रत्न जड़ित वाण
अध्याय .1
प्राचीन समय में भारत के एक नगर वर्धमान में, एक बहुत शक्तिशाली
राजा रहता था, जिसका नाम विरभुज था, जैसा
कि उस समय भारत में कई पत्नी रखने की परंपरा थी, उसके पास भी
कई पत्नी थी, और हर किसी के कई – कई
पुत्र थे, उस सभी पत्नीयों में सबसे अधिक प्रेम वह अपनी
पत्नी गुनवारा से करता था। और सभी पुत्रों में जो सबसे उसका छोटा पुत्र था,
उसे वह बहुत प्रिय था, जिसका नाम श्रृंगभुज
था। गुनवारा ना केवल बहुत सुंदर थी, यद्यपि वह स्वभाव से भी
बहुत अच्छी थी। वह बहुत अधिक धैर्यवान थी, जिसके कारण कोई भी
वस्तु उसको क्रोधित नहीं कर सकती थी। और इसके अतिरिक्त वह निःस्वार्थ थी, हमेशा अपने से पहले वह दूसरों के बारें में विचार करती थी, वह बहुत अधिक बुद्धिमान थी, जिससे वह किसी दूसरे के
भाव को भी आसानी से समझ जाती थी, इस प्रकार से उसकी स्वयं की
आकृति से उसकी प्रकृत अलग थी।
श्रृंगभुज
गुनवारा का पुत्र था,
वह स्वभाव से भी अपनी मां के समान था, सुंदरता
और निःस्वार्थ के गुण में, वह शक्तिशाली के साथ बहुत चालाक
भी था, जबकि उसके दूसरे भाई उसको बिल्कुल पसंद नहीं करते थे।
वे सभी अपने पास की हर वस्तु को अपने मनमाफिक चाहते थे, वस्तुतः
वह अपने पिता के अत्यधिक प्रेम के कारण श्रृंगभुज से ईर्ष्या करते थे। वह सब हमेशा
श्रृंगभुज को नुकसान पहुंचाना चाहते थे, हालांकि वे अकसर
अपने मध्य में भी झगड़ते रहते थे, लेकिन श्रृंगभुज को नुकसान
पहुँचाते वक्त वे सभी भाई एक हो जाते थे।
ऐसा ही
राजा की रानीयों के साथ भी था,
वे सभी गुनवारा से नफरत करती थी, क्योंकि उनका
पति उन सब से कही अधिक गुनवारा से प्रेम करता था। जिसके कारण वह सब एक साथ मिल कर
गुनवारा को कष्ट पहुंचाने के लिए, राजा से उसके खिलाफ तरह –
तरह की कहानीयों को बना राजा को सुनाया करती थी। उन्होंने एक बार
राजा से कहा की गुनवारा उनसे प्रेम नहीं करती है, वह किसी
दूसरे को आपसे अधिक प्रेम करती है, और उसके लिए वह कुछ भी कर सकती है। जो रानीयों
में गुनवारा से सबसे अधिक नफरत करती थी, उसका नाम आयसोलेखा था, वह बहुत अधिक धूर्त थी, जिसके कारण वह राजा की सभी
कमज़ोरियों को जानती थी, और वह यह भी जानती थी, कि राजा उसकी
कौन – कौन सी बातों पर सबसे अधिक भरोसा करता है? यह बिल्कुल सत्य था की राजा विरभुज अपनी रानी गुनवारा से बहुत अधिक प्रेम
करता था। जिसके कारण वह यह सोचने लगा, की शायद उसकी रानी गुनवारा सच में उसके
प्रेम का उतना सम्मान नहीं करती है, जितना की उसको करना चाहिए। इसलिए उसने इसके
पीछे के कारण को जानने के लिए निर्णय किया। और उसने उसकी परीक्षा लेने के लिए,
अपने मन में एक योजना को बनाया, जिससे वह जान जायेगा, कि
उसकी रानी उससे कितना प्रेम करती है। या वह उसके बारे में क्या महसूस करती है?
इसलिए एक दिन वह अपने व्यक्तिगत महल में गया, और
अपने सभी सेवकों को वहां से बाहर भेज दिया, और उसने अपनी
गुनवारा से कहा की उसके पास एक बहुत बुरा संदेश आया है, जिस
को उसने मुख्य ज्योतिषी से सुना है। ज्योतिषी के बारे में तो तुम जानती ही हो, कि
वह एक बहुत बुद्धिमान आदमी है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि
वह तारों की सूक्ष्म गति को बड़ी आसानी से समझ जाता है, जिसके
कारण वह किसी साधारण मनुष्य के संदर्भ में, किसी प्रकार की भविष्यवाणी को करने में
पूर्णतः समर्थ है। इसलिए गुनावारा को किसी प्रकार का कोई संदेह अपने पति पर नहीं
हुआ। और वह उत्सुकता के साथ, वह राजा की सब बातों को सत्य मान कर सुनने लगी, जो भी
उसके पति ने बातें की, उसका दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था,
कि उसका जो सबसे प्रिय है, उसके उपर कोई बहुत बड़ी मुसीबत आने वाली
है।
वस्तुतः
उसका दुःख आश्चर्य के साथ बढ़ गया,
जब राजा विरभुज ने कहा- की ज्योतिषी ने बताया है कि मेरे दुर्भाग्य
के कारण, मुझ पर और मेरे राज्य पर बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है, जिससे मैं बहुत अधिक भयभीत हूं, इससे बचने का केवल
एक मार्ग है, कि गुनवारा को जीवन भर के लिए जेल में कैद कर दिया जाये। बेचारी रानी
इस पर जो अभी अपने पति के मुख से सुना था, उस पर बड़ी कठिनाई से भरोसा कर पाई,
क्योंकि वह जानती थी। कि उसने कभी भी कोई गलत कार्य नहीं किया था।
जिससे वह यह नहीं समझ सकी, कि किस प्रकार से उसके जेल में रहने से किसी प्रकार से
किसी दूसरे की सहायता होगी। वह अपने पति के प्रेम पर बिल्कुल निश्चिंत थी। इसलिए
ऐसा कोई शब्द या वाक्य नहीं था जिसमें उसके दुःख को व्यक्त किया जा सकता हो,
जो उसको उस समय हो रहा था। जैसा कि उसके प्रिय पति और उसके प्रिय
पुत्र से, अलग करके उसको कैद करने की बात, राजा कर रहा था। फिर भी बिना किसी
प्रकार के प्रतिरोध के, उसने राजा की आज्ञा को स्वीकार कर लिया, उसने यह भी नहीं कहा, कि वह एक बार फिर से अपने प्रिय पुत्र श्रृंगभुज को
देखना चाहती है। यद्यपि उसने अपने शिर को झुका कर कहा मेरे स्वामी की जैसी इच्छा हो
वहीं करें, यदि आप मेरी मृत्यु भी चाहते हैं, तो मैं अपने
जीवन के त्याग के लिए भी तैयार हूं।
गुनवारा
की इस स्वीकृति के कारण, राजा पहले से भी अधिक अप्रसन्न और उदास हो गया। इस पर
उसने अपने बांहों से अपनी पत्नी को पकड़ कर अपने गले से लगा लिया, और कहा वह उसको
अपने से दूर कभी भी नहीं होने देगा, लेकिन शायद ही फिर से
उसने अपनी आँखों से राजा को देखा हो, वह अभी भी अपने शीर को
नीचे ही झुकाया था, जिसकी वजह से राजा ने उसकी आँखों में
अपने लिए पुराने प्रेम को नहीं देख पाया। जिसके कारण उसके मन में विचार आया कि
उसकी पत्नी उसकी आँखों में देखने से डरती है, इसलिए जो आयसोलेखा
ने कहा था वह सच है।
इसलिए
राजा ने अपने सिपाहियों को बुला कर, उन को आदेश दिया, कि उसकी पत्नी को
ले जा कर एक मजबूत बंदीगृह में डाल दे। रानी उनके साथ बिना किसी प्रतिरोध के चली
गई, केवल एक बार घूम कर उसने अपने प्रिय पति को देखा, और
वहां से दूर हो गई। विरभुज वहां से अपने महल में लौट आया, और
वहां पर उसको कुछ ही दिनों के बाद यह संदेश मिला, की उसकी पत्नी आयोसलेखा उससे
मिलना चाहती है। क्योंकि उसके पास कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है, जिसके बारे में वह बात करना चाहती है। राजा ने अपने मन में विचार किया,
कि शायद उसकी प्रिय पत्नी गुनवारा पर जो उसने जो इल्जाम लगाया है,
वह सत्य नहीं है, इसके बारे में उसने कुछ
प्रमाणिक जानकारी प्राप्त किया हो, इसलिए वह उससे मिलने के
लिए सहमत हो गया।
लेकिन
उसकी निराश पहले से कहीं अधिक बढ़ गई,
जब उस कुरूप औरत ने कहा की उसने एक ऐसे सड़यंत्र की खोज की है,
जिसमें राज्य के कुछ मुख्य अधिकारी के साथ गुनवारा का पुत्र भी मिला
हुआ है, और वे सब राजा की हत्या करना चाहते हैं। जिसके लिए
वह सब एक हो चुके हैं। क्योंकि श्रृंगभुज स्वयं पूरे राज्य अपना अधिकार करना चाहता
है। उसने और कुछ राजा की दूसरी पत्नीयों
ने इस हत्या की साजिश के बारे में होने वाली बात चित को स्वयं अपने कानों से सुना
है। जो वह सब अपने मध्य में कर रहे थे। इसलिए हम सब अपने स्वामी के जीवन पर आने
वाले खतरा, के बारें में जान कर बहुत अधिक भयभीत हैं। उसने निर्णयात्मक लहजे में
कहा युवा राजकुमार अपनी सहायता के लिए कुछ श्रेष्ठ राज्य के अधिकारियों से मिल कर,
वह अपने साथ करने के लिए उन को उत्साहित कर रहा था, जिससे उसको अंत में सफलता मिल गई है।
विरभुज
साधारणतः उस कहानी पर भरोसा नहीं कर सका,
क्योंकि जितना अधिक वह अपने प्रिय पुत्र श्रृंगभुज से प्रेम करता था,
उतना ही अधिक वह उस पर भरोसा भी करता था, इसलिए उसने उस
दुष्ट औरत को कहा की तुम यहां से अभी चली जाओ, और कभी भी
मेरे सामने आने की हिम्मत मत करना।
इसके
बाद भी वह यह सब कुछ भुला नहीं,
वह अपने पुत्र श्रृंगभुज की हर हरकत पर बड़ी सावधानी के साथ नजर
रखने लगा, लेकिन उसको ऐसा कुछ भी नहीं मिला, की जिससे वह उस
पर किसी प्रकार से संदेह कर सके। जिससे उसने उसके प्रति अपनी बुरी भावनाओं का बड़ी
आसानी से त्याग कर दिया, और यह सोचने लगा, की वह बंदीगृह में
जा कर गुनवारा से भी मिलेगा, और उससे अपनी गलती के लिए ,उससे
क्षमा याचना करेगा। तभी कुछ ऐसा हुआ, जिससे उसको अपने प्रिय
पुत्र श्रृंगभुज से डर लगने लगा, और वह समझ गया कि उसका
पुत्र उसके साथ वफादारी नहीं कर रहा है। उसके पास एक आश्चर्यजनक वाण था, जिसमें बहुमूल्य रत्नों को जड़ा गया था, जिस को किसी
बड़े जादूगर ने उसको दिया था, जिस वाण के अंदर ऐसी शक्ति थी,
कि वह कभी भी अपने लक्ष्य से नहीं भटकता था, चाहे
उसको कितनी ही अधिक दूरी के लक्ष्य के लिए चलाया जाये। उसने उस वाण कहां रख दिया
था? अब उसको याद नहीं था, इसलिए उस वाण
की तलाश में ही वह अपनी कुरूप पत्नी के महल में एक दिन गया था, जिसके कारण वह बहुत अधिक चिंतित था, जब सभी स्थानों
पर खोजने बाद, वह वाण उसको नहीं मिला, तो
उसने महल में कार्य करने वाले, अपने सभी कर्मचारियों को अपने
सामने उपस्थित होने के लिए आदेश दिया। और उन सबसे उसने पूछा क्या कोई उसके वाण के
बारे में कुछ जानता है? उसने वादा किया कि वह उसको इस अपराध
के लिए क्षमा कर देगा, जो उसके वाण को वापिस कर देगा। यदि वह
स्वयं उसको चुराया भी होगा तो भी, और यदि वह तीन दीनों के
