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तपस्वी की पुत्री

 

तपस्वी की पुत्री

 

अध्याय 1

 

      प्राचीन  समय की बात है, भारत में एक नगर था, एक विशाल नदी के किनारे पर, जिसका नाम इक्क्षुमती था, जो चारों से विशाल वृक्ष से आच्छादित थी, जहां पर एक पवित्र आदमी रहता था, जिसका नाम मनकानका था, जो अपने जीवन का अधिकतर समय ईश्वर की साधना में ही व्यतीत करता था। उसने अपनी पत्नी को खो दिया था, जब उसकी केवल एक संतान थी, जो एक कुछ महीने की सुन्दर लड़की थी, जिसका नाम कादलीगर्भा था। कादलीगर्भा बहुत प्रसन्न रहती थी, उसके बहुत से मित्र थे, जो जंगल में उसके घर के पास रहते थे, जिसमें से कोई भी उसके समान बच्चा नहीं था, यद्यपि वह सभी जंगली प्राणी थे, उसके जंगली प्राणी मित्र उसको कभी भी नुकसान नहीं पहुँचाते थे। वे उसको प्रेम करते थे और वह भी उन सभी को बहुत प्रेम करती थी। वहां सभी पक्षी उसके पालतू बन चुके थे, जो उसके हाथों से खाने को खाते थे, और हिरण उसका पीछा इस आशा में करते थे, कि वह अपने जेब से निकाल कर उन को खाने के लिये रोटी के टुकड़े को देती थी, जिस को वह हमेशा अपने जेब में रखती थी। उसके पिता जी उसके सब कुछ सिखाते थे, जिस को वह जानती थी, और यह उसके लिए बहुत कुछ था, जिससे वह प्राचीन समय की उपलब्ध किताबों को अच्छी तरह से पढ़ सकती थी। किताबों में जो वह पढ़ती थी उससे कही अधिक वह अपने पिता से जानकारी प्राप्त कर लेती थी, क्योंकि मनकानका ने उसको बताया था कि ईश्वर सभी देवताओं का प्रिय है, और वहीं इस संसार के साथ यहां रहने वाले सभी जीवों पर पालन पोषण और शासन करता है। कादलीगर्भा ने बहुत कुछ अपने मित्रों से भी सीखा था, उन जंगली जानवरों से भी जिसके साथ वह रहती थी। वह जानती थी कि कहां पर पक्षी अपने घोसला को बनाते हैं, कहां पर हिरण अपने बच्चे को जन्म देती है, कहां पर गिलहरी अपने मूँगफली को छिपा कर रखती है, और किस प्रकार के भोजन को जंगल में रहने वाले सभी जीवन सबसे अधिक पसंद करते हैं? वह अपने पिता की अपने बग़ीचे के कार्य में सहायता करती थी, जहां पर वह अपने भोजन के फल सब्जी और अनाज उगाते थे। उसको अपने और अपने पिता मनकानका के लिए फल सब्जी के साथ भोजन बनाना बहुत अच्छा लगता था। उसके पहनने के कपड़े जंगल में वृक्ष की खाल के बने होते थे, जिस को वह स्वयं मुलायम जंगली पदार्थों को बुन कर तैयार करती थी। जो सभी मौसम के लिए गर्मी, सर्दी, वारिस के समय में पहनने के लिए हल्के और आरामदायक होते थे।

 

         कादलीगर्भा कभी भी किसी दूसरे बच्चे के बारें में विचार नहीं करती थी, क्योंकि कभी भी वह अपने समान किसी बच्चे से वह जंगल में नहीं मिली थी। वह पहले के समान ही जंगल में हमेशा प्रसन्न रहती थी जैसा कि उसने अपने दिन का प्रारंभ किया था, उसने हमेशा जंगल को उसी समान देखा, जैसा कि वह पहले था, उसको लंबे समय में किसी प्रकार का परिवर्तन उस जंगल में नहीं दिखा था। लेकिन जब वह 16 साल की हो गई, तब उसके साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसने उसके पूरे जीवन को झकझोर कर रख दिया। एक दिन जब उसके पिता जी जंगल में लकड़ी को काटने के लिए गये थे, और वह अपने घर में अकेली थी। जब उसने अपने घर की साफ सफाई कर ली, और अपने दोपहर के भोजन को बना कर तैयार कर लिया, जिसके बाद वह अपने घर के सामने बैठ कर, अपने बारे में चिंतन कर रही थी। पक्षी उसके हाथों बैठे थे, कबूतर उसके बगल में पड़ा था। तभी उसने अपनी तरफ आने वाले घोड़े के पैरों की आवाज को सुना। और उसने जिधर से घोड़े की आवाज आ रही थी, इस पर उसने उस तरफ अपने शिर को उठा कर देखा, जहां पर उसने देखा कि एक सुंदर राजकुमार अपने काले शानदार घोड़े पर बैठा हुआ उसको ही करीब आ रहा था। जिसने अपने हाथ में घोड़े की लगाम को पकड़ रखा था। जब वह उसके पास आ गया, उसने उसको बिना शब्दों को बोले ही उसको देखा, जिस पर उसने आश्चर्य के साथ अपने सामने अचानक उपस्थित होने पर, उसने अपनी बड़ी -बड़ी काली आँखों से अपने घर की दीवाल पर बनी हरी पत्तियों के दृश्यों की तरफ देखने लगी। और कबूतर उसके पीछे से घोड़े को देख कर भयभीत होकर उड़ गया।

 

      वह आदमी जो उसके सामने अपने घोड़े पर खड़ा था, वह उस देश का राजा था, जिसका नाम दृढाबर्मा था। वह शिकार करने के लिए अपने आदमीयों के साथ जो आया था और वह अपने साथी से बिछड़ गया था। वह भी बहुत अधिक आश्चर्यचकित हुआ, जब उसने एकांत घने जंगल में किसी लड़की को देखा, और वह पूछने वाला था कि वह कौन है? तभी कादलीगर्भा ने अपने पिता को अपनी तरफ कंधे पर लकड़ी के गट्ठर को लेकर आते हुए देखा, और वह भाग कर उसके पास चली गई, जिसके साथ वह अपने पिता को देख कर वह बहुत अधिक प्रसन्न हुई, जैसे उसने जंगल में किसी विचित्र जानवर को देखा हो, क्योंकि अपने जीवन में, उसने इस प्रकार के किसी युवा आदमी को पहले कभी भी नहीं देखा था। अब मनकानका के साथ वह थी, क्योंकि वह बहुत अधिक भयभीत हो गई थी, लेकिन वह अब बिल्कुल सुरक्षित महसूस कर रही थी, अपने पिता को उसने अपने हाथों से पकड़ लिया, जबकि मनकानका राजा के साथ बात करने लगा।

