ज्ञानवर्धक
कथाएं भाग -29
👉 कलह से दरिद्रता
एक बहुत धनवान् व्यक्ति के यहाँ चार
बेटों की चार बहुएँ आई। वे बड़े उग्र और असहिष्णु स्वभाव की थीं, आपस
में रोज ही लड़ती। दिन-रात गृह-कलह ही मचा रहता। इससे खिन्न होकर लक्ष्मी जी ने
वहाँ से चले जाने की ठानी। रात को लक्ष्मी ने उस सेठ को स्वप्न दिया कि अब मैं जा
रही हूँ। यह कलह मुझसे नहीं देखा जाता। जहाँ ऐसे लड़ने झगड़ने वाले लोग रहते हैं
वहाँ मैं नहीं रह सकती।
सेठ बहुत गिड़गिड़ाकर रोने लगा, लक्ष्मी
के पैरों से लिपट गया और कहा मैं आपका अनन्य भक्त रहा हूँ। मुझे छोड़कर आप जावे
नहीं। लक्ष्मी को उस पर दया आई और कहा-कलह के स्थान पर मेरा ठहर सकना तो संभव
नहीं। ऐसी स्थिति में अब मैं तेरे घर तो किसी भी प्रकार न रहूँगी पर और कुछ तुझे
माँगना हो तो एक वरदान मुझ से माँग ले।
धनिक ने कहा-अच्छा माँ यही सही। आप
यह वरदान दें कि मेरे घर के सब लोगों में प्रेम और एकता बनी रहे। लक्ष्मी ने
‘एवमस्तु’ कह कर वही वरदान दे दिया और वहाँ से चली गई। दूसरे दिन से ही सब लोग
प्रेम पूर्वक रहने लगे और मिल-जुल कर सब काम करने लगे।
एक दिन धनिक ने स्वप्न में देखा कि
लक्ष्मी जी घर में फिर वापिस आ गई हैं। उसने उन्हें प्रणाम किया और पुनः पधारने के
लिए धन्यवाद दिया। लक्ष्मी ने कहा-इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं है। मेरा उसमें
कुछ अनुग्रह भी नहीं है। जहाँ एकता होती है और प्रेम रहता हूँ वहाँ तो मैं बिना बुलाये
ही जा पहुँचती हूँ।
जो लोग दरिद्रता से बचना चाहते हैं
और घर से लक्ष्मी को नहीं जाने देना चाहते उन्हें अपने घर में कलह की परिस्थितियाँ
उत्पन्न नहीं होने देनी चाहिए।
👉 अंजाने में हुए कर्मों का फल
काशी के एक ब्राह्मण के सामने से एक
गाय भागती हुई किसी गली में घुस गई। तभी वहां एक आदमी आया। उसने गाय के बारे में
पूछा। । पंडितजी माला फेर रहे थे इसलिए कुछ बोला नहीं बस हाथ से उस गली का इशारा
कर दिया जिधर गाय गई थी। पंडितजी इस बात से अंजान थे कि वह आदमी कसाई है और गौमाता
उसके चंगुल से जान बचाकर भागी थीं। कसाई ने पकड़कर गोवध कर दिया।
अंजाने में हुए इस घोर पाप के कारण
पंडितजी अगले जन्म में कसाई घर में जन्मे नाम पड़ा, सदना। पर पूर्वजन्म
के पुण्यकर्मो के कारण कसाई होकर भी वह उदार और सदाचारी थे। कसाई परिवार में जन्मे
होने के कारण आजीविका के लिये और कोई उपाय न होने से दूसरों के यहाँ से मांस लाकर
बेचा करते थे, स्वयं अपने हाथ से पशु-वध नहीं करते थे। सदना
की भगवान का भजन करने में बड़ी निष्ठा थी।
एक दिन सदना को नदी के किनारे एक
पत्थर पड़ा मिला। पत्थर अच्छा लगा इसलिए वह उसे मांस तोलने के लिए अपने साथ ले आए।
वह इस बात अंजान थे कि यह वह वही शालिग्राम थे जिन्हें पूर्वजन्म नित्य पूजते थे।
सदना कसाई पूर्वजन्म के शालिग्राम को इस जन्म में मांस तोलने के लिए बटखरे के रूप
में प्रयोग करने लगे। आदत के अनुसार सदना ठाकुरजी के भजन गाते रहते थे।ठाकुरजी
भक्त की स्तुति का पलड़े में झूलते हुए आनंद लेते रहते। बटखरे का कमाल ऐसा था कि
चाहे आधे किलो तोलना हो, एक किलो या दो किलो सारा वजन उससे पक्का हो
जाता। ।
एक दिन सदना की दुकान के सामने से
एक ब्राह्मण निकले। उनकी नजर बाट पर पड़ी तो सदना के पास आए और शालिग्राम को
अपवित्र करने के लिए फटकारा। । उन्होंने कहा- मूर्ख, जिसे पत्थर समझकर
मांस तौल रहे हो वे शालिग्राम भगवान हैं। ब्राह्मण ने सदना से शालिग्राम भगवान को
लिया और घर ले आए। गंगा जल से नहलाया, धूप, दीप,चन्दन से पूजा की। ब्राह्मण को अहंकार हो गया
जिस शालिग्राम से पतितों का उद्दार होता है आज एक शालिग्राम का वह उद्धार कर रहा
है। रात को उसके सपने में ठाकुरजी आए और बोले- तुम जहां से लाए हो वहीँ मुझे छोड़
आओ। मेरा भक्त सदन कसाई की भक्ति में जो बात है वह तुम्हारे आडंबर में नहीं। ब्राह्मण
बोला- प्रभु! सदना कसाई का पापकर्म करता है। आपका प्रयोग मांस तोलने में करता है।
मांस की दुकान जैसा अपवित्र स्थान आपके योग्य नहीं। भगवान बोले- भक्ति में भरकर
सदना मुझे तराजू में रखकर तोलता था मुझे ऐसा लगता है कि वह मुझे झूला रहा हो। मांस
