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सूर्य के वंशज Part-1

सूर्य के वंशज

 

(एक प्रेम कथा)

 

(लेखक मनोज पाण्डेय)


      ओ ऐश्वर्य शाली और अनंत शांत आत्मा, ऋषियों के स्वामी, जो हवा के समान संसार रूपी जंगल में प्राण के समान बहता है। जो आकाश के समान सब जगह व्याप्त हो रहा है। जिसके गले में नीला जहर विद्यमान है जो स्वयं नीलकंठ हैं, जिनके सर के बालों के गुच्छे में सफेद चमकीला चंद्रमा प्रतिबिम्बीत हो रहा है। जिसकी हम सब श्रद्धा पूर्वक आराधना करते है। और उसके चरणों में स्वयं को नत मस्तक करते है। और जिनके विशाल सुंड़ है, जो हाथियों के भी हाथी हैं, जिनके तेज के चमक से अनंत प्रकार के विघ्न बंधाये ऐसे भस्म हो जाती हैं जैसे जंगल की घास एक चिनगारी पाकर राख में तबदील हो जाती है।

 

 

          बहुत समय पहले हिमालय की तराइयों में जहाँ पर एक राजा राज्य करते थे, जो प्राण के समान आत्मा-वान पुरुष थे, जिनका नाम कमलमित्र था। जिनका तेज सूर्य के समान चारों तरफ व्याप्त हो रहा था। जो बहुत बड़े उमापति शिव के उपासक थे। जिनका रुझान अचानक बदल गया, और वह सांसारिक विषय भोग से विरक्त हो गये, जिसके कारण उन्होंने अपने राज्य कार्य को मध्य में रोक दिया। और अपना सब कुछ छोड़ कर हिमालय के शिखर कैलाश पर्वत के बर्फ की चोटियों के मध्य में जाकर बड़ी कठोर साधना में संलग्न हो गये। और वह वहाँ पहले केवल पत्तों को खाकर अपने जीवन का निर्वाह करने लगे, कुछ समय पर केवल धुआं पीकर रहते थे, और अंत में केवल वायु पीकर ही साधना करने लगे। धैर्य पूर्वक अपनी कठिन तपस्या में लीन हो गये थे। इसी तरह से सौ साल का लंबा समय गुज़र गया, जिसकी कठोर साधना से द्रवित हो कर और उसके प्रती करुणा से अभिभूत हो कर भगवान शिव एक दिन चांदनी रात में उसके सामने प्रकट हुए। एक साधु के रूप में यद्यपि उनके शरीर का आकार वृक्ष के समान सिधा लंबा था और उनके बालों के मध्य में चंद्रमा चमक रहा था। और उन्होंने कहा मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हो चुका हूँ, इसलिए मैं तुम्हें वरदान देना चाहता हूँ, मांगो तुम्हें क्या चाहिये? फिर युवा राजा कमलमित्र ने उनके चरणों में अपने हाथों को जोड़ का सादर और आदर के साथ प्रणाम किया, और कहा कि आप मुझे वरदान देना चाहते है। इसको जानकर मैं बहुत प्रसन्न हूं, यह मेरे लिए सब कुछ हैं कि आप मुझ पर अनुग्रहीत हैं। इस पर भगवान ने कहा यह पर्याप्त नहीं है, तुम को मुझसे एक वर अवश्य प्राप्त होगा, एक बार और विचार करके मुझसे मांगो की तुम को क्या चाहिए? इस पर कमलमित्र ने कहा यदि ऐसा निश्चित है, तो मैं आपसे वरदान के रूप में एक सुन्दर अपने लिए पत्नी चाहता हूँ, जिसकी आँखें आकाश के समान विस्तृत और पर्वत की चोटियों के समान स्वच्छ हो, जो पूर्ण रुपेण सागर के समान कामुक और अति आकर्षक हो। विश्व में सबसे अधिक सौंदर्य की धनी वह औरत हो। उसके गले में चंद्रमा का निशान हो और उसको देखने से काम की अतृप्ति और अधिक बढ़ जाये, वह केवल अपारदर्शी प्रतिबिंब की भाती चित्र ना हो, यद्यपि वह वास्तविक हमेशा रहने वाली एक यौवन सम्पन्न ऐश्वर्य वाली स्त्री हो। जिसके द्वारा मैं अपने आपको हमेशा आपकी आराधना का माध्यम बना सकूं।