अंदर नहीं मिला, तो सभी सेवकों को तब तक पीटेगा, जब तक कि उनमें से ही एक स्वयं जिसने उस वाण को चुराया है वह इसके बारे
में स्वीकार नहीं लेगा।
सच में
यह कार्य आयसोलेखा का था,
जिसने गुनवारा के बारे में गलत कहानी को रच कर राजा को सुनाया था,
वह जानती थी की राजा ने अपने वाण को कहां पर रखा है? और उसने उस वाण को वहां से उठा कर अपने व्यक्तिगत महल में ले आई थी। और
उसको अपने पुत्र के पास भेज दिया था, जो दूसरी रानीयों के द्वारा उत्पन्न हुए थे। क्योंकि
वह सभी श्रृंगभुज से बहुत अधिक नफरत पूर्ण इर्ष्या करते थे, जिसके
लिए उसने उन को एक योजना बना कर समझाया, जिससे इस चोरी में श्रृंगभुज को फंसा कर,
उसको राजा के द्वारा दण्ड को दिलाया जा सके। उसने अपने पुत्र से कहा तुम जानते हो,
कि तुम्हारे पिता तुम लोगों से बहुत अधिक प्रेम श्रृंगभुज से करते हैं, और जब उनकी मृत्यु हो जायेगी, तो वह सारा राज्य और यहां की सारी संपत्ति
उसको मिल जायेगी। अब मैं तुम्हारी सहायता करूंगी, जिससे तुम
सब इस राज्य के अधिकार को श्रृंगभुज के पास जाने से बचा सको।
तुम
लोगों के लिए बहुत बड़ी तीरंदाजी की प्रतियोगिता होने वाली है, जिसमें तुम सब
अवश्य भाग लेना होगा, क्योंकि इसमें तुम्हारा भाई श्रृंगभुज
बहुत अधिक रुचि लेता है, उसको अपने तीरंदाजी की कला पर बहुत
अधिक अभिमान है। जिस दिन तीरंदाजी की प्रतियोगिता होगी, मैं
इस रत्न जड़ित वाण को उसके पास भेज दूंगी, यह कह कर की
तुम्हारे पिता ने इसको तुम को देने के लिए कहा है। क्योंकि यह तुम्हारे पिता का है,
और उससे कह दूंगी की कि वह इससे निशाना लगाये। इसके बारे में जब
तुम्हारे पिता को पता चलेगा, तो वह समझेगें, कि श्रृंगभुज ने इसको चुराया था, जिसके लिए वह उसको
मृत्यु की सज़ा दे देंगे।
इस
पर सभी भाई बहुत अधिक खुश हुए, जब उन्होंने अपनी मां की धूर्तता पूर्ण योजना के बारे में
सुना, और उन्होंने वहीं किया जैसा कि आयसोलेखा ने उनसे कहा
था। जब वह दिन तीरंदाजी की प्रतियोगिता का आया, बहुत बड़ी
भीड़ उस तीरंदाजी की प्रतियोगिता को देखने के लिए एकत्रित हुई। महल से काफी दूरी
पर लक्ष्य को तैयार कर दिया गया। राजा स्वयं अपने सभी दरबारियों के साथ तीरंदाजी
की प्रतियोगिता को देखने के लिए वहां एक ऊंची दिवाला पर उपस्थित हुए। वहां पर जनता
की भीड़ को नियंत्रित करने में बहुत कठिनाई हो रही थी सुरक्षा का इंतजाम करने
वालों कर्मचारियों के लिए, फिर भी वह सब कुछ किसी प्रकार से व्यवस्थित
कर सके। भाईयों में जो सबसे बड़ा था, उसने प्रतियोगिता का प्रारंभ किया, और सब बहाना कर रहे थे, कि वह लक्ष्य पर निशाना लगा
रहे हैं, लेकिन सच में कोई भी मन से वहां सफल होना नहीं
चाहता था, क्योंकि उन सब को श्रृंगभुज की बारी का इंतजार था।
कि वह आये और निशाना लगाये, अपने रत्न जड़ित वाण से, जिस को राजा स्वयं अपना आँखों से देखेगा, और उसको
चोर समझ कर, उसे अपने सामने हाजिर होने के आदेश देगा,
जिससे वह अपराधी सिद्ध किया जायेगा, जिसके
परिणामस्वरूप उसको मृत्यु दण्ड या फिर उम्र कैद की सजा होगी।
और जैसा
की अकसर होता है, वहीं हुआ, उन सब के द्वारा जो योजना बनाई गई थी, उन
सब भाईयों में कोई भी निश्चित लक्ष्य पर निशाना लगाने में सफल नहीं हुआ, और श्रृंगभुज निशाना लगाने के लिए आया, और वह अपने लक्ष्य पर निशाना साध
रहा था, तभी एक बड़ा बगुला उड़ते हुए आया, वह जमीन और उनके
मध्य में उड़ने लगा, जिसके कारण उसके लिये उपयुक्त निशाना
लगाना, लगभग असंभव हो गया, सभी भाई
बड़ी चिंता के साथ पक्षी को देख रहे थे, वह स्वयं उसको मारना
चाहते थे, इस लिए उन सब ने अपिल की उन को एक बार फिर से उस
पक्षी को मारने का मौका मिलना चाहिए। किसी ने इस पर उनका कोई विरोध नहीं किया,
श्रृंगभुज भी एक तरफ अपने रत्न जड़ित वाण और धनुष के साथ खड़ा हो
गया, और इंतजार करने लगा की वह सब क्या करना चाहते हैं?
उसको देखने के लिए, लेकिन वह निश्चिंत था,
कि उन सब में केवल वहीं एक है, जो पक्षी को मारने में सफल होगा। एक
भाई के बाद दूसरे भाई ने पक्षी को मारने का प्रयास किया, लेकिन उस बड़े चालाक
पक्षि को किसी के वाण ने छू नहीं पाया था, तभी एक आगे से आने
वाले भिक्षु ने जोर से चिल्लाते हुए कहा-
वह कोई
पक्षी नहीं है, यद्यपि एक दुष्ट जादूगर है, उसने तुम सब को धोखा
देने के लिए पक्षी का रूप लिया है, अगर इसको अपने आदमी के
रूप में आने से पहले नहीं मारा गया, तो यह बहुत दुःख के
उत्पन्न करेगा, और इस नगर को बर्बाद कर देगा, इसके साथ पूरे देश को भी चारों तरफ से नष्ट भ्रष्ट कर देगा।
शायद
तुम जानते हो कि भिक्षु या भिखारी भारत में अकसर पवित्र आदमी माने जाते हैं,
जो राजाओं को सुझाव देते हैं, जिस को
वह आदर के साथ सुनते हैं, इस प्रकार से जब सब ने सुना जो उस
भिक्षु ने कहा था, जिसके कारण सभी में बहुत बड़ी उत्तेजना के
साथ आतंक कि लहर व्याप्त हो गई, क्योंकि उस समय बहुत सी
दुष्ट राक्षस और जादूगरों की कहानीयों को दूसरे नगरों में सुना जाता था। वह सभी
भाई अपने भाग्य को एक बार फिर आजमाना चाहते थे, लेकिन भिक्षु
ने उनकी जांच करते हुए कहा-
नहीं –नहीं तुम में से
सिवाय श्रृंगभुज के कोई भी उसको नहीं मार सकता है, वह केवल
अकेला ही तुम्हारे घर, तुम्हारे पत्नीयों और बच्चों को नष्ट
होने से बचा सकता है।
फिर
श्रृंगभुज सबसे आगे आ गया,
और जैसे ही सूर्य का प्रकाश चोरी हुए, रत्न
जड़ित वाण पर पड़ा, राजा उसको देख कर समझ गया, कि उसके प्रिय
पुत्र ने ही उस वाण चुरा लिया है, और युवा राज कुमार ने उस
वाण को उस पक्षी पर निशाना साध कर छोड़ दिया। जिस वाण ने उस पक्षी को मारने के
बजाय जख्मी कर दिया, और वह पक्षी उस वाण को अपने सीने में
धसाएं हुए, वहां से उड़ गया, जिसके जख्म से खून की बूँदें
जमीन पर टपक रही थी। उस पक्षी की उड़ान धीरे – धीरे कम होने
लगी। जैसे ही रत्न जड़ित वाण के साथ उड़ने वाला पक्षी राजा की नज़रों से ओझल हुआ,
राजा बहुत अधिक क्रोध से लाल हो गया, और उसने
तत्काल अपने आदमीयों को आदेश दिया, की तुरंत श्रृंगभुज को उसके सामने पेश किया
जाये, लेकिन संदेशवाहक उसके पास पहुँचे, उससे पहले, वह उस पक्षी का पीछा करने के लिए चला गया
था, खून की बुंदों का जमीन पर पीछा करता हुआ।
अध्याय 2
जैसा कि
बड़ी तीव्रता के साथ श्रृंगभुज उस रत्न जड़ित वाण के साथ जाने वाले बगुले का पीछा
कर रहा था, भिक्षु ने कुछ विलक्षण संकेत हवा में बना दिये, अपने
सहयोगियों के साथ जो उसकी सहायता के लिए उसके साथ थे, जिससे
कुछ विचित्र प्रकार के बादल और धूल के साथ हवा के गुबार बन कर बहने लगे, जिससे कोई भी आदमी यह नहीं देख सका, की राजकुमार किस दिशा में गया है। सभी
भाईयों के साथ आयसोलेखा भी बहुत अधिक निराश हुई, जब उन्होंने
देखा की उनका शिकार श्रृंगभुज उनके हाथ से निकल गया। और वह सब राजा के क्रोध के
कारण से, बहुत अधिक भयभीत हो गए, जबकि
अब श्रृंगभुज गायब हो चुका है, विरभुज ने जिन को श्रृंगभुज
को लाने के लिए भेजा था, वह सब खाली हाथ वापिस आ गये,
तो उनसे बहुत से प्रश्न किये, लेकिन वह सब
इसके बारे में नहीं बताया, कि उसने रत्न जड़ित वाण कैसे प्राप्त कर लिया? उन सब ने यह वादा जरूर किया, कि वह सब उस रत्न जड़ित वाण को फिर से
प्राप्त करने में उसकी सहायता करेंगे। उसने एक बार विचार किया कि वह अपने प्रिय
पुत्र की मां से मिलने के लिए बंदीगृह में जायेगा, लेकिन फिर
कुछ ऐसा हो गया, जिससे उसने अपना विचार एक बार उससे ना मिलने
का बना लिया। और बेचारी गुनवारा बिल्कुल अकेली हो गई थी, उससे
कोई मिलने के लिए नहीं जाता था, सिवाय उस सेविका के जो रोज
उसके लिए, वहां भोजन को ले कर जाती थी, जब राजा सभी प्रकार
के प्रयास के बाद भी श्रृंगभुज को पाने में असमर्थ सिद्ध हुआ, तो वह अपने एक दूसरे पुत्र को विशेष प्रेम करने लगा, जब कई एक महीने गुजर गये, ना ही रत्न जड़ित वाण के
बारें में उसको कोई सूचना मिली, ना ही श्रृंगभुज के बारें ही कोई जानकारी मिली। तब
ऐसा प्रतीत होता था कि वह उन दोनों के बारें में सब कुछ भूल गया है।
जबकि
श्रृंगभुज बगुले के शरीर से गिरने वाली खून की बुंदों का अनुसरण करते हुए, बहुत दूर अपनी
यात्रा के माध्यम से जा चुका था, जब तक कि वह एक अच्छे जंगल
में नहीं पहुंच गया, तब तक वह चलता रहा, वहां पहुंच कर उसने देखा, वह किसी बड़े नगर के बाहरी
किनारे पर खड़ा था। जहां से बहुत से मार्ग एक साथ निकलते थे, वह चकरा गया, कि किस मार्ग का अनुसरण करें, क्योंकि अब उसको खून की बूंदें भी नहीं दिखाई दे रही थी। वह वहीं एक बड़े
वृक्ष के नीचे बैठ कर अपने पैरों को आराम देने लगा, और नगर की ऊंची इमारतों को देखने लगा, जो वहां से उपर आकाश में दिखाई दे रही थी। जब उसने महसूस किया, कि वह यहां
लंबे समय तक अकेला नहीं रहने वाला है। वह बिल्कुल सही था, क्योंकि
कोई धीरे – धीरे उसकी तरफ रास्ते से आ रहा था, जो एक सुन्दर युवा लड़की थी, जो एक गीत को अपनी मधुर
आवाज में गाती हुई, उधर ही आ रही थी, जिसके सभी अंग उसकी
सुन्दरता को बहुत अच्छी तरह से प्रकट करते थे। श्रृंगभुज को अपनी मां की याद आ गई,
जिसके साथ उसको भय भी होने लगा, कि वह अब उन को दोबारा कभी नहीं देख
सकेगा।
जब वह
युवा लड़की उसके बहुत करीब आ गई,
उसने घबराहट के साथ उससे पूछा की क्या वह इस नगर का नाम बता सकती है?
