरीर के नीचे से, अपने
चारों तरफ कुछ देर के लिए वहाँ पर भारी एकत्रित भीड़ को, और
वह राजा के सर को अपने गोद में लेकर जमीन पर बैठ गई। और इसके कुछ पलो के बाद वह
राजा के ऊपर गीर गई, जिसके साथ वह राजा की आत्मा के साथ अपनी
आत्मा को एक कर के किसी दूसरे लोक के लिए प्रयाण किया, अर्थात
दोनों प्रेम भरें आलिंगन के साथ मृत्यु को गले लगा लिया। और उस लोग में पुनः
प्रवेश किया जहां पर कभी कोई मरता नहीं है।
इतना कह कर चेतना ने अपना कहना बंद कर दिया, और राजा के चरणों में
फूलों को रख दिया। और वहाँ से जाने के लिए घूम गई, लेकिन
राजा ने अपनी उत्तेजना के साथ अपने सर को जोर से झकझोर दिया। और वह अपनी लड़खड़ाती
हुई आवाज में अर्थात हकलाते हुए कहा क्या! क्या तुम इतनी जल्दी चली जाओगी, लगभग पहुंचने से पहले? हे मुझे तुम एक और कहानी
सुनाओ, जिससे कि मैं तुम्हारी आवाज़ सुन सकुं। या, यदि तुम चाहो तुम कुछ भी मत कहो वस जहाँ तुम हो केवल वही खड़ी रहो,
जिससे मैं तुमको एक कला कृति की तरह से दखता रहूं। और मैं सिर्फ
तुम्हारी तरफ देखना चाहता हूँ। जिससे अपनी नींद में मैं तुम्हारी मुस्कुराहट के
साथ तुम्हारी गहरी नीली आंखों का रंग के साथ मेरी आत्मा में गहरा उतर जाएगा। और
ऐसा नहीं हुआ तो मैं वहाँ कभी भी स्थिर नहीं रहूंगा। जब तुम चली जाओगी, तो मुझे निराशा से दूर रखने के लिए अपनी आत्मा को किसी और दूसरे रंग से
रंगना होगा। तब वह एक बार फिर राजा की तरफ घूम कर अचानक वह राजा के करीब आ गई। और
अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया। और उसने कहा हे राजा, अब मुझे
जाना होगा। क्योंकि यह समय मेरे यहां से जाने का है। लेकिन रुको यह हो सकता है कि
मेरी मालकिन मुझे दोबारा वापस भेज देगी, क्योंकि कल के लिए
व्यवस्था करने के मामले हैं। और वह राजा के लिए एक बार फिर मुसकुरा दी और जंगल में
पेड़ों के माध्यम से जल्दी से चली गई। जबकि राजा वहाँ स्थिरता के साथ खड़ा था। और
जब वह चली गई, तो उसे देखा और फिर वह नीचे झुक कर अपने पैरों
पर पड़ें शमी के फूलों को उठा लिया। और उसने कहा शमी, तुम
मेरे जैसे, अपने दिल में आग लगाओ और तुम अस्वस्थ के लिए क्या
हो, वह ज़रूर कुछ तुमसे अधिक स्वस्थ करने में समर्थ है,
जिसने तुम्हें मेरे चरणों में रखा है। तुम्हारी तरह मेरे लिए ज़रूरी
थी, लेकिन उसके हाथ के स्पर्श के बाद मेरे हृदय में एक ज्वाला-सी
जल उठी है और यहाँ मैं झील के किनारे पर उसका इंतजार करूंगा और यदि वह नहीं आती है,
तो मैं एक और सुबह देखने के लिए नहीं रहूंगा।
और वह झील के किनारे इंतजार कर रहा था, कभी