 

       फिर चंद्रमा को अपने बालों के जुड़े में धारण करने वाले भगवान शिव उससे बहुत प्रसन्न हुए, फिर उन्होंने अपनी दैवी शक्ति के द्वारा आने वाले भविष्य में देखा, जो होने वाला था और उन्होंने बहुत धीरे से कहा इस प्रकार की आंखों वाली स्त्री बहुत अधिक खतरनाक होगी। वह किसी दूसरी स्त्रियों के समान नहीं होंगी और उसका व्यवहार अपने पति के प्रती सामान्य स्त्रियों के समान नहीं होगा, अर्थात वह एक असाधारण किस्म की औरत होगी। जो इस संसार में दुर्लभ किस्म की और अतुलनीय औरत होगी। फिर भी कोई बात नहीं मैं तुम को यह वरदान दे देता हूँ। जैसा कि तुम्हारी इच्छा है।

 

              फिर भगवान शिव अदृश्य हो गये, और कमलमित्र आनंद से भर कर अपने घर के लिए वहाँ से चल दिया। और परमेश्वर की अलौकिक अनुकम्पा की कृपा से उसका सारा क्लेश, पीड़ा, दुःख और कष्ट के साथ जीवन के विघ्नों से हमेशा के लिए वह मुक्त हो गया। वह भीम के समान शक्तिशाली और अर्जुन के समान सौंदर्य को प्राप्त हो गया। और वह अगले दिन शाम को अपने राज्य की सीमा पर पहुंच गया, उससे पहले वह एक बगीचे में विश्राम करने के लिए गया। जिस समय सूर्य अस्त होने वाला था। जैसे ही वह बगीचे में पहुंचा, उसने अपने सामने अचानक एक औरत को देखा, जो तालाब में सफेद बर्फ जैसे कमल पुष्पों के मध्य में चंदन की नाव पर, एक सफेद खेवटियाँ के साथ नौका विहार कर रही थी। और उसका प्रतिबिंब उन बरफीले पुष्पों पर झलक रहा था, जिससे उनकी आभा नीली पड़ गयी थी। जो अपनी आँखें नीचे किए हुए थी। और उसने अपनी एक हथेली में ठुड्डी को किए हुए, दूसरी हथेली से पानी की बुंदों को बार-बार कमल पुष्पों पर डाल रही थी। कमल पुष्प लाल खून की तरह प्रतीत हो रहे थे। और उसके घुमावदार गोल नितंब रेत के किनारे की तरह दिख रहे थे, और दोबारा उसके संगीत मय सुडौल शरीर का प्रतिबिंब नीचे झील के पानी में झलक रहा था। उसके ओठ चल रहे थे, जैसे वह पानी में गिरते पुष्पों के पत्तों की गिनती कर रही हो।

 

          और कमलमित्र ने अपनी सांसों को थामें हुए शान्त चित्त वेशुध उसके सौंदर्य की छटा को निहार रहा था। उसके ऊपर से निगाह को हटाने से भयभीत होकर, वह सोच रहा था कि वह किसी स्वप्न को देख रहा है। और तभी उस नव यौवना ने तत्काल अपनी निगाह को ऊपर उठा कर कमलमित्र को देख कर हंसी, जिसने अपनी आंखों के रंग से उसको भिगो दिया। और ऐसा प्रतीत हो रहा था कमलमित्र को जैसे उसका संपूर्ण अस्तित्व कमल पुष्पों के सागर में समा गया हो। और तभी उसको भगवान शिव के द्वारा दिये गये वरदान के बारे में याद आया। जिसने उसको आकाश का वस्त्र पहना कर उसके सामने भेजा था और वह चिल्लाया कि यह अद्भुत कला कृति अवश्य मेरी पत्नी ही होगी। जिसको भगवान महेश्वर ने मेरे लिए भेजा है। जिसके लिए उन्होंने मुझसे कुछ एक दिन पहले मुझसे वादा किया था। और यह कोई दूसरी नहीं हो सकती है। मैंने उनके ऐश्वर्य को देखा है, और उनकी दोनों आँखों को मैंने देखा है, और यह वहीं आँखें हैं। अगर यह ऐसा ही हैं, जैसा की मैं समझ रहा हूँ, तो मुझ को उसको बुला कर उसके नाम को जानना चाहिये। तभी उस औरत ने कहा मेरा नाम अनुश्यनी है। और इसी मकसद से परमेश्वर ने इन आँखों को बनाया है। हलांकि उसकी आँखों में झलक परमेश्वर का मिल रहा था।

