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ज्ञान शक्ति और धन

 नमस्कार मित्रों आप सभी का हमारे ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान साइट पर स्वागत है।

  आज हम ज्ञान शक्ति और धन पर विचार करने के लिए आप सब के सामने उपस्थित हुआ हूं। 

   ऋग्वेद का एक मंत्र है, जो कहता है कि "यदि ज्ञान वान मनुष्य, शक्ति वान मनुष्य, और धन वान मनुष्य एक साथ हो जाते हैं, और उनके मध्य में किसी प्रकार का वैचारिक मतभेद नहीं होता है, और यह एक साथ एक लक्ष्य को लेकर कार्य करते हैं, तो यह अपने सभी कार्य में सफल होते हैं, इसके साथ यह जिस राष्ट्र में होते हैं वह राष्ट्र सदा समृद्धि की नवीन ऊचाइयों को निरंतर उपलब्ध करता है।" यही बात व्यक्तिगत जीवन पर, पारिवारिक जीवन पर, सामाजिक जीवन पर, राष्ट्रिय जीवन पर, और वैश्विक स्तर पर समृद्धि को उपलब्कध करने का मंत्र या प्रमुख साधन है।

  क्योंकि हम सब जानते हैं, किसि व्यक्ति या परिवार या समाज या देश या विश्व के लिए तीन वस्तु परम आवश्यक है, इसको त्रैतवाद समृ्द्धि का सिद्धांत कह सकते हैं, सभी को समान रूप से ज्ञान शक्ति, और धन की जरूरत होती है, इस प्रकार से हम सब समझ सकते हैं कि इस विश्व में मानव जीवन को समृद्ध करने के लिए यह तीन वस्तु विकास और पतन के लिए उत्तरदाई हैं। जब इनका मनव जीवन या समाज में सतुन होता है, तो विकास होता है और जब इनमें असंतुलन होता है, मानव जीवन के साथ परिवार समाज देश और किसी ना किसी प्रकार से संपूर्ण विश्व ही अशांत और अस्थिर रहता है, आज हम सब इसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार कर सकते है, ना ही किसी मानव के जीवन में शांति है और ना ही परिवार में है और ना ही देश हर कोई एक दूसरे से लड़ रहा है, इसका मूल में जो मुख्य कारण है वह धन ज्ञान और शक्ति में संतुलन नहीं हैं, कोई बहुत अमीर है, तो कई बहुत अधिक गरीब है, तो कोई बहुत अधिक शक्तिशाली है तो कोई बहुत अधिक कमजोर है, यह असामनता विश्व में देश के स्तर पर समाज और परिवार के स्तर पर साफ दिखती है, और इस असमानता का कारण है कि लोगों के विचार में मतभेद है। जैसा कि मतंर् इसकेे विपरित बात कह रहा है। 

   मंत्र यहां पर तीन प्रकार के मनुष्यों के समुह की बात कर रहा है, और यह तीन प्रकार के मनुष्य ज्ञान शक्ति और धन में जो श्रेष्ठ है उनके लिए उपदेश किया जा रहा है, इस प्रकार से यह तीन मनुष्य एक साथ एक दिशा में एक विचार से एक मत हो कर कार्य करते है वह देश समृद्ध होता है। 

    सबसे मुख्य बात वैचारिक मतभेद नहीं होना चाहिए इनका विचार एक स्थान पर एक होने चाहिए जब बात देश की हो समाज की हो और मानवता के कल्याण की बात हो, प्रत्यक्ष देखने में ऐसा कम ही आता है, लेकिन जब ऐसा वास्तव में लोग एक साथ हो कर कार्य करते है, तो सृमृद्धि में किसी प्रकार का संसय नहीं रहता है। 

    अब ज्ञान शक्ति और धन को बारी बारी समझते हैं।

  ज्ञान    

    यहां ज्ञान का अभिप्रय किसी प्रकार की जानकारी से नहीं है, क्योंकि जानकारी किसी भी प्रकार की हो वह किसी सिमित दायरे की ही बात या विषय को परिभाषित करने में समर्थ होता है, उदाहरण के लिए आपके पास किसी कार को बनाने की जानकारी है, तो इसको ज्ञान वेद का मंत्र नहीं कहता है, यह तो भौतिक वस्तु की जानकारी है, गुण और गुणी का संबंध जैसे वृक्ष को काट कर लकड़ी का उपयोगी समान बना इत्यादि। ज्ञान का सन्दर्भ मनुष्य के अस्तित्व या उसकी चेतना अथवा उसकी आत्मा से है। यहां चेतना अथवा ज्ञान का मतलब है जो जड़ स्थिर वस्तु को गती देता है निर्जीव वस्तु में जो जीवन का प्रवाह करता है वह ज्ञान है। 