 

       मनकानका तुरंत समझ गया कि जो आदमी खड़ा था वह उस देश का राजा था, जिसके कारण अपने दिल में डरने लगा जब उसने देखा कि कैसे राजा दृढाबर्मा उसकी प्रिय पुत्री को देख रहा था।

 

      राजा ने पूछा कि तुम कौन हो, और यह लड़की कौन है? और मनकानका ने इसके उत्तर में कहा मैं एक गरीब लकड़हारा हूं, और यह मेरी अकेली लड़की है, जिसकी मां बहुत समय पहले मर चुकी है।

 

     इस पर राजा ने कहा अवश्य ही अपनी लड़की के समान इसकी मां भी सुंदर रही होगी, क्योंकि भी इसके सुंदर लड़की को नहीं देखा है।

 

     मनकानका ने कहा आप जैसा कह रहे वास्तव में वह वैसा ही थी, उसकी शरीर के साथ उसकी आत्मा भी बहुत सुंदर थी जो थोड़े समय तक के लिए मेरे साथ थी।

 

     राजा ने कहा कि मैं तुम्हारी पुत्री को अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं, यदि तुम इसको मुझे देने के लिए तैयार हो जाओ,  जिसके लिए  मैं तुम से वादा करता हूं, कि मैं इसकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति करुंगा। इसके पास हर समय इसकी सहेली के रूप में युवा सेविका होगी, जो इसकी हर प्रकार की इच्छा का कार्य करने के लिए हर समय तैयार होगी। जहां पर सुंदर कपड़ा पहनने के लिए होगा, साथ अति उत्तम स्वादिष्ट भोजन खाने के लिए होगा, घोड़ा और रथ जितना इसकी इच्छा होगी वह सब होगा। जहां पर इसको स्वयं के हाथों से किसी भी कार्य को करने की जरूरत नहीं होगी।   

 

      जबकि कादलीगर्भा अपने पिता के साथ चिपकते हुए, अपने चेहरे को अपने हाथों से छिपा कर कहा कि मैं तुम को छोड़ कर नहीं जांउगी, मेरे पिता जी मुझे अपने से दूर कभी भी मुझको मत भेजना।

 

मनकानका ने उसके बालों पर अपने हाथ फेरते प्रेम से कह-

पुत्री क्या तुम नहीं जानती की तुम्हारा पिता अब बूढ़ा हो चुका है, और जल्दी ही मैं तुम को छोड़ कर चला जाउंगा, यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान का विषय की इस देश का राजा स्वयं मेरी पुत्री को अपनी पत्नी बनाना चाहता है। इनसे डरने की जरूरत नहीं, यद्यपि तुम स्वयं देख कि यह कितना सुंदर और दयालु दिखाई दे रहे हैं।

 

       कादलीगर्भा ने राजा को देखा, जिसने उसको देख कर बहुत सुंदर ढंग से हंसा, जिसके कारण कादलीगर्भा का भय राजा प्रति जो था वह खत्म हो गया, अब तक उसने अपने पिता को पकड़ कर रखा था यद्यपि उसने अपने चहरा को छिपाया नहीं था। मनकानका ने कादलीगर्भा को प्रेम से कहा तुम चलो घर में बैठो, मैं अभी राजा से बात कर के आता हूं, जिसके लिए राजा ने कालदीगर्भा को अस्वस्थ किया इसलिए कादलीगर्भा वहां से अपने घर में चली गई, लेकिन जब वह अपने घर के पास पहुंची तो एक बार घूम कर राजा को देखा, और उसने अपने हृदय में समझ लिया की उसको राजा से प्रेम हो गया है जिसके कारण वह नहीं चाहती थी कि राजा उसको जंगल में छोड़ कर जाये। मनकानका भी राजा से अपनी पुत्री के विवाह करने में इच्छुक था। 

 

      विवाह के बारे में बात चित ज्यादा नहीं हुई, क्योंकि दोनों विवाह के लिए तैयार हो चुके थे। मनकानका ने अपने मन में कहा की उसकी पुत्री उससे दूर हो जायेगी, साथ में वह प्रसन्न भी हुआ कि उसकी पुत्री रानी बन जायेगी, और उसकी देख भाल करने के लिए कुछ और दूसरे लोग होगे, जब वह नहीं रहेगा। इस छोटे से घर को लोगों से छोटी सी मुलाकात के बाद राजा वहां पर कादलीगर्भा से मिलने के लिए रोज आने लगा, और उसके लिए तरह -तरह के उपहार भी लाया करता था। जिसके कारण वह भी राजा से बहुत अधिक प्रेम करने लगी, और वह भी राजा के समान जल्दी से जल्दी विवाह करने के उत्सुक हो गई। जब विवाह की दिन निश्चित हो गया, राजा ने अपने दरबार की कई औरतों के साथ कादलीगर्भा के लिए बहुत से उपहार के साथ अपनी दुल्हन के लिए सुन्दर कपड़े भेजे, जिसकी उसने अपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी, जिस को पहनने के बाद वह और अधिक सुन्दर दिखाई देने लगी, उससे भी अधिक सुन्दर जैसा कि उसने पहली बार अपने प्रेमी को देखा था।

 