 

          फिर कमलमित्र ने परमेश्वर के द्वारा प्रदत्त उसको अपना बना लिया और अपनी पत्नी के समान उसके लिये हर प्रकार का संसाधन उपलब्ध कराया और इसके बाद वह कैलाश के क्षेत्र को उसके साथ छोड़ दिया। पूर्ण रूप से किंकर्तव्यविमुढ़ की तरह और उसकी आंखों के नशे में मस्त होकर, लगातार वह उसकी श्रेष्ठ दोनों आंखों में अपने परमेश्वर की झलक को देख रहा था। और वह उन नशीली गहरी सागर जैसी आंखों में गोते लगाते हुए। उसमें डुबता जा रहा था और उसको ऐसा प्रतीत हो रहा था। जैसे सम्पूर्ण संसार नीले कमल पुष्पों से सुसज्जित किया गया हो। और जैसे कोई पात्र मुंह तक भरा हो और उसमें रखा अमृत के आनन्द का श्रोत बाहर बह रहा हो। वह स्वयं आनन्द के अलौकिक भाव से विभोर हो रहा था। वह उसके सौन्दर्य को पचाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा था। इसके साथ उसके अन्दर अपनी पत्नी के सौन्दर्य का अभिमान भी अपने चरम पर पहुंच रहा था। उसे अपने आप पर आश्चर्य के साथ एक दिव्यता का आभास हो रहा था। इस अनुपम, अद्वितीय, अप्रितम औरत को पा कर, जिसके कारण उसको अपने भावों पर कोई नियंत्रण नहीं रह सका।

 

    जिसके कारण उसने स्वयं को शान्त करने के लिए सब जगह जाकर अपनी औरत के अभूतपूर्व सौन्दर्य का वर्णन करने लगा। इसके साथ उसने प्रयास किया की हर आदमी उसकी पत्नी के बारे में जाने कि वह स्वयं अपनी पत्नी के बारे में क्या सोचता है? सम्पूर्ण संसार की सभी औरतें उसकी औरत की तुलना के सामने कुछ भी नहीं हैं। उसने आह भरी की यह औरत भी क्या वस्तु हैं? जो दूसरी औरतों से बिल्कुल अलग उसके उद्धार का कारण हैं।

 