की दुकान में आने वालों को भी मेरे नाम का स्मरण कराता है। मेरा भजन करता है। जो
आनन्द वहां मिलता था वह यहां नहीं। तुम मुझे वही छोड आओ। ब्राह्मण शालिग्राम भगवान
को वापस सदना कसाई को दे आए। ।
ब्राह्मण बोला- भगवान को तुम्हारी
संगति ही ज्यादा सुहाई। यह तो तुम्हारे पास ही रहना चाहते हैं। ये शालिग्राम भगवान
का स्वरुप हैं। हो सके तो इन्हें पूजना बटखरा मत बनाना। । सदना ने यह सुना अनजाने
में हुए अपराध को याद करके दुखी हो गया। सदना ने प्राश्चित का निश्चय किया और
भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए निकल पड़ा। वह भी भगवान के दर्शन को जाते एक समूह
में शामिल हो गए लेकिन लोगों को पूछने पर उसने बता दिया कि वह कसाई का काम करता था।
लोग उससे दूर-दूर रहने लगे। उसका छुआ खाते-पीते नहीं थे। दुखी सदना ने उनका साथ छोड़ा
और शालिग्रामजी के साथ भजन करता अकेले चलने लगा।
सदना को प्यास लगी थी। रास्ते में
एक गांव में कुंआ दिखा तो वह पानी पीने ठहर गया। वहां एक सुन्दर स्त्री पानी भर
रही थी। वह सदना के सुंदर मजबूत शरीर पर रीझ गई। उसने सदना से कहा कि शाम हो गई है।
इसलिए आज रात वह उसके घर में ही विश्राम कर लें। सदना को उसकी कुटिलता समझ में न
आई, वह उसके अतिथि बन गए। । रात में वह स्त्री अपने पति के सो जाने पर सदना के
पास पहुंच गई और उनसे अपने प्रेम की बात कही। स्त्री की बात सुनकर सदना चौंक गए और
उसे पतिव्रता रहने को कहा। स्त्री को लगा कि शायद पति होने के कारण सदना रुचि नहीं
ले रहे। वह चली गई और वह गई और सोते हुए पति का गला काट लाई। सदना भयभीत हो गए।
स्त्री समझ गई कि बात बिगड़ जाएगी इसलिए उसने रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया।
पड़ोसियों से कह दिया कि इस यात्री को घर में जगह दी। चोरी की नीयत से इसने मेरे
पति का गला काट दिया। सदना को पकड़ कर न्यायाधीश के सामने पेश किया गया। न्यायाधीश
ने सदना को देखा तो ताड़ गए कि यह हत्यारा नहीं हो सकता। उन्होने बार-बार सदना से
सारी बात पूछी। । सदना को लगता था कि यदि वह प्यास से व्याकुल गांव में न पहुंचते
तो हत्या न होती। वह स्वयं को ही इसके लिए दोषी मानते थे। अतः वे मौन ही रहे। ।
न्यायाधीश ने राजा को बताया कि एक आदमी अपराधी है नहीं पर चुप रहकर एक तरह से
अपराध की मौन स्वीकृति दे रहा है। इसे क्या दंड दिया जाना चाहिए? । राजा ने कहा- यदि वह प्रतिवाद नहीं करता तो दण्ड अनिवार्य है। अन्यथा
प्रजा में गलत सन्देश जाएगा कि अपराधी को दंड नहीं मिला। इसे मृत्युदंड मत दो,
हाथ काटने का हुक्म दो। सदना का दायां हाथ काट दिया गया।
सदना ने अपने पूर्वजन्म के कर्म
मानकर चुपचाप दंड सहा और जगन्नाथपुरी धाम की यात्रा शुरू की। धाम के निकट पहुंचे
तो भगवान ने अपने सेवक राजा को प्रियभक्त सदना कसाई की सम्मान से अगवानी का आदेश
दिया। प्रभु आज्ञा से राजा गाजे-बाजे लेकर अगुवानी को आया। सदना ने यह सम्मान
स्वीकार नहीं किया तो स्वयं ठाकुरजी ने दर्शन दिए। उन्हें सारी बात सुनाई- तुम
पूर्वजन्म में ब्राहमण थे। तुमने संकेत से एक कसाई को गाय का पता बताया था।
तुम्हारे कारण जिस गाय की जान गई थी वही स्त्री बनी है जिसके झूठे आरोपों से
तुम्हारा हाथ काटा गया। उस स्त्री का पति पूर्वजन्म का कसाई बना था जिसका वध कर
गाय ने बदला लिया है।
भगवान बोले- सभी के शुभ और अशुभ
कर्मों का फल मैं देता हूं। अब तुम निष्पाप हो गए हो। घृणित आजीविका के बावजूद भी
तुमने धर्म का साथ न छोड़ा। इसलिए तुम्हारे प्रेम को मैंने स्वीकार किया। मैं
तुम्हारे साथ मांस तोलने वाले तराजू में भी प्रसन्न रहा। भगवान के दर्शन से सदनाजी
को मोक्ष प्राप्त हुआ। भक्त सदनाजी की कथा हमें बताती है कि भक्ति में आडंबर नहीं
भावना मायने रखती है। भगवान के नाम का गुणगान करना सबसे बड़ा पुण्य है।
👉 प्यार और स्नेह
एक छोटे से शहर के प्राथमिक स्कूल
में कक्षा 5 की शिक्षिका थीं।
उनकी एक आदत थी कि वह कक्षा शुरू
करने से पहले हमेशा "आई लव यू ऑल" बोला करतीं। मगर वह जानती थीं कि वह
सच नहीं कहती। वह कक्षा के सभी बच्चों से उतना प्यार नहीं करती थीं।
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको
एक आंख नहीं भाता। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आजाया
करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान। व्याख्यान के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और
होता।
मिस के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें
देखता तो लग जाता।।मगर उसकी खाली खाली नज़रों से उन्हें साफ पता लगता रहता।कि राजू
शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब हे।धीरे
धीरे मिस को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मिस की आलोचना का
निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते। बच्चे उस पर खिलखिला
कर हंसते।और मिस उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करतीं। राजू ने हालांकि किसी
बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।
मिस को वह एक बेजान पत्थर की तरह
लगता जिसके अंदर महसूस नाम की कोई चीज नहीं थी। प्रत्येक डांट, व्यंग्य
और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर
झुका लेता । मिस को अब इससे गंभीर चिढ़ हो चुकी थी।
पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और
रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो मिस ने राजू की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें
लिख मारी। प्रगति रिपोर्ट माता पिता को दिखाने से पहले हेड मिसट्रेस के पास जाया
करती थी। उन्होंने जब राजू की रिपोर्ट देखी तो मिस को बुला लिया। "मिस प्रगति
रिपोर्ट में कुछ तो प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे राजू के
पिता इससे बिल्कुल निराश हो जाएंगे।" "मैं माफी माँगती हूँ, लेकिन
राजू एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है। मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी
प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ। "मिस घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ
आईं।
हेड मिसट्रेस ने एक अजीब हरकत की।
उन्होंने चपरासी के हाथ मिस की डेस्क पर राजू की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट
रखवा दी। अगले दिन मिस ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर
देखा तो पता लगा कि यह राजू की रिपोर्ट हैं। "पिछली कक्षाओं में भी उसने
निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे।" उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली।
रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि
रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है। "राजू जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज
तक नहीं देखा।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से
बेहद लगाव रखता है।"
अंतिम सेमेस्टर में भी राजू ने
प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। "मिस ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की
रिपोर्ट खोली।" राजू ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव लिया। उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। "राजू की
माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है।
जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।"
राजू की माँ मर चुकी है और इसके साथ
ही राजू के जीवन की चमक और रौनक भी। उसे बचाना होगा।।।इससे पहले कि बहुत देर हो
जाए। "मिस के दिमाग पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने
प्रगति रिपोर्ट बंद की। आंसू उनकी आँखों से एक के बाद एक गिरने लगे।
अगले दिन जब मिस कक्षा में दाख़िल
हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू
ऑल" दोहराया। मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं। क्योंकि इसी
क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे राजू के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में
महसूस कर रही थीं।।वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से हो ही नहीं सकता था।
व्याख्यान के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राजू पर दागा और
