आखिर कब तक हम दूसरों की आखों का उपयोग कर के चलते रहेंगे, हमें अपनी आँखें भी तो मिली हैं, इसका हम कब उपयोग करेंगे, जीवन उसी तरह से खत्म हो रहा है, जैसे मुट्ठी में से रेत धीरे -धीरे खाली हो जाती है, उसी प्रकार से यह जीवन भी अपने हाथ
से निकलता जा रहा है, और हम हैं कि दूसरों के बताए गए सुझाव से और सिद्धांत से अपने जीवन की
समस्या का समाधान तलाशते हैं, जिसका समाधान कभी नहीं होता है।
हम जितना अधिक प्रयास समस्या से निकलने के लिए करते हैं, जीवन की समस्या उसी प्रकार से दीन प्रति दीन और बीकराल होती जाती हैं, हम अपनी समस्या का समाधान आखीर कब तक किसी दूसरों से पुछते रहेंगें, आखिर कब हम अपने जीवन की सारी समस्या का समाधान कर पाएगे, क्या यह केवल कपोल कल्पना ही है? की हम अपने जीवन की समस्या का समाधान कर लेगें, जब की यथार्थ हमारा यहीं सीद्ध करता है, की हम ने अभी तक अपने जीवन की समस्या का समाधान तो नहीं किया है, यद्यपि अपने जीवन को चारों तरफ से समस्याओं से घेर दिया है। जिस प्रकार से हम अपने फसल को आवारा जानवरों से बचाने के लिए बाड़ लगा देते हैं। उसी प्रकार से हमने अपने चारों तरफ अपनी मान्यता समझ सिद्धांत विचारों की बाड़ को बना रखा है। जिससे हमारी शरीर सुरक्षित रहें, लेकिन हमें इसका ज्ञान नही होता हैं, की इससे अपनी आत्मा का असुरक्षित हो जाती हैं
ऐसा क्यों हैं? जहां तक मैं समझता हूं की हमें अपने जीवन की समस्या का समाधान करने की जो
काबलियत है, उसको
अर्जित नहीं कर पाए हैं, या फिर हमारे पास काबलीयत है, और सामर्थ्य भी है फिर भी हम ने स्वयं को दूसरों से अपनी
समस्या का समाधान पाने की कामना करते रहते हैं, और निरंतर स्वयं को अंधेरे में रखते हैं, और स्वयं पर विश्वास नहीं करते हैं, हमारा आत्मविश्वास कमजोर होता है, हमारे आत्मबल की उपयोगिता हमें
ज्ञात नहीं होती है, जिसके
कारण ही हम अकसर दूसरों वीचारकों और उनके बताए सिद्धांत का अपने जीवन में अनुसरण
करते हैं, जिससे हम
स्वयं को उलझा देते हैं, क्योंकि किसी भी विचारक का समाधान कभी भी काल जई नहीं होता है, और वह सभी मनुष्यों पर एक समान लागु भी नहीं
होता, क्योंकि देश काल
और समय की अर्थात सब की परिस्थिति अलग - अलग होती है।
हम समाधान तो करना चाहते हैं, लेकिन कर
नहीं पाते हैं, और बार –बार और अधिक प्रयाश करते हैं उस समस्या से बाहर निकलने
वास्तव में जिस समस्या को हमने ही जन्म दिया है। क्योंकि हम अपने तरीके से अपने
जीवन की सरल और कठीन से कठीन समस्या का समाधान कर सकते हैं, यहीं हमारे सभी
शास्त्र और श्रेष्ठ सिद्धांतवादी दार्शनीक मनीषि जन कहते हुए आए हैं, लेकिन हम हैं,
कि हमेशा उनकी कही हुई बातों का ही अनुसरण करते हैं, अपनी बुद्धि का कभी भी उपयोग नहीं
करते हैं, जिसके कारण हमें अपने जीवन में आशा जनक सफलता नहीं मीलती है, और हम अपने
आपको को कोशते हैं, और अपने भाग्य और नशीब को दोषी ठहराते हैं, कहते हैं, की हमारा