उठ रहा था और कभी अत्यधिक अधीरता कारण बैठा जाता था। और उस जगह पर अपनी आंखें तय
कर रहा था जहाँ पर चेतना जंगल के पेड़ों के मध्य में गायब हो गई थी। और इस बीच
घंटों एक दूसरे का पीछा किया, और आकाश में सूर्य उच्च और
उच्च गुलाब के फूलों की तरह से खिलने लगा। और उसकी गर्मी तब तक बढ़ी, जब तक कमल के फूल उस गर्मी के कारण सूर्य के प्रकाश में नीचे बहने वाली
झील पर चांदी की तरह चमकने नहीं लगे। और मछली गर्मी के कारण पानी में सोने के लिए
चली गई थी। और सभी पक्षी पेड़ पर अपने घोसलों में सोने लगे थे। और मधुमक्खियों ने
फूलों पर हमला कर-कर के थक गई थी। और फूलों के रस को पीने के लिए उसमें अपना सराय
बना लिया था। और सारा जंगल जैसे कि इस समय एक कब्र में स्वयं को दफना लिया था। और
पत्तियाँ बागों में घूमना भूल गईं थी और-और तभी इस मायूसी के आलम में राजा ने अपनी
तरफ आती हुई चेतना को एक बार फिर कुछ दूरी पर देखा। जहाँ से वह चली गई थी, वहीं से वह आ रही थी। और वह दीवार पर एक तस्वीर की तरह एक पल के लिए खड़ा
था। जबकि राजा ने उसे एक उत्साह में देखा, अपने दिल की धड़कन
को चुप्पी में प्रसन्नता के गीत को सुनते हुए। फिर, थोड़ी
देर बाद, उसने जादू को तोड़ दिया और चले गए और वह बहुत
धीरे-धीरे उसके पास आई और उसके सामने आकर खड़ी हो गई थी। लेकिन उसने अपने हाथ में
इस समय कुछ भी नहीं लिया। और उसने कहा हे राजा, मेरी मालकिन
कमल की इच्छा रखती है और मुझे उसे अपने भगवान से लाने के लिए भेजा है।
और राजा ने उसे देखा, क्योंकि वह उसके सामने खड़ी थी, उसकी आंखें जमीन पर स्थिर थी। और उसकी लंबी घुमावदार भौंहें उसके गाल पर
छाया की तरह झूठ बोल रही थीं और उसका दिल उसके मुंह में उठ आया। और वह चुप हो गया
और उसने बात करने की कोशिश की, लेकिन उसके होंठों पर शब्द
आने से पहले ही मर गए. तो वे दो जंगल में खड़े थे, जो
स्थिरता से घिरे थे और अंत में, राजा ने बात की और उसने कहा
प्रिय चेतना, एक बात है जो मैं आपसे पूछूंगा लेकिन मुझे डर
है। तब उसने कहा राजा डरता है क्या? और उसने उसे एक पल के
लिए एक मुस्कान के साथ देखा जो उसके होंठ पर होने से लगभग गायब हो गये थे। और उसने
अपनी आंखें नीचे जमीन पर गिरा दी। तब राजा ने कहा चेतना, क्या
तुम मुझे बता सकती हों, क्या मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
या नहीं?
और जैसे ही राजा ने उसे देखा उसके चेहरे पर रंगत आई, और
पुनः चली गई और अंत में उसने धिरे से कहा, वह चिकित्सक कैसे
निर्णय ले सकता है, जो इस प्रेम के लक्षणों को नहीं जानता है?
