देवपुत्र मनुष्य नाम वेदर चक्षु सनातन
वेदों को देव पितर एवं मनुष्यों का सनातन चक्षु कहा गया है मनु महाराज के अनुसार तीनों कालों में इनका उपयोग है और सब वेद से प्राप्त होता है भूतों भव्यम भविष्य में सरवन वेदा प्रसिद्ध थी भारतीय मान्यता के अनुसार वेद ब्रह्म विद्या के ग्रंथ भाग नहीं स्वयं ब्रह्मा है शब्द ब्रह्म है ब्रह्मांड भूति के बिना वेद ब्रह्म का ज्ञान संभव नहीं है अर्थात जिसने वेद ब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया है वहीं वेद की स्तुति अर्थात व्याख्या की अधिकारी होते हैं अतापी प्रत्यक्ष प्रीता इस तो तारो भवंति निरुक्त 712 कहते हैं कि वैदिक वांग्मय में संपूर्ण देवता समाए हुए हैं जो उन्हें जान लेता है वह उनमें समाहित हो जाता है तात्पर्य है कि जिन्हें आज दृष्टि प्राप्त है वही वेद ब्रह्म के सत्य का दर्शन कर सकते हैं और वैदिक प्रति को एवं संकेतों को तथा वैदिक भाषा के रहस्य को समझ सकते हैं इसलिए वेदो की मूल चार संहिता ओं ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद के साथ ब्राह्मण भाग भी संलग्न रहता है जो इन संहिता ओं मंत्रों की व्याख्या करता है इसे ब्राह्मण भाग के बिना इन वेदों के मूल मंत्र अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाते ब्राह्मण की ब्राह्मण आरण्यक और उपनिषद a3 विभाग हैं जो प्रत्येक संस्थाओं के अलग-अलग हैं मंत्र तथा ब्राह्मण दोनों को ही वेद कहा गया है मंत्र ब्राह्मणों रवीद नाम मध्यम इसमें ज्ञान विज्ञान के साथ ब्रह्म ज्ञान आध्यात्मिक आज देवी एवं आदि भौतिक समस्त पक्षों का प्रतिपादन है वस्तुतः वेद धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थ ओं का प्रतिपादन करते हैं जिनकी व्याख्या वेदा अंगों के द्वारा स्पष्ट होती है अतः इन वेदांग ओं का भी अतिशय महत्व है ए वेदांग छह प्रकार के हैं शिक्षा कल व्याकरण निरुक्त छंद और ज्योतिषी इसके साथ ही चारों वेदों के चार वेद भी हैं आयुर्वेद धनुर्वेद गंधर्व वेद स्थापत्य वेद सर्वसाधारण के लिए वेद के अर्थ युवाओं को अत्यधिक स्पष्ट करने की दृष्टि से ऋषि महर्षि ओं द्वारा इतिहास एवं पुराणों की रचना की गई है इतिहास पुराना बयान बेदम समूह पर वृहद वेदों का बृहण इतिहास और पुराणों द्वारा ही हुआ है अर्थात वेदार्थ का विस्तार इतिहास पुराणों द्वारा किया गया है अतः इतिहास पुराणों को पांचवा वेद माना गया है इतिहासम पुराना पंचम वेदा नाम बेदम छांदोग्य उपनिषद इतिहास के अंतर्गत रामायण और महाभारत आदि ग्रंथ आते हैं तथा पुराणों में भगवान वेदव्यास द्वारा रचित 18 महापुराण एवं सभी उप पुराण समन्वित है वेदों का प्रादुर्भाव वेद के प्रादुर्भाव के संबंध में यद्यपि कुछ पाश्चात्य विद्वानों तथा पाश्चात्य दृष्टिकोण से प्रभावित यहां के भी कुछ विद्वानों ने वेदों का समय निर्धारण करने का असफल प्रयास किया है परंतु वास्तव में प्राचीन काल से हमारे ऋषि महर्षि आचार्य तथा भारतीय संस्कृति एवं भारत की परंपरा में आस्था रखने वाले विद्वानों ने वेद को सनातन नित्य और अपौरुषेय माना है उनकी यह मान्यता है कि वेद का प्रादुर्भाव ईश्वरी ज्ञान के रूप में हुआ है जिस प्रकार ईश्वर अनादि अनंत और अन्य