लाईलाज खतरनाक भयंकर भगन्दर
आज मैं आप सब को अपने जीवन के एक अद्भुत अनुभूती और असहनिय पिड़ा दर्द को देने वाले खतरनाक गुदा कि बिमारी जिसे संस्कृत में नाड़ी व्रड़ कहते हैं, हिन्दी में भगन्दर कहते हैं, अंग्रेजी में फिस्टुला कहते हैं| यह एक खतरनाक लाईलाज बिमारी है। जो आपरेसन और किसी भी दवा से नाहीं आयुर्वेद के पास इसकी दवा है, नाही एलोपैथी के पास इसका कोई ईलाज है ना ही होम्योपैथी कि कोई दवा है यह कैन्सर का भी बाप है। यह आपरेसन के बाद और खतरनाक रुप धारण कर लेती है| यह हमारा स्वयं का अनुभव है मैं अब हर प्रकार के इलाज करा करके लाखो रुपये खर्च किया दर्दनाक भयानक क्षारसुत्र का ईलाज कराया कोई फायदा नहीं हुआ, यह सिने में हर्ट फेफड़े में समस्या पैदा कर देता है| पेसाब में समस्या और भी सैकड़ो प्रकार कि समस्या पैदा करता है खुन का आना मवाद पस का निरन्तर आना जख्म जो सुखता नही दर्द खुजलाहट रोज रुलाता है जीना मुश्किल कर देता है यह साक्षात मृत्यु है। यह जीवन्त मृत्यु है| इस जीवन्त मृत्यु को जी रहा हु पिछले ३-४ साल से अब मैं मान चुका हु कि यह बिमारी मेरा जान ले कर ही मुझे छोड़ेगी | मैंने वह सब कुछ कराया जो मेरे सामर्थ्य से बाहर था वह भी मैने किया लेकिन मुझे कोई फायदा नहीं हुआ मेरे आखों मे आसुओं का सैलाब निरन्तर बह रहा है। मेरी अवकात मेरे सामर्थ से बाहर हो चुका है ईसका ईलाज मेरे पास धन नहीं है, मैंने अनुभव जो किया वह कोई और ना करें, मेरे द्वारा शुरु में लापरवाही किया गया। मेरे पास रुपया कि कमी थी बाद में मैंने बहुत कुछ किया, लेकिन मेरे हाथ से और मेरे चिकित्सकों से भी यह बाहर रहा वह कहते हैं, कि यह बिमारी बहुत खतरनाक है इसका दुनिया में और कोई ईलाज नही है| इसका इलाज हो कर बहुत लोग ठीक हुये हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हो रहा है, यह मेरे लिये निरन्तर समस्या को बढ़ाने का साधन बन चुका है| कोई और इसके चपेट में ना आये, जो आ चुके है उन्हे इसका बहुत जल्द किसी अच्छे चिकित्सक से इलाज करा कर स्वयं को ठीक करा ले, अन्यथा यह किसी के बस में आने वाली बिमारी नहीं है, यह केवल मृत्यु के बस में आने वाली है| उससे बचने के लिये किसी प्रकार कि लापरवाही से बचे और जो भी हो इससे बचें यह आज तक लाईलाज है जब यह खतरनाक रुप धारण कर लेती है। तो मेरे जैसे अनुभव से रुबरु होंगे। जो बहुत भयावह है जिसको व्यक्त करने के लिये शब्द परयाप्त नहीं हैं| यह बिमारी गुदे के पास अन्दर पहले एक आन्तरिक नाड़ी उभरती है, वह अतड़ी से बाहर निकलती है मल द्वार से अलग अपना एक अलग से रास्ता नाड़ी के रुप में बनाता है, उससे मवाद पस निकलता है खुन भी देता है, धिरे धिरे यह नाड़ी मोटी होती जाती है, यह एक ईन्च से दो ईन्च मोटा और दो तिन ईन्च लम्बा हो सकता है| यह अन्दर मल द्वार के अन्दर एक छिद्र बनाता है, जो निरन्तर बढ़ता रहता है| आपरेसन के द्वारा नाड़ी उपर से काट कर निकाल देते हैं, लेकिन इसकी जड़ नाड़ी कि हड्डी कि तरह बहुत मजबुत समय के साथ हो जाती है, जो काट कर निकाला नहीं जा सकता है| वह निरन्तर फैलता रहता है, वह फैलता है मवाद भरता है फिर बहता है थोड़ा सिकुड़ता भी