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प्राण प्रतिष्ठा का आधार क्या शास्त्र सम्मत है?

 

प्राण प्रतिष्ठा का आधार क्या शास्त्र सम्मत है?

आज 22 जनवरी 2024 को श्री राम चन्द्र की मंदिर अयोद्धा में प्राण प्रतिष्ठा किया गया, जिसका बहुत बृहद स्तर पर पूरे विश्व में महिमा मंडित किया जा रहा है, राम मंदिर का बनना एक राजनीतिक मसला है, यह 500 सौ सालों से पुराना संग्राम चल रहा था, मंदिर बना कर इसका समाधान कर दिया गया है, जिसका राजनीतिक पोषण किया गया और बहुत बड़ा द्वंद्व युद्ध चला जिसमें हज़ारों की संख्या में नर संहार हुआ। और इसी को आधार बना कर संपूर्ण विश्व के हिन्दू को बरगलाया जा रहा है, की वह हिन्दू जाती के संरक्षक है, और हिन्दू जाती को उनका सम्मान दिला रहें हैं।   

मेरा काम यह सिद्ध करना नहीं हैं कि राम मंदिर का बनना गलत है, राम का मंदिर बनना अच्छी बात है, लोगों की श्रद्धा इससे जूड़ी हुई है, इसके साथ हिन्दू के धर्म शास्त्र हैं, जो राम को भगवान नहीं मानते हैं उन को एक मर्यादा पुरुष की श्रेणी में रखते हैं, राम एक महापुरुष हैं, मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं, और जन मानस के हृदय में गहरी पैठ रखते हैं, जिस प्रकार से श्री कृष्ण का स्थान है।

भारतीय वैदिक शास्त्र ना तो राम को भगवान मानते हैं और ना किसी प्रकार से मूर्ति में प्राण को प्रतिष्ठित किया जा सकता है, जब किसी जिंदा मनुष्य में प्राण को स्थापित नहीं किया जा सकता है, तो किसी मूर्ति में प्राण को स्थापित करना असंभव हैं।

जब ऐसा करना ना शास्त्र सम्मत है, और ना ही किसी जीव में प्राण की प्रतिष्ठा करना ही संभव है, तो यह क्या हो रहा है? यह सब बृहद स्तर पर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है और दूसरी तरफ लोग बड़ी तीव्रता के साथ स्वेच्छा से मूर्खता को स्वीकार कर रहें हैं और मूर्ख बन रहें हैं।  

आज के इस दौर में सभी मानव स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं, क्योंकि यह लोक तंत्र का दौर है, सरकार सभी मनुष्यों पर एकाधिकार कर रही है, वह किसी को अपने अधिकार का प्रयोग करके अपने पक्ष में करने के लिए विवश कर सकती है, लोगों को डरा धमका कर भयभीत कर के, यह एक प्रकार का तानशाही ही है, जिस प्रकार से हिटलर या की और तानाशाह इस पृथ्वी पर हो चुके हैं, यहां मुख्य मुद्दा यह नहीं है, की राम मंदिर का बनना और राम की मूर्ति में प्राण का प्रतिष्ठा होना गलत है, एक तरफ भारतीय वैदिक दर्शन और शास्त्र इससे सहमत नहीं है, यह गलत है, फिर भी जनता का भारी समुह इसके लिए तैयार किया गया है वह इसके पक्ष में हैं, और इसके लिए लंबे काल से संघर्ष किया है, जिसके परिणाम स्वरूप यह कार्य आज सिद्ध किया गया है। वास्तव में यहां पर मुख्य मुद्दा यह है कि आने वाली मानव जाती को तथाकथित जिस को हम हिन्दू कहते हैं जिनकी संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक भारत में हैं, इनका स्वयं का एक सैद्धान्तिक मत और सिद्धांत दर्शन है, जिसके आधार पर ही आज तक इसने अपने अस्तित्व की रक्षा की है, आज उसके अस्तित्व की रक्षा क्या यह मंदिर और प्राण प्रतिष्ठा का जो आडंबर चल रहा है वह कर पाएगा? क्योंकि यह जो धर्म की राजनीतिकरण हो रहा है, यह बहुत खतरनाक है, क्योंकि यह धर्म एक गूढ़ विषय है, इसका संबंध राजनीति से नहीं है, राजनीति का कार्य है, राज्य देश के लिए ऐसी नीतियों को बनना है। जिससे देश या राज्य उचित रीति से अपनी रक्षा कर सके, अर्थात शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, के साधन को उपलब्ध कराना। जबकि धर्म का कार्य इसके बिल्कुल विपरीत है, धर्म का संबंध वहाँ से शुरु होता है जहां से राजनीति समाप्त होती है।