    इसी बीच एक दिन जब वह अपनी पत्नी के विषय में अपने एक मित्र से बहस कर रहा था। और अपने मित्र को गाली दे रहा था, क्योंकि उसके कुछ बुद्धिमान मित्र थे, जो उसकी पत्नी की असीमित प्रशंसा को सुन कर उससे प्रसन्न होने के बजाय उसे हतोउत्साहित करने लगे थे। जिससे वह चिढ़ कर गाली-गलौच करने लगा। अचानक उसके कुछ मित्र ठहाके भर कर उस पर हंसने और चिल्लाने लगे, और इसके साथ कहने लगे की इस दुनिया में हर वस्तु का इलाज हो सकता है। यहाँ तक यदि भयंकर विषैला सर्प यदि काट ले तो उसका भी इलाज संभव है। लेकिन उसका कोई इलाज नहीं है जिसको किसी औरत के सौन्दर्य ने काट लिया हो, उसकी मृत्यु निश्चित है। मेरे मित्र औरत के सौन्दर्य के प्रेम से तुम संक्रमित हो चुके हो, इससे सावधान रहने की ज़रूरत है। औरत एक आकर्षक, संमोहक, सुडौल संगीत मय हमारे शरीर की ही आधी प्रतिरूप तरह से है, औरत केवल एक सामान्य वाद्य यन्त्र की ध्वनि नहीं है, यद्यपि वह इससे अतिरिक्त अनन्त प्रकार की हजारों ध्वनि लहरियों का संगम है। और उसके तार मानो मथनी क तरह है, जो मानव हृदय में उपस्थित उसकी सम्पूर्ण आत्मा के भावों के सागर को मथ कर उसके सार को चुस जाते है। और यह हो सकता है कि तुम्हारी पत्नी की आंखें बहुत सुन्दर हो, वैसे भी औरतों की आंखें सुन्दर और काम के नशे से अभिभूत होती हैं। और वह सिर्फ आंखें ही होती है। एक औरत के समान हर औरत की आंखें नहीं होती है, हो सकता है तुम्हारी औरत की आंखें कुछ सौन्दर्य में अधिक हो, फिर भी एक औरत का सौन्दर्य हमारे लिए एक डायन कुतीया से अधिक नहीं है। जैसे एक झरना अपने संगीतमय बुल-बुलों के साथ हंसता हुआ बहता है। जो हमारे लिए दूसरे दरवाजे के समान है, जैसे एक जंगली तालाब अपने शान्त छाया से भरा हो। जो हमें अपनी जाल में फंसा लेता है। औरत यमदूत की तरह से अपने अमृतमई बालों में बांध कर, जबकि दूसरे काटें हमारे मनोभावों में चुभते रहते है। जिसमें दर्द भरा होता है, जिसमें ना मातम का ना शोक का फिर भी वह अद्भुत और अगम्य के साथ असहनीय दर्द की चुभन होती है। जो उनकी आंखों के द्वारा विष बुझे वाणों के द्वारा छोड़े जाते है, और औरतें हमें अपनी एक आँख से सूर्य के समान जलाती है, जैसे हम सब गर्मी के महीने में किसी रेगिस्तान में बिना छतरी के नग्न पैरो के भ्रमण करने का अनुभव करते है। जिससे हमारे प्राण संकट में हर समय पड़े रहते। कमजोर बीमार इच्छाओं के साथ आन्तरीक जीवन का ताप तपाता रहता है और दूसरी आंखों से शान्ती दायक आनन्द को वर्षाती है, जिस प्रकार से चंद्रमा का शीतल प्रकाश सुख को देता है। और अपने ओस से भिंगे चुम्बन के द्वारा कपूर के समान हमारे हृदय को जलाता है। यह औरत बैलों के समान हम लोगों को अंकुश से हांकती है। और बिच्छु के समान कुरूप औरत अपने अरों से डंक मारती हैं, हम जैसे हाथी के समान उसके पालतू बन कर रह जाते हैं, और दूसरों के सद्गुणों का सूक्ष्मता के साथ पक्षी की तरह वर्णन करती है। हम उसके प्रलोभनों के जाल में फंस जाते है, लड़कियों की बाँहों में आराम पाने के लिए हम सब उसके सामने मानसिक रूप हाथ जोड़े हुए झुके रहते है। और मधुमक्खियों की तरह उसके चारों तरफ भिनभिनाते रहते हैं। बार-बार मंडरा कर उसके ओठों से मधु को चुसते है, जिस प्रकार से एक सांप अपना लपेटा मार कर कुंडली को जमाता है, उसी प्रकार से हम लड़की की कमर से चिपके रहने के लिए हर पल बेचैन और व्याकुल रहते है। जैसे कोई अत्यधिक व्यग्रता में बेचैन, चिन्तीत यात्री होता है। हम सोते रहते है लम्बे समय तक उसके बक्षस्थलों पर उसे जीवित तकिया समझकर। यह सब सुनते हुए, अचानक कमलमित्र का धैर्य का बांध टूट गया। और वह वहाँ उन मित्रों के पास से बहुत दूर अपनी आकर्षक काल्पनिक संमोहक दुनिया में चला गया। त्रिलोक की सबसे से सुन्दर औरत अपनी पत्नी के साथ अपने भूत और वर्तमान को समेट कर, अथवा जो भी भविष्य में उसके साथ होने वाला है, उसके लिए तैयार हो कर, वे दोनों शरीर के साथ एक हो गये परमेश्वर के प्रेम को समर्पित करके, तब तक जब तक की अनुशायनी की आँखें अकेली उसके शत्रु के समान उसको नहीं दिखने लगी। जैसे वह उसको भस्म कर देना चाहती हो। कमलमित्र ने सोचा ओह! यह अद्भुत आँखें, जिससे वह अतृप्त आंखों के आमन्त्रण को वह महसूस कर रहा था, जिन्होंने ऋषियों को पथ भ्रष्ट करने में सफलता को अर्जित किया था। जिसमें मेनका, तीलोत्तमा, जैसी औरतें थी, यह सब सोच कर वह बहुत बेचैन हो गया, उसको कहीं आराम नहीं मिल रहा था।