उसने कहा
निःसंदेह, क्योंकि मैं इसी नगर में रहती हूं, इसको लोग धुमपूर
कहते हैं, और यह मेरे पिता का है, जो
एक महान जादूगर है, जिनका नाम अग्निशिखा है, जो अजनबी को पसंद नहीं करते हैं। अब तुम बताओ कि तुम कौन हो, और तुम कहां से आये हो?
फिर श्रृंगभुज ने अपने बारें में उस लड़की को
बताया, क्यों और किस लिए वह इतनी दूरी पर भटक रहा है, उस
लड़की का नाम रूपशिखा था, जिसने उसकी बातों को बड़ी सतर्कता के साथ सुना, और जब उसने कहा कि वह किसी बगुले को अपने वाण से घायल कर दिया है, और उसके शरीर से गिरने वाले खून का पीछा करते हुए, वह
यहां तक पहुंचा है, इस आशा के साथ, कि उस पक्षी के शरीर से,
वह अपने पिता के रत्न जड़ित वाण को, वापिस प्राप्त करना चाहता है, इस पर रूपशिखा कांपने लगी।
आह! आह!
उसने कहा जिस पक्षी को तुमने मारा था,
वह मेरे पिता थे, वह जिस वस्तु को पसंद करते हैं,
उसको वह ले लेते हैं। यद्यपि वह कल ही घर पर वापिस आये हैं। और मैंने ही उनके जख्म
में से उस वाण को निकाला था, और मैंने ही उनके घाव की मरहम
पट्टी भी की थी, जिससे मुझको बहुत दुःख हुआ था। उन्होंने उस
रत्न जड़ित वाण को मुझे रखने के लिए दिया है। और मैं उसको कभी अपने आप से अलग नहीं
कर सकती हूं, तुम को भी नहीं दे सकती, तुम्हारे
लिए यहीं अच्छा होगा, की तुम यहां से जल्दी – जल्दी से वापिस
चले जाओ। क्योंकि मेरे पिता तुम को कभी भी
क्षमा नहीं करेगें, और वह बहुत अधिक शक्तिशाली हैं, जिससे तुम्हारे पास कोई मौका नहीं होगा, उनसे बचने
का, जब उन को पता चल जायेगा, कि तुम यहां पर हो।
श्रृंगभुज
यह सब सुनने के बाद बहुत अधिक उदास हो गया,
इसलिए नहीं कि वह अग्निशिखा से भयभीत हो गया था, यद्यपि वह जानता था, कि उसको उस सुन्दर लड़की से
उससे पहले ही प्रेम हो गया था, जो उसके पास ही खड़ी थी,
और उसने संकल्प कर लिया था कि वह उसको अपनी पत्नी बनायेगा। रूपशिखा
भी उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी, जिससे वह भी नहीं चाहती थी
कि वह उस स्थान से वापिस जाये। इसके बजाय, उसको अपने पिता से
बहुत अधिक डर लग रहा था, वह जितना अधिक शक्तिशाली था, उससे
भी अधिक वह क्रूर और निर्दय था, और वह उसके बहुत से प्रेमी
और उससे विवाह की इच्छा करने वालों को, पहले से ही मार चुका था। उसने उन सब में से
किसी की कभी परवाह नहीं की थी, और वह इसी में संतुष्ट थी, की
वह कभी अब किसी से विवाह नहीं करेगी, या फिर वह बिना किसी
पति के ही जिंदा रहेगी। इसी प्रकार से वह अपने घर के पास घूमते हुए, अपने जीवन को व्यतीत करेगी, और जो उसके आस पास हैं
उनके प्रेम को जितने का प्रयास करेगी। जिसमें से उस जंगल के जंगली प्राणी भी होंगे,
बार - बार वह समझने का प्रयास करती है। उन दोनों के मध्य में,
उसका पिता उसके लिए बहुमूल्य है, या वे जो
उसके पिता को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, जैसा कि उसका पिता
दुष्ट प्रकृति का है, वह उससे प्रेम करती है, और वह उन को प्रसन्न रखना चाहती है।
रूपशिखा
ने ज्यादा समय नहीं लिया, यह निर्णय करने में, कि उसके लिए क्या करना सबसे अधिक
श्रेष्ठ है, उसने राजकुमार से कहा, मैं तुम्हें तुम्हारा रत्न
जड़ित वाण वापिस दे दूंगी, और तुम जितना जल्दी संभव हो सके,
तुम मेरे देश को छोड़ कर चले जाओगे, उससे पहले
कि मेरा पिता तुम्हारी खोज कर ले, कि तुम यहां हो।
राजकुमार
ने चिल्लाते हुए कहा नहीं,
नहीं, नहीं, हजार बार
नहीं, अब जबकि मैंने तुम को एक बार देख लिया है, मैं तुम्हें कभी – कभी नहीं छोड़ सकता हूं, क्या तुम मेरे प्रेम को समझ नहीं सकती हो, और तुम
मेरी पत्नी बन जाओ? फिर वह उसके पैरों में नीचे लेट गया,
और उसके चेहरे को प्रेम से देखने लगा, जिसके
कारण वह उसको ऐसा करने से रोक नहीं सकी, इसलिए वह नीचे उसकी
तरफ झुक गई, और अगले ही पल वह एक दूसरे की बांहों में थे,
अपने उपर आने वाले हर प्रकार डर भय और खतरा को भूल कर। फिर एक बार
रूपशिखा ने अपने पिता के बारे सोच कर अपने प्रेमी की बांहों से स्वयं को दूर करते
हुए, उसने उससे कहा-
मेरी
बात को सुनों, और मैं तुम को बताउंगी की, हमें सबसे पहले क्या करना
जरूरी होगा? मेरा पिता एक जादूगर है, यह
एक सत्य है, लेकिन मैं उसकी पुत्री हूं, और मुझको उसकी कुछ शक्ति विरासत में मिली हैं, अगर
तुम मुझ से वादा करो, जैसा मैं कहती हूं तुम वैसा ही करोगे,
तो मैं सोचती हूं की मैं तुम्हारे जीवन को बचा सकती हूं, और शायद तुम्हारी पत्नी भी बन जांउ। मैं अपने बड़े परिवार में सबसे छोटी
हूं, और अपने पिता की बहुत प्रिय हूं, मैं
अपने घर पर जा कर, उनसे कहूंगी, कि एक
बड़ा और शक्तिशाली राजकुमार आपके आश्चर्यमय उपहारों के बारें में सुन कर हमारे देश
में आया है, और वह आपसे मिल कर आपका साक्षात्कार करना चाहता
है। फिर मैं उनसे कहुंगी, की मैंने तुम्हें देखते ही तुम से
प्रेम कर लिया है, और मैं विवाह करना चाहती हूं। वह अपनी
मिथ्या प्रशंसा के बारे में सोच कर बहुत खुश होंगे, और विचार
करेंगे कि उनकी प्रसिद्धि बहुत दूर - दूर तक फैल चुकी है। और वह तुम्हें देखना
चाहेगें, और यदि उन्होंने मुझको तुम्हारी पत्नी बनने से
इन्कार कर दिया। मैं तुम को उन के सामने उपस्थित करके, उनके
साथ तुम्हें अकेला छोड़ दूंगी। अगर सच में तुम मुझ से प्रेम करते हो, तो तुम्हें उन को संतुष्ट करने का अकेला ही रास्ता तलाशना होगा, लेकिन तब तक के लिए तुम को उनकी दृष्टि से दूर रहना होगा, जब तक की मैं तुम्हारे लिए रास्त नहीं तैयार कर लेती हूं। अब तुम मेरे साथ
आओ, और मैं तुम को तुम्हारे छिपने की जगह को दिखाती
हूं।
रूपशिखा ने फिर राजकुमार का नेतृत्व करते
हुए, उसको
लेकर गहरे जंगल में गई, और उसको एक बड़े वृक्ष को दिखाया,
जिसकी विशाल शाखाएं चारों तर फैली हुई थी, जिसमें
से कुछ जमीन को भी छू रही थी, जिसने पूरी तरह से उसके तने को
छिपा रखा था, जिस तना में किसी मानव के प्रवेश करने के लिए
एक दरवाजा जैसा स्थान खुला था, जिससे कोई भी आदमी अंदर जा
सकता था, उस तना के अंदर से नीचे जाने के एक सीढ़ी बनी थी,
जो एक बहुत बड़े जमीन के अंदर कमरे में जाती थी जिसमें बहुत अधिक
खुला स्थान था। और वहां पर ले जा कर जादूगर की पुत्री ने अपने प्रेमी से कहा तुम
यहां रह कर मेरे आने का इंतजार करो, यहां से जाने से पहले
मैं तुम को अपना गुप्त पहचान वाक्य बताना चाहती हूं, जो तुम
को तुम्हारे मृत्यु से बचाने में मदद करेगा, अगर तुम खोज लिए
गये, यह कमल का फूल है, किसी से भी तुम
इसको कहोगे, वह समझ जायेगा कि तुम मेरी रक्षा में हो।
जब
रूपशिखा अपने महल में पहुंची, तो उसने अपने पिता को बहुत बुरे भाव में पाया, क्योंकि उसने अपने
पिता से नहीं पूछा था, कि उनका सीने का जख्म कैसा है? या फिर
दर्द हो रहा है की नहीं। उसने अपनी तरफ से पुरा प्रयास उसको नजरंदाज करने का किया,
और जब उसने बड़ी सावधानी के साथ उनके सीने के जख्म का फिर से मरहम
पट्टी कर दिया, और अपने हाथों से अपने पिता के लिए स्वादिष्ट
भोजन बना कर तैयार करने के उन को परोसा, और वह जब खाने लगे।
फिर इस सब के बाद वह अपनी पुत्री पर प्रसन्न हो गया, और जब
वह बिल्कुल शांत मित्रवत् हो गया, तब उसने उससे कहा-
अब मैं
आप से अवश्य कुछ बात करना चाहती हूं मैंने भी कुछ विलक्षण कार्य किया है। जैसा की
मैं औषधियों को जंगल को एकत्रित कर रही थी,
मैं एक आदमी से मिली, जिस को मैंने पहले कभी
नहीं देखा था, एक लंबा युवा सुन्दर आदमी जो दिखने कोई
राजकुमार जैसा था, जिसने मुझ से कहा कि वह महान और
आश्चर्यजनक जादूगर के महल के बारें में जानना चाहता है, जिसके
अद्भुत कार्य के प्रसिद्धि के बारे में उसने सुन रखा है। उसने आगे जोड़ते हुए कहा
मेरे पिता को छोड़कर वह दूसरा कौन हो सकता है? मैंने उसको
बता दिया की मैं आपकी पुत्री हूं, फिर उसने मेरी प्रशंसा
करते हुए, कहा कि वह आपसे एक बार मिलकर आपका साक्षात्कार
करना चाहता है।
अग्निशिखा
सब कुछ सुनता रहा, बिना एक भी शब्द का उत्तर दिये, वह बहुत प्रसन्न हुआ, इस नये ताजे अपने प्रसिद्धि के बारे में सुन कर, कि उसकी प्रसिद्धि दूर –
दूर फैल रही है, लेकिन तुरंत उसने अंदाज लगा
लिया, कि रूपशिखा उससे पूर्ण सत्य नहीं बता रही है, इसलिए वह
उसकी बातों को आगे सुनता रहा, और जब उसने और कुछ नहीं कहा,
तो वह अचानक उसके उपर क्रोधित हो गया, और जोर
से उससे पूछा- और मेरी पुत्री ने क्या
उत्तर दिया?
