Ad Code

क्रान्ति कारी विचार

मेरा विद्रोही नया मनुष्य ही ‘जोरबा-बुद्ध’ है। मनुष्यता अभी तक यह विश्वास करते हुए जीती आई है कि या तो आत्मा ही एकमात्र वास्तविकता है तथा संसार और पदार्थ एक भ्रम हैं अथवा पदार्थ ही वास्तविक है और आत्मा मात्र एक भ्रम है।

तुम अतीत की मनुष्यता को, अध्यात्मवादियों और पदार्थवादियों में विभाजित कर सकते हो, लेकिन किसी ने भी मनुष्य की वास्तविकता की ओर देखने की फिक्र ही नहीं की। वे दोनों एक साथ हैं। वे न तो केवल आध्यात्मिक हैं—वे केवल मात्र चेतना ही नहीं है और न वे केवल पदार्थ हैं। वह चेतना और पदार्थ के मध्य एक बहुत बड़ी लयबद्धता है अथवा पदार्थ और चेतना दो अलग चीजें न होकर एक ही वास्तविकता के दो पहलू हैं। पदार्थ चेतना के बाहर का भाग है और पदार्थ का आंतरिक भाग है चेतना। लेकिन अतीत में ऐसा एक भी दार्शनिक, ऋषि अथवा विद्रोही रहस्यदर्शी नहीं हुआ, जिसने इस एकता की घोषणा की हो: वे सभी मनुष्य को विभाजित करन के पक्ष में थे, जो एक भाग को सच्चा और दूसरे भाग को झूठा कहते थे। इसने पूरी पृथ्वी में एक ऐसा वातावरण उत्पन्न कर दिया, जहां मनुष्य के विचारों, भावों और कार्यों में कोई तारतम्य नहीं रह गया।

तुम केवल एक शरीर बनकर ही नहीं जी सकते। जीसस के कहने का भी यही अर्थ है, जब वह कहते हैं-‘मनुष्य अकेला रोटी से ही नहीं जी सकता।’ तुम अकेली चेतना बनकर भी नहीं जी सकते और न ही तुम बिना रोटी के जीवित रह सकते हो। तुम्हारे होने के दो आयाम हैं और दोनों आयामों को विकास का समान अवसर देकर दोनों को परिपूर्ण बनाना है। लेकिन अतीत एक आयाम के पक्ष में और दूसरे के विरोध में अथवा दूसरे के पक्ष में और पहले के विरोध में रहा है।

मनुष्य को उसकी समग्रता में स्वीकार नहीं किया गया है और इसने दुख और वेदना के घने अंधेरे की, हजारों वर्षों से, एक ऐसी रात उत्पन्न कर दी है जिसका लगता है जैसे कोई अंत है ही नहीं। यदि तुम शरीर की बात सुनते हो तो तुम स्वयं अपने को ही बुरा कहते हो और यदि तुम शरीर की बात नहीं सुनते हो तो तुम दुख भोगते हो क्योंकि तुम्हें भूख लगती है, प्यास लगती है और तुम्हें गरीबी के अभाव झेलने होते हैं। यदि तुम केवल चेतना की बात सुनते हो तो तुम्हारे विकास का संतुलन गड़बड़ा जाएगा: तुम्हारी चेतना का तो विकास होगा, लेकिन शरीर सिकुड़ जाएगा और संतुलन खो जाएगा और संतुलन में ही तुम्हारा स्वास्थ्य है, संतुलन में ही तुम्हारी समग्रता है, संतुलन में ही तुम्हारा आनंद, गीत और नृत्य है।

पश्चिम ने शरीर की बात सुनने का चुनाव किया और जहां तक चेतना की वास्तविकता का संबंध है, वह पूरी तरह बहरा बन गया। इसका अंतिम परिणाम है-विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की अभूतपूर्व प्रगति और तुच्छ सांसारिक वस्तुओं से समृद्ध एक स्वतंत्र और उन्मुक्त समाज। इस प्रचुर समृद्धि के बीच, बिना आत्मा का गरीब मनुष्य पूरी तरह खो गया है-कोई जानता ही नहीं कि वह है कौन, वह है भी या नहीं है और कोई नहीं जानता कि वह है क्यों और किसी दुर्घटनावश कभी यह ख्याल आ जाता है कि ऐसी दुर्लभ किस्म का कोई मनुष्य होता भी है।

जब तक चेतना का विकास भौतिक जगत की समृद्धि के साथ-साथ नहीं होता, शरीर और पदार्थ बहुत अधिक भारयुक्त हो जाते हैं और आत्मा बहुत कमजोर बन जाती है। अपने ही आविष्कारों और खोजों के कारण तुम्हारे ऊपर बहुत अधिक भार है। वस्तुतः तुम्हारे लिए एक सुंदर जीवन निर्मित करने के स्थान पर वे एक ऐसा जीवन निर्मित करते हैं जिसे पश्चिम के सभी बुद्धिजीवियों द्वारा जीवन के अयोग्य अनुभव किया गया है।

पूरब ने चेतना का चुनाव किया है और पदार्थ की निन्दा की है। उनके अनुसार प्रत्येक भौतिक वस्तु जिसमें शरीर भी सम्मिलित है, एक माया है। एक भ्रम है, वह मरुस्थल में एक मृगतृष्णा के समान दिखाई देती है और जिसकी कोई वास्तविकता नहीं है। पूरब ने गौतम बुद्ध, महावीर, पतंजलि, कबीर, फरीद और रैदास जैसे लोग उत्पन्न किए और पूरी तरह होश से भरे हुए इन महान चेतना-पुरुषों की लम्बी शृंखला है। पर इसी ने उत्पन्न किया उन लाखों करोड़ों गरीबों को, जिनके पास न खाने को पर्याप्त अन्न, न पर्याप्त वस्त्र और न सिर छिपाने को छत है और जो कुत्तों की तरह भूखों मर रहे हैं।

बड़ी अजीब स्थिति है-पश्चिम में वे हर छः महीनों बाद अरबों डालर कीमत के दुग्ध उत्पाद और अन्य भोजन सामग्री आवश्कता से अधिक होने के कारण समुद्र में डुबो देते हैं। वे यह नहीं चाहते कि उनके गोदामों पर अतिरिक्त भार हो और वे अपने आर्थिक ढांचे को सुदृढ़ रखने के लिए उनकी कीमतें भी नहीं घटाना चाहते। एक ओर इथोपिया में एक हजार मनुष्य प्रतिदिन की दर से भूखों मर रहे हैं तो दूसरी ओर इसी वक्त यूरोप का साझा बाजार करोड़ों डालर का भोजन नष्ट कर रहा है। यह राशि भी उस भोजन सामग्री का मूल्य नहीं है, यह वह लगता है जो भोजन सामग्री को समुद्र तक ले जा

Post a Comment

0 Comments

Ad Code