हमेशा की तरह राजू ने सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक मिस से कोई डांट फटकार और
सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में न पड़ी तो उसने अचंभे में सिर
उठाकर उनकी ओर देखा। अप्रत्याशित उनके माथे पर आज बल न थे, वह
मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने राजू को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर
जबरन दोहराने के लिए कहा। राजू तीन चार बार के आग्रह के बाद अंतत:बोल ही पड़ा।
इसके जवाब देते ही मिस ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी से
भी बजवायी।। फिर तो यह दिनचर्या बन गयी। मिस हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर
उसकी खूब सराहना तारीफ करतीं। प्रत्येक अच्छा उदाहरण राजू के कारण दिया जाने लगा ।
धीरे-धीरे पुराना राजू सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आ गया। अब मिस को सवाल के साथ
जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित
करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी।
उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए
होते,
कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था।
देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और राजू ने दूसरा स्थान हासिल कर लिया यानी
दूसरी क्लास।
विदाई समारोह में सभी बच्चे मिस के
लिये सुंदर उपहार लेकर आए और मिस की टेबल पर ढेर लग गये । इन खूबसूरती से पैक हुए
उपहार में एक पुराने अखबार में बद सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे
उसे देखकर हंस पड़े। किसी को जानने में देर न लगी कि उपहार के नाम पर ये राजू लाया
होगा। मिस ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर उसे निकाला। खोलकर देखा तो
उसके अंदर एक महिलाओं की इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने
वाला एक बड़ा सा कड़ा था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। मिस ने चुपचाप इस इत्र
को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। बच्चे यह दृश्य देखकर हैरान रह गए।
खुद राजू भी। आखिर राजू से रहा न गया और मिस के पास आकर खड़ा हो गया।।
कुछ देर बाद उसने अटक अटक कर मिस को
बताया कि "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।"
समय पर लगाकर उड़ने लगा। दिन सप्ताह, सप्ताह
महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है? मगर हर
साल के अंत में मिस को राजू से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा
होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला।। मगर आप जैसा कोई नहीं था।" फिर
राजू का स्कूल समाप्त हो गया और पत्रों का सिलसिला भी। कई साल आगे गुज़रे और मिस
रिटायर हो गईं। एक दिन उन्हें अपनी मेल में राजू का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
"इस महीने के अंत में मेरी
शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता। एक और बात ।। मैं जीवन में
बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं। आप जैसा कोई नहीं है। डॉक्टर राजू साथ ही विमान
का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था। मिस खुद को हरगिज़ न रोक सकती थीं।
उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह दूसरे शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन
जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं। उन्हें लगा समारोह समाप्त हो
चुका होगा।। मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े डॉ, बिजनेसमैन
और यहां तक कि वहां पर शादी कराने वाले पंडितजी भी थक गये थे। कि आखिर कौन आना
बाकी है।।।मगर राजू समारोह में शादी के मंडप के बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके
आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही यह पुरानी शिक्षिका ने गेट से
प्रवेश किया राजू उनकी ओर लपका और उनका वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह
सड़ा हुआ सा कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया। माइक हाथ में पकड़ कर