      राजा के दरबार में से भेजी गई औरतों में से, एक बहुत बुद्धिमान स्त्री थी, जो यह समझती थी, कि युवा रानी कादलीगर्भा के राजमहल में जाने बाद जो उनके उपर आने वाली परेशानी थी, जिसके बारे में वह जानती थी, क्योंकि महल में ऐसी बहुत सी औरतें थी, जो कादलीगर्भा की प्रसन्नता को देख कर उससे ईर्ष्या करती थी, और वह अपनी छोटी निर्दोष सुन्दर रानी कादलीगर्भा का विशेष ध्यान रखती थी, इसलिए उसने रानी की रक्षा के लिए विशेष प्रबंध करके, उसको लेकर कुछ समय के लिए एकांत में गई, और उसने कादलीगर्भा को सचेत करते हुए, उससे कहा मैं तुम से एक वस्तु के लिए वादा करना चाहती हूं, इसके साथ उसने सरसों के थोड़े दानों को उसको देते हुए कहा कि इसको वह छिपा कर अपनी छाती में पहने हुए कपड़े में रख ले, और जब वह राजा के साथ घोड़े से महल के लिए जायेगी, तब इन सरसों के दानों को जमीन गिराते जाये, जिससे यह सरसों के दाने जल्दी ही ऊँग जायेगा, और यदि वह कभी महल में परेशानी होने पर, अपने पिता के पास आना चाहे, तो इन हरे सरसों के पेड़ों को पहचान कर वह आसानी से अपने पिता के घर पहुंच सकेगी, मुझे भय है, जब तुम को उन सब की सहायता की जरूरत होगी, तो उनके पास उसकी सहायता करने का समय नहीं होगा।

 

      इस सब को सुनने के बाद कादलीगर्भा हँसने लगी, जब वह बुद्धिमान और उसके उपर आने वाली परेशानी के बारे में बात कर रही थी, उस समय कादलीगर्भा बहुत अधिक प्रसन्न थी, जिससे वह उस बुद्धिमान औरत की बातों पर भरोसा नहीं कर सकी, कि वह जल्दी ही अपने घर वापिस आना चाहेगी। क्योंकि वह जानती थी, मेरे पिता मुझ से मिलने के लिए मेरे पास आ जायेगे, जब भी मुझको उनसे मिलने की इच्छा होगी। उसने कहा इसके बारे में केवल मुझे अपने पति से कहना होगा और वह तुरंत मेरे पिता को अपने पास बुला लेंगे। इस सब के बाद भी उसने सरसों के दाने का थैली को ले लिया और उसको अपने कपड़े में छिपा लिया।

 

      विवाह उत्सव पुरा होने के बाद राजा अपने सुन्दर घोड़े के उपर बैठ गया, और नीचे झुक कर अपनी अपने युवा पत्नी को उठा कर अपने पास घोड़े पर बैठा कर अपने दाहिने हाथ से उसको कस कर पकड़ लिया, जबकि उसने अपने बायें हाथ से उसने घोड़े  की लगाम को पकड़ कर वहां से दूर अपने महल की तरफ चल पड़ा, जिससे जल्दी ही उस राजा के सारे कर्मचारी उसके पीछे छुट गये, और रानी जैसा की बुद्धिमान औरत से वादा किया था, सरसों के दानों को रास्ते में बिखेरती रही, जब वह अपने महल में पहुँचे तो वहां पर बहुत बड़ा उत्सव समारोह का आयोजन किया गया, जिससे देख कर ऐसा लगता था कि हर कोई रानी की सुन्दरता को देख कर आश्चर्यचकित था, रानी ने भी जब इस सब बड़े भव्यता पूर्ण आयोजन को देखा तो उसने अपनी उत्सुकता को प्रकट किया।

 

क्योंकि कई हफ़्ते तक कोई भी संसार में इतना अधिक प्रसन्न नहीं हुआ जितना की रानी प्रसन्न हुई थी, वह अपने आपको राजा की दुल्हन के रूप में बहुत अधिक आनंदित और सब कुछ सहजता के साथ महसूस किया। राजा भी दिन कई घंटे उसके साथ व्यतीत करता था, और वह कभी उसकी उन बातों को सुनते हुए नहीं थका, जो उसने राजा को अपने जंगल के जीवन यापन के बारे में बताया, कि किस प्रकार से अपने पिता के साथ वह जंगल में रहती थी। राजा प्रत्येक दिन अपने प्रेम प्रदर्शन को एक नये उपहार को उसको देकर व्यक्त करता था, और राजा कभी भी उसके किसी कार्य को करने या सुनने से मना नहीं करता था। लेकिन कुछ ही समय के बाद उसके जीवन में बदलाव आने लगा। क्योंकि राजा के दरबार की औरतों में एक बहुत सुन्दर औरत थी जो स्वयं रानी बनने का ख्वाब देखती थी, इसलिए वह बहुत अधिक कादलीगर्भा से नफरत करती थी, जिस के कारण उसने मन में संकल्प कर लिया की वह कादलीगर्भा को राजा की नजर से गिरा कर उसके स्थान पर स्वयं को करेगी। इसके लिए उसने पहले एक बहुत शक्तिशाली आदमी से बात किया, इसके बाद उसने किसी दूसरे आदमी से अपनी सहायता के बारे में बात किया, लेकिन कोई भी उसका साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि हर आदमी नई रानी को बहुत पसंद करता था, जिससे वह कुरूप और बहुत भयभीत हो गई, कि वह जिन लोगों से अपने सहायता के बारे में बात कर रही है, कि वह रानी को नुकसान पहुंचाना चाहती है, यदि इन्होंने राजा से कह दिया तो राजा उसके प्रति सावधान हो जायेगा। इस लिए उसने किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में विचार किया जो व्यक्तिगत रूप से कादलीगर्भा को नहीं जानता हो। जिसके बाद अचानक उसको याद आय उस बुद्धिमान औरत के बारे में जिसका नाम अशोक माला था। जो एक नगर से थोड़ीसी दूरी पर ही एक गुफा में रहती थी। जिसके पास बहुत से लोग अपने जीवन की समस्या के समाधान के लिए, अकसर उससे मिलने के लिए जाया करते थे। उस औरत के से मिलने के लिए वह कुरूप औरत एक रात्रि को गई, और उससे उसने एक बहुत लंबी कहानी को कहा जिसमें उसने एक बी शब्द सत्य नहीं कहा था। उसने कहा युवा रानी वास्तव में राजा से प्रेम नहीं करती है, वह अपने जादूगर पिता कि सहायता से राजा को जहर दे कर उनकी हत्या करनी चाहती है। और उसने पूछा इस भयंकर घटना से कैसे राजा वह राजा को बचा सकती है? यदि वह राजा दृधाबर्मा को इस परेशानी को बचा सकती है तो वह उस गुफा में रहने वाली बुद्धिमान औरत बहुत अधिक धन इनाम में देगी।

