नमस्कार मित्रों आप सभी का हमारे ज्ञान
विज्ञान ब्रह्मज्ञान साइट पर स्वागत और अभिनंदन है, आज हमारा प्रश्न है? क्या सच में संसार में है या फिर यह हमारी कल्पना मात्र
है, आज हम इस विषय
पर बात करेंगे।
हमारे सामने जो कुछ भी दिखाई देता है, क्या वह वास्तव में है वह वैसा ही
है जैसा हमें दिखाई देता है, तो आप में से बहुत से लोग कहेंगे की हां यह है, और कुछ ऐसे ही भी लोग हैं जो कहेंगे
कि जैसा हमें दिखाई देता है वैसा नहीं है, यहां पर पहले प्रकार के जो लोग हैं उनकी संख्या बहुत अधिक है, जो यह सिद्ध करते हैं और अपने जीवन
की सारी शक्ति को यह सिद्ध करने में ही व्यतीत करते है, की संसार है जैसा उनको दिखाई देता
है वह सच में हैं, लेकिन
जिनकी संख्या बहुत कम इस दुनिया में बची है वह लोग कहेंगे की दुनिया संसार जैसा दिखाई
देता है सच में वैसा नहीं है, जो पहले प्रकार के लोग हैं वह प्रायः साधारण सामान्य बुद्धि के मनुष्य
हैं, लेकिन जो
वैज्ञानिक बुद्धि के मनुष्य हैं, वह कहेंगे की दुनिया नहीं या संसार नहीं है, उदाहरण के लिए महान वैज्ञानिक
आइस्टिन की बात को मान लेते हैं वह कहते हैं, संसार में जितनी भी वस्तु कठोर रूप में दिखाई देती है वास्तव
में वह एक प्रकार की ऊर्जा है, अर्थात एक प्रकार की विद्युत है, और दूसरी बात कहते हैं कि जितनी अधिक गुरुत्वाकर्षण अधिक
होगा उतना ही अधिक समय की रफ्तार कम हो जाती है, जहां पर जितना कम गुरुत्वाकर्षण होगा वहां पर उतना ही समय की
रफ्तार तीव्र होगी। यह दो सिद्धांत प्रमुख रूप से आइस्टिन के हैं, जिससे सिद्ध होता है कि समय की भी
सत्ता नहीं है, समय की
सत्ता वहां वहाँ पर होती है जहां पर गुरुत्वा कर्षण होता है, जहां पर किसी प्रकार का गुरुत्वा
कर्षण नहीं हैं वहां पर समय की भा सत्ता नहीं है, अर्थात अंतरिक्ष में जहां पर गुरुत्वा कर्षण नहीं नहीं है
वहां पर समय की सत्ता नहीं है, या फिर हम यह कह सकते हैं, की जहां पर गुरुत्वाकर्षण अधिक है वहां समय की रफ्तार कम हैं
जहां पर बहुत भंयकर गुरुत्वाकर्षण है, उदाहरण के लिए ब्लैकहोल का गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक है, आज तक जितना भी अधिक जाना गया है, ब्लैक होल से अधिक किसी की भी
गुरुत्वा कर्षण नहीं है, अर्थात समय की सत्ता ब्लैक होल में नहीं होती है, और जहां पर समय की सत्ता नहीं होती
है, वह पर जीवन और
मृत्यु भी नहीं होता है, दूसरी बात की सभी प्रकार की ठोस वस्तु एक प्रकार की ऊर्जा है, इससे यह सिद्ध होता है, की ना जीवन है और ना ही मृत्यु ही
है, फिर क्या है, संसार है, जब जीवन और मृत्यु के साथ समय की
सत्ता भी नहीं है, तो संसार
कैसे हो सकता है, तो जो
हमें दिखाई देता है वह सब कुछ हमारी कल्पना और एक प्रकार के स्वप्न से अधिक नहीं
है, हम सब स्वप्न
में ही बहुत प्रकार के नए स्वप्न को देखते हैं।
संसार में अर्थात इस पृथ्वी पर आज हमें जो भी
उपस्थित दिखाई देता है वह केवल विद्युत हैं, इसलिए वेदों को विद्युत ज्ञान कहते हैं, और ब्लैक होल सभी मानव के अस्तित्व
के साथ जुड़ हुआ है, जहां पर समय की सत्ता समाप्त हो जाती है, इसलिए तो हमारे प्राचीन ग्रन्थ कहते हैं,कि हमारा ना ही जन्म होता है और नहा ही