फिर
रूपशिखा जान गई, कि उसके गुप्त राज के बारे में जाना जा चुका है। वह खड़ी हो गई और गर्व के
साथ उत्तर में कहा मैंने उसको बता दिया, कि मैं उसको चाहती हूं, और उसे प्राप्त करने के लिए, आपसे बात करूंगी। और अब मैं आपसे बताना
चाहूंगी, की मैंने उस आदमी को प्राप्त कर लिया है, जिससे मैं
विवाह करना चाहती हूं, और यदि आप उसके लिए मुझको मना करते
हैं, तो मैं अपनी जान ले लुंगी, मैं
उसके बिना नहीं जी सकती हूं।
जादूगर
ने चिल्लाते हुए कहा,
उस आदमी के लिए तुरंत आदमी को बुला लो, और तुम
मेरे उत्तर को सुनोगी, जब मेरे सामने वह आदमी होगा।
रूपशिखा
ने उत्तर में कहा मैं उसको नहीं बुला सकती हूं, क्योंकि कोई भी नहीं जानता है कि
मैंने उसको कहां पर छोड़ा है? और मैं तब तक तुम्हारे सामने
नहीं ला सकती उसको, जब तक तुम मुझ से वादा नहीं करते,
कि उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा।
पहले
अग्निशिखा तेजी से हंसा और निर्णयात्मक ढंग से कहा उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है, लेकिन उसकी पुत्री
ऐसा समझती है, कि उसने ऐसा कुछ किया है, उसने ऐसा जानने के
बाद, कि वह सब कुछ अपनी इच्छा से नहीं कर सकता है, उसके उपर अधिकारात्मक लहजे में चिल्लाते हुए, उसकी
बात को काटकर कहा- यदि वह अपने कंधे पर अपने सर को सही सलामत चाहता है, तो उसे मेरी बात मानना होगा, अन्यथा वह जिंदा महल को
छोड़ चला जाये, मुझे इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कहना है।
रूपशिखा
ने कहा यह पर्याप्त नहीं हैं,
आपको मुझे बचन देना होगा, कि उसके शीर के एक
भी बाल को नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा, और मैं उसका एक
सम्माननीय मेहमान की तरह से मेहमान नवाजी करूंगी। और आपकी आँखें उसके उपर कभी भी
नहीं टिकेगी।
अंत में
जादूगर ने वादा किया,
अपने मन में विचार करते हुए, कि वह किसी
प्रकार का रास्ता तलाश लेगा, जिससे वह श्रृंगभुज को पहचान
लेगा, यदि वह उसके दमाद के रूप में नहीं होगा। जिस शब्द को
रूपशिखा सुनना चाहती थी बड़ी मुश्किल से वह शब्द उसके मुंह से बाहर आ गया, रूपशिखा जल्दी से वहाँ से चली गई, अपने प्रेमी के
पास जैसे हवा के पंखों पर सवार हो कर, वह गई, पुरी आशा के साथ की वह अच्छी तरह से होगा। उसने पाया उसका प्रेमी बड़ी
बेसब्री के साथ उसका इंतजार कर रहा था, और उसने उसे सब कुछ
जल्दी से समझाया की कैसे उसने अपने पिता को मिलाया है? और आगे
उसने कहा कि तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा, कि तुम कुछ भी
मेरे पिता से मेरे बारें में मत कहना, यद्यपि तुम उनसे केवल
उसी बारे में बात करना, जो तुमने उनके बारें में सुना है।
अगर तुमने अपनी तरह से उन को अपने साथ करने में सफल हो गये, तो
इससे हम दोनों को बहुत सहायता मिलेगी। और तुम बहाना करना कि तुम अवश्य अपने देश
वापिस चले जाओगे, और वस्तुतः वह तुम्हें ऐसा नहीं करने देंगे,
वह हमारे लिए चिंतित होंगे, हम विवाह करके
उनके साथ ही रहे।
श्रृंगभुज
रूपशिखा को बहुत अधिक प्रेम करता था,
इसलिए उसने उसकी हर आज्ञायों का पालन करने को तैयार हो गया, अर्थात उसने जो भी उससे कहा उसकी सारी बातों को उसने सहजता से स्वीकार कर
लिया। इसलिए वह तुरंत उसके साथ महल पर गया, जहां उसने देखा
कि महल के हर तरफ शक्ति का प्रदर्शन करने वाले जादूगर के आदमी लगे थे, सभी दरवाज़ों के लिए बलवान लंबे तगड़े योद्धा अपने हाथों चमकते हुए हथियारों के साथ उसकी रक्षा किए
उपस्थित थे, जिन्होंने रूपशिखा को देखते ही उसको नमस्कार
किया, लेकिन वे सब उस पर अपने क्रोध के साथ अपनी त्योरी को
चढाई हुई थी। वह सब कुछ अच्छी तरह से जानता था, कि यदि वह
अकेले उस की महल में प्रवेश करने का प्रयास करता, तो वह सब उसको ऐसा करने से रोक
लेते। अंत में वह दोनों बड़े हाल में प्रवेश किया, जहां पर
जादूगर आगे और पीछे घूम रहा था, अपने मन उनके बारे में विचार
करते हुए, उन दोनों का ही इंतजार कर रहा था। उसने सीधा
राजकुमार की तरप देख कर, वह अच्छी तर से यह समझ गया कि वहीं
आदमी है, जिसने उसके उपर रत्न जड़ित वाण को चलाया था,
जब वह स्वयं एक बगुले के रूप में था। इस प्रकार से उसने अपने मन में,
उस राज कुमार से बदला लेने का मन बना लिया। क्योंकि वह बहुत अधिक दुष्ट के साथ
धुर्त प्रकृति का आदमी था, जिस लिए वह नहीं चाहता था,
कि श्रृंगभुज इसका अंदाजा लगा ले, कि वह उसको जानता है, इसलिए उसने अपने इस मन के भाव को छुपा लिया, कि वह उसको पहचान गया है,
यद्यपि उसने ऐसा दिखाया की वह उसको देख कर बहुत अधिक प्रसन्न है।
इसके बाद उसने राजकुमार से कहा- कि मेरी प्रिय और मन पसंद पुत्री से तुम्हारे जैसा
ही कोई श्रेष्ठ व्यक्ति विवाह करेगा, यह मैं जानता था। आज
मैं तुम को देख बहुत प्रसन्न हूं, और मुझे लगता है कि तुम
वहीं व्यक्ति हो, जिसका मेरी पुत्री को लंबे समय से तलाश थी। तुम्हारे सुन्दर
पहनावे, आभूषण की संपन्नता के साथ तुम्हारी योग्यता को देख
कर, मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं, कि मैं अपनी सबसे प्रिय
पुत्री को वह सब कुछ दुंगा, जिसकी वह इच्छा करती है।
राजकुमार
ने बड़ी कठिनाई से विश्वास किया, अपने कानों पर जो उसने सुना था, रूपशिखा भी बहुत
अधिक आश्चर्यचकित थी। जिससे उसने अनुमान लगा लिया कि उसके पिता ने जो कुछ कहा है,
इसकी पीछे अवश्य ही उसकी कोई बुरी योजना होगी, और उसने उत्सुकता के साथ श्रृंगभुज को देखा, इसी आशा में कि वह उसके पिता
को समझ गया होगा। लेकिन राजकुमार उसके किसी संकेत पर ध्यान देने के बजाय, वह बहुत
अधिक प्रसन्न हुआ, केवल यह विचार करके ही कि रूपशिखा उसकी पत्नी
बनने वाली है। इसके कुछ पल के बाद ही
अग्निशिखा ने आगे बढ़ते हुए, कहा इसके लिए केवल मेरी
एक शर्त होगी, और जिसके लिए तुम को मुझ से वादा करना होगा,
कि कभी भी तुम मेरी किसी आज्ञा को अस्वीकार नहीं करोगे, यद्यपि
तुम वह सब कुछ बिना किसी हिचकिचाहट के तुरंत करोगे, श्रृंगभुज
बिना किसी प्रकार के समय को विचार में गवायें ही, तुरंत कहा- कि आप केवल अपनी
पुत्री को मुझे दे दीजिए, जैसा आप कहेंगे, मैं आपकी हर इच्छा के कार्य को, करने के लिए तैयार रहुंगा।
इस पर
जादूगर ने जोर से खुश होकर कहा की अब हमारी बात पुरी हो गई, उसके बाद उसने
अपने दोनों हाथों को एक साथ उपर उठा कर अपनी ताली को बजाया, जिससे
उसके सेवक तुरंत वहां पर उपस्थित हुए, और उनके मालिक ने उन
को आदेश दिया, कि राजकुमार को महल के सबसे सुंदर कमरे में ले जा कर, इनके रहने की व्यवस्था करो, और इनके स्नान के साथ,
इन को जिस वस्तु की जरूरत हो वह इन को दो।
अध्याय 3
इसके
बाद श्रृंगभुज सेवकों के साथ चल दिया,
रूपशिखा ने उससे गुप्त रूप से बात चित करने की व्यवस्था करके उससे
धीरे से कहा की सावधान, मेरे संदेश का इंतजार करना, जब वह स्नान करके और बहुमूल्य वस्त्रों के साथ आभूषणों को पहनने के बाद
तैयार हो गया, जो उसको जादूगर के द्वारा उपलब्ध कराया गया
था। उसके बाद वह अपनी प्रेमिका के संदेश इंतजार करने लगा, कुछ
ही समय में वहां उसकी सेवा में लगा एक सेवक जो उसका बहुत अधिक सम्मान कर रहा था,
वह अपने हाथ में एक शील लगे पत्र को ले कर आया, और सम्मान के साथ उसके हाथों में दे दिया, श्रृंगभुज
को दूसरे सेवकों पर संदेह था जिसका अनुमान लगा कर, उस पत्र
को अकेले में पढ़ने के लिए, सभी सेवकों को वहां से बाहर जाने के लिए कहा, जिसके बाद वह सब संदेशवाहक के साथ उसके कमरे से बाहर चले गये।
निः
सन्देह वह पत्र रूपशिखा के द्वारा लिखा गया था, जिसमें उसने लिखा था, कि मेरे प्रियतम, मेरा पिता तुम्हारे विरूद्ध योजना
बना रहा है, और तुमने बड़ी मूर्खता कर दी, जो तुमने उसकी सभी आज्ञा को मानने का उनसे वादा कर दिया है, मेरी दश बहनें हैं, और सब बिल्कुल मेरे समान ही हैं,
और वह सब एक समान कपड़े और हारों को पहनेगी, जिसमें
से किसी एक को कोई भी बहुत मुश्किल से पहचान सकता है, जल्दी
ही तुम को उस बड़े हाल में भेजा जायेगा, जहां मैं भी उनके
समान कपड़े और हार को पहने हुए रहुंगी, मेरा पिता तुम से
कहेगा, कि हम सब 10 बहनो के मध्य में से अपनी दुल्हन को चून
लों, अगर तुमने किसी प्रकार से मुझको पहचानने में गलती की,
तो हमारे तुम्हारे बीच में जो भी संबंध है वह हमेशा के लिए खत्म हो
जायेगा। इस प्रकार की कोई गलती तुम से ना हो, इसलिए मैं अपने
हार को गले में पहनने के स्थान पर अपने शिर पर पहनुगी, जिससे
तुम आसानी से अपने सच्चे प्रेम को पहचान जाओगे, और मेरे
प्रियतम तुम एक बात को हमेशा याद रखना, कि भविष्य में मेरे पिता के किसी आदेश को
बिना मेरी जानकारी के मत मानना। क्योंकि केवल मैं ही अपने पिता के कुरूप जादुई
शक्ति का काट करने में समर्थ हूं।
सब कुछ