तो भाग्य ही खराब है, हमारी नसीब ही खराब है, अब मैं क्या कर सकता हूं, ईश्वर ही
हमारे पक्ष में नहीं हैं, या फिर यही ईश्वर की इच्छा है। इत्यादि तरह तरह के बहाने
हम सभी निरंतर बनाते रहते हैं, इसके बजाय अपनी कमियों को दूर नहीं करते हैं, और
अपनी आदतों को नहीं बदलते हैं, अपने आलश्य का त्याग नहीं करते हैं, परिश्रम से जी
चुराते हैं, छोटी सी समस्या आने पर हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है, हमारा स्वयं
का आत्मबल कमजोर हो जाता है।
जिसके कारण हम अपने अच्छे खासे मन और
मस्तिष्क के साथ अपने पुरे सामर्थ्य और पराक्रम को नकारात्मक विचार के चिंतन में
लगा देते हैं, और अपनी अतित की असफलताओं का बार – बार चिंतन करते हैं, और उन्ही को
अपने भाग्य मान कर हाथ पर हाथ रख कर निराशा के घने बादलों के मध्य में अपने जीवन
को तबाह करते रहते हैं, और कहते हैं, की मैं क्या करू यह कार्य मुझसे नहीं होता
है, मैं कमजोर और मूर्ख हूं, लोग जो अपने जीवन में सफल होते हैं, वह हमसे कहीं
अधिक बुद्धिमान और चालाक है, मैं ठहरा भोंदू, यह सब कुछ हम अपने बारे में कपोल
कल्पित झुठी मान्यताओं को गढ़ लेते हैं। जिसके कारण जो शक्ति हमें सफलता के परम
शिखर तक पहुंचा सकती थी वहीं शक्ति हमारे विनाश का कारण अथवा हमें गर्त में ले
जाने का साधन बन जाती है।
हमें अपनी इस आदत या स्वभाव को बदलना
होगा, किसी प्रकार के नकारात्मक विचार को अपने ऊपर हाबी नहीं होने देना है, हमेशा
आशा और उत्साह के साथ निरंतर एक एक कदम अपनी मंजील पर आगे बढ़ते रहने के लिए सतत
प्रयाश के साथ पाराक्रम को करते रहना चाहिए।
हम जिस समाज में रहते हैं, कहने को लोग
शिक्षित हैं, लेकिन उनके आचरण का परिक्षण करने से पता चलता है, की सब के सब भयानक
किस्म के गंवार है, इनको हम पढ़ा लिखा समझदार, धनी, मान, मर्याद वाले, इज्जतदार
सम्माननीय गंवार कह सकते हैं।
क्योंकि आज मैंने देखा की लोग कह रहें हैं, कि
कुछ दिन पहले सूर्य ग्रहण लगा था, आज चंद्र ग्रहण लगा है, इसका प्रभाव कुछ लोगों
के जीवन पर बहुत अच्छा पड़ने वाला है, कुछ लोगों कुछ विशेष राशी वाले लोगों को
बहुत अधिक धन यश और किर्ति को प्राप्त करने का अवसर उपलब्ध होगा, दूसरी तरफ कुछ
लोगों को इससे नुकसान भी होगा, निराशा चिंता अवशाद, युद्ध जैसी समस्या विश्व में आ
सकती है।
यह लोग जो फलित ज्योतिषि का धन्धा चलाते हैं, वह
सब लोगों को ग्रह नक्षत्र का भय उतपन्न करके अपना उल्लू सीधा करते हैं, इसका कोई
वैज्ञानिक कारण नहीं हैं, फिर भी अधिकतर लोग इसको मानते हैं, कुछ लोग खाना
नहीं बनाते हैं, ना खाते हैं, कुछ लोग मंदिर का दरवाजा बंद कर देते हैं। इत्यादि
प्रकार के पाखंड करते हैं, क्योंकि लोग भयभित हैं, क्योंकि उनको अपने अज्ञान पर
किसी प्रकार की शंका नहीं हैं, वह अपने ज्ञान पर हमेशा शंकित रहते हैं।
जब आप किसी प्रकार का सही व्यापार पेशा व्यवसाय