 

जिससे अशोक माला ने तुरंत अनुमान लगा लिया की उसको जो कहानी बताया गया है वह सत्य नहीं है, और यह केवल इस लिए ऐसा करना चाहती है क्योंकि उस सुन्दर युवा रानी से ईर्ष्या है, और वह उसको नुकसान पहुंचाना चाहती है। लेकिन उसको धन से बहुत प्रेम था जिसके कारण, इसलिए तत्काल उसको मना करने के बजाय उसने कहा तुम मुझे अभी पचास स्वर्ण मुद्रा को दो, और मुझ से वादा करो जब रानी को महल से निकाल दिया जायेगा, उसके बाद पचास स्वर्ण मुद्रा दोगी। और मैं तुम को बताउंगी की आगे तुम को क्या करना होगा?       

 

      उस कुरूप औरत ने तुरंत वह सब करने का वादा किया। उसी रात्रि को उस औरत ने पचास स्वर्णमुद्रा को लाकर अशोक माला को दिया, जिसने उसको बताया की तुम अपनी सहायता के लिए नाई से बात करो, क्योंकि वह राजा से रोज अकेले मिलता है, और वह राजा से रानी की गुप्त साजिश के बारे में बताए, और जिससे स्वयं राजा रानी के साजिश के बारे में पता करेगा। इससे पहले वह सब कुछ जो तुमने मुझ से कहा था वह नाई को अवश्य बताना, यद्यपि बहुत सावधानी के साथ उसको अपनी कहानी के कुछ प्रमाण के साथ बात करना। क्योंकि जैसा मैंने तुम से कहा वैसा नहीं करती हो, तो तुम्हारे पचास स्वर्णमुद्रा जिस को पहले से मुझको दिया है वह व्यर्थ ही खर्च हो जायेगा, इससे भी कहीं ज्यादा तुम को दण्ड मिल सकता है कि तुम रानी को नुकसान पहुंचाना चाहती हो, जिस को हर कोई बहुत अधिक प्रेम करता है।

 

       इस प्रकार से वह कुरूप औरत महल में वापिस गई, सारे रास्ते में अपने बारे में मन में विचार करती हुई, कि मैं कैसे इस बात को सिद्ध कर सकती हूं जो वास्तव में सत्य नहीं है? अंत में उसके मन में एक बिचार आया। वह जानती थी कि रानी को जंगल में घूमना पसंद है, और वह किसी भी जंगली जानवर से भयभीत नहीं होती है, शायद ऐसा लगता है कि वह जंगली जानवरों को समझना जानती है। इसलिए उसने अपना मन बना लिया कि वह नाई से कहेगी की कादलीगर्भा जंगल के सभी रहस्यों के बारे में जानती है, जहां पर उसने उसको जंगली अवषधियों को एकत्रित करते हुए देखा है, जिन में कुछ औषधि ज़हरीले हैं, और उसने उसको कुछ विचित्र शब्दों का प्रयोग अपने साथ करते हुए देखा है।

 

     प्रातःकालीन सुबह सुबह वह कुरूप और  उस नाई से मिलने के लिए गई, और उसने को इनाम देने का वादा किया, यदि वह सब कुछ जो उसने राजा की पत्नी को जंगल करते हुए देखा है, आगे उस कुरूप औरत ने नाई से कहा कि राजा पहले तुम्हारा विश्वास नहीं करेगा, लेकिन तुम्हें अपनी बात को आगे बढ़ाते रहना हैं, क्योंकि तुम पर्याप्त मात्रा में चालाक हो, तुम कुछ इस तरह से कहना की राजा को तुम्हारे बात पर भरोसा हो जाए, राजा से कहना की मैं समझता हूं कि यह सब जो आपकी पत्नी के द्वारा किया जा रहा है, वह आपके लिए अच्छा नहीं होने वाला है। 

 

    वह नाई राजा कि सेवा बहुत सालों से करता था, जो पहले उस कुरूप औरत पर अपनी प्रसन्नता के साथ उसकी सहायता करने के लिए सहमत नहीं हुआ। लेकिन उसको भी धन का बहुत अधिक लोभ था, जिसके कारण वह भी पैसा लेकर उस कुरूप औरत का काम करने का वादा किया। क्योंकि वह भी उस कुरूप औरत के समान धूर्त किस्म का आदमी था, और पर्याप्त मात्रा में चालाक भी था, इसलिए वह जानता था अपने अनुभव के आधार पर कि किस तरह से उसको अपने मालिक से बात करना है? उसने कुछ इस प्रकार से राजा से पुछते हुए अपनी बात को शुरु किया, क्या आपने उस सुन्दर औरत के बारे में सुना है? जिसने एक औरत को जंगल में कुछ विचित्र प्रकार की औषधि को एकत्रित करने के साथ उसको गुप्त भाषा में स्वयं से बात करते हुए देखा है? जिसके इशारे को जंगली खतरनाक प्राणी भी पालन करते हैं। तुरंत राजा दृढ़बर्मा को अपनी पत्नी कादलीगर्भा के बारे में याद आया, कि किस प्रकार से वह जंगली प्राणियों के साथ रहती थी? जब वह पहली बार उससे जंगल में मिला था, तत्काल उसने अंदाज लगा लिया कि वह बहुत सुन्दर औरत है। लेकिन उसने इसके बारे में कुछ भी नाई को नहीं बताया, क्योंकि उसको अपनी सुन्दर पत्नी से बहुत अधिक प्रेम था, जिसके उपर राजा को बहुत अधिक अभिमान भी था, इसलिए वह अपनी पत्नी की प्रशंसा को सुनना बहुत अधिक पसंद करता था, और वह चाहता था कि वह इसी प्रकार से उसकी पत्नी की वह तारीफ आगे भी करता रहे। जिसके बाद राजा ने कहा वह किस प्रकार कि है? क्या वह लंबी है, या वह छोटी सी है, या फिर वह सुन्दर है, या फिर वह कुरूप है? नाई ने तुरंत राजा के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया कुछ इस प्रकार से, उस औरत के बारे में यह सब जानना बहुत सरल है, क्योंकि वह सुन्दर औरत बहुत चालाक है, वह केवल जानवर की भाषा को ही नहीं जानती है, यद्यपि वह जंगली औषधियों के बारे में भी बहुत अच्छी तरह से जानती है। नाई ने आगे कहा कि वह सुन्दर औरत रोज जंगल में जा कर जंगली औषधि को काफी मात्रा में एकत्रित करती है, मैं आपको बताना चाहुंगा कि वह उन औषधियों से बीमारी के इलाज के लिए दवा को बनाती है, इससे भी आगे उसने बताया की वह कुछ औषधियों से खतरनाक जानलेवा जहर भी वह बनाती है। लेकिन मैं अपनी तरफ से उस पर विश्वास कर नहीं करता हूं, क्योंकि वह औरत बहुत सुन्दर है इसलिए वह इतना गंदा काम नहीं कर सकती है।     