 

      इसी विचार में वह अपने मित्र के पास एक दिन गया, फिर उसके मित्र हंसते हुए उसका उपहास करने लगे, और कहा केवल इस तरह से शब्दों के द्वारा अपने बारे में शेखी बघारना किसी काम का नहीं है। सभी मनुष्य सब कुछ कर सकते हैं और हर औरत एक दूसरी रम्भा के समान है। उसके सौन्दर्य के बारे बहुत ज़्यादा शेखी मत बघारो, जमीन पर उतरो, अपनी पत्नी के सामर्थ्य को हमारे सामने ले आवो, और वह अपनी शक्ति को दिखा कर यह सिद्ध करें की वह त्रिलोक में सबसे सुन्दर और शक्तिशाली औरतों में से एक हैं। ऐसा हमारे द्वार बहुत कठिनाई से सुना जाता है। कि पर्वत की चोटी के नीचे घने जंगलों में एक संत रहते हैं। जिनके तप के कारण स्वयं देवता भी परेशान और आतंकित रहते हैं। वह एक अद्वितीय और प्रशंसनीय संत है, यदि तुम्हारी सुन्दर पत्नी के छूने से उनका पत्थर दिल बदल जाये, तब ही हम उसके सौन्दर्य को सत्य मानेंगे, अन्यथा हम तुमको केवल शब्दों की नदी समझेंगे जिसमें अनियन्त्रित शब्द बह रहे है।

 

      और फिर कमलमित्र अपने मित्रों के ताने से चिढ़ कर कसम खाकर चिल्लाते हुए, कहा मूर्खों! अगर मेरी पत्नी उसके संतत्व को बदलने में आसानी से सफल नहीं होती है, जैसे आकाश से पानी घास में जाकर पड़ता है वैसे ही वह संत नहीं बदल गया और वह असफल रहती है, तो मैं अपने सर को काट कर गंगा नदी में बहा दूंगा। फिर उसके मित्र उस पर दोबारा हंसने लगे, और कहा ज़्यादा जल्दी मत करना, क्योंकि एक बार सर कट गया तो फिर नहीं मिलेगा। तुम कोई दशकन्धर नहीं हो की तुम अपने सर को पुनः प्राप्त कर सकते हो।

 

     लेकिन कमलमित्र बहुत जल्दी में वहाँ से अनुश्यनी को प्राप्त के लिए चल दिया। और उसने उसको वहीं कमल पुष्पों के तालाब में पाया। और उसने उसको बताया अपने प्रण के बारे में, और कहा जल्दी करो, हम तत्काल चल कर अभी इसका परीक्षण करेंगे। और तुम्हारी शक्तिशाली आंखों के आकर्षण को सिद्ध करेंगे। जिस पर मेरी अगाध श्रद्धा है, बिना किसी प्रकार की देर किए हुए। क्योंकि मैं तुम्हारे आँख के प्रदर्शन के द्वारा, उस संत की मूर्खता के मूर्ख पूर्ण संदेह को दोषी ठहराता हूँ।

 

      फिर अनुश्यनी ने धिरे से कहा मेरे प्रिय पति, इससे वह संत क्रोधित हो सकता है। और इस अविवेक पूर्ण निर्णय से, मुझे डर है कि उसके साथ हम बुराई करेंगे, जिससे हम दोनों को उसकी सजा मिल सकती है। समाप्ति के लिए अपराध का पालन करता है, निश्चित रूप से अपने मार्ग से रोहिणी की ऊँची एड़ी पर चलने के रूप में इस दाने के प्रयोग में पाप और खतरे हैं। और अब हमारे लिए यही बेहतर होगा। कि हम इस छेड़-छाड़ की कगार पर न चलें, जिससे हम दोनों अपरिवर्तनीय आपदा में गिर सकते हैं।

 

