Ad Code

जीवन साहब की पुण्यतिथि है

नारायण नारायण। ओमकार नाथ धर उर्फ जीवन साहब को भले ही कई लोग खलनायक के तौर पर पहचानते हों। मगर अनेको ऐसे हैं जो इन्हें नारद मुनि का रूप मानते हैं। क्योंकि भारतीय सिनेमा में जितनी दफा जीवन जी नारद मुनि बने थे उतना कोई दूसरा एक्टर नहीं बना। वैसे तो कहा जाता है कि जीवन साहब ने लगभग साठ दफा नारद मुनि का किरदार निभाया था। कुछ कहते हैं कि वो 61 दफा नारद मुनि बने थे। लेकिन तबस्सुम जी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि कि वो 49 दफा फिल्मों में नारद मुनि बन चुके हैं। अब ये मुझे नहीं पता कि जीवन साहब ने तबस्सुम जी को दिए उस इंटरव्यू के बाद भी नारद मुनि का किरदार निभाया था कि नहीं। लेकिन अगर वाकई में जीवन साहब ने साठ या इकसठ दफा फिल्मों में नारद मुनि का किरदार निभाया है तो फिर तो यकीनन उस इंटरव्यू के बाद भी ये कुछ फिल्मों में नारद मुनि बने होंगे।

जीवन साहब ने पहली दफा जिस फिल्म में नारद मुनि का किरदार निभाया था उस फिल्म का नाम था भक्त ध्रुव। और इस फिल्म में मुख्य किरदार यानि भक्त ध्रुव का किरदार निभाया था शशि कपूर जी ने। ये फिल्म रिलीज़ हुई थी साल 1947 में। आखिरी दफा जिस फिल्म में जीवन साहब नारद मुनि के रूप में दिखे थे वो थी साल 1979 में आई गोपाल कृष्ण में। इस फिल्म में एक्टर सचिन पिलगांवकर मुख्य भूमिका में थे। तबस्सुम जी के जिस इंटरव्यू की बात मैंने शुरू में की थी उसी इंटरव्यू में जीवन जी ने बताया था कि एक दफा एक अखबार ने तो ये तक लिख दिया था कि अगर स्वर्ग से साक्षात नारद मुनि भी धरती पर उतरकर आ जाएं तो लोग तब तक उन्हें असली नारद मुनि नहीं मानेंगे जब तक कि वो जीवन जी के अंदाज़ में नारायण नारायण नहीं बोलते। 

आज जीवन साहब की पुण्यतिथि है साथियों। जीवन साहब को इस दुनिया से गए अब 37 साल हो चुके हैं। 10 जून 1987 को 71 साल की उम्र में जीवन साहब की मृत्यु हुई थी। जबकी जीवन साहब का जन्म हुआ था 24 अक्टूबर 1915 को श्रीनगर में। जीवन 18 बरस के ही थे जब वो कॉलेज की छुट्टियों में मुंबई आ गए थे। घर से वो 26 रुपए लेकर निकले थे। जीवन साहब का इरादा मुंबई आकर एक्टर बनना नहीं था। ये तो फोटोग्राफी के शौकीन थे। थोड़ी-बहुत फोटोग्राफी इन्हें आती भी थी। और ये खुद को फोटोग्राफी में मास्टर बनाना चाहते थे। इसलिए ये सोचकर जीवन साहब मुंबई आए थे कि चलो, मुंबई फिल्म नगरी है। यहां कैमरे का काम खूब होता है। कहीं ना कहीं इन्हें भी फोटोग्राफी सीखने का मौका मिल जाएगा। ताकि बीए कंप्लीट करने के बाद ये अपने शहर श्रीनगर में एक फोटो स्टूडियो शुरू कर सकें।

मुंबई में जीवन आए तो थे कैमरे के पीछे खड़ा होकर काम करने के इरादे से। लेकिन किस्मत इन्हें कैमरे के सामने खींच लाई। जीवन बन गए एक्टर। और एक्टर कैसे बने? ये भी एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है। ये जानना तो और ज़रूरी है। तो हुआ कुछ यूं था कि बंबई में जीवन जी के बड़े भाई रहा करते थे। उनकी जान-पहचान गीतकार डी.एन.मधोक साहब से थी। उन्होंने मधोक साहब से कहकर जीवन को एक फिल्म कंपनी के फोटोग्राफी डिपार्टमेंट में असिस्टेंट की हैसियत से लगवा दिया। ये सोचकर कि जीवन यहां फोटोग्राफी के और गुर सीख लेंगे। उस कंपनी में जीवन जी ने जाना तो शुरू कर दिया। लेकिन कोई वहां इन्हें कैमरे को हाथ तक नहीं लगाने देता था। कई दिन यूं ही बीत गए। इनके कॉलेज की छुट्टियां खत्म होने को थी। यानि इनके वापस लौटने का समय आने ही वाला था। कि तभी इन्हें एक अहम काम मिल गया।