 

    राजा ने नाई की बात को सुना जिससे उसके मन थोड़ा सी शंका अपनी पत्नी के विषय में जागृत हुई, कि उसने कभी उसको यह नहीं बताया था कि वह जंगल में औषधियों को एकत्रित करती है, यद्यपि अकसर वह कहती है कि वह अपने जंगली मित्रों से भी बात करती है। शायद यह वह नहीं हो सकती जिसके बार में नाई उससे बात कर रहा है। वह अपनी पत्नी से इसके बारे में पूछेगा कि क्या वह किसी प्रकार की जंगली औषधि से दवा बनाना जानती है। राजा ने अपनी से इसके बारे में पूछा जब अकेले में थी, जिस पर कादलीगर्भा ने कहा मेरे पिताजी ने मुझको औषधियों से दवा बनाना सिखाया है, लेकिन जब से मैं विवाह करके महल में आई हूं, तब से  कभी भी मैंने ऐसी कोई दवा नहीं बनाई हूं।

     

      राजा ने कहा तुम सत्य कह रही हो, और उसने हँसते हुए कहा, निःसंदेह मैं सत्य कह रही हूं, जब मैंने ऐसा कभी किया ही नहीं है तो मैं निश्चिंत हो कर कहती हूं ऐसा नहीं है, मुझे कभी औषधि के बारे में विचारने की जरूरत ही नहीं पड़ी है। क्योंकि अब मैं एक रानी हूं।

 

    दृढ़बर्मा इसके बाद इस समय कुछ नहीं कहा। लेकिन वह बहुत अधिक परेशान हो चुका था, और जब दुबारा नाई उसके पास अगली सुबह आया, उसने फिर तुरंत उस औरत के बारे में बात करना शुरु कर दिया, जिस को जंगल में  देखा गया था। वह कुरूप आदमी बहुत खुश होकर अपनी कहानी को लंबा करते हुए कहने लगा कि जो औरत उस सुन्दर औरत के साथ उसको देखने के लिए जाती है, उसने उसको बताया है, कि उसने उसको क्या करते हुए देखा था? उसने कहा जो औरत उस सुन्दर औरत का जंगल में पीछा करते हुए जाती है उसने उसको बताया है कि उसका घर महल से अधिक दूर नहीं है, उसने उस सुन्दर औरत को आग के उपर अपने पानी से भरा पतीले को रख कर उसमें झुक कर औषधियों को डालते  हुए देखा था, जिस औषधि  को उसने जंगल से एकत्रित किया था। इसके साथ वह अपने किसी विचित्र भाषा में जाप करते हुए भी देखा।

       

       राजा ने विचार किया क्या यह संभव हो सकता है, कि कादलीगर्भा उसको धोखा दे रही है? इस सबके बावजूद क्या शायद वह एक डायन है? उसे याद आया कि वास्तव में वह उसको अच्छी तरह से नहीं जानता है कि वह कौन है अथवा उसका पिता कौन है? क्योंकि जब उसने उसको पहली बात देखा तभी उसको उससे प्रेम हो गया था, ऐसा इसलिए था क्योंकि उसने उसके बहुत सुन्दरता को देख कर उस पर मोहित हो गया था। लेकिन उसको अब क्या करना चाहिए? वह नाई की बातों पुरी तरह से सत्य मान लिया, जिस प्रकार से उसने उस औरत के बारे में बताया जिस को जंगल में देखा गया था। वह उसकी पत्नी ही है, जिस को उसने बाद में देखा और उसको अपनी पत्नी बना लिया। राजा ने अपने मन में संकल्प किया वह उससे कुछ भी नहीं कहेगा, यद्यपि अब कुछ जो उचित होगा वह करेगा।

 

     हालांकि राजा ने अपनी पत्नी से कुछ भी नहीं नाई ने जो कुछ उसने उसके बारे में बताया था, यद्यपि राजा जैसा अपनी पत्नी के साथ व्यवहार नाई की बात सुनने से पहले करता था वह अब आगे अपनी पत्नी के साथ नहीं कर सका, और रानी ने भी जल्दी ही अनुमान लगा लिया कि राजा उसके साथ अब पहले जैसा प्रेम नहीं कर रहा था। जिसके कारण वह अत्यधिक चिंता में परेशान रहने लगी। सबसे पहली वस्तु जिस पर उसका ध्यान सबसे पहले वह यह था, कि वह जब भी जंगल में जाती थी उसका पीछा हमेशा एक राजा के दरबार की औरत किया करती थी। जिस को वह स्वयं पसंद नहीं करती थी, क्योंकि उसको अकेला जंगली जानवरों के साथ रहना बहुत अधिक पसंद था, लेकिन जब कोई रानी के पास में होता था, जिसके कारण कोई भी जंगली जानवर उसके पास नहीं आता था। इसलिए रानी ने उस दरबार की औरत को कहा जो उसका पीछा कर रही थी, कि तुम यहां से चली जाओ, जिससे वह औरत  रानी के पास थोड़ी दूर चली गई, लेकिन रानी जानती थी कि वह रानी से बहुत ज्यादा दूर नहीं गई थी। जिस कारण से रानी पास छोटे पक्षी और हिरण आदि ज्यादा करीब नहीं आते थे, ऐसा ही कुछ समय तक चलता रहा, जिसके बाद एक दिन कादलीगर्भा ने अपने पति कहा कि उन सब लोगों से कह दे, कि उसको वह उसको परेशान ना किया करे, जब वह जंगल में अपने जंगली मित्रों से मिलने के लिए जाती है।  