     लेकिन जैसे ही उसने ऐसी बात की, उसकी आंखें कमलमित्रा पर जा कर ठहर रही थी। और उसकी आंखों ने उसे परेशान कर दिया, और उसके शब्दों को मानने के लिए उसने स्वयं के अन्तर्तम को नष्ट कर दिया। क्योंकि कमलमित्र ने कुछ भी नहीं सुना, जो उसने कहा था, क्योंकि वह जुनून की अंधेपन से भरा था और उसकी सुंदरता के सर्वज्ञता से कभी भी कोई अधिक सुन्दर हो सकता हैं, ऐसा उसका विश्वास नहीं था। और इसलिए, यह देखते हुए कि वह उसे अपनी इच्छा से नहीं बदल सकी, क्योंकि वह अनुशायनी को अपने देवी के रूप पहचानता था, और उसे परमेश्वर की उपज समझता था। यह बात जान कर अनुश्यनी अपने दिल की गहराइयों में वह प्रसन्न हुई। और यह पता लगाने के लिए कि वह उसे विचलित कर सकती है या नहीं। क्योंकि वह जिज्ञासा से भरी थी; यह देखने के लिए कि सच्चाई में उसकी सुंदरता तपस्या पर प्रबल होगी, हालांकि वह परिणामों के लिए थरथरा रही थी। हाँ, जहाँ मैं पागल हाथी की तरह सौंदर्य और जिज्ञासा और युवा और आत्म-इच्छा और नशा के साथ गठबंधन कर लिया है, जिसमें आत्म-नियंत्रण का सूती धागा नहीं है।

 

      तब उन दो प्रेमियों ने एक दूसरे के लिए अलग-अलग चुम्बन किए, जैसे यात्रियों को एक वर्ष के लिए अलग कर दिया गया हो। और फिर भी वे नहीं जानते थे, कि वे आखिरी बार ऐसा कर रहे थे। और फिर वे पुराने तपस्वी को खोजने के लिए जंगल में एक साथ गए। और जब तक वे उस घने जंगल में उसके अन्दर दिल में घुसने तक मानव रूप में प्यार के तीरों की एक जोड़ी की तरह हाथ से हाथ में डाल कर घूमते रहे। और अचानक वे उस पुराने ऋषि पास आगए। और उसे खड़े देखा, जो ध्यान में मग्न था। एक पेड़ के रूप में गतिहीन और उसके चारों ओर, चींटियों और दीमकों ने अपनी पहाड़ियों का निर्माण किया था। और उसकी दाढ़ी और बाल उसके सिर से निकल हुए थे। जैसे कि रेंगने वाले प्राणी को होते हैं, जो जमीन पर नीचे तक फैले हुए थे। और पत्तियों से ढके हुए थे, और उसके सूखे अंगों पर छिपकलियों की एक जोड़ी खेल रही थी। जीवित पन्ना कि तरह और उसने सीधे उसके सामने से देखा, उसकी महान आंखों में एक टक जिसमें सब कुछ प्रतिबिंबित हो रहा था। लेकिन उसे उसकी आंखों में कुछ भी नहीं दिखा। अर्थात उसकी आँखों में उसे आत्मा की झलक नहीं मिली, जो स्पष्ट और अचूक के साथ अभी भी स्थिर थी, जबकि वह आँखें पहाड़ी झरने की तरह गतिहीन थी, जिसमें की सभी मछलियाँ सो रही हैं।

 

     इसको कमलमित्र और अनुश्यनी ने चुपचाप थोड़ी देर तक एक दूसरे को अनजाने भय के साथ देखा, और फिर एक दूसरे के साथ वह थरथराते रहें, क्योंकि वे जानते थे कि वे अपनी आत्माओं को दबा रहे थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने अंदर मनोभावों की लहर को उठते हुए पाया। और कमल मित्र को अपने दोस्त के उपहास का विचार करते हुए उसके मन में आया जिससे कमलमित्र का दिमाग वापस अपने निर्णय पर स्थिर हो गया। अर्थात उसने अपनी पत्नी को क्रोध से भर दिया और उसने अनुशायनी से कहा, आगे बढ़ो और इस वृद्ध मुनि को तुम देखती रहो, और मैं इसके द्वारा आने वाले परिणाम को चिह्नित करूंगा।