वैसा ही हुआ, जैसा कि रूपशिखा ने अपने प्रेमी राजकुमार को बताया था, राजकुमार को जल्दी ही अग्निशिखा ने अपने पास एक बड़े हाल में बुलाया। जहां
राजकुमार के पहुंचने के बाद, उसने उसको एक बड़ी फूलों की
माला देते हुए, कहा इस माला को किसी भी लड़की गले में डाल दो,
निश्चित रूप से वही लड़की तुम्हारी दुल्हन बनेगी। बिना किसी
हिचकिचाहट के तुरंत राजकुमार ने अपनी प्रेमिका को पहचान कर उसके गले में, अपने
हाथों की माला को डाल दिया, जिस को देखकर जादूगर अपने अंदर
क्रोध से जलने लगा, लेकिन उसने यह दिखाने का प्रयास किया, कि
वह बहुत अधिक आनंदित है। और उसने जोर से कहा कि इससे सिद्ध होता है, कि प्रेमी
अपने प्रेमिका को बहुत अच्छी तरह से पहचानता है।
तुम मेरे दामाद हो गये! तुम दोनों का विवाह कल
होगा।
जब
श्रृंगभुज ने सुना, जो भी अग्निशिखा ने कहा था, वह बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन रूपशिखा
अपने पिता को अच्छी तरह से जानती थी, उसके पिता के कहे गए
शब्दों का वास्तविक मतलब जो था, इसलिए वह अपने प्रेमी के साथ
वहीं खड़ी होकर, इंतजार करने लगी, इसके कुछ देर बाद जादूगर
ने सभी बहिनों को उस हाल से बाहर जाने के लिए कहा सिवाय रूपशिखा को छोड़ कर। फिर
जादूगर ने बड़ी क्रूर दृष्टि से उनकी तरफ देखा।
और कहा
विवाह के उत्सव से पहले तुम को मेरे एक छोटे से कार्य को करना होगा, मेरा प्रिय दामाद
होने के लिए। नगर के बाहर जाओ, और पश्चिमी स्तंभ के बहुत
करीब तुम को एक बैलों के समुह के साथ हल तुम्हारा इंतजार करते हुए, तुम को मीलेगा।
उनके पास ही तुम्हें तीन सौ किलो तिल के बीज भी पाओगे। जिन को आज तुम को अवश्य ही
बोना होगा, ऐसा यदि तुम नहीं कर सके तो दूल्हा बनने के बजाय,
एक मृत व्यक्ति में कल तक बदल जाओगे।
इसको
सुनते ही श्रृंगभुज बहुत अधिक निराश हो गया। लेकिन रूपशिखा ने धीरे से उससे कहा
डरने की जरूरत नहीं है,
इसमें मैं तुम्हारी सहायता करूंगी। इसके बाद वह निराशा के साथ राजकुमारी
को महल को छोड़ कर, चल दिया नगर के बाहर उस खेत की तलाश में
जिसमें उसको तीन सौ किलो तिल को बोना था, बाहर उसको एक सेवक
मिला, जो उसको जानता था, और जिसने उसे अपनी मन पसंद
राजकुमारी के प्रेमी के रूप में स्वीकार कर लिया था, उसने
राजकुमार को जल्दी ही उस स्थान पर पहुंचा दिया, जहां पश्चिमी
स्तंभ था, उसके पास ही
बैलों के समुह के साथ हल और तिल के बीज का ढेर भी था। बेचारे श्रृंगभुज ने
इससे पहले कभी ऐसा कोई कार्य नहीं किया था, लेकिन वह रूपशिखा
से बहुत प्रेम करता था, जिसके कारण उसने संकल्प किया,
कि वह अपनी तरफ से पुरी कोशिश करेगा, इस कार्य
को अच्छी से अच्छी तरह से करने का, इस प्रकार से उसने बैलों
के समुह को हल के साथ जोड़ कर खेत को जोतने के लिए, खेत में
घुमाना शुरु किया। तभी अचानक सब कुछ बदलने लगा, बिना जुता
हुआ खेत, जो जंगली खर पतवार से भरा था, वह खेत जुता हुआ दिखने लगा, साथ में सीधी – सीधी न्यारियाँ बन गई, तिल के बीजों का ढेर अपने आप
खेत में बो दिये गये, और पक्षी का समुह आ - आ कर न्यारियों
में बैठ कर अपने लिए बीजों को चुगना शुरू कर दिया।
जैसे
ही अद्भुत दृश्य को देखकर श्रृंगभुझ अचंभित हो रहा था, तभी उसने एक
सुन्दर दृश्य देखा, कि रूपशिखा उसको अपनी तरफ आती हुई दिखाई
दी, आज वह पहले से अधिक सुन्दर दिखाई दे रही थी। आते ही उसने
कहा निराश मत हो, मैं अपने पिता कि ही पुत्री हूं, मैं जानती हूं कि किस प्रकार से प्रकृति को अपने अनुकूल किया जा सकता है?
लेकिन खतरा यहीं पर समाप्त नहीं हुआ है, जल्दी
वापिस महल में जाओ, और अग्निशिखा को बता दो की मैंने आपकी
इच्छा को पूर्ण कर दिया है।
वह
जादूगर बहुत अधिक क्रोधित हुआ,
जब उसने सुना की खेत को जोत कर उसमें बीज को बोया जा चुका है,
वह तुरंत समझ गया कि इसके पीछे अवश्य कोई जादू कार्य कर रहा है, और इसके लिए उसको
अपनी पुत्री रूपशिखा पर संदेह हुआ, जो उसके निराश का कारण
है। बिना एक भी छड़ को बर्बाद किये उसने राजकुमार से कहा- ऐसा नहीं हो सकता इतना
जल्दी तुम नहीं कर सकते हो, तुरंत वापिस जाओ और देखो अभी
वहां वहीं बीजों का ढेर पड़ा है। जैसा कि वह पहले था।
इस
बार श्रृंगभुज को ना किसी प्रकार कोई भय था ना ही किसी प्रकार की हिचकिचाहट ही थी, क्योंकि वह अपनी
प्रेमिका के लिए निश्चिंत था, की वह उसकी सहायता करेगी, जैसा
कि उसने ऐसा करने के लिए वादा किया है। इस तरह से एक बार फिर उस खेत के पास गया,
जहां पर उसने देखा की उस बड़े विशाल खेत के उपर लाखों की संख्या में
चींटियाँ थी, जो खेत के सभी बीजों को निकाल कर नगर की दीवाल के पास उसके एक ढेर को
बना रही थी। दुबारा रूपशिखा वहाँ आकर उसको प्रसन्न किया, और
फिर उसने राजकुमार को आगाह किया कि उसकी परीक्षा अभी पुरी नहीं हुई है, क्योंकि उसे भय कि उसका पिता यह सिद्ध करना चाहता है, कि वह उससे अधिक शक्तिशाली है। जिसके लिए उसने बहुत से हमारे पड़ोसी लोगों
को अपने साथ मिला लिया है, और वह सब पड़ोसी लोग मेरे पिता की
दुष्टता पूर्ण कार्यों में उसकी सहायता कर रहें हैं। जो भी हो, उसने तुम को जो कहा
है तुम उसको करो, लेकिन महल को छोड़ने से पहले मुझ से अवश्य
मिलना। मैं अपने श्रद्धावान सेवकों को भेज कर सभा बुलाउंगी किसी गुप्त स्थान पर।
अग्निशिखा
को बहुत अधिक आश्चर्य नहीं हुआ,
जब राजकुमार ने उससे बताया कि आपकी पिछले आज्ञा को उसके द्वारा पुरा
किया जा चुका है। और उसने मन में विचार किया कि वह अपने इस अनुयायी को थका देने के
लिए, निश्चित रूप से इस देश से कहीं बाहर भेजेगा। जहां पर
मेरी चालाक पुत्री इसकी सहायता करने में सफल नहीं होगी। इसलिए उसने राजकुमार से
कहा अच्छा है, इस सब के बाद भी मैं मानता हूं कि तुम्हारा
विवाह उत्सव कल होगा, क्योंकि मैं वहीं करता हूं जो मैं कहता
हूं। हमें जिसके लिए अपने मेहमानों को आमंत्रित करना होगा, तुम
को बड़ी प्रसन्नता होगी, जब यह कार्य तुम स्वयं करोगे,
क्योंकि इस प्रकार से विवाह से पहले ही मेरे सभी मित्र, मेरे होने
वाले सुन्दर दामाद को भी देख लेंगे। जिस पहले आदमी को विवाह में आमंत्रित करना है,
वह मेरा भाई है, जिसका नाम धुमशिखा है,
जिसने अपने रहने के एक उजाड़ मंदिर को चूना है, जो यहां से कुछ सौ किलो मीटर की दूरी पर है। तुम्हें उस मंदिर पर पहुंचने
के लिए अभी यहां से जाना चाहिए, और उस मंदिर के सामने पहुंच
कर, अपने घोड़े की लगाम पकड़े हुए ही, तुम
जोर से धूमशिखा को पुकार कर कहना, कि तुम्हारे भाई अग्निशिखा
ने मुझे यहां पर भेजा है, वह कल अपनी पुत्री रूपशिखा का मेरे
साथ विवाह कर रहा है, तुम्हें उसका साक्षी बनने के लिए
बुलाया। इसके बाद वहां से तुम बिना किसी देरी के वापिस आ जाना है, और आकर मुझे उसका संदेश देना, जिसके बाद मैं तुम को
बताउंगा कि कल सुबह प्रातःकालीन से पहले आगे जो कार्य तुम्हें करना होगा।
जब
श्रृंगभुज महल से बाहर आया तो वह नहीं जानता था, कि अगला कार्य करने के लिए उसको घोड़ा
कहां से मिलेगा? लेकिन जैसे ही वह महल के बाहरी दरवाजे के
पास पहुंचा, तभी उसने उस युवा आदमी को देखा, जिसने उसको उस खेत को दिखाया था, जहां पर उसको तिल
के बीजों को बोना था। वह सुन्दर लड़का उसके पास आया और उससे कहा- यदि मेरे मालिक
मेरे पीछे आयेंगें, तो मैं आपको बताउगां कि आगे आपको क्या
करना है? वह आवाज राजकुमार को कुछ जानी पहचानी लगी, और जब वह सिपाही जो महल के दरवाजे पर उसकी रक्षा के लिए खड़े थे, वह सब काफी पीछे छुट गये, जहां से वह उनकी बात को ना
सुन सके, तब उस लड़के ने श्रृंगभुज के चेहरे की तरफ देखकर
मुसकुराते हुए, वह रूपशिखा के रूप में परिवर्तित हो गया, और
उसने कहा मेरे साथ आवो, और उसका हाथ पकड़ कर उसे एक वृक्ष के
नीचे लेकर गई, जहां पर एक अति उत्तम घोड़ा खड़ा था, शानदार वेशभूषा में, जिसने अपनी मालकिन को अपने करीब
देखकर अपने पैरों को जमीन पर पटकते हुए हिनहिनाने लगा।
रूपशिखा
ने कहा निश्चित ही तुम्हें इसी घोड़े पर जाना है, जो तुम्हारी सभी आज्ञा का पालन करने
के योग्य है, अगर तुम इसके कान में भी धीरे से कहोगे तो भी,
यह तुम को पृथ्वी, पानी, जंगल, आग पर कहीं भी लेकर चला जायेगा, जिस को मैं तुम्हें देती हूं। तुम्हें यहां से सीधा मंदिर पर जाना है,
और जब तुम अपने संदेश को कह लेना, बिना किसी
एक पल की देरी के वहां से वापिस अपने मार्ग चले आना, अपनी
पुरी शक्ति के साथ अपने जीवन को बचाने के लिए, वहां से भागना
जितना अधिक इस घोड़े को तुम भगा सकते हो, इसको उतनी तेजी से
भगाना, और हर वक्त अपने पीछे अवश्य देखते रहना, मेरे घोड़े को किसी प्रकार कोई निर्देश देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह मेरा घोड़ा है, जिसका नाम मारुत है,
यह अच्छी प्रकार से जानता है, कि इसको क्या
करना है?