जीवन साहब को प्लाइवुड के दो रिफ्लेक्टरों पर सिल्वर पेपर लगा उन्हें छांव में सुखाने का काम दिया गया था। वैसे तो वो काम स्टूडियो के पियोन किया करते थे। लेकिन जीवन के सीनयिर्स ने वो काम उस दिन इन्हें सौंप दिया। जीवन साहब ने जल्दी से वो काम निपटाया और कंपनी के अहाते में मौजूद एक आम के पेड़ की छांव के नीचे जाकर खड़े हो गए। जीवन ये भूल गए कि जिन रिफ्लेक्टर्स पर उन्होंने सिल्वर पेपर लगाया है उनको भी छांव के नीचे ही सुखाना था। जीवन उन्हें धूप में ही खड़ा छोड़ आए। आम के पेड़ के नीचे डायरेक्टर मोहन सिन्हा कुछ नए भर्ती हुए लड़के-लड़कियों को एक सीन की रिहर्सल करा रहे थे। जीवन भी वो रिहर्सल देखने लगे। इसी बीच किसी ने डायरेक्ट साहब को बताया कि रमेश नाम का कैरेक्टर जिस लड़के को निभाना था वो तो आया ही नहीं है। बस फिर क्या था। उस लड़के का ना आना जीवन साहब के लिए एक मौका बन गया।

डायरेक्टर मोहन सिन्हा ने वहां खड़े जीवन की तरफ देखा और बोले,"बरखुरदार, आप ही कुछ लाइनें बोल दीजिए।" जीवन ने कहा कि मैं तो टैक्निकल डिपार्टमेंट से हूं साहब। मुझे भला एक्टिंग से क्या सरोकार। लेकिन मोहन सिन्हा नहीं माने। वो इनसे कहते रहे कि दो-चार लाइनें हैं। बोल दो। कोई बड़ी बात नहीं है। इत्तेफाक से जीवन साहब ने पढ़ाई के दौरान शेक्सपीयर के नाटक पढ़े थे। कॉलेज में तो आगा हश्र कश्मीरी और पंडित बेताब द्वारा निर्देशित चंद नाटकों में भी इन्होंने एक-दो दफा काम किया था। बस फिर क्या था। मोहन सिन्हा जी का मान रखने के लिए जीवन उनकी रिहर्सल में शामिल हो ही गए। जीवन साहब जब रिहर्सल कर रहे थे तब जिन रिफ्लेक्टर्स को ये धूप में खड़ा छोड़ आए थे, उनकी चमक इनकी आंख पर पड़ रही थी। उस वजह से इनकी एक आंख सही से खुल नहीं पा रही थी। उसी अधखुली आंख से जीवन साहब ने रिहर्सल में अपने डायलॉग्स बोल दिए। और उन डायलॉग्स में जीवन साहब ने आगा हश्र कश्मीरी के एक नाटक का शेर भी पढ़ दिया। 

जैसे ही जीवन के डायलॉग खत्म हुए, वहां खड़े लोगों में कुछ सेकेंड्स तक सन्नाटा पसर गया। और फिर जो तालियां बजनी शुरू हुई तो काफी देर तक बजती रही। हर कोई वाह वाह कह उठा। मोहन सिन्हा इनके पास आए और बोले,"बरखुरदार तुम तो पैदाईशी एक्टर हो। फिल्मों में एक्टिंग करो। मैं तुम्हारी ज़िंदगी बना दूंगा। छोड़ो ये फोटोग्राफी।" जीवन ने भी मोहन सिन्हा साहब का ऑफर स्वीकार कर लिया। और इस तरह ओमकार नाथ धर उर्फ जीवन साहब बन गए एक्टर। जिस फिल्म में इन्होंने पहली दफा एक्टिंग की थी उसका नाम था फैशनेबल इंडिया। और वो फिल्म साल 1936 में रिलीज़ हुई थी। विकीपीडिया वाले इस फिल्म का नाम रोमांटिक इंडिया बताते हैं। लेकिन वो गलत है। #Jeevan #actorjeevan

Post a Comment

0 Comments

Ad Code