 

      इसलिए अनुशायनी आगे बढ़ी, अपने पति के आदेश का पालन कर करने कि लिए। तब तक वह धिरे-धिरे पत्तियों के ऊपर उनको कुचलते हुए आगे बढ़ती रही। और जब तक की जब तक वह ऋषि के सामने नहीं पहुंच गई। और जब उसने देखा कि वह संत बिल्कुल हिल नहीं रहा था। तो उसने खुद को उसकी आंखों में देखने के लिए अपने आपको अपने एड़ियो पर उठाया। और खुद से कहा: शायद यह संत मर चुका है। और उसने उसकी आंखों में देखा और वहाँ उसकी आंखों में अपनी दो छवियों को सिवाय कुछ नहीं दिख रहा था। कठोरता के दो अवतारों की तरह, ऐसा लगता था कि वे सावधान हो रहें थे! और जब वह वहाँ खड़ी थी, अनिश्चितता के झुकाव में थरथराते हुए, कमलमित्र ने उसे उत्साह से देखा और खुद अन्दर ही अन्दर हँसते हुए। और कहा निश्चित रूप से यह वृद्ध मुनि अब जीवित नहीं है। अन्यथा वह उसकी आंखों के दरवाजे के माध्यम से संत की आत्मा तक पहुंच जाती। क्योंकि अनुश्यनी इस समय नीचे की दुनिया में सबसे शक्ति शाली और दिव्य औरत है।

 

       इसलिए जब वे वहाँ खड़े थे, धीरे-धीरे, वह ऋषि-ऋषि खुद समाधि से बाहर आ गया। क्योंकि उसने महसूस किया कि उसके ध्यान में किसी बाहरी अन्य चीज़ से विघ्न पड़ रहा था। और उसने अपनी आंखों को खोल कर देखा, और अपने सामने अनुश्यनी को खड़ा पाया। जो दिन के प्रकाश में करीब नए चंद्रमा की तरह से दिख रही थी। उत्तम सौंदर्य कामुकता के शुद्ध रूप में, एक चमकदार नीलम के समान बिना किसी दोष के, स्वर्ग के दिव्य रंगों के साथ गुलाबी अधरों पर मुस्कान के साथ। और तुरन्त, अपने स्वयं के रहस्यमय ध्यान की शक्ति से, उन्होंने पूरे सत्य और उस मामले की सटीक स्थिति को जान कर उसको परिभाषित कर लिया।

 

       और अनुश्यनी उस तरह की दिव्य सुंदर आत्मा पर एक नज़र डाला, एक हिरण के रूप में दुःखी हो कर अपने शत्रु रुपी हत्यारे प्राणी को देखकर क्योंकि वह समझ चुकी थी कि उससे अपराध हो चुका है और तपस्वी क्रोधित हो चुका हैं जिससे वह उन दोनों को श्राप दे सकता है। फिर भी एक गरज के रूप में भयानक आतंक उसके आत्मा में प्रवाहित हो गया। जिसके वह तुरंत अपने साहस के साथ अपनी आत्मा से यह भाव भगा दिया। जिसके बाद भी उसको घुटनों से ताकत गायब हो गई। और वह कमल के सिर के समान जमीन पर गीर गई, जैसे कमल टूटा हवा के झोंके से जमीन पर गिरता है।

 

     लेकिन कमलमित्र आगे बढ़ कर उसको थाम कर, उसे अपनी बाँहों में पकड़ लिया। फिर जब वे एक साथ खड़े हुए, तो वृद्ध तपस्वी ने उनको श्राप देते हुए, धीरे कहा अपमानजनक प्रेमियों, अब वह सुंदरता जो इस विद्रोह को कभी भी उचित इनाम के साथ मिलती है। अब तुम दोषी हो, मरे हुए गर्भ में जन्म लोगों और निचले दुनिया में अलग होने की पीड़ा से पीड़ित होगे, जब तक कि तुम मानव दुःख की आग में अपने अपराध को दूर नहीं कर लेते।

 