तब राजा अपने स्थान से उठ कर खड़ा हो
गया। और उसके करीब जाकर खड़ा हो गया, और उसने अपने दोनों हाथ को
उसके पीछे रखे और उन्हें एक साथ चुस्त कर दिया। और उस अपने प्रति झुका लिया,
और कहा इसलिए मैं तुमसे पूछता हूँ, क्योंकि
मैं नहीं कह सकता कि मैं तुम्हारे साथ प्यार करता हूँ। या नहीं। एक बार पहले,
मैंने सोचा कि मैं प्यार में था, लेकिन तब
मुझे लगा जैसे मैं अब करता हूँ, और यदि फिर, मैं प्यार में था, मैं अब नहीं हूँ; और यदि अब, मैं नहीं था, तो और
हो सकता है, तुम मुझे बता सकती हो। क्योंकि तुम बहुत चालाक
हो, जैसा कि मैं नहीं हूँ। क्योंकि जब मैं तुम्हें देखता हूँ,
अँधेरा मेरी आंखों पर फैलता है। और आग मेरे हृदय में के माध्यम से
मेरे नस-नस में उछलने लगती है और दौड़ती है। और तुम्हारी आवाज़ का जादू मुझे बेहोश
कर देती है। और वह मुझे बर्फ के स्पर्श की तरह ठंड में जलन जैसी महसूस होती है। और
एक कवच मेरे अंगों पर लौ की तरह चलता है। और मेरे कानों में एक प्रकार निर्जन शोर
उछालता है। और मुझे नहीं पता कि मैं क्या करता हूँ। और आँसू मेरी आंखों में आ जाते
हैं, और फिर भी मैं खुशी के लिए हँसना चाहता हूँ। और अगर मैं
बात करने की कोशिश करता हूँ, तो मेरी आवाज थरथराती है,
जैसा कि अब करता है और मेरे गले में एक संघर्ष और बाधा आती है। और
मैं सांस लेने की कोशिश करता हूँ। और नहीं कर सकता और दर्द मेरे दिल को बहुत अधिक
दबा देता है। और मुझे क्या लगता है, कि अब मैं कुछ नहीं बता
सकता, लेकिन यह मुझे पता है कि जब तुम मेरे साथ हो, यह मेरे लिए जीवन के समान है। और जब तुम मुझे छोड़ कर चली जाती हो वह मेरे
लिए तो वह मृत्यु के समान है।
लेकिन चेतना शांति के साथ वहाँ पर खड़ी रही, जिसके साथ उसके नीचे
के होंठ कांप रहे थे। और आंसू लग-भग उसकी आंखों से बह कर उसके गालों पर आ गये थे।
और उसके स्तन गहरी सांस लेने की वजह सो ऊपर और नीचे हो रहें थे। और अंत में उसने
अपनी आँखों को ऊपर उठाया और अपनी आँखों के आंसुओं के मध्य में से मुसकुराई और कहाँ
हे राजा यह और अच्छा होगा कि मैं यहाँ से इस समय चली जाऊँ, क्योंकि
यह आपके कहे गये शब्द मुझसे अधिक मेरी मालकिन के लिए ज़्यादा उपयुक्त हैं।
और फिर राजा ने एक गहरी सांस ली, और उसके सामने खड़ा रहा और वह
इधर उधर देखने लगा, फिर वह हंसने लगा और कहा तूने मुझे
निराशा के लिए प्रेरित किया है। और इसके लिए को मुझे परवाह नहीं है। देख लो! कि
मैं एक आदमी और एक मजबूत आदमी हूँ और तुम एक छोटी-सी महिला हो। इसलिए तुम नहीं
जाओगी, क्योंकि तुमने मेरी ज़िन्दगी को मुझसे छिन लिया है।
और अचानक, राजा ने उसे अपनी बाँहों
में कैद कर के कस लिया, और जैसे ही उसने ऐसा किया, वह चिल्लायी और उसकी बांहों से निकलने के लिए वह छटपटाने के साथ कश म-कश
करने लगी। उस समय वह आधी भयभीत और आधी खुश भी थी, उसने कहा आर्य
पुत्र, मुझे जाने दो। क्या आपने अनुमान नहीं लगाया कि मैं
आपकी रानी हूँ?