हमारी मृत्यु होती है, हम सब भी एक विद्युत पुंज हैं, जिसका कभी ना ही जन्म होता है और ना ही उसका मृत्यु ही होती
है, जो हमें दिखाई
देता है वास्तव में वह नहीं है, इस प्रकार से हम कह सकते हैं की संसार है ही नहीं और जो है ही नहीं उसको
हम सब साधारण मनुष्य यह सिद्ध करने का प्रयास आजीवन करते हैं, की है इससे जो घटना घटती है वह बहुत
अधिक खतरनाक है, जो हैं
उसको हम अस्वीकार कर देते हैं और जो हैं उसको स्वीकार कर लेते हैं, संसार जो नहीं है उसको हम सब यह मान
कर चलते हैं कि है, जहां पर
हम सब स्वतंत्र हैं हम सब इस विश्व ब्रह्मांड को बनाने वाले हैं उसको हम सब यह मान
लेते हैं कि नहीं इसको बनाने वाला कोई हमसे दूसरा है जो कहीं हमसे अलग रहता है
जिसे हम सब ईश्वर के नाम से जानते है, लेकिन हमारे भारतीय वैदिक दर्शन इसके विपरीत कहते हैं कि यह
संसार नहीं है, केवल हम
है और हम इस विश्व ब्रह्मांड के बनाने वाले हैं, इसका पालन करने वाले और इसका संरक्षण करने वाले है।
ऋग्वेद में नासदिय सूक्त के नाम से एक आख्यान
प्रस्तुत किया गया है, जिसमें बताया गया है कि जब कुछ भी नहीं था ना दिन था ना
रात्रि थी ना सूर्य था ना चांद था ना यह विश्व ब्रह्मांड ही था, उस समय एक अगाध अंधकार था, वह किस वस्तु से बना था इसके बारे
में भी किसी प्रकार की जानकारी नहीं क्योंकि सभी वस्तु जो भी उत्पन्न हुई है, वह सब बहुत बाद में प्रकट हुई है, ऋषि कल्पना करते हैं, कि एक शक्ति थी जिसको परमेश्वर के नाम से वह व्यक्त करते हैं, उसने इच्छा की या कामना की और उसकी
कमाना से मन से और से वाणी और वाणी से ऊर्जा का एक विशाल पुंज प्रकट हुआ और क्रमशः
धीरे - धीरे यह विश्व ब्रह्मांड सूर्य पृथ्वी और यहां पर तरह - तरह की जीव और प्राणी उत्पन्न हुए।
यह सब कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है की यह आज
भी हमारे साथ हो रहा है, हमारे शरीर के अंदर एक अगाध अंधकार है, और उसमें एक शक्ति विद्यमान हैं, जिसको कुछ लोग आत्मा कहते हैं, किसी ने भी आज तक उस आत्मा को देखा
नहीं है, लेकिन
उसकी सत्ता है, और जहां
पर यह आत्मा रहती है वहां पर दिन रात का कोई भेद नहीं है, और वहां पर ना ही कोई सूर्य हैं, ना ही पृथ्वी है, ना चंद्रमा है, और वहां पर कोई भी किसी प्रकार की
कोई भौतिक सामग्री भी नहीं है, फिर भी वह अपनी इच्छा मात्र से अपने सारे क्रिया कलापों को करती है, जब हमारी भौतिक शरीर निद्रा अवस्था
में होती है, तो हम सब
अपने स्वप्न में संसार में रहते हैं, और वहीं कार्य करते हैं जो कार्य हम सब अपनी भौतिक शरीर के
जागृत अवस्था में करते हैं। मंत्रों में भी ऐसा आता है की यह मन सोते और जागते हुए
एक समान कार्य करता है, अर्थात यह जागृत और स्वप्न में किसी प्रकार का भेद नहीं करता है, यह दोनों में समान रूप से गति करता
है, यह कोई तीसरी
शक्ति है, जो इस
भौतिक जगत में नहीं है, जो भौतिक है जिसके लिए अपने सर्वस्व त्यागने के लिए तैयार होते हैं वह
सत्य में हैं ही नहीं हैं। इसका कार्य इसके बीना भी चल सकता है, अर्थात हम सब के पास एक अद्वितीय
शक्ति है, जो हम
संसार को बनाने और इसको मिटाने का सामर्थ्य देती है, संसार को बनाने का फायदा संसार को बनाने के मतलब सिर्फ इतना
है की भौतिक शरीर का उत्पन्न होना और इसका पालने पोषण करना और एक समय के बाद इसका
