👉 जैसा बीज वैसा फल
🔶 अफ्रीका के दयार नोवा नगर में जगत प्रसिद्ध
हकीम लुकमान का जन्म हुआ था। हब्शी परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें गुलामों की
तरह जीवन बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मिश्र देश के एक अमीर ने तीस रुपयों में
अपनी गुलामी करने के लिए लुकमान को खरीद लिया ओर उनसे खेती बाड़ी का काम लेने लगा।
🔷 यह अमीर बड़ा क्रूर और निर्दयी था वह जरा सी
बात पर अपने गुलामों को बहुत सताता था। किन्तु बाहर से उसने धर्म का बड़ा आडम्बर रच
रखा था। दिखाने के लिए वह ईश्वर की रट लगाता और खूब धर्म शास्त्र सुनता ताकि लोग
उसे बड़ा धर्मात्मा समझें। अमीर का ख्याल था कि धार्मिक कर्मकाण्डों को करके ही
मैं स्वर्ग का अधिकारी हो जाऊंगा।
🔶 एक बार मालिक ने हुक्म किया कि अमुक खेत में
जाकर जौ बो आओ लुकमान उस खेत में गये और चने बो आये जब खेत उगा और मालिक ने चने के
पौधे खड़े देखे तो वह बहुत नाराज हुआ और लुकमान से पूछा कि मैंने तो तुझे जौ बोने
के लिये कहा था। तूने चने क्यों बो दिये लुकमान ने शिर झुकाकर नम्रता से कहा मालिक
मैंने यह समझ कर चने बोये थे कि इसके बदले जौ उपजेंगे।
🔷 मालिक का पारा बहुत गरम हो गया। उसने गरज
कर कहा- ‘मूर्ख कहीं दुनिया भर में आज तक ऐसा हुआ है कि चने बोये जायं और जौ उपजें?’
🔶 लुकमान और नम्र हो गये उन्होंने मन्द स्वर
में कहा- ‘मालिक मेरा कसूर माफ हो। मैं देखता हूँ कि आप दया के खेत में हमेशा पाप के
बीज बोते हैं और सोचते हैं कि ईश्वर मुझे अच्छे फल देगा। इसलिए मैंने भी सोचा कि
जब ईश्वर के खेतों में पाप बोने पर भी पुण्य फल मिल सकते हैं, तो
मेरे चने बोने पर जौ भी पैदा हो सकते हैं।”
🔷 अमीर के दिल में लुकमान की बात तीर की तरह
गई उसने निश्चय किया कि अब मैं अपना आचरण करूंगा और शुभ कर्म करने में दत्त चित्त
रहूँगा,
क्योंकि बिना पुण्य फल प्राप्त नहीं हो सकता। अमीर को धन के उपदेश
से बहुत शिक्षा मिली उसने उन्हें पूर्वक गुलामी से मुक्त कर दिया।
📖 अखण्ड ज्योति से
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know