इसको सुनते ही राज उसको छोड़ कर एक दम
हवा में छलांग लगाते हुए उससे दूर जा कर खड़ा हो गया। जैसे किसी तलवार ने उसके
हृदय को विदीर्ण कर दिया हो। और वह आश्चर्य चकित हो कर खड़ा रहा और चेतना उसको देख
रही थी। और लग-भग अपनी इच्छा के विपरीत उसने मुसकुराना शुरु कर दिया। और उसके
सामने खड़ा हो कर अद्भुत आनंद के साथ उसको घुरता रहा। और उसने जोर से हंसते हुए
आश्चर्यचकित होकर और फिर शर्मिंदगी के साथ और अंत में खुशी से उसके सामने देखी। और
उसने कहा हंसो खुब हंसो, क्योंकि तुम्हारी हंसी मेरे कान के लिए संगीत
है। और मुझे इसका कोई परवाह नहीं है, जब तक तुम मेरे साथ हो।
लेकिन हे तुम भ्रमित हो, यह क्या है? क्या
तुम नहीं थी जिसने मुझे रानी को धोखा देने के लिये मना किया है? और फिर भी तुमने मेरे साथ यह सब प्रेंमालाप किया है?
और तुरन्त, मधु
(चेतना) ने हँसना बंद कर दिया और आँसू उसकी आँखों से ढलते हुए उसके गालों पर गिर
गए और उसने अपने पति को एक मुस्कुराहट के साथ देखा और अचानक वह उसके पास आई। और
उसे हाथ से पकड़ कर अपने साथ ले गयी, और उसने उसे वहाँ से
दूर ले गई, और वह उसके चरणों में बैठ गयी, और कहा तुम वहाँ बैठो ऊंचे स्थान पर बैठो और मैं तुम्हें बताऊंगी। तब वह
दाहिने ओर राजा के बगल में घुटने टेक कर बैठ गई, और अपना
दाहिना हाथ उसके चारों ओर रख दिया और अपना बायाँ अपने आप में ले लिया। और उसने कहा
मूर्खता पूर्ण और क्या तुम सोचते हो, क्योंकि कोई प्रकाश के
रूप में हल्का था कि अन्य सभी महिलाएँ समान थीं? और क्या
आपको यह भी लगता था कि तुम्हारी ज़िन्दगी किसी महिला के अमृत के बिना पारित किया जा
सकता है? अब सुनो और मैं तुम्हें बताऊंगा, जो तुम नहीं जानते हो। क्योंकि जब मेरे पिता ने मुझे तुम्हें चढ़ाने के
लिए भेजा था, तो मैंने भी अपने दूत को भेजा, जिसने मुझे आपके बारे में मुझको सब कुछ बताया था। और मैंने तुम्हें कभी
देखा है इससे पहले कि मैं तुमसे प्यार करती थी और मैंने दृढ़ संकल्प किया कि यह
आपके साथ समान होना चाहिए। और मैंने आपको लंबे समय अपने आप से दूर रखने का प्रयास
किया, यह नहीं जानकर कि मैं कौन थी? और
एक दिन मैं कमज़ोर थी और वह दिन था जब मैं तुम्हारे पास नहीं आया थी। और मैंने इसे
तुम्हारे लिए रोने में पारित किया और दूर रहने के लिए मैं जितना कर सकता थी उससे
कहीं अधिक किया था। और अब, मैं तुम्हें दिखाऊंगी कि जिसको आप
कभी नहीं जानते, आपके जीवन की मिठास। जब तू प्रसन्न होता है,
तो मैं तेरे सारे आनन्द को दोगुना करूंगी; और
जब तू उदास होता है, तो मैं तेरे दु: ख को रोकूंगी और उसे
हटा दूंगी और आनन्द से गहराई से तेरा आनन्द होगा। और जब तुम अच्छी तरह से हो,
मैं तुम्हारी आत्मा को मनोरंजन और विविधता से भर दूंगी। और जब तुम
बीमार होगे, तो मैं तुम्हारी देखभाल करूंगी। और यदि तुम थके
हुए होगे, तो तुम मेरी छाती पर सो जाओगे और यह तुम्हारा
