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ऋग वेद किताब 1 परमेश्वर रुप वायु का भजन 2

 

 

 

वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंक्र्ताः । तेषां पाहि शरुधी हवम ।।

 

 1 BEAUTIFUL Vāyu, come, for thee these Soma drops have been prepared: Drink of them, hearken to our call.

 

1 हे प्राण रूप परमेश्वर! आप प्राण रूप मेरे जीवन के परम रस है, आपके लिये मैंने अपने हृदय मन मन्दिर को सजा कर रखा है यह सब आपके लिये ही है। मेरी प्रार्थना रूपी रस को ग्रहण करके हमें कृतार्थ कीजिये।

 

वाय उक्थेभिर्जरन्ते तवामछा जरितारः । सुतसोमा अहर्विदः ।।

 

2 Knowing the days, with Soma juice poured forth, the singers glorify, Thee, Vāyu, with their hymns of praise.

 

हे प्राण रूप प्रभु! हम आपका का स्मरण करते है, हम आपकी कि ओर चले, और अपने जीवन में सद्गुणों को उत्पादन करें, और उनकी रक्षा को समझे, हमारा जीवन यज्ञ को जानने और करने वाला हो ताकि हम सब का जीवन जो दुर्गुणों से बचने समर्थ हो सके।

 

वायो तव परप्र्ञ्चती धेना जिगाति दाशुषे । उरूची सोमपीतये ।।

 

3 Vāyu, thy penetrating stream goes forth unto the worshipper, Far-spreading for the Soma draught.

 

हे प्राण रूप परमेश्वर! आपकी वेद रूप वाणी हमारे समर्पण से हमें प्राप्त होती हैऔर यह आपके सानिध्य से निरंतर विस्तार को प्राप्त होती है, इससे ही हम सब अपने ज्ञान को व्यापक करने में समर्थ होते है, और इस ज्ञान के द्वारा हि हम सब आप प्राण रूप जीवन सामर्थ्य को धारण करने में समर्थ होते है।

 

इन्द्रवायू इमे सुता उप परयोभिरा गतम । इन्दवो वामुशन्ति हि ।।

 

4 These, Indra-Vāyu, have been shed; come for our offered dainties’ sake: The drops are yearning for you both.

 

हे परमेश्वर आप! हमारी आत्मा और प्राण रूप है आपके द्वारा उत्पन्न हमारे हृदय के सद्गुण से ही हम सब अपने जीवन में सुख और समृद्धि को उपलब्ध होते है, आप हमारे जीवन में सद्गुणों के   रूप आइये जिससे हम सब का जीवन ज्ञान रूप परम ऐश्वर्य और कीर्ति को धारण करने वाला बने।

 

वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू । तावा यातमुप दरवत ।।

 

5 Well do ye mark libations, ye Vāyu and Indra, rich in spoil! So come ye swiftly hitherward.

 

हे प्राण रूप परमेश्वर आप! इन्द्र रूप हमारे इन्द्रियों के सहायक हो, हम आपके सत्संग से ही अपने घोड़े के समान इन्द्रियों को बस में करके, अपने जीवन के परम लक्ष्य को शीघ्रता से समीप पहुंचने में समर्थ होते है।

 

वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्क्र्तम । मक्ष्वित्था धिया नरा ।।

6 Vāyu and Indra, come to what the Soma-presser hath prepared: Soon, Heroes, thus I make my prayer.

 

हे प्राण रूप इन्द्र! आप के माध्यम से ही हम सब जीव अपने जीवन में ज्ञान कर्म उपासना के द्वार जीवन को सद्गुण संपन्न करते है, आप हमारे हृदय में ही रह कर हमें सुसंस्कृत करें, जिससे हम सब ज्ञान और धिराता पूर्वक चलते हुए सभी मनुष्यों में अग्रणी बने।

 

मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम । धियं घर्ताचीं साधन्ता ।।

 

7 Mitra, of holy strength, I call, and foe-destroying Varua, Who make the oil-fed rite complete.

 

हे मेरे प्राण और अपान रूप परमेश्वर! मैं आपको अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिये पुकारता आप ही मेरे सबसे स्नेही परम पवित्र मित्र है, और मेरे जीवन से द्वेष को मिटाने वाले वरुण रूप प्रभु आप मेरे जीवन से काम क्रोध लोभ मोहादि राग द्वेष को बढ़ाने वाले शत्रुओं का संहार करें।

 

ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाते ।।

 

8 Mitra and Varua, through Law, lovers and cherishers of Law, have ye obtained your might power

 

हे परमेश्वर! हमारे जीवन में स्नेह राग द्वेष रूप मित्र वरुण कि प्रार्थना से ही तो आपके ज्ञान प्रकाश से हमारे अस्तित्व का परम प्रकाश प्रकट होता है। और ऋतयुक्त कार्यों को निरंतर करते हुए वृद्धि को प्राप्त करके सदा आगे बढ़ते रहें।

 

कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम ।।

 

9 Our Sages, Mitra-Varua, wide dominion, strong by birth, Vouchsafe us strength that worketh well.

 

हे परमेश्वर हम आप! मित्र वरुण कि उपासना से क्रान्तिद्रशी सभी प्राणियों के लिये कल्याण कारक बने।

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