 

       इस को सुन राजा ने कहा कि मुझे भय है, जंगल में तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो सकता है, क्योंकि जंगल के मध्य बहुत खतरनाक जानवर और पशु रहते हैं, जो तुम को चोट पहुंचा सकते हैं, जिसके लिए मैं चाहता हूं की मेरी प्रिय रानी को किसी प्रकार का नुकसान ना हो इसलिए मैंने उन सब को तुम्हारे साथ भेजता हूं।

 

      दृढ़ाबर्मा ने जैसे ही यह सब कहा इसको सुन कर कादलीगर्भा बहुत अधिक दुःखी हुई, क्योंकि वह जानती थी कि यह सत्य नहीं है। इसके बाद उसने राजा को बड़ी उदास आँखों से देखा, जिससे उसने राजा की शर्मिंदा से भरी आँखों में देखा जो उस पर संदेह कर रहे थी। इसके बाद भी अब तक सब कुछ ठीक हो गया होता, यदि राजा ने उसके बारे में नाई से जिस कहानी को सुना था, उसको बता दिया होता तो, जिससे वह यह सिद्ध कर सकती थी कि जो भी खिलाफ कहा गया है वह सत्य नहीं है। लेकिन राजा ने उससे कुछ भी नहीं कहा सिवाय इसके की मैं तुम को  कभी भी महल से दूर जंगल में अकेला नहीं छोड़ सकता हूं। जंगल में जाने के बजाय तुम महल के चारों तरफ सुन्दर बग़ीचे में घूमने के लिए क्यों नहीं जाया करती हो? यदि तुम इसके बाद भी जंगल में जाना चाहती हो, तो मैं तुम्हारे साथ, तुम पर निगाह रखने के लिए औरत को भेजने के बजाय, जंगल में शिकार करने वाले शिकारी को तुम्हारे साथ भेजुंगा। जो तुम्हारे पास किसी खतरनाक जानवर को पहुंचने से पहले ही उस को मार कर तुम्हारा रक्षा करेंगे।

 

     इस पर कादलीगर्भा ने कहा कि यदि मेरे मालिक जंगल में अकेला जाने नहीं देना चाहते हैं तो मैं महल के चारों तरफ बन बग़ीचे में ही घूमा करूंगी, क्योंकि जंगल में कोई भी पक्षी या जानवर मेरे पास नहीं आयेगा, जब वह अपने शत्रु को मेरे पास देखेंगे। इसके साथ उसने अपनी आँखों में आंसू भर कर कहा कि मेरे मालिक मुझे नहीं बताएगे कि अब और अधिक अपनी पत्नी पर भरोसा क्यों रहा? जो उन को अपने दिल गहराई से प्रेम करती है।

 

        कादलीगर्भा की बातों ने राजा को बहुत अधिक प्रभावित किया,  लेकिन फिर भी वह राजा के मन में अपने सत्य प्रेम को स्थापति नहीं कर सकी, जिसके कारण राजा ने शौकिया तौर पर उसको अपने गले से लगा लिया, और कहा उसकी छोटी पत्नी बहुत अच्छी है जो उसकी बातों को मानने के लिए तैयार हो गई है। रानी दुखी होकर वहाँ से दूर चली गई, यह सोचते हुए कि वह किसी प्रकार से राजा को समझाये? कि वह उनसे पहले के समान प्रेम करती है, और वह उस पर भरोसा पहले जैसा कर सकते हैं। इसलिए वह हमेशा ध्यान राजा के आदेश का ध्यान रखती थी, जिसके कारण वह कभी भी राजा के महल के बग़ीचे से बाहर नहीं जाती थी, जिसकी वजह से उसकी पहले की स्वतंत्रता समाप्त हो चुकी थी, इसके बाद उसकी शरीर की सुन्दरता पिला पन में बदलने लगा, और वह बहुत पतली अथवा कमजोर हो गई।

 

       कुरूप औरत जो रानी को नुकसान पहुंचाना चाहती थी, वह बहुत अधिक निराश हुई, जब उसने देखा कि वह केवल रानी को अभी तक मात्र दुःखी ही कर पाई है, इसलिए वह एक बार फिर अशोक माल के पास गई, और उसको अधिक धन देने का वादा किया, और कहा कि वह उसको ऐसी योजना बताये, जिससे राजा रानी को हमेशा के लिए महल से बाहर निकाल दे। उस बुद्धिमान औरत में काफी समय विचार करने के बाद उससे कहा कि तुम दुबारा नाई से मिलो। और उससे कहो कि वह हर घर में जा कर राजा की पत्नी के बारे में बताए कि वह रोज जंगल में जा कर औषधियों को एकत्रित करती है, जहां पर उसको अकेले कुछ करते हुए देखा गया है, क्योंकि वह समझती है कि उसको कोई भी नहीं देख रहा है।

        अब कुछ ऐसा हुआ कि कादलीगर्भा अकसर अपने दुःख के कारण रात्रि में सो नहीं पाती थी, और उसका सबसे बड़ा दुःख यह था, कि राजा उससे प्रेम नहीं करता था जैसा कि वह उससे पहले किया करता था। एक रात्रि को बिस्तर पर पड़े पड़े वह थक गई, क्योंकि उसको निंद नहीं आ रही थी, जिससे वह बिल्कुल शांति से अपने बिस्तर से उठ गई, अपने पति कि बिना जानकारी में, और अपनी साड़ी को पहना, और वह महल के बाहर बग़ीचे में चली गई, इस आशा के साथ ताजा हवा शायद उसके सोने में सहायक सिद्ध हो। उसके जाने के बाद ही राजा की निंद खुल गई, और उसने देखा की उसके बगल में अब उसकी पत्नी नहीं थी, जिसके कारण वह बहुत अधिक परेशान हो गया, और वह बाहर जा कर उसकी तलाश करना चाहता था, तभी वह वापिस आ गई, जिस पर राजा ने उससे पूछा तुम कहा गई थी, और उसने जो सच था उसको बताया, लेकिन वह राजा को यह नहीं बता सकी कि उसको आखिर निंद क्यों नहीं आ रही है।

