ओशो शब्द का क्या अर्थ है, Why did Lord Rajneesh used the word Osho for his name
ओशो शब्द का क्या अर्थ है
ओशो ने अपने जीवनकाल के अंतिम क्षणों में यह शब्द अपने लिए, नाम के रूप में चुना। यह शब्द अंग्रेजी के एक कवि william james की कविता ‘ओशनिक एक्सपेरिएंस ‘ से लिया गया है ।
ओशनिक एक्सपेरिंस यानि सागरीय अनुभव, समुन्द्र जैसे विराट होने का अनुभव। जब कोइ बूँद सागर में मिल जाती है तो वह स्वयं ही सागर स्वरुप हो जाती है, अलग नहीं बचती।
ऐसे ही जब हमारी जीवात्मा परमात्मा के साथ, विराट ब्रम्हा के साथ लौ-लीन होकर एक हो जाती है। तब आत्मा नहीं बचती है बस परमात्मा ही बचता है। बूँद सामप्त, केवल सागर शेष। ऐसा ओशनिक एक्सपेरिएंस, सागरीय अनुभव जिसे हुआ उसे’ ओशो कहते हैं ।
ओशो ने एक नया शब्द गड़ा अपने लिए। यह इस बात का प्रतिक है की ‘ओशो’ किसी पुरानी परंपरा, किसी रूढ़ि के हिस्से नहीं है। वे एक नई परंपरा की शुरुआत है। इस नए शब्द के संग एक नई परंपरा शुरू होती है ।
कबीर के शब्दों में इस बात को समझें तो आसानी होगी । आपने सुना होगा कबीर का यह प्रीतिकर वचन –
हेरत हेरत हे सखी, रम्हा कबीर हिराय ।
बूँद समानी समुन्द में, सो कत हेरी जाय ।।
वे कहते हैं, खोजते-खोजते कबीर स्वयं खो गया। जैसे बूँद सागर में गिरी अब कहाँ बूँद मिलेगी ? कौन बूँद, कहाँ की बूँद ! सागर ही बचा, बूँद खो गई । बूँद समानी समुन्द में सो कत हेरी जाय। अब कहाँ बूँद को खोजे ? उसकी कोई identity नहीं बची ।
तो ‘ओशो’ शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जो विराट ब्रम्हा के साथ एकाकार हो गया। उपनिषद में एक अति-महत्वपूर्ण वाक्य है की ब्रम्हा को जानने वाला स्वयं ब्रम्हा हो जाता है। – Osho shailendra
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