है| दवा का कुछ खास ईस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता दर्द और खुजली होता रहता है| इस बिमारी का इलाज अभी तलासना बाकी है, इस दुनिया में जब तक इलाज तलासा जायेगा, तब तक कितने हमारे जैसे लोग मृत्यु के मुह में जाने के लिये असमय तैयारी करने के मजबुर हैं। मेरा तो कोई नही है, हमारे बिरोधी बहुत हैं| मेरे साथ देने वाले कुछ गिने चुने लोग ही हैं| मेरा रहना यहा कोई जरुरी नहीं है मैं मर भी गया तो कोई बात नहीं है, यह तो मेरे लिये समस्सा नहीं है। यद्यपी समाधान बन कर आई है क्योंकि यह जीवन मेरे लिये इससे पहले भी मृत्यु से कम नहीं था | मेरे शत्रु अधिक है ईस संसार में मैंने बहुत लोगों से बैचारिक शत्रुता कर ली है। मेरा बहुत लोगों से जान माल का खतरा पैदा हो गया है। वह सब मेरी जान लेने के लिये मुझपर हमला कर चुके हैं। लेकिन मैं तो इस बिमारी से मरने वाला था इस लिये हर बार बच गया और मैंने सोचा कि मैं मरुगा ही नहीं, क्योंकि मेरा बिचार अत्यधिक बिद्रोही है| मैं तो इसको बहुत अच्छा मानता हुं क्योंकि मेरा जीना अत्यधिक कठिन है, मैंने अपने से बहुत ताकत वर व्यक्तियों से दुस्मनी कर ली है। मैं जीवन अपनी शर्त पर जीता हुं, मुझे अपने शत्रुओं के सामने किसी भी शर्त पर समर्पण नहीं करना है। उससे कही अच्छा है मेरा मर जाना इसलिये मैं परमेश्वर को बहुत धन्यवाद देता हुं, कि उसका मुझपर बहुत बड़ा अनुग्रह है जो उसने मेरे लिये इस लाईलाज असाध्य बिमारी का चुनाव करके दिया। मुझे मैंने स्वयं का समर्पण कर दिया है, इसके सामने क्योंकि इसका दर्दनाक ईलाज मेरे सामर्थ से बाहर है, मैंने हिम्मत छोड़ दिया है, मैंन सब कुछ अनुभव कर लिया है, वास्तव में मैंने जान बुझ कर इसको बढ़ाया इस खतरनाक अस्तर तक क्योंकि मुझे मरने में स्वाद आ रहा है। जीवन ने ईतना अधिक रुलाया है, प्रारम्भ से ही इतना अधिक रुलाया और छकाया है, कि मेरा जी भर गया है, इस जीवन से अब मुझे जीवन से अधिक मृत्यु प्रिय लगती है| लेकिन जो मेरे जैसे अनाथ बिद्रोही शत्रुओं से नहीं घिरे है, उनके लिये यह बिमारी ठीक नहीं है। मैं उनको इस बिमारी से बचाना चाहता हुं| इसलिये मैं चाहता हुं कि इस बिमारी का इलाज तलासा जाये, यह दुनिया अधुरी है, यहां कुछ भी पूर्ण नहीं है। सब कुछ झुठा है, जिसमें यह बिमारी भी झुठी है क्योंकि मैं तो मरता ही नहीं मैं तो अमर आत्मा हुं मरती तो यह शरिर है, और यह मन मरता है, मैंन यह अनुभव कर लिया मेरे उपर ईतने भयानक कष्ट आ चुके हैं, जिसने मेरे अन्दर से मृत्यु का भय खत्म कर दिया है। यह जीवन मुझे अधिक खतरनाक अनुभव हो रहा है। मैं जीवन से भयभित हुं, क्योंकि यह जीवन जीने योग्य नही है, यह मरने योग्य जिसके लिये मैं तैयार हो चुका हुं| मेरा कार्य लगभग पुरा हो चुका है|
इस बीमारी का इलाज संभव है मैंने अपना इलाज करा लिया है, और इलाज इसका आपरेशन ही है, लेकिन किसी अच्छे चिकित्सक से इसका आपरेसन कराना चाहिए जितना जल्दी हो सके।
1 Comments
Char sutra vidhi se iska ilaj sambhav hai kripya apne pas kisi
ReplyDeletechar sutra visheshagya ko dikhaye
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