नौकरी नहीं करेंगे, तो आपको धन कहां से लाभ होगा, आप को क्षल कपट और पांखंड का
तांडव करने की कला नहीं आती है, आप रहीश सीधे सादे आदमी हैं, आपको लोग उल्लू
बनाते हैं। आपको स्वयं अपना मालिक बनना होगा और तथाकथित इन पाखंडियों से सावधान
रहना होगा, जो आपका भविष्य बनाने का वादा करते हैं।
जो आप को जीवन को जीने की कला सीखाते हैं, क्या आपको जीना नहीं आता है, यदि आपको जीन नहीं आता है, तो आपको जीने की कला को सीखना चाहिए, और यह कला आपको आपका स्वयं का जीवन और उसका अनुभव ही सिखाएगा। इसके लिए किसी को किसी भी प्रकार से गुरू बनाने की जरूरत नहीं हैं, लोगो का काम हैं कि वह आपका फायदा कराने का वादा करके स्वयं का फायदा करते हैं, और आपको हमेशा घाटे का ही सौदा करना पड़ता है। क्योंकि बड़े धोखे हैं इस संसार में हमने भी बहुत धोके खाए हैं, जिसके कारण हमारा तो लोगों के ऊपर से विश्वास ही उठ चुका है।
फायदे का सौदा क्या है, आज ही नहीं हमेशा से जब से यह दूनीया है, अनादि काल से लोग धन की भाषा समझते हैं, और आप भी धन की भाषा ही समझते हैं, धन से ही आपको इस संसार में सारा संबंध और मान मर्यादा सम्मान और हर प्रकार का ठाठ बाट उपलब्ध होने प्रावधान प्रस्तुत किया जाता है, और ऐसा ही हैं, यह बिल्कुल सत्य नहीं है, धनी व्यक्ति जो हैं, क्या उनके जीवन की सभी समस्या का समाधान हो चुका है, ऐसा आप समझ सकते हैं, कि नीश्चित उनके जीवन की सभी भौतिक समस्या का समाधान हो चुका है, लेकिन उनके पास और भी बहुत प्रकार की समस्या है, जिसके समाधान के लिए निरंतर वह सब भी प्रयाश रत होकर पुर्षाथ करते रहते हैं, ना उनको दीन की खबर हैं, और ना रात की वह आजीवन अपने कार्य के विस्तार में मग्न रहते हैं। इस का कार्य करने की मग्नता को आप अक छोटे जंगली पक्षी से सिख सकते हैं, कि कैसे वह तीनके- तीनके को अपने लिए सुन्दर और अद्भुत घोसला बनाती है।
आपको भी अपने कार्य में मग्न होने की
कला को सीखना होगा, वह कोई भी कार्य क्यों ना हो, आपको अपनी कला में आनंद को
तलाशान हैं, आप जो भी कार्य करते हैं, उस कार्य को जितना अधीक सुन्दर तरीके से कर
सकते करें, क्योंकि यहीं आपका कार्य ही इस संसार में आपको अमर करने वाला हैं। आपको
अपना (जेन्युन) कार्य करना होगा। वह किसी प्रकार की कापी नकल या किसी दूसरे का ना
हो, यदि वह कापी या नकल अथवा दूसरे के समान होगा, तो आपको वह सम्मान नहीं मिलेगा।
वास्तव जिसके आप हकदार हैं, आपको अपने हक की जमीन अपने हक का आसमान और अपने हक की
हवा-पानी अन्न इत्यादि को प्राप्त करना हैं, आपको अपने अधिकार के लिए इस संसार से
संग्राम करना होगा, और यह संग्राम आपको अपने कार्य में नीपुणता को हाशील करने के
लिए करना होगा। क्योंकि जब तक आप अपने कार्य में कुशल, नीपुण, और पारंगत नहीं होगे,
तब तक उस क्षेत्र के जो पारंगत कुशल और विशेषज्ञ लोग हैं वह आपको आगे बढ़ने नहीं