तकिया होगा। और रात और दिन मेरी आत्मा तुम्हारे साथ रहेगी और तुम्हारे चारों ओर
मेरी बाँहों के साथ रहेगी। और जब तुम मुझे नहीं चाहते हो, तो
मैं अनुपस्थित हूँ; और जब तुम मुझे दोबारा चाहो, मैं वहाँ रहूंगी और यदि मैं तेरे सामने मर जाऊँ, तो
यह ठीक है और तू मुझे याद करोगे, परन्तु यदि तू मुझे पीछे
छोड़ देते हो, तो मैं अग्नि के माध्यम से आपका पीछा करूंगी।
क्योंकि मैं तुम्हारे बिना नहीं रहूंगी, एक दिन के लिए भी
नहीं। एक सपने की तरह और चांदनी की तरह और एक छाया एक तालाब की सतह पर जैसे रहता
है। मेरे लिए कुछ भी नहीं गायब होना चाहिए, जब मुझे पदार्थ
और उसकी वास्तविकता का ज्ञान दिया गया है। मैं क्या हूँ, यद्यपि
इन दो आत्माओं कि एक प्रति और एक जीव की गूंज जो आप है? मेरा
कर्तव्य और धर्म, आपको ध्रुव मान कर मँडराना और आपकी अरुंधती,
तुम्हारी रती और आपकी राधा, तुम्हारी चक्की और
तेरे क्षेत्र भुमी, आपकी शक्ति और आपकी जुड़वां हूँ? मुझे केवल अपने प्यार के पहाड़ के साथ और दूधिया के महासागर की तरह मत
रखना। मैं आपको अपना सब कुछ समर्पण कर दूंगी, और आपको
दिखाऊंगी कि एक वफादार पत्नी के सौंदर्य से जो मक्खन है। और जो युवाओं की शराब है
और खुशी का पेय है, और नमक हंसी, लहरों
में जो झाग हैं और समुद्र में जो से पैदा हुआ है। और मैं तुझ पर एक अमृत और एक
कपूर और कमल के एक मीठे आनंद की वर्षा करूंगी। और आपको अपने जीवन का सार और स्वाद
को दिखाऊंगी। और तुम्हारे पास वह मेरे बिना होगा, यह खाली था
और बिना किसी अर्थ के एक शब्द और एक चंद्रमा के बिना रात।
और फिर राजा ने उसका सिर अपने हाथों में रख लिया और उसने उसकी आंखों में
देखा, और पता किया की उसके शब्द सच्चाई के काबिल जबाव थे। और अचानक, एक हिंसक प्रयास के साथ, उसने उसे खुद से दूर कर दिया और खड़ा हुआ, अपनी खुशी के जुनून के लिए, उसके दिल से अधिक सहन हो
सकता था और फिर एक पल में वह उसके पास लौट आया। और उसने कहा, प्रिय, आप कुछ भूल गई हैं। और उसने कहा क्या?
तब उसने कहा क्या तुम झील से अपनी मालकिन के लिए कमल नहीं ले जाओगी?
तब चेतना खुशी से हँसने लगी, और उसने कहा हे राजा, तूने ठीक कहा है और वे एक साथ हो गए और झील की तरफ चले गए। और जैसे ही वे
गए, राजा ने उसे देखा और थरथराया और उसने खुद से कहा फिर भी
उसने मुझे चूमा नहीं है। और यह अभी भी आना बाकी है। फिर वे झील के पास पहुंचे और
उन्होंने उसके किनारे पर एक बढ़ते हुए कमल पाया। और राजा ने कहा तू इसे फेंक देगी,
और मैं तेरे हाथों से इसको पकड़ूंगा, ऐसा न हो
कि तू पानी में गिर जाए और वह उसे अपनी बाँहों में ले लिया। और वे झील में झुक गए
और चेतना ने कमल के लिए अपने हाथ को आगे बढ़ाया। तब राजा ने उसके कान में
फुसफुसाया देखो, मैंने तुम्हें पानी के पास लाया हुं। एक के बजाय आपके दो चेहरे हो सकते हैं। अब,
मैं किसको चुंबन दूंगा और जो मुझे चूमता है, चेतना
या रानी है?
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