   ज्ञान का मतलब ऐसा तत्व है जो सूक्ष्म से सूक्ष्मतर है, और चेतन है, दूसरी बात ज्ञान समय को सत्ता को समाप्त कर देता है, अर्थात समय का अतिक्रमण कर देता है, इस प्रकार से हम कह सकते हैं, कि ज्ञान ऐसा तत्व है जो समय को नियंत्रित करता है, अथव ज्ञान वह है, जो अदृश्य है, ज्ञान वह है, जो चेतन है, ज्ञान वह है, जहां पर गुरुत्व है, जिससे गुरु उत्पन्न होते है, और वह साधारण मानव का नेतृत्व करते है, अर्थात ज्ञानवान पुरुष ही ज्ञानियों को अपनी तरफ आकर्षित करता है, अज्ञानि व्यक्ति अपनी तरफ अज्ञानीयों को आकर्षित करता है, अशांत व्यक्ति ही अपनी तरफ अशांति को आकर्षित करता है, निर्धन व्यक्ति निर्धनों को अपनी तरफ आकर्षित करता है, जो जैसा होता है वह उसी प्रकार वस्तु को अपनी तरफ आकर्षित करता है। दूनिया में अशांति है, अज्ञान है, निर्धनता है, इसका मतलब सिधा सा है की दुनिया में जो मानव चेतना है वह इसी प्रकार की वस्तु या तत्व को अपनी तरफ आकर्षित करती है। 

   क्योंकि ज्ञानवान पुरुष को ही गुरु कहते हैं, और गुरु से ही गुरुत्वाकर्षण बनता है, अर्थात गुरु का आकर्षण, इसलिए हम यह कह सकते हैं कि ज्ञान में भौतिक वस्तु को आकर्षण करने का सामर्थ है, और यह ज्ञान ही गुरुत्वाकर्षण का उत्पादन करता है, जिसके द्वारा ही इस पृथ्वी पर सभी वस्तु अपने स्थान पर स्थित है, जब ज्ञान की कमी होगी तो गुरुत्वाकर्ण की कमी होगी और लोग भार मुक्त होगे, अर्थात वह धीरे धीरे नीर्जीव भौतिक वस्तु में परिवर्तित होते जाएंगे, जिससे पृथ्वी पर जीवन का नाश होगा। 

     जिस प्रकार से एक मृत व्यक्ति के पास कोई भी रहना नहीं चाहता है, उसी प्रकार से इस पृथ्वी पर या इस शरीर में मानव चेतना का रहना असंभव हो जाएगा। 

    यद्यपि ज्ञान स्वयं भार मुक्त है, फिर भी यह सभी प्रकार के भार को अपनी तरफ खीचता है, और उसके साथ स्वयं को एकाकार कर लेता है।   

   यह ज्ञान रूपी चेतना या तत्व स्वयं समयातित है, फिर भी यह सभी सभी भौतिक वस्तु के समय को निर्धारित करता है।

   शक्ति

   दूसरी बात शक्ति की है, शक्ति एक तत्व है, जिसको एक ज्ञानवान व्यक्ति ही धारण करता है, जैसा का संस्कृत की एक युक्ति है, बुद्धिर्यस्य बलमं तस्य, बुद्धिर्हिन वलम तस्य , अर्थात बद्धि ज्ञान में ही शक्ति है, बुद्धि ज्ञान हीन व्यक्ति में शक्ति नहीं होती है, क्योंकि हाथी के पास बहुत बड़ी शक्ति होती है, लेकिन उसके एक शेर उससे शरीर में बहुत कम होता है फिर भी उसको मार देता है। 

    शक्ति का संबंध ऊर्जा से है, और यह भौतिक ऊर्जा का उत्पादन है, यद्यपि ज्ञान भौतिक ऊर्जा का उत्पादन नही है, वह भौतिक ऊर्जा का कारण है, जिससे भौतिक ऊर्जा का उत्पादन होता है, हम स्वयं देख सकते हैं, कि जब मानव शरीर में आत्मा के होने पर भी यदि उसको अन्न खाद्य पदार्थ कुछ दिनों तक नहीं दिया जाता है तो वह कमजोर हो जाता है, और धीरे धीरे जीर्ण शिर्ण हो कर नष्ट हो जाता है, यहां पर आत्मा का नाश नहीं होता है, यद्यपि भौतिक शरीर का नाश होता है।