देंगे, वह सभी परोक्ष रूप से आपको समाप्त करने के लिए, हर प्रकार की रूकावट को खड़ी
करेंगे। क्योंकि संसार में हर वस्तु बीक रही है, और उसकी कीमत है, यदि आपको संसार
वह वस्तु चाहिए, तो उसके लिए आपको उसकी कीमत तो चुकानी ही होगी। यहां मुफ्त केवल दुःख
पीड़ा अशांति और जलालत अपमान मीलता है।
आपको अमीर होने के लिए कार्य नहीं करना हैं, और यदि कार्य नहीं करेंगें
तो आप अवश्य गरीबी के रसातल में चले जाएंगे, आपको अपने आनंद के लिए कार्य करना
होगा, आनंद धन में नहीं हैं, आनंद धन को कमाने में हैं, और धन के खर्च करने में
हैं, धन कमाने के लिए उस रास्ते को खोलना होगा जिस रास्ते से धन आता है, और वह
रास्ता है, आपका कार्य आपकी कला आपको कौशल आपका नीर्वाण आपका आविष्कार है। जिसको
प्राप्त करने के लिए संसार वह वस्तु वह कलाकृति वह ज्ञान जिसको आपने अर्जित किया
खरीदने के लिए आपको आपसे प्राप्त करने के लिए बदले में धन देगी।
यहां संसार में सारा सांसारिक प्रपंच यहां का कार्य व्यवसाय अदला बदली का हो रहा है, यदि आप संसार में कुछ भी पाना
चाहते हैं, तो पहले आपको देने के लिए तैयार होना होगा। गीव ऐण्ड टेक का सिद्धांत, यहां संसार में बहुत पुराना समय से चला आ रहा है। और आपको इस सिद्धांत को (फालो) अर्थात अनुसरण करना होगा। आपको
स्वयं को एक आविष्कारक बनाना होगा, और यह सामर्थ आप में हैं, समस्या आपको नहीं घेर
सकती हैं, आप अपने जीवन की सभी प्रकार कठीनाइयों दिक्कतों और समस्ययों को घेर सकते
हैं। और उन सभी समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
इसके लिए पहला सूत्र की आपको स्वयं पर विश्वास करना होगा, सिर्फ साधारण या जीवन के सामन्य वक्त में नहीं, यद्यपि अपने नीराशा, असफलता, वीपत्तियों के समय में भी आपको धैर्य के साथ
आगे बढ़ने की कला को वीकसित करनी होगी, चारों तरफ से नीराशा और अंधकार के बादल
छाते रहें, घनघोर अंधकार होगा, कही से जब कोई आशा की कीरण नहीं दिखाई दे रहीं तो
आपको अपने आत्मा की ज्योति को जला कर रखना है। और उसी के बताए गए मार्ग का अनुसरण
करते हुए आपको आगे बढ़ना है।
थोड़े ही समय में आप पाएंगे की आप उस काल के समान अंधरी काल रात्रि से
बाहर नीकल चुके हैं, सुबह की सोंधी सोंधीं गुनगुनी धुप सूर्य का प्रकाश आपके जीवन
में फैलने लगी है।
आपको अपने लिए इस संसार में जीना होगा, अपने शत्रुओं को समाप्त करना
होगा, जो अंधकार और अज्ञान को पोषक है, सीर्फ जीना ही नहीं हैं, यद्यपि अपने आपको
इस संसार में स्थापित करना होगा, आपको स्वयं को इस संसार में कभी भी मरने नहीं
देना है आपको अमर होने की साधना करनी होगी। और यह साधना कोई दूसरी नहीं है, वह आपकी जानी
पहचानी साधना है, वह आपका अपना मनपसंद कार्य है, जिस आप हमेशा से करना चाहते हैं,
उसे और सुन्दर तरीके से करीए, सिर्फ सुन्दर ही नहीं सुन्दरता का जो शीखर है, वहां से
उस कार्य को करें, क्योंकि किसी भी आविष्कारक का आवीष्कार ही उसकी छाप को