     फिर अलगाव के श्राप को सुनने के बाद, अगाध दुःख से भर कर वह दोनों एकान्त बीहड़ जंगल में उस संत के चरणों में गीर पड़े। और उनसे विनती करते हुए कहा, कृपया आप श्राप को कुछ कम करें, हमारे श्राप की सीमा को निश्चित करें। और फिर संत ने कहा कि इस श्राप का तभी अंत होगा, जब तुम दोनों में से कोई एक किसी एक की हत्या कर देगा।

 

      फिर वह दोनों अप्रसन्न प्रेमी एक दूसरे को मौन में अदृश्य आत्मा में देखा। फिर उन दोनों ने एक दूसरों की आंखों की गहराई से परिपक्व संतुष्टि को सोखते हुए देखते रहें एक प्यासी आत्मा का तरह से, जैसे वह दोनों कोई पवित्र तीर्थ स्थान पर यात्रा करने के लिए जा रहे हैं। जो एक दूसरे से अलग हो कर एक भयंकर समन्दर के दो किनारों पर विद्यमान है। और कह रहे है कि वह दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं। और हमें हमेशा अपनी आत्मा से याद करेंगे। फिर अचानक वे दोनों अदृश्य हो गये, बिजली की चमक के साथ किसी दूसरे लोक के लिए।

 

     लेकिन भगवान महेश्वर जब अपने आसन पर बैठ कर उनको जाते हुए देखा, उनके भविष्य में उदय होने वाले दुर्भाग्य को, और उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से यह जान लिया। जो भी उन दो प्रेमियों के साथ आगे होने वाला था। और उनको अपना दिया गया वरदान याद आया। जो उन्होंने वायु के समान आत्मा वाले पुरुष नर कमलमीत्र को दिया था। और उन्होंने अपने आप से कहा कि अब जिसे मैं भविष्य के रूप में देख रहा था। वह वर्तमान में घटने वाला है। और अनुश्यनी की दिव्य आंखों ने अपना अद्भुत माह विपत्ति रुपी अनर्थ को उत्पन्न कर दिया हैं। लेकिन मैं उसकी अद्भुत और अलौकिक शरीर को ऐसे ही भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ सकता हूँ, क्योंकि उसके पास मेरी दिव्य शक्तियों का कुछ भाग है।

 

     और कमलमीत्र ने यह सब होने के बाद, बहुत अधिक किसी दूसरे के ऊपर दोषों का आरोपण नहीं किया, क्योंकि वह परमेश्वर के द्वारा दिये गये वरदान को पाकर बहुत अधिक बेचैन और घबरा गया था। जो उस औरत की आंखों में दिखाई दे रहा था।

 

      भगवान शिव अपने आपको उसका अपराधी समझ रहे थे, अन्यथा कौन जिम्मेदार है? इस घटना का, इसलिये भगवान शिव ने उन दो प्रेमियों को बिछड़ने के बाद उनकी देख भाल की जिम्मेदारी को वहन करने का फैसला किया। और अपने मन में कहा कि मैं अपने मन को उनके साथ हुई विलक्षण साहसिक घटनाओं से आनंदित करूंगा।

 

     इस तरह से भगवान शिव ने काफी विचार मंथन चिन्तन करने के बाद, योगीओं के गुरु ने एक कमल पुष्प लिया और इसको उन्होंने पृथ्वी पर समन्दर से थोड़ी दूरी पर रख दिया। जो एक द्वीप में परिवर्तित हो गया। जिसमें भगवान शिव ने अपनी जादुई शक्तियों से पृथ्वी जैसी प्रकृति से अलौकिक स्वर्ग को रचा। अपने आप को जानने के लिए और भविष्य को समझने के लिए। जिसका नाम सूर्य की कमल भूमि रखा।

 

     लेकिन वृद्ध योगी जिसका नाम पापनाशना था। जब दो युगल प्रेमी वहाँ से अदृश्य हो गये। तो वह अकेला ही जंगल में अपनी योग साधना में पुनः लीन हो गया। और उसकी आंखों में अब तक उन दो प्रेमियों की तस्वीरें झलक रही थी। जो धिरे-धिरे उसके मन में धुंधली पड़ती जा रही थी जैसे। बादलों की परछाई एक बड़े झील के पानी पर यात्रा करती है। और जिसे झील का पानी धिरे भूल जाता है। और कुछ पल में सब कुछ गायब हो जाता है।

 

सूर्य के वंशज (एक प्रेम कथा) Part-2

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