तंत्र-सूत्र-विधि-02
जब श्वास नीचे से उपर की और मुडती है, और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की और मुड़ती है-इन दो मोड़ों के द्वारा उपलब्ध हो।
थोड़े फर्क के साथ यह वही विधि और अब अंतराल पर न हो कर मोड़ पर बाहर जाने वाली, और अंदर जाने वाली श्वास एक वर्तुल बनाती है। याद रहे, वे समांतर रेखाओं की तरह नहीं है। हम सदा सोचते है कि आने वाली श्वास और जाने वाली श्वास दो समांतर रेखाओं की तरह है। मगर वे ऐसी है नहीं। भीतर आने वाली श्वास आघा वर्तल बनाती है। और शेष आधा वर्तुल बाहर जाने वाली श्वास बनाती है। इसलिए पहले यह समझो कि श्वास और प्रश्वास मिलकर एक बर्तुल बनाती है। और वे समांतर रेखाएं नहीं है। क्योंकि समांतर रेखाएं कही नहीं मिलती है। दूसरी यह कि आने वाली और जाने वाली श्वास दो नहीं है। वे एक है। वही श्वास भीतर आती है, वहीं बाहर जाती है। इसलिए भीतर उसका कोई मोड़ अवश्य होगा। वह कही जरूर मुड़ती होगी। कोई बिंदु होगा, जहां आने वाली श्वास जाने वाली श्वास बन जाती होगी।
लेकिन मोड पर इतना जोर क्यों है?
क्योंकि शिव कहते है. जब श्वास नीचे से ऊपर की और मुड़ती है, और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की और मुड़ती है-इन दो मोड़ों द्वारा उपलब्ध हो।
बहुत सरल है। लेकिन शिव कहते हैं कि मोड़ों को प्राप्त कर लो। और आत्मा को उपलब्ध हो जाओगी। लेकिन मोड़ क्यों?
अगर तुम कार चलाना जानते हो, तो तुम्हें गियर का पता होगा। हर गियर बदलते समय तुम्हें न्युटल गियर से गुजरना पड़ता है जो कि गियर बिल्कुल नहीं है। तुम पहले गियर से दूसरे गियर में जाते हो और दूसरे से तीसरे गियर में। लेकिन सदा तुम्हें न्यूटल गियर से होकर जाना पड़ता है। यह न्यूटल गियर घुमाव का बिंदु है। मोड़ है। उस मोड़ पर पहला गियर दूसरा गियर बन जाता है। और दूसरा तीसरा बन जाता है।
वैसे ही जब तुम्हारी स्वास भीतर जाती है और घूमने लगती है, तो उस वक्त वह न्यूटल गियर में होती है। नहीं तो वह घुम नहीं सकती है। उसे तटस्थ क्षेत्र से गुजरना पड़ता है।
उस तटस्थ क्षेत्र में तुम न तो शरीर हो और न मन ही हो; न शारीरिक हो, न मानसिक हो। क्योंकि शरीर तुम्हारे अस्तित्व का एक गियर है और मन उसका दूसरा गियर है। तुम एक गियर से दूसरे गियर में गति करते हो, इस लिए तुम्हें एक न्यूटल गियर की जरूरत है। जो न शरीर हो और न मन हो। उस तटस्थ क्षेत्र में तुम मात्र हो, मार अस्तित्व-शुद्ध, सरल, अशरीरी और मन से मुक्त यही कारण है कि घुमाव बिंदु पर, मोड़ पर इतना जोर है।
मनुष्य एक यंत्र है बड़ा और बहुत जटिल यंत्र। तुम्हारे शरीर और मन में भी अनेक गियर है। तुम्हें उस महान संरचना का बोध नहीं है। लेकिन तुम एक महान यंत्र हो। और अच्छा है कि तुम्हें उसका बोध नहीं है। अन्यथा तुम पागल हो जाओगे। शरीर ऐसा वैज्ञानिक यंत्र है, जिसके लिए वैज्ञानिक कहते है, अगर हमें शरीर के समांतर एक कारखाना निर्मित करना पड़े तो उसे चार वर्ग मिल जमीन की जरूरत होगी। और उसका शोरगुल इतना भारी होगा कि उससे सौ वर्ग मील भूमि प्रभावित होगी।
शरीर एक विशाल यांतरिक रचना है- विशालतम उसमे लाखों-लाखों कोशिकाएं हैं, और प्रत्येक कोशिका जीवित है। तुम सात करोड़ कोशिकाओं के एक विशाल नगर में हो: तुम्हारे भीतर सात करोड़ नागरिक बसते है। और सारा नगर बहुत शांति और व्यवस्था से चल रहा है। प्रतिक्षण यंत्र-रचना काम कर रही है। और यह बहुत जटिल है।
कई स्थानों पर इन विधियों का तुम्हारे शरीर और मन की एक यंत्र-रचना के साथ वास्ता पड़ेगा। लेकिन याद रखो, कि सदा ही जोर उन बिंदो पर रहेगा जहां तुम अचानक यंत्र -रचना के अंग नहीं रह जाते हो। जब एका-एक तुम यंत्र-रचना के अंग नहीं रहे, तो यहीं क्षण है, जब तुम गियर बदलते हो।
उदाहरण के लिए, रात जब तुम नींद में उतरते हो, तो तुम्हें गियर बदलना पड़ता है। कारण यह है कि दिन में जागी हुई चेतना के लिए, दूसरे ढंग की यंत्र-रचना की जरूरत रहती है। तब मन का भी एक दूसरा भाग काम करता है। और जब तुम नींद में उतरते हो. तो वह भाग निष्क्रिय हो जाता है। और अन्य भाग सक्रिय होता है। उस क्षण यहां एक अंतराल, एक मोड़ आता है। एक गियर बदला है। फिर सुबह जब तुम जागते हो तो गियर बदलता है।
तुम चुपचाप बैठे हो, और अचानक कोई कुछ कह देता है, और तुम क्रुद्ध हो जाते हो। तब तुम भिन्न गियर में चले गए। यही कारण है कि सब कुछ बदल जाता है। तुम क्रोध में हुए श्वास क्रिया बदल जायेगी। वह अस्तव्यस्त हो जायेगी। तुम्हारी श्वास क्रिया में कंपन आ जाएगा। किसी चीज को चूर-चूर कर देना चाहेगा, ताकि यह घुटन जाए। तुम्हारी श्वास क्रिया बदल जाएगी, तुम्हारे खून की लय दूसरी होगी। शरीर में और ही तरह का रस द्रव्य सक्रिय होगा। पूरी गधि व्यवस्था ही बदल जाएगी। क्रोध में तुम दूसरे ही आदमी हो जाते हो।
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