हमेशा हमेशा के लिए संसार में अमर कर देता है। जिस प्रकार से हम सभी किसी ना किसी
प्रकार से ईश्वर को सत्यं, शिवम्, सुन्दरं मानते हैं, वहीं सत्य हैं, वहीं सुन्दर
हैं, वहीं, शीव हैं। क्योंकि उनकी कृति के माध्यम से यहां संसार में, छोटे –छोटे घास के फुलों
से उसकी सुगंध आती है, वहीं बताते हैं, यह घाष हैं इसमें अन्न पैदा होता है, और यह
अन्न तुम्हारे शरीर में खून बनाता है, और यह खून वीर्य बनता है, और वीर्य से यह
मानव शरीर बनती है।
इसी प्रकार से आपको अपनी कृती के माध्यम से ही यहां संसार में सब
कुछ मीलता है और अंत में यह संसार आपकी कृती के कारण ही आपको अमर कर देता है, और हमेशा
आपके नाम के गीत गाता है।
एक बार फिर मैं कहना चाहता हूं, अबहूं तो चेत गवांर, अर्थात अपनी कृति के प्रती अपनी कला के प्रति, अपनी योग्यता के प्रती, अपनी सृजनशीलता के प्रती
आपमें वफादारी और अगाध श्रद्धा हो, यहीं श्रद्धा आपको सत्यता के उस शीखर तक
पहूंचाने में सहायक सिद्ध होगी, जिसके लिए आपको इस अनंत आकाश में तैरती बीना किसी
सहारे वाली वाली भूमी पर अवतरण का अवसर प्राप्त है, आपको किसी प्रकार की सहारे की
जरूरत नहीं हैं, जिस प्रकार से पृथ्वी चांद, सूर्य इत्यादि तारे हैं, आप भी उन्ही
में से एक हैं, आप का भी इनके साथ संबंध हैं, आपके अंदर एक अनंत आकाश है, और आपकी
आत्मा ही वह सूर्य है, और चंद्रमा ही वह मन हैं, राहू जो ग्रहण लगाने वाला अज्ञान
हैं, इस अज्ञान को मार भगाईए, और ज्ञान के साथ बुद्धि के साथ अपने जीवन के उस
लक्ष्य पर दृष्टि को गड़ाईए, अर्थात एकाग्र किजीए, जो आपको संपूर्ण बनाने में समर्थ
है।
आप स्वयं ईश्वर हैं, आप ही ईस चंद्र सूर्य का आदि श्रोत हैं, इस श्रोत से
आने वाली किरण का साक्षात्कार करें, यहीं चेतना हैं, जब तक आप इस चेतना को सिद्ध
करने में समर्थ नहीं हो जाते हैं, तभी तक आप गंवार हैं, अर्थात आप अनपढ़ हैं, आपको
अभी अपनी आत्मा की किताब को और पढ़ना है, जिससे उसका साक्षात्कार हो जाए और आप
गंवार की उपाधि से मुक्त होने में समर्थ हों, और यह उपाधि संसार की कोई
युनीवर्सिटि अर्थात वीश्वविद्यालय नहीं दे सकता हैं, क्योंकि आत्मा की शीक्षा और
उसकी उपाधी सिर्फ आप स्वयं अपने आप अर्जित कर सकते हैं। क्योंकि आप स्वयं अपने आप
में एक बहुत बड़ी संस्था हैं, और आपके अंदर ही अनंत विश्वविद्यालय चल रहें हैं, आप
संपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपती हैं। अर्थात संस्थापक हैं। जब आप ईश्वर होगए तो
आप अनंत में विलिन होगए, आपकी कोई सीमा नहीं रहीं आप सीमातित हो गए। यह समग्र जगत विश्वब्रह्मांड
अनंत आकाश में फैला हुआ है। और इस अनंत आकाश का अनादि श्रोत आप में विद्यमान है।
मनोज पाण्डेय
अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान वैदिक विश्वविद्यालय
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