उसने कुछ यूं बोला "दोस्तों आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा
करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलाउंगा। यह
मेरी माँ हैं -
इस सुंदर कहानी को सिर्फ शिक्षक और
शिष्य के रिश्ते के कारण ही मत सोचिएगा। अपने आसपास देखें, राजू
जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार
और स्नेह नया जीवन दे सकता है।
👉 Surprise test
एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में
आते ही बोला, “चलिए, surprise test के लिए तैयार
हो जाइये। सभी स्टूडेंट्स घबरा गए… कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के
दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे। “ये सब कुछ काम नहीं आएगा…।”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “मैं Question
paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर
बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखिएगा” पेपर बाँट दिए गए।
“ठीक है ! अब आप पेपर देख सकते हैं, प्रोफेसर
ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी Question paper को निहार
रहे थे, पर ये क्या? इसमें तो कोई
प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट! ये क्या सर? इसमें तो कोई question ही नहीं है, एक छात्र खड़ा होकर बोला।
प्रोफ़ेसर बोले, “जो
कुछ भी है आपके सामने है। आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए
आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”
स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं
था…वे अपने-अपने answer लिखने लगे।
समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर
ने answer sheets collect की और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे।
लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।
प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस
टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही
मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…। इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है। मैं
आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…
देखिये… इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा
सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो
मात्र 1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती
है…
समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा
हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते
हैं… कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई
अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है, तो कोई और बस
पैसों का रोना रोता रहता है।
क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर
खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं… क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फैमिली के
लिए शुक्रगुजार होते हैं…। क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते
हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।
तो चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को ENJOY करना
सीखें …।
तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी
पायेंग।
👉 अनोखी दवाई
काफी समय से दादी की तबियत खराब थी ।
घर पर ही दो नर्स उनकी देखभाल करतीं थीं । डाक्टरों ने भी अपने हाथ उठा दिए थे और
कहा था कि जो भी सेवा करनी है कर लीजिये । दवाइयां अपना काम नहीं कर रहीं हैं ।
उसने घर में बच्चों को होस्टल से
बुला लिया । काम के कारण दोनों मियां बीबी काम पर चले जाते । दोनों बच्चे बार-बार
अपनी दादी को देखने जाते । दादी ने आँखें खोलीं तो बच्चे दादी से लिपट गए ।
'दादी ! पापा कहते हैं कि आप
बहुत अच्छा खाना बनाती हैं । हमें होस्टल का खाना अच्छा नहीं लगता । क्या आप हमारे
लिए खाना बनाओगी?'
नर्स ने बच्चों को डांटा और बाहर
जाने को कहा । अचानक से दादी उठी और नर्स पर बरस पड़ीं ।
'आप जाओ यहाँ से । मेरे
बच्चों को डांटने का हक़ किसने दिया है ? खबरदार अगर बच्चों
को डांटने की कोशिश की!'