    क्योंकि मानव शरीर की स्थिति विकास और अपने सभी प्रकार के क्रिया कलाप को करने के लिए शक्ति चाहिए ऊर्जा चाहिए, जैसा की आइस्टिन कहता है, की सभी भौतीक वस्तु ठोस का मूल ऊर्जा ही है, इन्हें पुनः ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है, बिना शक्ति के मानव शरीर बेकार हो जाती है, मानव जब अन्न का खाद्य के रूप में उपयोग करता है, तो उसके शरीर में उससे रस बनता है, और रस से खून बनता है, और खून से मांस बनता है, और मांस से मज्जा बनता है, और मज्जा से मेद बनता है, और मेद से हड्डी बनती है, और हड्डी से वीर्य बनता है, जिससे पुनः नई शरीर को उत्पन्न किया जाता है। और इस वीर्य की रक्षा को ही हमारे प्राचीन ऋषि महर्षि ब्रह्मचर्य के नाम पुकारते है, और कहते हैं कि इस ब्रह्मचर्य की शक्ति से देवताओं के राजा इन्द्र मृत्यु को जीत लिया है, और स्वयं देवताओं का राजा बना है, यह इन्द्र कोई और हीं हमारे शरीर में रहने वाली हमारी आत्मा ही है, जिसको हम ज्ञान कहते है, आत्मा इस ब्रह्मचर्य की शक्ति से ही इस शरीर का स्वामी बनती है, जिसमें सभी प्रकार के देवता निवास करते हैं। 

  धन

   जब मानव शरीर शक्ति शाली होती है, तो धन भौतिक धनों में जो सबसे बड़ा धन मानव शरीर हैं उसको आसानी से प्राप्त कर लेती है, और भौतिक धन परिवार समाज  देश से प्राप्त करने में कोई अधिक कठीनाई नहीं होती है, क्योंकि इसके पास ज्ञान और शक्ति होती जिससे यह धन को सृजन कर लेती है।

   जिस मानव परिवार समाज देश या विश्व में यह तीन वस्तु संतुलित नहीं होती है, अर्थात ज्ञान शक्ति और धन साथ में विचारों में समानता वहां पर अस्थिरता, अशांति, और दरिद्ता का निवास होता है, इसके साथ मृत्यु का भय उस समाज पर हमेशा बना रहता है, आप स्वयं आज संसार के उपर एक शरसरी दृष्टि को डाल कर देख सकते हैं, परिवार समाज, देश और संपूर्ण विश्वम किसी वस्तु की सबसे अधिक अधिकता विद्यमान है, और किस वस्तु का तीव्रता से विकास हो रहा है, आप ध्यान से देखेंगे तो आपको अस्थिरता, अशांति, और दरिद्ता का सम्राज्य बड़ी तीब्रता से बढ़ रहा है, आज जो सभी में अशांति हैं अस्थिरता और दरीद्ता का निवास हो रहा है उसका कारण है, जिसका अर्थ सिर्फ इतना है, कि परिवार समाज देश या विश्व में ना ज्ञान संतुलित है, ना ही शक्ति का संतुलन है, और ना ही धन का ही संतुलन अथवा समानता है, लोग एक दूसरे सो परास्त करने के जुगाड़ में लगे हैं, इसके अतिरिक्त सभी में किसी ना किसी प्रकार की वैचारिक मतभेद भी विद्यमान है, जिसके कारण ही आज विश्व में मानव और मनवता सुरक्षित नहीं है, अतृप्ति  असंतुष्टि तृष्णा का विस्तार निरंतर हो रहा है जिसी वजह से दरिद्ता का विस्तार निरंतर हो रहा है,, लोग उपर से तो भौतिक रूप से बहुत धनी प्रतीत होते हैं वास्तवीक्ता इसके वीपरित है, लोग अपने अंदर से कंगाल हो रहें है।

   इसलिए हमें एक बार फिर से विश्व के संपूर्ण  घटना क्रम पर अपने ध्यान को केन्द्रित करना होगा है, और इन तीन वस्तु में ज्ञान धन और शक्ति के साथ वीचारों में एक प्रकार से सामन्जस बनाने के लिए पुरुषार्थ करना होगा जैसा की वेद का मंत्र कहता है।

   आशा करता हूं हमारा एक तुक्ष्य प्रयास आपके जीवन में एक नए प्रकाश की किरण को फैलाएगा, फिर हम किसी दूसरे मंत्र विचार करने के लिए उपस्थित होगें। 

   यदि आपको किसी प्रकार का संसय है तो कमेंटकर सकते हैं हम आपके संसय को दूर करने के लिए यहां हमेशा उपस्थित रहते हैं।

  मनोज पाण्डेय अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान        

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