राजनीति का क्षेत्र बाहर का जगत है, और धर्म का जगत आंतरिक है, इसको और बिस्तार से यदि समझना चाहे तो हम कुछ इस प्रकार से कह सकते हैं, की धर्म एक रहस्य है जो सबके साथ सबके हृदय में है। और राजनीति सबके साथ सबके मस्तिष्क में विद्यमान है। इसका मतलब यह नहीं है, की धर्म में मस्तिष्क की जरूरत नहीं है, जरूरत है, प्रतीकात्मक रूप से, क्योंकि भारत में धर्म शास्त्र और राजनीतिक शास्त्र अलग - अलग हैं।

जिस प्रकार से विज्ञान का आधार शोध होता है, और शोध से जो बात सिद्ध होती है विज्ञान उसी को मान्यता देता है और उसी के आधार पर विज्ञान अपने अस्तित्व की रक्षा करता है, इसी प्रकार से धर्म का आधार भूत सिद्धांत भी शोध है, धर्म भी विज्ञान की तरह से है, जब धर्म से विज्ञान को निकाल दिया जायेगा, तो धर्म का अस्तित्व खतरें में आजाएगा। आज यहीं हो रहा है, धर्म के अस्तित्व को समाप्त करने की बहुत बड़ी साजिश चल रही है, और यह साजिश कोई और नहीं राजनेता ही कर रहें हैं, और इनके साथ इनका पुरा तंत्र या प्रशासन है, जो ज़बरदस्ती धर्म पर एकाधिकार करने का प्रयास कर रहें हैं। जिस प्रकार से किसी देश को विज्ञान के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक पुरुषार्थ परिश्रम के साथ समय धन और ज्ञान की जरूरत पड़ती है, क्योंकि इसी के आधार पर कोई देश अपने देश की सम्प्रभुता की रक्षा और अपने सर्वांगीण़ विकास के साथ रक्षा कर सकता है। इसी प्रकार से धर्म को भी आवश्यकता पड़ती है, धर्म कोई पाखंड या आडंबर नहीं है, यह ठीक विज्ञान के समकक्ष है, यह मानव को संपूर्ण मानव बनाता है, और इसके लिए भी पुरुषार्थ परिश्रम, और शोध की जरूरत पड़ती है, ना की उसकी अस्वीकृति जैसा की आज हो रहा है। जिस प्रकार से आज से 300 साल पहले लोग विज्ञान के चकाचौध को बिल्कुल नहीं जानते थे। यूरोप आदि देश अंधकार के युग के श्रेणी में गिने जाते थे। उसी प्रकार से आज के भारत के साथ पुरा विश्व धर्मांधकार के युग में प्रवेश कर रहा है। यह धर्म का अंधकार विज्ञान की चकाचौंध को अपने अंदर समेट कर विज्ञान के अस्तित्व को ही समाप्त कर देगा। जैसा रामायण और महाभारत काल में हुआ था। भविष्य में होने वाली इस भयावह घटना को रोका जा सकता है, जब लोग सच्चे धर्मात्मा बने और धर्म के क्षेत्र में बीना किसी आडंबर या पाखंड के शोध करें, और धर्म की रक्षा करें। अन्यथा धर्म किसी की रक्षा नहीं करेगा, धर्म सब का नाश कर देगा। क्योंकि सूर्य को बुझाने का मतलब यह नहीं है, सूर्य का विकल्प हमने तैयार कर दिया है एक कृत्रिम सूर्य को बना कर। आज के लोगों की यहीं सोच है वह कृत्रिम धर्म को स्थापित करके वास्तविक धर्म के अस्तित्व को समाप्त कर देगें, जैसा की आज चल रहा है, यह कृत्रिम धर्म का आडंबर है, जो इन को मानने वालों के ही अस्तित्व को समाप्त कर देगा। जैसा विज्ञान का नियम है की आग गर्म होती है, और पानी शीतल होता है, और जब हम एक कृत्रिम विज्ञान को जन्म दे – दे और वह ऐसी मान्यता को खड़ा कर दे की आग शीतल होती है और जल गर्म होता है, तब वह जब प्रयोग करेगें तो वह उन वैज्ञानिकों और उन वैज्ञानिक के अनुयाइयों को भी उनका ही सिद्धांत नष्ट कर देगा। इसलिए कहता हूं की चाहे वह धर्म के सिद्धांत हो या विज्ञान के सिद्धांत हो जो इनके साथ छेड़ छाड़ करेगा, या शाश्वत सिद्धांत के स्थान पर कृत्रिम सिद्धांत का अंध अनुसरण करेगा तो वह कृत्रिम सिद्धांत बनाने वाला अपने अनुसरणकर्ता के साथ सामूहिक रूप से नष्ट हो जाएगा।   