फिर
रूपशिखा ने श्रृंगभुज को एक मिट्टी का कटोरा,
एक पानी का जार, एक बंडल काँटों का और एक
अंगारे के समान जलते हुए तारकोल की टंकी को दिया, जिस को बाद
में उसने रस्सी से मजबूती के साथ घोड़े की काठी से बाँध लिया, इसके बाद रूपशिखा ने उससे कहा मैं तुम को यह सामान इसलिए दिया है कि आसानी
से तुम वहां वापिस आ सको। क्योंकि मेरे पिता ने मेरे चाचा को तुम को मारने के लिए
निर्देश दिया है। और जब वह तुम्हारा अपने
उत्तम अरबी घोड़े से पीछा करेगा, और जब तुम उसको पीछे आते
हुए सुनना, तो तुम इस मिट्टी के कटोरे को उसके मार्ग में उठा
कर फेंक देना, यदि वह इससे ना रुके तो, तुम पानी के जार से कुछ पानी को उड़ेलना, और यदि
इससे वह स्वयं को बचाने समर्थ हो जाता है तो तुम उसके सामने अंगारे के समान जलते
तारकोल को फेंक देना।
इस
प्रकार के दिशा निर्देशों को प्राप्त करने के बाद राजकुमार अपने लक्ष्य के लिए
वहां निकल पड़ा, और कुछ ही घंटों में हवा की रफ्तार से मंदिर के सामने पहुंच गया, जिसके सामने त्रिमूर्ति की प्रतिमा लगी थी, (ब्रह्मा,
विष्णु, महेश) क्योंकि भारत में त्रिमूर्ति कि
पूजा की जाती है, क्योंकि यह जादूगर के पास पहुंचने का
प्रमाण था जिसके लिए ही जादूगर अग्निशिखा ने शर्त रखी थी। वहां पहुँचते ही
श्रृंगभुज ने जोर से चिल्ला कर अपने संदेश को कहा- जिस को सुन कर मंदिर में रहने
वाला दुष्ट धुमशिखा भाग कर मंदिर के बाहर उसके दरवाजे पर आया, और एक विशाल घोड़े पर सवार हो गया, जिससे ऐसा प्रतीत
होता था जैसे कि वह अपनी नाक से धुआं को छोड़ रहा हो, जिस को
अकेले रहने के लिए बांधा गया था। इस कठिन स्थिती को देखकर एक पल के लिए श्रृंगभुज
भयभीत हो गया, लेकिन मारूत ने अपनी पुरी शक्ति के साथ वहां
से हवा के साथ बात करते हुए, अपने शत्रु से कुछ दूरी बना लिया, जिससे राजकुमार को कुछ समय मिल गया, और उसने अपने
शत्रु के सामने मिट्टी के पात्र से कुछ मिट्टी को फेंक दिया, जिससे तुरंत एक बड़ा पर्वत रोड के बिच में खड़ा हो गया, और श्रृंगभुज ने महसूस किया कि वह बच गया है। लेकिन वह गलत सिद्ध हुआ,
जब उसने देखा कि अगले ही पल जादूगर फिर उसके करीब आ गया, इसलिए उसने अपने पानी के कटोरे से पानी को मार्ग गिरा दिया, जिससे तुरंत एक विशाल नदी उत्पन्न हो गई, जिसमें
ऊंची - ऊंची लहरे उठ रही थी, जिसने पीछा करने वाले शत्रु को
छिपा दिया, और एक दूसरे को कुछ समय अलग कर दिया, लेकिन यह सब भी उसके शक्तिशाली घोड़े के रोकने में समर्थ सिद्ध नहीं हुए,
जिसके कारण वह जादूगर बड़ी तेजी से वह राजकुमार पास आते हुए चिल्ला
कर कहा राजकुमार तू तुरंत रुक जा। जब राजकुमार ने सुखी जमीन पर घोड़े की टापों की
आवाज अपने पीछे आते हुए सुना, उसने तुरंत काँटों के बंडल को
फेंक दिया, उसमें जादुई शक्ति थी जिसके कारण एक घना काँटों
का जंगल रास्ते उत्पन्न हो गया, जिसने नये कुछ पल राजकुमार
को दिये, जिससे वह समझा की वह अब अपने को बचाने में सफल हो चुका है। वह शक्तिशाली
जादूगर समझा की इस कांटों के जंगल में उलझ जायेगा। लेकिन वह उससे बाहर निकलने में
सफल हो गया, हालांकि उसका कपड़ा पीछे से फट चुका था, और निर्दय कांटों ने उसके घोड़े के शरीर में कई जख्म कर दिये थे, जहां से
खून निकलने लगा था। श्रृंगभुज भी बहुत अधिक थक कर चिंतित हो चुका था, और उसे याद था कि उसके पास अब केवल एक मौका और है, अपने
व्यग्र दयाहीन शत्रु को रोकने का, उसने अपने घोड़े के हाफंने
की आवाज को अपने बहुत करीब महसूस किया, इसके साथ ही लग-भग वह
तेजी पुकारती हुए अपने प्रियतम रूपशिखा की आवाज को भी सुना, जिससे
वह समझ गया वह अपने लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच चुका है, इससे
उसने तुरंत उसने जलती अंगारी तारकोल को अपने शत्रु के सामने रास्ते पर फेंक दिया,
जिसके कारण जादुई कांटों का जंगल भयंकर आग से प्रज्वलित होने लगे,
जिससे कोई भी जीवित वस्तु सुरक्षित उनके पास पहुंचने में समर्थ नहीं
हो सकती थी। दुष्ट जादूगर अंत में हार गया, और जल्दी ही आग
में से दूर भागने लगा, जितना जल्दी वह भाग सकता था, जिसके साथ अग्नि की ज्वाला भी उसका पीछा कर रही थी, जैसे वे उसको भस्म
करने के लिए उतावली हों। जिसके कारण श्रृंगभुज को कभी नहीं पता चला, कि उसका शत्रु जीवित वापिस कभी अपने मंदिर पहुंच या नहीं। या फिर वह भी आग
के साथ समाप्त हो गया, युवा राजकुमार अपने श्रद्धावान घोड़े
पर वापिस महल में पहुंच गया। और जहां अपनी रूपशिखा को पाया जो उसका इंतजार कर रही
थी।
जहां पर
उसने कहा कि उसके पिता ने उससे वादा किया है,
की यदि राजकुमार वापिस आ गया, तो वह उसके
विवाह का अब अधिक विरोध नहीं करेगा। क्योंकि उन्होंने कहा था कि तुम मेरे चाचा से
स्वयं को बचाने में यदि समर्थ हो गये, तो तुम कोई साधारण
आदमी नहीं होंगे। और उनके लिए तुम उनकी पुत्री से कहीं अधिक मूल्यवान होंगे। इसके
बजाय तुम को वह कभी भी नहीं देखना चाहेंगे। आगे उसने कहा लेकिन तुम ने यह सिद्ध कर
दिया है की तुमने अपने आपको मेरे चाचा से बचा लिया है, जिससे
वह हमें विवाह करने की आज्ञा दे देंगे, और वह तुम से फिर कभी
भी नफरत नहीं करेंगे। क्योंकि मैं निश्चित रूप से जानती हूं, कि वह जानते है कि वह तुम ही हो, जिसने उन को अपने रत्न जड़ित वाण से घायल
किया था, जब वह एक बगुले के रूप में थे। अगर मैं कभी
तुम्हारी पत्नी बन गई, तो वह मेरे द्वारा तुम को दण्ड देने
का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं जान लुंगी, कि किस प्रकार से? तुम को उनके वार से बचाया जायेगा। कुछ नई शक्ति को मेरे एक दूसरे चाचा ने
मुझको दिया है, जिनके जादू की शक्ति मेरे दूसरे रिश्तेदारों
से कहीं अधिक शक्तिशाली है।
जब
श्रृंगभुज ने स्नान करके थोड़ा आराम कर लिया,
फिर उसके बाद उसने बहुत सुन्दर कपड़ों को पहना, जैसा कि उसने पहली बार पहना था, जब वह रूपशिखा से
पहली बार मिला था, उससे कही अधिक सुन्दर और आभूषणों से युक्त
हो कर, एक साथ दोनों प्रेमी उत्सुकता पूर्वक अग्निशिखा से
मिलने के लिए महल के बड़े हाल में गये। जादूगर जो पहले से बिल्कुल निश्चिंत था,
कि वह अब वह उसके स्वागत के अयोग्य तीरंदाज राजकुमार को अपनी पुत्री
का हाथ देकर उसको अपने वश में कर लेगा, और उसके उपर क्रोध
नहीं करेगा। तभी उसने देखा, कि वह उसकी पुत्री के साथ ही
उसके पास ही आ रहा था और वह दोनों ऐसे प्रतीत हो रहे थे, जैसे
उन्होंने पहले से ही विवाह कर लिया हो।
उसने
देखा कि वह दोनों एक लग रहे थे,
उसने उन को गाली देना चाहा, लेकिन वह तब तक
बिल्कुल शांत रहा जब तक की वह उसके करीब नहीं पहुंच गये, दोनों
प्रेमी बिना किसी शब्द के बोले बिल्कुल शांत उसकी तरफ देख रहे थे। अंत में उनके
बहुत पास आकर अग्निशिखा ने चिल्लाते हुए तेज रूखे स्वर में कहा- तो तुमने मेरी
आज्ञा को अस्वीकार कर दिया, तुम मेरे भाई से मिलने नहीं गए,
जिसके कारण तुमने विवाह की शर्त को पुरा नहीं किया है। इसलिए तुम
अपने जीवन को हार चुके हो, रूपशिखा से विवाह करने के बजाय
तुम कल मार दिये जाओगे। या फिर तुम मुझको बताओ उस मंदिर के बारे में जिसमें
धुमशिखा रहता है, और वह देखने में किस प्रकार का है?