 

      अगले दिन सुबह जब नाई राजा की दाढ़ी बना रहा था, उसने राजा से बताया, कि उसने लोगों के द्वारा कहते हुए सुना है कि उस औरत को फिर से रात्रि के अंधेरे में औषधियों को  एकत्रित करने के साथ अपनी गुप्त भाषा में मंत्रों का जाप करते हुए देखा गया है। और वह अपने ओठ से आपके नाम का उच्चारण कर रही था, मेरे मालिक सभी लोग आप से बहुत अधिक प्रेम करते है, वह सब आपकी सुरक्षा के बारें में सोच कर बहुत अधिक चिंतित है, वस्तुतः वह औरत कोई डायन है, वह आपसे अपने किसी बदले की भावना के साथ प्रेरित हो कर, आपको जहर देकर मारना चाहती है।    

 

      तभी दृढ़बर्मा को याद आया कि कादलीगर्भा पिछले रात्रि को उसके पास से कही बाहर गई थी, इस पर उसने विचार किया और समझा शायद इससे पहले भी वह मेरे सोने पर रात्रि में बाहर गई हो। जिसके कारण वह नाई के कार्य को समाप्त करने से पहले ही अत्यधिक उत्सुक हो गया, कि वह आज ही अपनी पत्नी के सत्य के बारे में सब कुछ पता करेगा। जिसके बाद वह तुरंत ही अपनी पत्नी के व्यक्तिगत कमरे में गया, जहां पर उसने उसको नहीं पाया, और उसकी सेविकाओं ने उसको बताया कि उन सब ने प्रातःकाल से ही नहीं देखा है। इस परेशानी के कारण से राजा बहुत अधिक परेशान हो गया, और उसने पुरे महल में उसकी तलाश में गया, और संदेशवाहक को भी रानी कहीं भी दिखाई दी, जिससे राजा को पूर्ण विश्वास हो गया की नाई ने जिस औरत के बारे में बताया वह कादलीगर्भा ही है। जिस पत्नी पर सबसे अधिक भरोसा और प्रेम करता है, उसने विचार किया शायद उसने मेरे भोजन में जहर को डाल दिया हो, क्योंकि वह मुझे मरता हुआ नहीं देख सकती है इसलिए वह यहाँ से जा चुकी है। इसलिए राजा ने ना ही पानी पिया और ना ही खाना को खाया, इसके बजाय उसने अपनी सभी सेविकाओं को आदेश दिया, कि उसकी तलाश करो, और उसको पाते ही तत्काल कैद में डाल दें। उन औरतों के मध्य में ही वह कुरूप औरत थी, जिसने यह सब षड्यंत्र रानी के खिलाफ किया था, क्योंकि वह युवा सुन्दर रानी से ईर्ष्या करती थी, और यह हर प्रकार का से रानी नुकसान करना चाहती थी, यद्यपि रानी कभी इसका किसी प्रकार से कोई हानि नहीं करना चाहती थी।

 

       कादलीगर्भा जब हर प्रकार के प्रयास करने के बाद अपने पति का प्रेम वापिस नहीं पा सकी, जिसके बाद उसने अपने पिता के पास जंगल में जाने के बारे में विचार किया, इस आशा के साथ कि इस विषय में केवल उसका पिता ही उसकी सहायता कर सकता है। इस लिए उसने यह निश्चय किया कि वह पिता के पास जायेगी। जिसके लिए उसकी सहायता उस बुद्धिमान औरत ने दिया, जिसने उसको सरसों का दाना दिया था, रास्ता में बोने के लिए, वह अकसर दरबार में रानी की अपने छद्म भेष में उसकी सहायता करती थी, उसको सब कुछ पहले ही पता चल चुका था, कि महल में क्या षड्यंत्र होने वाला है? इसलिए उस बुद्धिमान औरत ने रानी को महल से बाहर जाने के लिए, राजा के पहुंचने से पहले ही रानी को एक घोड़ा पर बैठा कर उसको अपने पिता के पास पहुंचने का मार्ग दिखा दिया था, इस प्रकार से कादलीगर्भा ने रास्ते में उगते सरसों के नये फसल को देखते हुए, साम होने से पहले ही अपने पिता के पास जंगल में पहुंच गई। उसका पिता मनकानका अपनी पुत्री कादलीगर्भा को देख कर वस्तुतः उससे कहीं अधिक प्रसन्नचित्त हुए, जल्दी ही कादलीगर्भा ने अपने हृदय का सारा दुःख उसके सामने उड़ेल दिया। जिस को सुन कर सबसे पहले अपने दामाद पर वह साधु बहुत अधिक क्रोधित हुआ, और उसने कहा कि वह अपनी पुरी शक्ति का प्रयोग करके उसको दण्ड देगा, जिसके कारण वह कभी भी अपने प्रिय का चेहरा वह देख नहीं सकेगा, लेकिन उससे पहले मैं उसके लिए उसके सभी पतन और दुर्भाग्य के मार्ग को खोल दुंगा जिससे उसका सर्वनाश हो जायेगा। मेरी प्रिय पुत्री शायद तुम नहीं जानती हो, क्योंकि मैं यह कभी नहीं चाहता था कि तुम इसके बारे में जानों, कि मैं एक जादूगर हूं, मैं अपनी शक्ति से इस जंगल के सभी खतरनाक जानवरों को और हवा को भी अपने मन के मुताबिक उपयोग कर सकता हूं। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम्हारे और तुम्हारे पति के मध्य में किसने दरार डाला है, और मैं उसको इसके अपराध के लिए दण्ड प्राप्त करते हुए देखना चाहता हूं।

 