स्वर है उसी प्रकार वेद ही अनादि अनंत और अनश्वर हैं वेद अमर और शाश्वत हैं वेद अमर और शाश्वत जिसके लिए हम इसलिए उपनिषदों में वेदों को परमात्मा का निवास कहा गया है वेदों के महान भारत सरकार श्री आचार्य जी ने अपने वेद भाषा में लिखा है यस या नेहा स्वास्थ्य वेदा यू वेदोमो अखिलम जगत निरमा में तमाम बंदे विद्या तीर्थम महेश्वरम सारांश यह है कि वेद ईश्वर का निवास है अतः उन्हें परमेश्वर द्वारा निर्मित है वेद से ही समस्त जगत का निर्माण हुआ है इसलिए वेदों को अपौरुषेय कहा गया है उपनिषद में यह बात आती है किसी स्त्री के आदमी परमात्मा प्रभु ने ब्रह्मा को प्रकट किया तथा उन्हें समस्त वेदों का ज्ञान प्राप्त कराय यू ब्राह्मणों गुजराती पुरवा यू वह वेदांश रही धोती तस्मै ब्रह्मा की ऋषि संतानों ने आगे चलकर तपस्या द्वारा शब्द राशि का साक्षात्कार किया और पठन-पाठन को आगे विस्तार किया पठन-पाठन की प्रणाली से इसका संरक्षण किया इसलिए मरसिया ने तथा अन्य भारतीय विद्वानों ने ऋषि महर्षि यों को मंत्र दृष्टा माना है विषयों मंत्र दृष्टा वेद का ईश्वरी ज्न के रूप में ऋषि महर्षि यों ने अपनी अंतर्दृष्टि से प्रत्यक्ष दर्शन किया तब अंतर इसे सर्वसाधारण के कल्याण अर्थ प्रकट किया संहिता के प्रत्येक सूक्त के ऋषि देवता छंद एवं विनियोग होते हैं वेदार्थ जाने के लिए इन चारों का ध्यान रखना आवश्यक है सोना की अनुक्रमण e11 में लिखा है कि जो ऋषि देवता छंद एवं विनियोग का ज्ञान प्राप्त किए बिना वेद का अध्ययन अध्यापन हवन एवं यजन याचना करते हैं उनका सब कुछ निष्फल हो जाता है और जो ऋषि याद जानकर अध्ययन आदि करते हैं उनका सब कुछ फल प्रद होता है ऋषि आज के ज्ञान के साथ ही जो वेदार्थ भी जानते हैं उनको अतिशय फल प्राप्त होता है याज्ञवल्क्य और व्यास ने भी अपनी स्मृतियों में ऐसा ही लिखा है ऋषि यों ने वेदों का मनन किया अतः वे मंत्र कहलाए छंद में आच्छादित होने से छंद कहलाए मंत्रा मन्नाथ चंदासी साधना साधना निरुक्त सात तीन बार जो मनुष्य को प्रसन्न करें और आजादी की रक्षा करें उसे छंद कहते हैं जिस उद्देश्य के लिए मंत्र का प्रयोग होता है उसे विनियोग कहा जाता है मंत्र में अर्थ अंतर या वेश्या अंतर होने पर भी विनियोग के द्वारा अन्य कार्य में उस मंत्र को भी नियुक्त किया जा सकता है पूर्व आचार्यों ने ऐसा माना है इस से ज्ञात होता है कि शब्दार्थ में भी अधिक आधिपत्य मंत्रों पर विनियोग का है ब्राह्मण ग्रंथों एवं कल्पसूत्र आदि के द्वारा ऋषि देवता आज का ज्ञान होता है निरुक्त कार ने लिखा है देवता नाग देवता नाग दीप नाथ लोगों में भ्रमण करने वाले प्रकाशित होने वाले यह भोज्य आज सारे पदार्थ देने को देवता कहा जाता है वेदों में मुख्य रूप से तीन प्रकार के दोषों का वर्णन मिलता है जिनमें प्रथम पृथ्वी स्थानीय देवता अग्नि दूसरा अंतरिक्ष स्थानीय देवता वायु या इंद्र तीसरा स्थानी देवता सूर्य है इन्हीं को अनेक नामों से स्थितियों की स्थितियां की गई है स्तुति प्रार्थना उपासना की गई है जिस सूक्त मंत्र के साथ जिस देवता का उल्लेख रहता है उस वक्त या मंत्र के वे प्रदीप आदमी और स्तुति के योग्य हैं इसके साथ ही वे सभी जड़ चेतन पदार्थों के अधिष्ठाता