नष्ट दो तरह से लोग हो रहें है, एक तो आदमी अकेला जन्म लेता है, और अकेला ही मरता है। यह तो प्राकृतिक रूप से मानव के साथ प्राकृतिक सिद्धांत कार्य करते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप ऐसा होता है। और दूसरा जब मानव शक्तिशाली स्वयं को बना लेता है, वह कृत्रिम रूप से प्रकृति पर जब एकाधिकार कर लेता है, जो नैसर्गिक रूप से कार्य होता है, उसको वह कृत्रिम रूप अपने अधिकार में कर लेता है, और वह फिर एक अकेला स्वयं को बचाने के लिए एक समुह को अपनी ढाल बना लेता है, जिस प्रकार से एक देश का राजा तानाशाह, या किसी एक देश का प्रधानमंत्री, यह व्यक्ति जो बहुत बड़े मानव जनसमूह का प्रतिनिधित्व करता है, वह अपने व्यक्तिगत मान्यताओं को अपने वर्चस्व और पराक्रम के बल से संपूर्ण मानव समुह के उपर अपनी मान्यताओं को लाद देता है, जो उसके मान्यता के पक्ष में होते हैं वह उसके साथ होते है, और जो उसके पक्ष में नहीं होते हैं, वह उसके विपक्ष में होते हैं, और जब पानी शीर के उपर गुजर जाता है, अर्थात जिसकी सत्ता या जिसके पास अधिकार नहीं है, जब उसका अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर पहुंच जाता है तो वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समाप्त करने के लिए तैयार हो जाता है, जिसके कारण पक्षी और विपक्षी दोनों नेताओं और राजाओं या एक देश से दूसरे देश के बीच में संग्राम शुरु होता है, जिसमें नर संहार होता है। और जब नर संहार होता है, तो जिसका कोई अपराध नहीं है जो साधारण जनता है वह उसमें मारी जाती है। इसके साथ वह तानाशाह भी मारा जाता है, जिसके साथ राज्य देश की संपत्ति और अकाल काल के गाल में मानव वैभव संपदा भी समाप्त होती है। ऐसा बहुत बार हो चुका है, इस पृथ्वी पर वहीं मानव संस्कृति स्वयं को अस्तित्व को बचाने में सफल हो सकी है जिसने अपने इतिहास से शिक्षा ली है। और जिसने ऐसा नहीं किया है वह मानव और उसकी पुरी संस्कृति सभ्यता परंपरा उसका धर्म सब कुछ नष्ट हो चुका है। जिसका सब कुछ नष्ट वह हो चुका है, जो कंगाल हो चुके है, वह अब जिनके पास है, उसको समाप्त करने के लिए उद्दत हो चुके हैं, उनसे हमें हमारी संस्कृति धर्म और हमारी सभ्यता को बचाना है, यही हमारा धर्म है, यह संग्राम अवश्यमेव होगा, क्योंकि इस समय आसुरी माया जिसपर व्यापारीयों ने एकाधिकार कर लिया है, वह ऐसा समझते हैं, की वह धन के दम पर संपूर्ण मानवता के साथ अपनी मायवी शक्ति को दिखा कर उसका शोशण कर सकते हैं। ऐसा कर भी रहें हैं, लेकिन यह खेल उनके अस्तित्व को समाप्त कर देगा। क्योंकि नाश हमेशा अधर्म का ही होता है, जो शाश्वत है उसका नाश नहीं होता है, क्योंकि धर्म शाश्वत और सनातन है, और धर्म का नाश करने के लिए जो भी खड़ा होगा चाहे वह कितना भी शक्तिशाली हो कितनी बड़ी उसके पास सेना हो धन हो सबका नाश अकेला धर्म करने में सक्षम है। क्योंकि धर्म कालजई हैं और अदृश्य है जिस प्रकार से अंधकार कभी प्रकाश को समाप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश का ना होना ही अंधकार का होना है, यदि प्रकाश है तो अंधकार वहां उपस्थित ही नहीं रह सकता है। अंधकार है, तो इसका मतलब है, की प्रकाश को वहां आने से रोका जा रहा है, जब की उसको रोका नहीं जा सकता है क्योंकि प्रकाश अंधकार की भाती नहीं है अंधकार प्रकृति में हैं जो जड़ है, और प्रकाश चेतन है, वह जड़ में भी प्रकाशित कर सकता है और चेतन में स्वतः शाश्वत प्रकाश है।  तो अज्ञान, अंधकार, अधर्म सिर्फ जड़ वस्तु को ही अपने वशीभूत करती है, जब तक मानव बुद्धि जड़ मन के वश में रहती है तभी तक उसका नाश संभव है जब मानव बुद्धि चेतन आत्मा का सच्चे धर्म का साक्षात्कार करने में समर्थ हो जाती है तो उसको किसी प्रकार से प्राणप्रतिष्ठा किसी मूर्ति में करने की जरूरत नहीं पड़ती है वह अपने प्राण को अपने आत्मा में स्वतः प्रतिष्ठित कर लेता है वही सत्ता साधक और सच्चा धर्मात्मा है।

आचार्य मनोज पाण्डेय

अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान वैदिक विद्यालय

छानबे मिर्जापुर उत्तर प्रदेश भारत 9305008616                                          

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