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मांस भक्षण विवेचन

ओ३म्
*🌷मांस भक्षण विवेचन🌷*
किसी भी पशु पक्षी का मांस या मछली, अण्ड़ा आदि मनुष्य का भोजन नहीं है। मांस जहाँ मनुष्य शरीर के लिए हानिकारक है वहां मन, बुद्धि और आत्मा के लिए भी जहर है। वैदिक साहित्य में मांस खाने की पूरे तौर पर मनाही की गई है―वैद्यक शास्त्र में भी तथा धर्म शास्त्र में भी।
वेद में पशुओं को पालने का तथा उनकी रक्षा करने का अनेक स्थानों पर आदेश है।
*अविर्मा हिंसीः गां मा हिंसीः एकशफंमा हिंसीः।―(यजुर्वेद)*
*अर्थ–*हे मनुष्य तू भेड़, गाय, एक खुर वाले घोड़े आदि पशुओं को मत मार।
*प्रजां मे पाहि शंस्य पशून् मे पाहि ।―(यजुर्वेद)*
*अर्थ―*हे जगदीश्वर आप मेरी प्रजा और पशुओं की रक्षा कीजिए।
*यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम् ।*
*तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसो अवीरहा ।।*
―(अथर्ववेद १/१६/४)
*भावार्थ―*हे दुष्ट यदि तू हमारे गाय, घोड़ा आदि पशुओं की या पुरुषों की हत्या करेगा, तो हम तुझे सीसे की गोली से बींध देंगे जिससे तू इन्हें फिर न मार सके।
वेदों में खाने पीने के सम्बन्ध में गेहूँ, जौ, चावल आदि अनाज तथा फल, सब्जी, दूध, घी आदि का वर्णन है मांस का कहीं भी नहीं।
मांस क्रूरता से प्राप्त होता है इसलिए मांसाहारी मनुष्य क्रूर बन जाता है।उसमें दया आदि उत्तम गुण नहीं रहते।किन्तु स्वार्थवश होकर दूसरे की हानि करके अपना प्रयोजन सिद्ध करने में ही लगा रहता है। जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन। मनुष्य जाति में हिंसा, क्रूरता तथा निर्दयता आदि के आ जाने से सब मनुष्यों तथा प्राणियों के लिए सुख खत्म हो जाता है।
मांस में यूरिक एसिड आदि कई प्रकार के विष तथा रोगकारक अंश पाए जाते हैं।शाकाहार में कोई भी रोगाणु नहीं रहता, अपितु रोगनाशक होते हैं।मांस उत्तेजनाकारक है। मांस खाने से अन्य बुराईयां भी आ जाती हैं।
*मांस भक्षण पर महर्षि दयानन्द के विचार―*वेदों में कहीं मांस खाना नहीं लिखा। शुभ गुण युक्त सुखकारक पशुओं के गले छुरी से काटकर जो अपने पेट भरकर सब संसार की हानि करते हैं क्या संसार में उनसे भी अधिक कोई विश्वासघाती अनुपकारी दुःख देने वाले और पापी जन होंगे?
*ईश्वर सब प्राणियों का पिता है और सब प्राणी उसके पुत्र हैं ऐसा भाव दिखला कर महर्षि लिखते हैं―भला कोई मनुष्य एक लड़के को मरवाए और दूसरे लड़के को उसका मांस खिलावे ऐसा कभी हो सकता है? हे मांसाहारियों तुम लोग जब कुछ काल के पश्चात् पशु न मिलेंगे तब मनुष्यों का भी मांस छोड़ोगे या नहीं?*
*महर्षि दयानन्द की बेजबान पशुओं की ओर से मनुष्यों के प्रति अपील―*_हे धार्मिक सज्जन लोगों आप हम पशुओं की रक्षा, तन, मन और धन से क्यों नहीं करते? हाय बड़े शोक की बात है कि जब हिंसक लोग गाय, बकरे, पशु और मुर्गा आदि पक्षियों को मारने के लिए ले जाते हैं तब वे अनाथ तुम हमको देख के राजा और प्रजा पर बड़ा शोक प्रकाशित करते हैं कि देखो हमको बिना अपराध बुरी तरह से मारते हो और हम रक्षा करने तथा मारने वालों को भी दूध आदि अमृत पदार्थ देने के लिए उपस्थित रहना चाहते हैं, और मारे जाना नहीं चाहते। देखो, हमारा सर्वस्व परोपकार के लिए है और हम इसलिए पुकारते हैं कि हमको आप लोग बचावें। हम तुम्हारी भाषा में अपना दुःख नहीं समझा सकते और आप लोग हमारी भाषा नहीं जानते। नहीं तो क्या हम में से किसी को कोई मार सकता? हम भी आप लोगों की तरह अपने मारने वाले को न्याय व्यवस्था से फांसी पर न चढ़वा देते? हम इस समय अतीव कष्ट में हैं क्योंकि कोई भी हमारे बचाने में उद्यत नहीं होता और जो कोई होता है तो उससे मांसाहारी द्वेष करते हैं।_
*अश्वमेध, गोमेध और नरमेध का अर्थ महर्षि दयानन्द के शब्दों में―*राजा न्याय धर्म से प्रजा का पालन करे, विद्या आदि दान देने हारा यजमान और अग्नि में घी आदि का होम करना अश्वमेध, अन्न इन्द्रियां किरण पृथ्वी आदि को पवित्र रखना गोमेध, जब मनुष्य मर जाए तब उसके शरीर का विधि पूर्वक दाह करना नरमेध कहाता है।

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