        इस पर कादलीगर्भा ने रोते हुए कहा मैं जिससे प्रेम करती हूं उसको किसी प्रकार से नुकसान नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं उन को अपने पूरे दिल से प्रेम करती हूं। मैं आपसे केवल यह चाहती हूं कि आप यह प्रमाणित करे, की मैं अपने पति के खिलाफ किसी प्रकार का अपराध नहीं किया है, और मैं निर्दोष हूं। वह जिस भी प्रकार के अपराध के बारे में मेरे लिए विचार करते हैं, जिससे वह पहले के समान फिर से मुझ से प्रेम करने लगे।

      

       यह वादा करना मनकानका के लिए करना बहुत कठिन था कि इसमें किसी प्रकार का नुकसान राजा नहीं होगा, लेकिन उसकी पुत्र के बहुत अधिक जोर देने पर उसने उसकी बात को मान लिया। जिसके बाद पिता और पुत्री दोनों एक साथ घोड़े पर सवार होकर महल के लिए रवाना हो गये, और उन दोनों को एक साथ ही दृढ़बर्मा के सामने लाया गया। जो उनके उपर क्रोध के बजाय, उसने महसूस किया वह अपने पत्नी के विरुद्ध था, जब उसने अपनी पत्नी को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। जब उसने देखा की वह अपने पिता मनकानका की बांहों को पकड़े हुए थी। जैसा कि उसने पहली बार किया था जब उसने उसको पहली बार जंगल में अपने पिता के साथ देखा था जब वह पहली बार मिले थे, उनका पुराना प्रेम पुनः वापिस आ गया था। जहां पर मनकानका ने उसको अपने बांहों में लेकर दरबार में गया और भरी सभा में सबसे पहले राजा को संबोधित करते हुए कहा, अगर इसको वापिस नहीं स्वीकारा गया, तो यह मनकानका होगा, जो सबसे पहले बोलेगा, और वह अपनी पुरी शक्ति का प्रयोग करेगा, और राजा को इसको लिए दण्ड देगा, क्योंकि राजा ने उसके सामने प्रतिज्ञा की थी, वह अपनी पत्नी की प्रेम के साथ रक्षा करेगा, जिस को तोड़ा गया है। झूठे जबान को धारण करने वाला राजा तुम सुन रहे हो, और मैं तुम को बताउंगा कि झूठ किस से संबंधित है, और उन सब के साथ न्याय अवश्य होना चाहिए।

 

   एक बार फिर से कादलीगर्भा ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा नहीं पिता जी, उनके नाम मत लीजिए, आप मेरे मालिक को केवल यह बताईये कि मैं उनसे अपनी पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रेम करती हूं, और मैं खुश रहूंगी।

     

       इस पर चिल्लाते हुए दृढबर्मा ने कहा मुझे किसी प्रकार का प्रमाण नहीं चाहिए,  लेकिन जिन्होने इस षड्यंत्र को रचा वह स्वयं सामने आ जाये, अन्यथा मैं स्वयं उन को तलाश कर उनके अपराध के लिए दण्डित करुंगा, उनका नाम और पहचान बताइए, वह अवश्य बहुत कुरूप होगा।

     

         फिर मनकानका ने दुःख की पुरी कहानी को राजा को बताया, और इस पर उस कुरूप औरत का अंत हो गया, जिसने पहली बार विचार किया था कि वह रानी को नुकसान पहुंचा सकती है, और फिर उस नाई को पकड़ा गया जिसने उसका सहायता की थी, उनके उपर सुनवाई की गई, और उन को जीवन भर के लिए उम्रकैद कि सज़ा को सुनाया गया। यह केवल दो साल के लिए कर दिया गया क्योंकि कादलीगर्भा बहुत दयालु किस्म की था, जिसके कारण उसने उन को क्षमा कर दिया। और इस षड्यंत्र में तीसरी वह वृद्ध जादुगरनी थी जो गुफा में रहती जिसके बारे में किसी ने एक शब्द भी नहीं बोला, यद्यपि मनकानका उसके बारे में अच्छी तरह से जानता था कि उसने इस षड्यंत्र में क्या योगदान दिया था। लेकिन जदूगर और जादूगरनी एक दूसरे की शक्ति से परिचित थे इसलिए वह एक दूसरे को अपना शत्रु नहीं बनाना चाहते थे। इसलिए वह दोनों इस विषय पर बिल्कुल शांत ही रहे।

 

        दृढाबर्मा अपने ससुर पर बहुत प्रसन्न था कि उसने उसकी पत्नी को वापिस उसके पास ले आया, इस लिए वह चाहता था की वह भी उसके दरबार में ऊंचे पद पर होकर उसके पास दरबार में ही रहे, इसलिए उसने कहा की वह उसको बड़ा पद अपने दरबार में देगा। लेकिन मनकानका ने राजा के सभी पुरस्कार को लेने से मना कर दिया, उसने कहा उसको जंगल की अपनी झोंपड़ी महल के बड़े कमरे से कहीं बहुत अधिक पसंद है। उसने कहा मेरी केवल एक यहीं इच्छा है कि मेरी प्रिय पुत्री यहां पर हमेशा प्रसन्न रहे, मैं आशा करता हूं, कि कभी भी फिर तुम अपने पत्नी से संबंधित उसके विरुद्ध किसी कहानी को नहीं सुनोगे, अगर तुमने ऐसा कभी किया तो, तुम यह भी अवश्य जान लेना की मैं इसके बारे में अवश्य जान जाउंगा, और अगली बार जब मैंने जाना की तुम उसके प्रति किसी प्रकार की दयाहीनता को प्रदर्शित किया तो मैं तुम्हें तुम्हारे योग्य दण्ड दुंगा।

 

      राजा ने मनकानका की आज्ञा को मान कर कहा ठीक है, अब आप जा सकते हैं। लेकिन इसके बाद वह कादलीगर्भा को जंगल में लेकर, मनकानका को देखने के लिए अकसर जाया करता था, बाद में जब रानी के बाद जब अपने कुछ बच्चे हो गए, तब बड़ा उत्सव उस छोटी बीच जंगल की झोंपड़ी हुआ करता था। उन्होंने ने भी जानवरों से प्रेम करना सिख लिया, और उनके पास भी बहुत से पालतू जानवर हो गये थे। लेकिन उनमें से किसी जानवर को वह पिंजड़ा में रखते थे।  

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