फिर
श्रृंगभुज ने उस मंदिर के वास्तविक स्वरूप का ज्यों का त्यों वर्णन कर दिया, साथ में उस देवता
का नाम बताया जो अभी भी वहां पूजा जाता है, और उस भयानक आदमी
के बारे में जिसने उसका अपने उत्तम घोड़े पर सवार होकर उसका पीछा किया था, जिससे वह जादूगर राजकुमार का अपनी इच्छा के विरुद्ध कायल हो गया, और उसने समझा की उसको अपने शब्दों पर दृढ़ रहना होगा, जिस को उसने रूपशिखा से किया है। इसलिए उसने अपनी सहमति विवाह कि तैयारी
के लिए दे दिया, जो कल सुबह शुरु होगी।
अध्याय 4
अगले
दिन सुबह विवाह का उत्सव बड़े धूम धाम से मनाया गया, और दुल्हन और दुल्हे के लिए
एक सुन्दर कमरे को रहने लिए दिया, जहां पर वह दोनों पुरी तरह से प्रसन्नता के साथ
सुरक्षित नहीं थे, क्योंकि वह अग्निशिखा के स्वभाव से अच्छी तरह से परिचित थे, की
वह उन दोनों से नफरत करता है। राजकुमार जल्दी ही अपने घर जाने के लिए उत्सुक हो
गया, और वह अपनी सुन्दर पत्नी का परिचय अपने परिवार के लोगों से करने के लिए बहुत
अधिक उतावला था। उसे याद था कि उसने अपनी प्रिय मां को जेल में छोड़कर आया था,
जिसके पास जा कर उससे लंबे समय तक ना मिलने के कारण क्षमा मांगना चाहता था। इसलिए
उसने इस अपनी चिंता के विषय को रूपशिखा से बताया।
और कहा
प्रिय अब हम लोग अपने देश वर्धमान चलते हैं, लंबे समय हो गये, अपने प्रिय लोगों से
मिले, मेरा मन उनसे मिलने को कर रहा है, और अपने लोगों से तुम्हारा परिचय भी कराना
चाहता हूं।
रूपपशिखा
ने कहा मेरे स्वामी, आपके साथ कहीं भी चलने के लिए तैयार हूं जहां भी आपका दिल करे
वहां मुझको लेकर चले, चाहे वह स्थान पृथ्वी के अंत पर भी क्यों ना हो? लेकिन जब मेरे
पिता को पता चलेगा, कि हम यहां से जाना चाहते हैं, तो वह हमें यहां जाने की आज्ञा
नहीं देंगे। और वह हमें जाने से रोकने के लिए, हमारे पीछे अपने जासूसों को लगा
देंगे, जो हर पल हम पर अपनी दृष्टि को रखेंगे। हमें अभी यहां से गुप्त रूप से
निकलना होगा, अपने श्रद्धावान मारुत से, और हम अपने साथ कुछ अपने जरूरी सामान को
ले सकते हैं। इस पर राज कुमार ने कहा और मेरा रत्न जड़ित वाण, जिस को मैं पिता को
वापिस दे दुंगा, और उन को बताउंगा की कैसे मैंने इस वाण को खो दिया था, फिर जिससे
मैं अपने पक्ष में उन को एक बार कर लूगा, और यह भी हो सकता कि वह मेरी मां को भी
क्षमा कर दे।
इस
पर रूपशिखा ने कहा इसके लिए तुम निश्चिंत रहो, वह भी हमारे साथ ही होगा। इसे मत
भूलना कि मुझे कुछ नई जादुई शक्ति मिल चुकी है, जो हम दोनों को मेरे पिता से बचाने
में हमारी मदद करेगी, जिस को मेरी मां ने मुझको दिया है किसी भी प्रकार के आने
वाले, हमारे उपर दुर्भाग्य से बचने के लिए।
अगली
दिन सुबह होने से पहले ही उन दोनों ने महल में बिना किसी के जानकारी के ही अपने मारुत
पर सवार होकर वहां से निकल पड़े, अपने उपर आने वाली किसी विपत्ति के से बचते हुए,
तेजी से अपने घोड़े को भगाते हुए, सूर्य के उदय होने तक वह अग्निशिखा की राजधानी
के अंतिम छोर पर पहुंच चुके थे। तब उन्होंने सोचा कि अब वह अपने पीछा करने वाले से
सुरक्षित है, तभी उन्होंने अपनी पीछे से आती हुई, तेजी से होने वाले शोर गुल की
आवाज को सुना। इस पर उन्होंने घूम कर देखा, कि दुल्हन का पिता अपने अरबी घोड़े पर
हाथों में हमला के लिए चमकती हुए, नंगे तलवार को उठाए हुए उनकी तरफ बड़ी तीव्रता
से चला आ रहा था। रूपशिखा ने अपने पति के कानों में धीरे से कहा डरने की कोई जरूरत
नहीं है।
मैं
तुम को दिखाती हूं कि मैं क्या कर सकती हूं? और उसने तुरंत अपने बाँहों को उपर उठा कर इधर – उधर देखकर उसने कुछ
मंत्रों पढ़ा, जिससे वह स्वयं एक वृद्ध औरत में बदल गई, और श्रृंगभुज एक वृद्ध
आदमी के रूप में हो गया, जबकि मारुत सड़क के एक तरफ बहुत बड़े लकड़ी के ढेर में
तबदील हो गया।
जब
क्रोधित पिता उस स्थान पर पहुंचा जहां पर दुल्हा और दुल्हन छोटी –छोटी लकड़ी के
टुकड़े को एकत्रित करके बड़े लकड़ी के ढेर में रख रहे थे, जिससे ऐसा लग रहा था कि
वह दोनों अपने कार्य में बहुत व्यस्त हैं, जिससे वह उस क्रोधित जादूगर के उनके पास
आने पर उन्होंने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया, जिसने वह उनके उपर चिल्लाते हुए कहा –
क्या
तुमने किसी एक स्त्री और एक पुरुष को इस मार्ग से जाते हुए देखा है?
वृद्ध
औरत ने सीधा खड़े होकर उसके चेहरे को देखते हुए कहा-
नहीं
हम लोग अपने कार्य में बहुत अधिक व्यस्त थे, जिससे हमने ऐसे किसी भी वस्तु पर ध्यान
नहीं दिया।
इस
पर अग्निशिखा ने कहा कि तुम दोनों मेरे जंगल में क्या कर रहे हो?
इस
पर रूपशिखा ने कहा कि हम लोग इंधन को एकत्रित कर रहें है, महान जादूगर अग्निशिखा
की चीता के लिए, क्या तुम नहीं जानते हो कि कल उसकी मृत्यु हो चुकी है?
जैसा कि आप जानते होगे, कि भारत में
हिन्दू किसी मरे हुए आदमी को दफन करने के बजाय उसे आग में जला देते हैं, इसलिए यह
बिल्कुल स्वाभाविक है, कि जो व्यक्ति जादूगर के राज्य में रहते थे वह उसकी लाश को
जलाने के लिए इंधन के रूप में लकड़ी को एकत्रित करे, जिस को सुन अग्निशिखा बहुत
अधिक आश्चर्य चकित हुआ, वास्तव में उसने अपनी सांस को बाहर छोड़ते हुए, स्वयं से
कहा कि क्या यह बिल्कुल सत्य है कि वह मर चुका है? उसने विचार करने शुरु किया कि वह
निश्चित ही किसी स्वप्न को देख रहा है, और उसने अपने मन में स्वयं से कहा- वास्तव
में मैं बिना इसके जाने नहीं मर सकता हूं, इसलिए मुझको निश्चित ही सोना होगा।
इसलिए उसने शांति से अपने घोड़े को वहां से घूमा कर, अपने महल की तरफ वापिस धीरे –धीरे
चल पड़ा। वहीं हुआ जैसा कि उसकी पुत्री चाहती थी, और जैसे ही वह उनकी दृष्टि से
ओझल हुआ, दुबारा फिर से उसने स्वयं को, अपने पति को और घोड़े
को अपने वास्तविक रूप में परिवर्तित कर लिया। ऐसा करने के बाद वह हँसने लगी, जैसा
कि उसने किया, जिससे उसने बड़ी आसानी से अपने पिता की कैद में आने से पहले ही
मुक्त हो गई थी।
एक
बार फिर दुल्हा और दुल्हन अपने मार्ग पर आगे बढ़ने लगे, और कुछ दूर जाने पर एक बार
फिर से अपने पीछे अग्निशिखा को अपने घोड़े पर अपने पीछा आते हुए देखा, क्योंकि
जैसे ही अग्निशिखा वापिस अपने महल पर पहुंचा था, उसके सेवक बिना किसी देरी के उसके
पास उसके घोड़े को पकड़ने के लिए आये, जिससे उसने तत्काल अनुमान लगा लिया, कि उसके
साथ मजाक किया गया है, और उसको उल्लू बनाया गया है। इसलिए वह अपने घोड़े पर से
बिना उतरें ही अपने घोड़े के मुँह को घूमा करके, एक बार फिर से वह अपने घोड़े को
पुरी शक्ति से दौड़ाना शुरु कर दिया, उन को पकड़ने के लिए। और अपने मन में यह
विचार करते हुए कि मैं यदि उन को पकड़ लिया तो एक बार फिर से उन दोनों लोगों को,
मेरी आज्ञा का पालन करना होगा, और निश्चित रूप से उन को अपने अपराध के लिए क्षमा
नहीं किया जायेगा।
इस
समय रूपशिखा ने अपने आपको छोड़ कर अपने पति और घोड़े को अदृश्य कर दिया, और स्वयं
को एक संदेशवाहक के रूप में परिवर्तित कर लिया, और जल्दी –जल्दी रास्ते पर चलने
लगी, जैसे उसके पास एक भी पल बर्बाद करने के लिए नहीं है। उसने अपने पिता को अपनी
तरफ आते हुए देखकर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। तभी अग्निशिखा ने अपने चाबुक को उठा
कर उसके सामने ही घोड़े को रोकते हुए चिल्ला कर उससे कहा-
क्या
तुमने किसी स्त्री और पुरुष को घोड़े पर यहां से जाते हुए देखा है?
इस
पर उसने कहा वस्तुतः नहीं, मेरे पास किसी वस्तु के बारे में सोचने के लिए समय नहीं
है, क्योंकि एक बहुत जरूरी पत्र है, जिस को जितना संभव हो सके, बिना किसी देरी के
उसके स्थान पर पहुंचाना है।
इस
पर अग्निशिखा ने कहा- उस पत्र में ऐसी कौन सी जरूरी सूचना है, जिसके बारे में तुम
मुझे बता सकती हो?
इस
पर उसने कहा ओह हां, लेकिन आप कहां जा रहे
हैं, क्या आप को उस बुरे समाचार के बारे में नहीं पता है, जो इस देश के शासक के
बारे में है?