देवता भी हैं जिस मंत्र में जिस देवता का वर्णन है उसमें उसी की दिव्य शक्ति अनादिकाल से निहित है मंत्र में ही देवता शक्ति मानी जाती है देवता का रहस्य रहस्य बृहद देवता में प्रतिपादित है उसके प्रथम अध्याय के पांच श्लोक 61 से 65 से पता चलता है कि इस ब्राह्मण के मूल में एक ही शक्ति विद्यमान है जिसे ईश्वर कहा जाता है उस एक ब्रह्म की नाना रूपों में पूजा उपासना और प्रार्थना की जाती है विविध शक्तियों की अधिष्ठात्री रूप में स्तुति की गई है नियंता एक ही है इसी मूल सत्ता के विकास सारे देव हैं इसलिए जिस प्रकार एक ही धागे में माला की सारी मडिया ओतप्रोत रहती हैं और उसे केवल माला ही कहा जाता है इसी तरह सूर्य विष्णु गणेश वाग्देवी अदिति या जितने देवता हैं सब को परमात्मा रूप ही माना जाता है भारतीय संस्कृति की यह मान्यता है कि वेद से ही धर्म निकला है धर्म का मूल वेद ही है एक प्रश्न उठता है कि वेद की नित्यता की प्रत्यक्ष प्रमाण अनुमान प्रमाण से प्रमाणित किया जा सकता है क्या परंतु इस संबंध में अपने यहां शंकराचार्य आदि महानुभावों ने प्रत्यक्ष एवं अनुमान प्रमाण का खंडन कर शब्द प्रमाण को ही स्थापित किया है मानव बुद्धि सीमित है शुद्र तम मानव मस्तिष्क आज्ञा काल का काल के तत्वों का कैसे प्रत्यक्ष कर सकता है और अनंत समय की बातों का अनुमान ही कैसे लगा पाएगा इसलिए भगवान ने स्वयं गीता में कहा है कार्य एवं कार्य की व्यवस्थित अर्थात कर्तव्य और कर्तव्य का निर्णय करने में शास्त्र ही एकमात्र प्रमाण है आर्यों के सभी शास्त्र वेद को नित्य शाश्वत और अपौरुषेय मानते हैं अर्थात वेदों को किसी पुरुष के द्वारा निर्मित नहीं मानते इसलिए वेद के शब्दों को हमारे धर्म कर्म तथा जीवन के मार्गदर्शन का प्रमाण माना गया है विदेशी कहा जाता है क्योंकि वह किसी देश विशेष की भाषा में नहीं जैसे परमेश्वर सर्वसाधारण और सार्वजनिक है वैसे ही उसके बाद भी सार्वजनिक भाषा में संपूर्ण विश्व मानव प्राणी मात्र के कल्याण के लिए हैं जबकि अनन्या धर्म ग्रंथ भिन्न-भिन्न देशों की भाषाओं में हैं यह कहा जा सकता है कि वेद आर्य की संस्कृति भाषा में ही हैं फिर वह सारे देसी कैसे हैं परंतु यह कहना संगत नहीं है क्योंकि संस्कृत भाषा वास्तव में जो भाषा है और वह इस भाषा में भी नहीं है कारण शब्दों के एक कार शब्दों के अलौकिक वैदिक वैदिक दो प्रकार संस्कार होते हैं वैदिक मंत्र शब्द स्वर और चंदू से नियंत्रित होते हैं अलौकिक नहीं वैदिक वाक्यों का स्वरूप और अर्थ निरुक्त तथा प्रति शास्त्र से ही नियमित है संस्कृत वैसी नहीं है अतः वेद भाषा संस्कृत भाषा से भी विलक्षण है इसलिए वेद में किसी के प्रति पक्षपात नहीं है जैसे भगवान सर्वत्र समान है वैसे ही उनका वैदिक धर्म भी साक्षात या परंपरा या प्राणी मात्र का परम उपकारी है अनंत वीर तेतरीय आरण्यक में एक आख्यायिका आती है भारद्वाज ने तीन आयु पर्यंत अर्थात बाल जीवन और वार्ड धक्के में ब्रम्हचर्य का ही अनुष्ठान किया जब वे दिन हो गए तब इंद्र ने उनके पास आकर कहा भरद्वाज चौथी आयु तुम्हें दूं तो तुम उस आयु में क्या करोगे उन्होंने उत्तर दिया मैं वेदों का अंत देख लेना चाहता हूं अतः जितना भी जीवन मुझे