'कमाल करती हो आप । आपके लिए
ही तो हम बच्चों को मना किया । बार-बार
आता है तुमको देखने और डिस्टर्ब करता है । आराम भी नहीं करने देता ।'
'अरे! इनको देखकर मेरी आँखों
और दिल को कितना आराम मिलता है तू क्या जाने! ऐसा कर मुझे जरा नहाना है । मुझे
बाथरूम तक ले चल ।'
नर्स हैरान थी ।
कल तक तो दवाई काम नहीं कर रहीं थी
और आज ये चेंज ।
सब समझ के बाहर था जैसे । नहाने के
बाद दादी ने नर्स को खाना बनाने में मदद को कहा । पहले तो मना किया फिर कुछ सोचकर
वह मदद करने लगी ।
खाना बनने पर बच्चों को बुलाया और
रसोई में ही खाने को कहा ।
'दादी ! हम जमीन पर बैठकर
खायेंगे आप के हाथ से, मम्मी तो टेबल पर खाना देती है और
खिलाती भी नहीं कभी।'
दादी के चेहरे पर ख़ुशी थी । वह
बच्चों के पास बैठकर उन्हें खिलाने लगी ।
बच्चों ने भी दादी के मुंह में
निबाले दिए । दादी की आँखों से आंसू बहने लगे ।
'दादी ! तुम रो क्यों रही हो
? दर्द हो रहा है क्या? मैं आपके पैर
दबा दूं ।'
'अरे! नहीं, ये तो बस तेरे बाप को याद कर आ गए आंसू, वो भी ऐसे
ही खाताा था मेरे हाथ से ।
पर अब कामयाबी का भूत ऐसा चढ़ा है कि
खाना खाने का भी वक्त नहीं है उसके पास और न ही माँ से मिलने का टैम
'दादी ! तुम ठीक हो जाओ,
हम दोनों आपके ही हाथ से खाना खायेंगे ।'
'और पढने कौन जाएगा? तेरी माँ रहने देगी क्या तुमको?'
'दादी! अब हम नहीं जायेंगे
यहीं रहकर पढेंगे ।' दादी ने बच्चों को सीने से लगा लिया ।
नर्स ने इस इलाज को कभी पढ़ा ही नहीं
था जीवन में ।
अनोखी दवाई थी अपनों का साथ हिल मिल
कर रहने की।
👉 समस्या
एक राजा ने बहुत ही सुंदर ''महल''
बनावाया और महल के मुख्य द्वार पर एक ''गणित
का सूत्र'' लिखवाया।। और एक घोषणा की कि इस सूत्र से यह 'द्वार खुल जाएगा और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' कर के ''द्वार'' खोलेगा में उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर
दूंगा!
राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और 'सूत्र
देखकर लौट गए, किसी को कुछ समझ नहीं आया! आख़री दिन आ चुका था
उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे।
उसमें 2 तो दूसरे राज्य के बड़े
गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रों की पुस्तकों सहित आये! लेकिन एक
व्यक्ति जो ''साधक'' की तरह नजर आ रहा था सीधा
साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था!
उसने कहा मैं यहां बैठा हूँ पहले
इन्हें मौक़ा दिया जाए! दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए लेकिन द्वार नहीं
खोल पाये और अपनी हार मान ली। अंत में उस साधक को बुलाया गया और कहा कि आप सूत्र
हल करिये समय शुरू हो चुका है।
साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के
साथ 'द्वार' की ओर गया! साधक ने धीरे से द्वार को धकेला
और यह क्या? द्वार खुल गया।। राजा ने साधक से पूछा -- आप ने
ऐसा क्या किया?
साधक ने बताया जब में 'ध्यान'
में बैठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई, कि
पहले ये जाँच तो कर ले कि सूत्र है भी या नहीं।। इसके बाद इसे हल ''करने की सोचना'' और मैंने वही किया!
कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या''
होती ही नहीं और हम ''विचारो'' में उसे बड़ा बना लेते है।
मित्रों, हर
समस्या का उचित इलाज आपकी ''आत्मा'' की
आवाज है!
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