जिसके
उत्तर में अग्निशिखा ने कहा तुम ऐसा कुछ भी नहीं कह सकती हो, जिस को मैं उसके बारे
में नहीं जानता हूं, क्योंकि वह मेरा सबसे गहरा मित्र है।
फिर
आप जानते होंगे, कि वह मर रहा है उस जख्म के कारण जो उसको कल युद्ध के मैदान में
अपने शत्रु के द्वारा मिला था। मैंने इस पत्र को अग्निशिखा के भाई धुमशिखा से
प्राप्त किया है, जिसकी इच्छा है कि वह उसके मरने से पहले अग्निशिखा को इस पत्र को
अवश्य दिखाऊ।
फिर
से अग्निशिखा चकित हुआ, कि वह स्वप्न देख रहा, अथवा वह किसी विचित्र जादू का शिकार
हो चुका है, और वह वास्तव में नहीं जानता है कि उसके साथ ऐसा कौन कर रहा है? हो सकता है कि वह उसके
समान कोई दूसरा जादूगर होगा, जो उसके साथ ऐसा कर रहा है, जिसके कारण वह उसके जादुई
शक्ति से प्रभावित हो रहा है।
उसने
कुछ भी नहीं कहा जब उसने सुना कि धुमशिखा जख्मी हो चुका है, और वह दुबारा वहां से वापिस
अपने महल के लिए होने लगा। तभी रूपशिखा ने कहा जो एक संदेशवाहक के रूप में थी, जैसा
कि तुम घोड़े पर सवार हो, इसलिए तुम मुझ से तुम जल्दी धुमशिखा के पास मंदिर में
पहुंच सकते हो, और मरने से पहले उसको जिंदा देख सकते हो, जिसके साथ इस पत्र को भी
मुझ से लेकर उसके पास पहुंचा देना, और तुम ऐसा करना जिससे अग्निशिखा अपने भाई को
मरने से पहले देख सके।
यह
सब बहुत अधिक हो चुका था उस जादूगर के लिए, जिससे वह निश्चिंत हो गया, कि उसके साथ
अवश्य कुछ बहुत बुरा हो रहा है। वह जानता था वह मरने वाला नहीं हैं ना ही उसका भाई
धुमशिखा किसी युद्ध में ही जख्मी हुआ है, यद्यपि उसने विचार किया की वह स्वयं
बुखार का शिकार हो चुका है, जो वह नहीं है उसके बारे में सुन कर की वह है। उसने
अपनी पुत्री को घूरते हुए देखा, और उसकी पुत्री ने भी अपने पिता को घूरते हुए
देखा, आधा भयभीत अवस्था में, क्योंकि वह सोचती थी, कि उसका पिता उसको पहचान चुका
है, यद्यपि अग्निशिखा ने इसका बिल्कुल अनुमान कभी नहीं लगा सका, कि उसके सामने
संदेशवाहक के रूप उसकी पुत्री रूपशिखा ही थी।
अंत
में अग्निशिखा ने कहा कि तुम अपने कार्य को स्वयं करो, और उसने अपने निर्दोष घोड़े
को चाबुक से चोट की, जिससे उसका घोड़ा अपनी पुरी शक्ति से जितना वह दौड़ सकता था
वहाँ से उसको लेकर उसके महल की तरफ चल पड़ा। महल के दरवाजे पर पहुंचने पर फिर से
उसके सेवक भाग कर आये, और उसके घोड़े को पकड़ लिया, और वह उदासी के साथ अपने घोड़े
से नीचे उतर कर, कहा जल्दी मेरे मुख्य सलाहकार को में व्यक्तिगत कमरे में भेजों।
जहां पर उसने अपने आपको उसके साथ कमरे में बंद कर लिया, और फिर उसके मुख्य सलाह
कर्ता ने उसको कुछ सुझाव दिया, कि उसको बिना किसी देरी के अपने चिकित्सक से मिलना
चाहिए। क्योंकि वह निश्चिंत हो चुका था, कि किसी ने उसके उपर जादू कर दिया है
जिसके कारण वह बीमार हो गया है।
चिकित्सक
जब आया तो वह अग्निशिखा को देख कर बहुत अधिक उलझन में पड़ गया, जो देखने में काफी
बुद्धिमान दिखाई देता, क्योंकि वह वास्तव में काफी बुद्धिमान था, जिसने उसको आदेश
दिया की वह पुरी तरह से आराम करे, और किसी प्रकार किसी औषधी की उसको लेने की जरूरत
नहीं है। वह बहुत अधिक आश्चर्य चकित था, अपने मरीज विचित्र स्थिती को देखकर, जिससे
वह क्रोधित होने बजाय, उसने यह निर्णय किया की वह अपने मरीज की इस दशा में किसी
प्रकार की कोई सहायता नहीं कर सकता है, क्योंकि यह केवल किसी सदमे के कारण उसके
मरीज के साथ ऐसा हो रहा है। जिसके बाद अग्निशिखा ने अपने आपको कई दीनों के लिए
अपने को कमरे में बंद कर लिया, जिसके कारण उसको काफी अधिक समय लग गया, स्वयं को
अपने सदमे से बाहर निकालने में, और तब तक
बहुत देर हो चुकी थी कि वह प्रेमीयों से अपने प्रतिशोध का बदला ले सके।
जब
सच में रूपशिखा और उसका पति अग्निशिखा की पकड़ से बाहर हो चुके थे, जिसके बाद वह बहुत
जल्दी ही उस देश में पहुंच गये, अर्थात जो देश श्रृंगभुज के पिता के अधिकार में
था। जो बुरी तरह से अपने खोये हुए पुत्र के शोक से ग्रस्त था। तभी एक समाचार वाहक
ने जा कर उसको बताया, कि दो अजनबी लोग उसके देश में उपस्थित हुए, जिसमें से एक
सुन्दर राजकुमार और दूसरी एक सुन्दर औरत है, जिन को देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा
है, कि जैसे वह पति पत्नी हो, जैसे ही उन दोनों ने राजधानी में प्रवेश किया, राजा
ने सकुचाते हुए जल्दी से उनसे मिलने के लिए अपने महल से चल पड़ा, इस आशा के साथ कि
शायद उनके द्वारा उसको किसी प्रकार का कोई समाचार प्रिय अपने पुत्र श्रृंगभुज का
भी मिल जाए, लेकिन जब उसने उसको देखा तो वह पहचान गया, कि वह उसका प्रिय पुत्र
श्रृंगभुज ही था, जिससे मिलकर वह बहुत अधिक प्रसन्न हुआ, जिसने अपने दाहिने हाथ में
रत्न जड़ित वाण को ले रखा था, जिसके कारण उसको बहुत बड़ी कठिनाई
का सामना करना पड़ा था। जैसा कि वह अपने बांये हाथ से मारुत को चला रहा था।
जिससे राजा तुरंत अपने घोड़े से नीचे उतर गया, और श्रृंगभुज ने भी घोड़े की लगाम
को रूपशिखा के हाथ में देते हुए, वह भी घोड़े से नीचे उतर गया। अगले ही पल वह अपने
पिता की बाँहों में था, पिता ने भी प्रसन्नता के साथ उसको क्षमा कर चुका था।
श्रृंगभुज
की वापसी पर उसका और उसकी सुन्दर दुल्हन का भव्य स्वागत समारोह पुरी राजधानी में
किया गया, रूपशिखा ने भी जल्दी ही अपने सद्व्यवहार
से सब का दिल जीत लिया, लेकिन वे जो राजा की दूसरी पत्नीयां और दूसरे पुत्र थे, जो
उसके पति और उसकी मां को नुकसान पहुंचाना चाहते थे, वे सभी राजा के क्रोध से भयभीत
होने लगे, कि जब उसको पता चलेगा कि किसी प्रकार से उन सब ने एक साथ मिल कर उसके
अपनों के साथ धोखा किया है, क्योंकि उन सब ने सच में गलत कार्य किया था। श्रृंगभुज
ने राजा से अनुरोध करके सबसे पहले अपनी मां गुनवारा को कैद से मुक्त करने के लिए
कहा। उसने अपनी दूसरी मांओं से किसी भी अपने साहसिक कार्य के बारे में बातें नहीं
की, क्योंकि वह जानता था, कि जल्दी ही वह सब कुछ स्वयं लोगों के मुँह से अवश्य
सुनेगीं। क्योंकि राजा ने सभी प्रकार की अफ़वाहों को पहले से सुन लिया था कि किस
प्रकार से उसकी पत्नीयों ने उसकी प्रिय पत्नी गुनवारा के प्रती दुर्व्यवहार किया
था, इसलिए राजा विरभोज श्रृंगभुज के साथ क़ैदख़ाने में उससे मिलने के लिए गया,
जिसमें वह हमेशा बंद रहती थी।
इससे
बड़ी प्रसन्नता बेचारी गुनवारा के लिए क्या होती? जब उन दोनों ने क़ैदख़ाने में प्रवेश
किया, जिसमें वह, अपनी आँखों से बहुत आंसू को बहा चुकी थी, जिससे उसने पहली दफा
अपने कानों और आँखों पर भरोसा नहीं किया, लेकिन वह जल्दी ही समझ गई, कि उसका कष्ट
और दूःख का समय खत्म होने वाला है। वह तब तक बिल्कुल प्रसन्न नहीं हुई, जब तक कि स्वयं
उसके पति ने उससे नहीं कहा कि वह सबसे अधिक प्रेम उससे ही करता है, और उसने जो
अपराध नहीं किया था उसके लिए उसको सज़ा दिया गया, वह उस औरत को चाहता था जिसने
उससे उसकी पत्नी के बारे में झूठ कहा था, जिस को राजा ने सच मान लिया था।
यह
मुद्दा दरबार में भी राजा के द्वारा सबके सामने उठाया गया, और इसके लिए अपराधी
आयसोलेखा को पाया गया, इसके बाद श्रृंगभुज के दूसरे भाईयों को भी दरबार मैं उनके
पिता के सामने उपस्थित किया गया, जिन को भी धोखा और जालसाजी का अपराधी पाया गया।
इस प्रकार से उन सभी को राजा ने दण्ड स्वरूप जीवन भर जेल में रहने कि सज़ा को
निश्चित किया। यदि वह क्षमा नहीं करते हैं जिसके साथ इन सब ने धोखा और अपराध किया
है। गुनवारा और उसके पुत्र श्रृंगभुज राजा के पैरों में झुक गये, और उन्होंने कहा
की वह तब तक नहीं उठेगे, जब तक उनके शत्रुओं को क्षमा नहीं कर दिया जाता है, इस प्रकार से आयसोलेखा और उसके पुत्रों को
स्वतंत्र कर दिया।
यद्यपि
श्रृंगभुज राजकुमारों में सबसे छोटा राजकुमार था फिर भी उसको ही विरभोज राजा के
मरने बाद राजा बनाया जायेगा इसकी उद्घोषणा की गई। उसके भाई, हालांकि कभी उससे नफरत
करना नहीं छोड़ा, और जब श्रृंगभुज राजा बन गया, तब उसके भाईयों ने उसके लिए बहुत
बड़ी - बड़ी समस्याओं को खड़ा किया। इसके
बावजूद वह कई सालों तक अपनी प्रिय पत्नी और अपने माता पिता के साथ प्रसन्नता
पूर्वक व्यतीत किया, और उसने कभी भी प्रायश्चित्त उस रत्न जड़ित वाण के कारण होने
वाली मुश्किलों के लिए नहीं किया। क्योंकि इसी के कारण उसने जिस को वह कभी नहीं
जानता था उसे प्राप्त करने में सफल हुआ, अर्थात रत्न जड़ित बाण के कारण ही उसने
अपनी प्रियतमा रूपशिखा को प्राप्त किया था।
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