अंत करना है, इसी के
मध्य में संपूर्ण संसार के सभी प्रकार के कार्य आ जाते हैं। दूसरा इस संसार को अंत
करने के फायदे पहली बात जो है, ही नहीं उसके आप समाप्त किसी प्रकार से नहीं कर सकते हैं, मान लीजिए की आपने अपने
कल्पना में संसार को बनाया तो इसको अपनी काल्पनिक वस्तु मानकर समाप्त भी कर सकते
हैं, यहां पर एक बहुत
बड़ी समस्या यह खड़ी हो जाती हैं की आप इसको समाप्त करने में अपने को असमर्थ
पाते हैं क्योंकि आप मान लेते हैं, की आपने इसको बनाया है, आप इसको मिटा नहीं सकते हैं, वास्तव में यह बना ही नहीं यह तो मात्र आपकी कल्पना में ही
विद्यमान है।
ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि आपकी चेतना या
आत्मा सच में एक ब्लैक होल में विद्यमान हैं जो कहीं आपके मस्तिष्क में विद्यमान
हैं, जहां पर समय की
कोई सत्ता नहीं है, और जहां
पर किसी प्रकार का कोई भौतिक संसार या शरीर नहीं है, इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं, कि यह जो कुछ हम देख रहे हैं, वह सच में कहीं पर भौतिक रूप से
नहीं है, इसलिए यह
सब झुठा और असत्य है, और अज्ञान पूर्ण है, जब यह सब अज्ञान पूर्ण है तो फिर ज्ञान क्या है, यह भी प्रश्न उठता है, तो ज्ञान सत्य या चेतना क्या है तो
इसका उत्तर है, की जिसने
यह सब भ्रमपूर्ण जगत को निर्मित किया है और जिसको इसका ज्ञान हो जाता है कि यह
मात्र उसकी स्वयं की एक प्रकार की मानसिक कल्पना मात्रा है वह संसार से मुक्त हो
जाता है अर्थात वह शरीर में तो रहता है मगर शरीर से स्वयं को भिन्न अनुभव करता है, वह भौतिक जगत में रहता है लेकिन वह
स्वयं क भौतिक नहीं मानता है, वह स्वयं इस भौतिक जगत को चलाने वाली शक्ति या ऊर्जा मानता है जिस प्रकार
से कोई यंत्र बिना बाहरी ऊर्जा या शक्ति के नहीं चलता है, उसी प्रकार से एक प्रकार की बाहरी
शक्ति है, जिसके
बारे में हम सब को पूर्ण रूप से जानकारी नहीं है।
ऐसा नहीं है कि इसकी हमें कभी भी जानकारी नहीं थी हमारे पहले के महापुरुष इसके बारे में अच्छी तरह से जानते और इसका
साक्षात्कार करने में समर्थ थे जिसके कारण ही उन्होंने ऐसे शास्त्रों का सृजन किया
है जिसको कालजई अर्थात जिसपर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि उसका
मुख्य आधार या नींव ही वहां पर रखी गई है जहां पर समय या जीवन मृत्यु अथवा भौतिक
संसार की सत्ता ही नहीं है, इसलिए हम दृढ़ता के साथ कह सकते हैं कि संसार नहीं है पूर्णरूपेण नहीं
है।
हमारे ऋषि महर्षियों ने इसी ज्ञान को विकसित
करने के लिए उन्होंने ऐसी शिक्षा पद्धति को सृजित किया जिसका उद्देश्य ही मानव को
इस भौतिक संसार अर्थात मृत्युलोक से मुक्त होने में सहायता प्रदान करता है, वह शास्त्र आज भी कुछ अंश में हमारे पास उपलब्ध है, लेकिन आज उस मार्ग पर चलने वाले लोग ही नहीं हैं। आज का मानव
जो भौतिक धन को केन्द्र मानकर उसके ही चारों तरफ चक्कर काट रहा है और अंत में वह
इस भौतिक धन संपदा के चक्रव्यूह में फंस जाता है जिससे मुक्त होना असंभव हो जाता
है।
इस चक्रव्यूह से निकालना ही हमारी संस्था ज्ञान विज्ञान
ब्रह्मज्ञान का कार्य है।
मनोज पाण्डेय
अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान
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