दिया जाएगा मैं उससे ब्रम्हचर्य का ही अनुष्ठान करता रहूंगा और वेदों का अध्ययन करूंगा इंद्र ने भरद्वाज को तीन महान पर्वत दिखलाए जिनका कहीं और छोड़ नहीं था इंद्र ने कहा यही तीन भेद हैं इनका अंत तुम कैसे प्राप्त कर सकते हो आगे इंद्र ने तीनों में से एक एक मुट्ठी भर आवाज को देकर कहा मानव समाज के लिए इतना ही पर्याप्त है वेद तो अनंत है अनंत वह वेद कहते हैं कि इंद्र के द्वारा प्रदत यह तीन मुट्ठी ही बेहतरीन यजुर शाम के रूप में प्रकट हुई द्वापर युग की समाप्ति के पूर्व इन तीन शब्दों शैलियों की संग्रह आत्मक एक विशिष्ट अध्ययन ई य शब्द राशि ही वेद कहलाती है उस समय में भी वेद का पढ़ना और अभ्यास करना सरल कार्य नहीं था कलयुग में भी मनुष्य को मनुष्य की शक्ति हीनता और कम आयु होने की बात ध्यान में रखकर वेद पुरुष भाष्य कार भगवान नारायण के अवतार कृष्ण द्वैपायन श्री वेदव्यास जी ने यह जिया अनुष्ठान आदि के उपयोग उपयोग को कि दृष्टिगत रखकर एक वेद के चार विभाग कर दिए ही विभाग आजकल ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्ध हैं प्रत्येक वेद की अनेक शाखाएं बताई गई है यथा ऋग्वेद की 21 शाखा है यजुर्वेद की 101 शाखा है सामवेद की 1100 का और अथर्ववेद की 9 शाखा इस प्रकार कुल 1131 शाखाएं है इन 1131 शाखाओं में से केवल 12 शाखाएं ही मूल ग्रंथ में उपलब्ध हैं जिनमें ऋग्वेद की दो यजुर्वेद की 6 सामवेद की दो तथा अथर्ववेद की दो शाखाएं ग्रंथ प्राप्त होते हैं परंतु इन 12 शाखाओं में से केवल 6 शाखाओं की अध्ययन शैली ही वर्तमान में प्राप्त है मुख्य रूप से वेद की इन प्रत्येक शाखाओं की वैदिक शब्द राशि चार भागों में प्राप्त है प्रथम संहिता वेद का मंत्र भाग दूसरा ब्राह्मण जिसमें यज्ञ अनुष्ठान की पद्धति के साथ फल प्राप्ति तथा विधि आज का निरूपण किया गया है तीसरा आरण्यक यह भाग मनुष्य को आध्यात्मिक बोध की और झुकाकर सांसारिक बंधन से ऊपर उठाता है संसार त्याग की भावना के कारण वानप्रस्थ आश्रम के लिए आरण्यक जंगल में इसका विशेष अध्ययन तथा स्वाध्याय करने की विधि है इसलिए इसे आरआर कहते हैं और चौथा उपनिषद इसमें आध्यात्मिक चिंतन की ही प्रधानता दी गई है इसका प्रतिपाद्य ब्रह्म तथा आत्म तत्व है वेदों के शिक्षाप्रद आख्यान वेदों में यत्र तत्र कुछ शिक्षाप्रद आख्यान तथा आख्यान ओं के कतिपय संकेत सूत्र भी प्राप्त होते हैं यद्यपि कुछ आख्यान ऐतिहासिक जैसे भी प्रतीत होते हैं जिनके आधार पर कुछ आधुनिक विद्वान उन इतिहास के अनुसार वेद के काल का निर्णय करने का प्रयास करते हैं परंतु वास्तव में यह आख्यान इतिहास के नहीं हैं कुछ स्थानों में जगत में सदा होती रहने वाली घटनाओं को कथा का रूप देकर समझाया गया है जो एक प्रकार का जगत का नित्य इतिहास है नित्य वेद में अन्य ऐतिहासिक आख्यान नहीं हो सकते इसी प्रकार वेद में कुछ राजाओं की तथा भारतीय इतिहास के कुछ व्यक्तियों के भी नाम प्राप्त होते हैं इससे यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब वेद अपौरुषेय हैं तब इन में ऐतिहासिक आख्यान तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम कैसे आते हैं
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